नमस्कार दर्शकों , sanews चैनल पर प्रत्येक रविवार को हमारे चैलन पर हम आपके सामने आध्यत्मिक ज्ञान से सम्बंन्धित ऐसी जानकारी लेकर आते हैं जो आपके और हमारे जीवन से जुड़ी होती है तथा यह जानकारी काफी प्रभावित करने वाली होती है। इसी कड़ी में आज जानेंगे कि आखिर पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने बोला? आज तक तो आपने यही सुना था कि गीता जी का ज्ञान कृष्ण जी ने बोला है। अगर हम यू कहे की यह ज्ञान कृष्ण जी ने नही बोला है तो आपके सामने एक प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाएगा कि ऐसा क्यो है? और साथ ही साथ आपके जानने की उत्सुकता भी होगी कि अखिर किसने बोला है ? दर्शकों, महाभारत के युद्ध स्थल के बीच मे गीता जी का ज्ञान कृष्ण जी के मुख से बोला जा रहा था। लेकिन अगर हम कहे की कृष्ण जी ने नही बोला तो यह आपको सबसे बड़ा झूठ लगेगा।
लेकिन यह सत्य है कि गीता जी का ज्ञान कृष्ण जी ने नही बल्कि काल भगवान ने बोला है जिसे सास्त्रों में ब्रह्म कहा गया है। इस सत्य को हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि जैसे किसी व्यक्ती के सरीर में प्रेतात्मा आकर कुछ बोलती है। इसमे बोल तो प्रेतात्मा रही होती है लेकिन हम समझते हैं कि यह बातें वह व्यक्ति बोल रहा होता है।
दर्शकों हमने सुना था और यह सत्य भी है कि कृष्ण जी ने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी लेकिन फिर भी कृष्ण जी ने रथ का पहिया उठाकर कौरवों की लाखों सेना का नाश कर दिया था ऐसा क्यो? अब केवल इतनी सी बातों से हम सत्य स्वीकार नही कर सकते जब तक इसका पक्का प्रमाण नही मिल जाता है।
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। क्योंकि दो परिवारों कौरवों तथा पाण्डवों का सम्पत्ति वितरण पर विवाद था। कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। दोनों पक्षों का बीच-बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी तीन बार शान्ति दूत बन कर गए। परन्तु दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद्द पर अटल थे। श्री कृष्ण जी ने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहन विधवा होंगी ? कितने ही बच्चे अनाथ हो जाऐंगे? महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। युद्ध में क्या पता कौन मरे, कौन बचे ? तीसरी बार जब श्री कृष्ण जी समझौता करवाने गए तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष वाले राजाओं की सेना सहित सूची पत्र दिखाया तथा कहा कि इतने राजा हमारे पक्ष में हैं तथा इतने हमारे विपक्ष में।
श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे हैं, युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि कहीं पाण्डव मेरे सम्बन्धी होने के कारण अपनी जिद्द इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री कृष्ण हमारे साथ हैं, विजय हमारी ही होगी (क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह श्री अर्जुन जी से हुआ था)।
श्री कृष्ण जी ने कहा कि एक तरफ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ मैं होऊँगा और इसके साथ-साथ मैं वचन बद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार भी नहीं उठाऊँगा। इस घोषणा से पाण्डवों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उनको लगा कि अब हमारी पराजय निश्चित है। यह विचार कर पाँचों पाण्डव यह कह कर सभा से बाहर गए कि
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हम कुछ विचार कर लें। कुछ समय उपरान्त श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवन् ! हमें पाँच गाँव दिलवा दो। हम युद्ध नहीं चाहते हैं। हमारी इज्जत भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो, यह भी टल जाएगा। तब कृष्ण जी ने सभा मे जाकर खुशी जाहिर की। कहा कि युधिष्ठिर, युद्ध टल गया है आप पाण्डवो को केवल पांच गांव ही दे दो वे युद्ध न करने के लिए राजी हो गए हैं। लेकिन दुष्ट युधिष्ठिर टश से मस नही हुवा ओर कहा कि पांडवों को एक इंच भी जगह नही देंगे। कृष्ण जी ने क्रोधित होकर अपना विराट रूप दिखाकर धमकाया। पूरी सभा डरकर भाग गई। ओर सब युद्ध की तैयारी करने लगे।
दोस्तो यही बात गीता जी मे लिखी है कि अर्जुनमेने ये विराट रूप तेरे अलावा पहले किसी को नही दिखाया।। यह विचार करने वाला विषय है कि कृष्ण जी अगर गीता ज्ञान बोलते तो यह नही कहते कि तेरे अलावा पहले किसी को नही बताया क्योकि कौरवों की सभा मे कृष्ण जी अपना विराट रूप दिखाये थे।
दूसरा प्रमाण पवित्र गीता जी का है अध्याय 11 स्लोकः 32 में:
कहा है कि अर्जुन में काल हु और सबको खाने के लिए प्रकट हुवा हु। इस स्लोकः में प्रकट लिखा है जिसका अर्थ होता है कि उसी समय काल कृष्ण जी के सरीर में प्रवेश करके बोला है क्योकि अर्जुन युद्ध नही करना चाहता था और काल युद्ध करवाना चाहता था। कृष्ण जी ने युद्ध टालने के बहुत प्रयास किये थे तथा युद्ध के पक्ष में नही थे। तभी काल ने कृष्ण जी के सरीर में प्रेतवत प्रवेश किया और यह ज्ञान बोलना पड़ा।
