क्या #शिवरात्रि पर शिव जी के लिए व्रत रखने से मोक्ष मिलता है? | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj
नमस्कार दर्शकों, खबरों की खबर के हमारे इस कार्यक्रम में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दर्शकों, इस बार मार्च महीने की शुरुआत भगवान शिव के जन्म दिवस से हो रही है। बहुत से लोग खासकर शिवभक्त भगवान शिव का जन्मोत्सव मनाने की तैयारी में जुटे हैं। आज हम शिवरात्रि व भगवान शिव को लेकर आप जी के सामने कुछ ऐसे तथ्य रखेंगे जिनके बारे में आपने नहीं सुना होगा। तो चलिए शुरुआत करते हैं आज के इस कार्यक्रम की।
दर्शकों हिन्दू धर्म के लगभग सभी श्रद्धालु महाशिवरात्रि को बड़े ही धूम धाम से मनाते आये हैं। महादेव, देवो के देव कहे जाने वाले भगवान शंकर तीन लोक के मालिक है। भगवान शिव जी की आयु सभी देवताओं में सबसे अधिक बताई जाती है जिस कारण इन्हें अविनाशी मान लिया गया।
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— SA News Channel (@SatlokChannel) February 27, 2022
■ क्या #शिवरात्रि पर शिव जी के लिए व्रत रखने से मोक्ष मिलता है?
■ तमगुण युक्त भगवान शंकर का नियमित कार्य क्या है?
■ शिव जी किसकी भक्ति में ध्यानमग्न रहते हैं?#Mahashivratri
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हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं का मानना है कि भगवान शिव की पूजा करने से पाप नाश हो जाते हैं और मृत्यु के उपरांत स्वर्ग प्राप्ति होती है। शिव रात्रि पर शिव जी के लिए व्रत रखने से मोक्ष मिलता है। ये केवल श्रद्धालुओं की श्रद्धा है परंतु वास्तविकता कुछ और है जिसका भेद जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी ने अपने सत्संग प्रवचनों में दिया।
दर्शकों, सन्त रामपाल जी महाराज जी ने हमारे सद्ग्रन्थों से हमे बताया कि शिवरात्रि मनाना व शिवरात्रि पर की गई सभी धार्मिक व अन्य क्रियाये शास्त्रविरुद्ध होने से व्यर्थ हैं। इन सभी को हम लाख बार भी क्यों न कर लें परन्तु भगवान शिव को प्रसन्न नहीं कर सकते। भगवान शिव जी से लाभ प्राप्त करने के लिए उनकी शास्त्रानुकूल साधना करनी होगी तभी साधना रूपी परिश्रम का फल हमे प्राप्त होगा। भगवान शिव की स्तिथि से हिन्दू समाज के बहुत कम लोग परिचित हैं जिसके विषय मे सन्त रामपाल जी महाराज जी ने शिव पुराण व श्रीमद भागवत देवी महापुराण से प्रमाण देकर बताया व दिखाया है। सन्त रामपाल जी ने भगवान शिव की स्तिथि शास्त्रोनुसार बयान करते हुए बताया है कि-
भगवान शिव तीन लोक में एक विभाग के भगवान हैं। तमगुण युक्त भगवान शंकर का नियमित कार्य संहार करना हैं। वे अपना अधिकतर समय समाधि में रहते हुए अपने स्वांसों को सूक्ष्म करते हैं जिससे इनकी आयु सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक है।
तीन लोक के भगवान होने के बावजूद भगवान शिव पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। ये अजर-अमर-अविनाशी नही है। इनका भी जन्म मृत्यु होता है। सबसे लंबी आयु वाले भगवान शिव की दीर्घ आयु का राज़ उनका समाधि लगाकर श्वांसों को सूक्ष्म करना हैं। श्रीमदभागवत देवी महापुराण के तीसरे स्कंद के पृष्ठ 123 पर सन्त रामपाल जी महाराज जी ने प्रमाणित कर दिखाया है कि भगवान शिव जन्म मृत्यु में हैं। वे स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि उनकी उतपत्ति माता दुर्गा से हुई है और वे अविनाशी नहीं हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। शिवरात्रि वाले दिन अधिकतर लोग व्रत रखते हैं। व्रत को लेकर भी सन्त रामपाल जी महाराज जी ने गीता जी से प्रमाण दिया है-