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कुछ अज्ञानी लोग यह भी कहते हैं कि कृष्ण जी ने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म का पालन करवाने के लिए प्रेरित किया था जबकि कृष्ण जी स्वम क्षत्रिय थे। एक बार कालयवन ने कृष्ण जी पर आक्रमण किया था लेकिन कृष्ण जी ने युद्ध करना सही नही समझा क्योकि इसमे करोड़ो लोगो की हत्या होती। यह सोचकर अपने क्षत्रिय धर्म भी न निभा कर गुफा में जाकर छिप गए, जिस कारण इनको रणछोड़ भगवान भी कहने लग गए।। बुद्धि जीवी समाज से निवेदन है कि यह सत्य है कि पवित्र गीता जी का ज्ञान काल ने बोला है यह गीत अध्याय 11 स्लोकः 32 से सिद्ध भी हो गया है। क्योकि कृष्ण जी काल नही थे। कृष्ण जी ने इससे पहले और बाद में कभी नही कहा कि में काल हु।
तीसरा प्रमाण आपके सामने रखना चाहते हैं
जब तक महाभारत का युद्ध समाप्त नहीं हुआ तब तक (काल - ब्रह्म - क्षर पुरुष) श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश रहा तथा युधिष्ठिर जी से झूठ बुलवाया कि कह दो कि अश्वत्थामा मर गया, श्री बबरु भान जिसे खाटू श्याम जी कहते हैं उनका शीश कटवाया तथा रथ के पहिए को हथियार रूप में उठाया, यह सर्व काल ही का किया-कराया उपद्रव था, प्रभु श्री कृष्ण जी का नहीं। महाभारत का युद्ध समाप्त होते ही काल भगवान श्री कृष्ण जी के शरीर से निकल गया।
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महाभारत का युद्ध समाप्त होते ही काल भगवान श्री कृष्ण जी के शरीर से निकल गया। श्री कृष्ण जी ने श्री युधिष्ठिर जी को इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) की राजगद्दी पर बैठाकर द्वारिका जाने को कहा। तब अर्जुन आदि ने प्रार्थना की कि हे श्री कृष्ण जी! आप हमारे गुरुदेव हो, हमें एक सतसंग सुना कर जाना, ताकि हम आपके सद्वचनों पर चल कर अपना आत्म-कल्याण कर सकें।
यह प्रार्थना स्वीकार करके श्री कृष्ण जी ने तिथि, समय तथा स्थान निहित कर दिया। निश्चित तिथि को श्री अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण जी से कहा कि प्रभु आज वही पवित्र गीता जी का ज्ञान ज्यों का त्यों सुनाना, क्योंकि मैं बुद्धि के दोष से भूल गया हूँ। तब श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन तू निश्चय ही बड़ा श्रद्धाहीन है। तेरी बुद्धि अच्छी नहीं है। ऐसे पवित्र ज्ञान को तूं क्यों भूल गया ? फिर स्वयं कहा कि अब उस पूरे गीता ज्ञान को मैं नहीं कह सकता अर्थात् मुझे ज्ञान नहीं। कहा कि उस समय तो मैंने योग युक्त होकर बोला था। दोस्तो कृष्ण जी ने अगर गीता ज्ञान बोला होता तो इस तरह नही कहते कि मुझे अब ज्यो का त्यों याद नही है।
एक प्रमाण और बताना चाहेंगे, जब कृष्ण जी को एक शिकारी ने विषाक्त तीर मार उस समय कृष्ण जी मृत्यु शैया पर थे तब अर्जुन ने कहा कि भगवान में कुछ प्रशन पूछना चाहता हु। श्री कृष्ण जी ने कहा अर्जुन पूछ ले जो कुछ पूछना है, मेरी अन्तिम घड़ियाँ हैं। अर्जुन ने आँखों में आंसू भर कर कहा कि प्रभु बुरा न मानना। जब आपने पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा था उस समय मैं युद्ध करने से मना कर रहा था। आपने कहा था कि अर्जुन तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को प्राप्त होगा और यदि विजयी हुआ तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा तथा तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा। हमने आप ही की देख-रेख व आज्ञानुसार युद्ध किया (प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 2 श्लोक 37-38)।
हे भगवन हमारे तो एक हाथ में भी लड्डू नहीं रहा। न तो युद्ध में मर कर स्वर्ग प्राप्ति हुई तथा अब राज्य त्यागने का आदेश आप दे रहे हैं, न ही पृथ्वी के राज्य का आनन्द ले पाये। ऐसा छल युक्त व्यवहार करने में आपका क्या हित था? अर्जुन के मुख से यह वचन सुन कर युधिष्ठिर जी ने कहा कि अर्जुन ऐसी स्थिति में जब कि भगवान अन्तिम श्वांस गिन रहे हैं आपका शिष्टाचार रहित व्यवहार शोभा नहीं देता। श्री कृष्ण जी ने कहा अर्जुन आज मैं अन्तिम स्थिति में हूँ, तुम मेरे अत्यन्त प्रिय हो, आज वास्तविकता बताता हूँ कि कोई खलनायक जैसी और शक्ति है जो अपने को यन्त्र की तरह नचाती रही, मुझे कुछ मालूम नहीं मैंने गीता में क्या बोला था। परन्तु अब मैं जो कह रहा हूँ वह तुम्हारे हित में है। श्री कृष्ण जी यह वचन अश्रुयुक्त नेत्रों से कह कर प्राण त्याग गए। दर्शकों इन प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि पवित्र गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा। यह तो ब्रह्म(ज्योति निरंजन-काल) ने बोला है, जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है। जिसे काल कहते है।
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