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 के 16 श्लोक में पूरी तरह स्पष्ट है कि जो बिल्कुल नहीं खाते यानी व्रत रखते है और अधिक खाने वालों का मोक्ष सम्भव नहीं। जब गीता जी मे ही व्रत रखना मना किया है तो जो लोग व्रत रखते हैं वे सभी भगवान के आदेश के विरुद्ध जा रहे हैं, जो गलत है और भक्ति मार्ग में बाधक है।
इससे सिद्ध होता है कि व्रत रखना व्यर्थ व मनमाना आचरण है।
सन्त रामपाल जी महाराज जी ने आगे बताया है कि व्रत के साथ साथ लोग मन्दिरो में या अपने घर पर ही शिव लिंग की पूजा भी करते है। यह पूजा पूरे हिन्दू समाज मे देखा देखी चल रही है। इस पूजा का विवरण न तो किसी वेद में है और न ही गीता जी मे है। इस शास्त्रविरुद्ध पूजा को करने से साधक को कोई लाभ नहीं हो सकता। इससे सिद्ध होता है कि ये पूजा व्यर्थ है, अनुत्तम है, शास्त्रविरुद्ध है।
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सद्ग्रन्थों से मिले प्रमाणों ने स्पष्ट कर दिया कि ये सब व्यर्थ पूजा है। व्रत रखना, शिव लिंग पूजा करना व भांग पीना तीनों ही मनमाना आचरण होने से शास्त्रविरुद्ध हैं। और शास्त्रविरुद्ध साधना करने से साधक को कोई लाभ नहीं होता। सन्त रामपाल जी महाराज जी ने ग्रंथो से प्रमाणित करके बताया कि भगवान शिव की उतपत्ति माता दुर्गा व सदाशिव यानी ब्रह्म-काल से हुई है।
ब्रह्म जिसे काल भी कहते हैं, 21 ब्रह्मांडो का मालिक है जो नाशवान है। गीता अध्याय 15 श्लोक 16, 17 में 3 प्रभु के विषय मे बताया है। क्षर पुरुष जिसे ब्रह्म-काल भी कहते हैं, जो 21 ब्रह्मांडों का मालिक है। अक्षर पुरुष जिसे अक्षर ब्रह्म, परब्रह्म भी कहते हैं, सात संख ब्रह्मांड का मालिक है।
ये दोनों नाशवान प्रभु बताए हैं। तीसरा परम अक्षर ब्रह्म जो कुल का मालिक है, असंख्य ब्रह्मांड का मालिक है, सारी सृष्टि का रचनहार है, वो अविनाशी भगवान है।
इससे स्पष्ट हुआ कि, भगवान शिव पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, उनसे ऊपर ब्रह्म, परब्रह्म और परम अक्षर ब्रह्म है। क्षर ब्रह्म व अक्षर ब्रह्म नाशवान प्रभु हैं। परम अक्षर ब्रह्म ही सुप्रीम गॉड हैं और उनका नाम कबीर है। जगतगुरु सन्त रामपाल जी महाराज जी ने सभी धर्मों के सद्ग्रन्थों से पूर्व ही प्रमाणित कर दिया है कि बनारस के काशी में प्रकट हुए जुलाहा कबीर के नाम से जाना जाने वाला एक गरीब व्यक्ति वास्तव में असंख्य ब्रह्मांड का मालिक, पूर्ण ब्रह्म है जो हर युग मे एक आम व्यक्ति की लीला करते हुए तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं।
जिस प्रभु की भक्ति स्वयं भगवान शिव भी करते हैं, उसकी भक्ति करने से ही हमे भी सम्पूर्ण लाभ होगा। तो आप सभी से विनम्र निवेदन है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी व पूर्ण सन्त सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की शरण मे आने से आपको वो सही भक्ति विधि प्राप्त होगी जिसके करने से भगवान शिव व अन्य देवी देवता हमे सभी तरह के लाभ देंगे। ये सभी लाभ प्राप्त करने के लिए जल्द ही सतगुरु रामपाल जी मगराज जी से नाम दीक्षा ले और अपना कल्याण करवाएं।
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