Spiritual Research: शिव जी और शिवलिंग पूजा के बारे में अद्भुत रहस्य | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj

नमस्कार दर्शकों ! "खबरों की खबर का सच " के इस कार्यक्रम में आपका बहुत बहुत स्वागत है। आज हम आपके लिए "शिव जी और शिवलिंग पूजा के बारे में अद्भुत रहस्य" से जुड़ी जानकारी लेकर आये हैं।

खबरों की खबर के इस कार्यक्रम में आपका बहुत बहुत स्वागत है। हर बार की तरह इस बार भी एक दिलचस्प विषय के साथ हम पेश करने वाले हैं ऐसे रहस्य जो आपने कभी सुने नहीं होंगे। विश्व में बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं, इन सभी त्योहारों में से भारत में एक प्रसिद्ध त्योहार महाशिवरात्रि भी है। आज हम महाशिवरात्रि है पर चर्चा करेंगे और इसके अनसुलझे पहलुओ को सुलझाएंगे।

शिव जी और शिवलिंग पूजा के बारे में अद्भुत रहस्य

महादेव, देवो के देव कहे जाने वाले भोलेनाथ तीन लोक के भगवान है। शिव भक्तों का मानना है कि भगवान शिव अजर-अमर हैं, अविनाशी हैं। इनके माता पिता नहीं है। ये स्वयं ही सृष्टि को चला रहे हैं। त्रिनेत्रधारी भगवान शम्भू की पूजा करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के उपरांत स्वर्ग प्राप्ति होती है। शिव रात्रि पर शिव जी के लिए व्रत रखने से मोक्ष मिलता है। भगवान प्रसन्न हो जाते हैं आदि आदि।


भगवान शंकर अपने भक्तों से क्या चाहते हैं और अपने भक्तों को क्या-2 सुख दे सकते हैं

हमने मान्यताओं की न मानते हुए ग्रंथो से भगवान शिव जी के बारे में जानना शुरू किया। कौन है भगवान शिव? तीन लोकों के संचालक में इनकी क्या भूमिका है? (Tamgun shnkr, sanhar kriya krte hai) इनकी उतपत्ति कैसे हुई? भगवान शिव से पहले इस सृष्टि में कौन था? यदि भगवान शिव अमर है तो उन्हें सबसे लंबी आयु वाला क्यों कहा जाता है? क्या भगवान शिव की पूजा करना सही है? शिवरात्रि पर व्रत रखने व शिवलिंग की पूजा करने के लाभ क्या हैं? भगवान शिव की पूजा की सही विधि क्या है? भगवान शिव किसकी भक्ति करते हैं? उनसे ऊपर और कितने भगवान है? सुप्रीम गॉड कौन है?


ये सभी प्रश्न हमारे मन मे थे जिनका उत्तर केवल और केवल हमारे ग्रन्थ व पुराण ही दे सकते थे। शिव पुराण, श्रीमद देवीभागवत महापुराण और पवित्र गीता से जो साक्ष्य हमें मिले उन्हें हम आपके साथ साझा करेंगे। इन प्रमाणों को देखने के बाद आप चाहे तो अपने घर रखे पुराण व गीता जी खोलकर देख सकते हैं कि ये सच है या झूठ। 

शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

पुराणों के अनुसार शिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे और इसी दिन पहली बार श्री ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने शिवलिंग की पूजा की थी।

शिव लिंग रूप में प्रकट होने की कथा पुराण में लिखी है। शिव पुराण के अनुसार पूर्व काल में सबसे पहले भगवान विष्णु जी प्रकट हुए और उनकी नाभि से एक कमल खिला जिसपर ब्रह्मा जी की प्रकट हुए। और दोनों आपस मे बहंस करने लगे। भगवान विष्णु जी ने कहा मैं सृष्टि का रचनहार हूँ, ब्रह्मा जी आपकी उतपत्ति मेरी नाभि से हुई है। मैं आपसे श्रेष्ठ हूँ। ब्रह्मा जी बोले कि मैं सृष्टि कर्ता हूँ, सृष्टि की उतपत्ति मुझसे हुई है अर्थात तुम भी मुझसे ही उतपन्न हुए हो इसलिए मैं भगवान हूँ मुझे नमस्कार करो। इस विषय पर दोनों का झगड़ा बहुत बढ़ गया और तभी उन दोनों के बीच मे एक ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया जिसका उन दोनों को कोई ओर छोर नहीं मिला और दोनों ने उस लिंग को प्रणाम किया और अपना वास्तविक रूप दिखाने की प्राथना की तब भगवान शिव लिंग से प्रकट हुए और उन्हें ज्ञान दिया। इस लिए इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। शिवरात्रि के ही दिन भगवान शंकर का विवाह माता गौरी से हुआ था। इसलिए भी शिवरात्रि मनाई जाती है। एक तीसरी कथा यह भी सुनने को मिलती है कि सागर मंथन के समय एक काल कूट नाम का विष निकला था जिसे भगवान शिव ने शिवरात्रि वाले दिन ही अपने कंठ में धारण कर लिया था जिससे बाद में उन्हें नीलकंठ भी कहने लगे।


तो इन तीन कारणों से शिवरात्रि मनाई जाती है। और इसी कारण से शिव लिंग की पूजा प्रारम्भ हुई। अब चलते हैं अगले रहस्य की ओर-


शिवरात्रि कैसे मनाई जाती है? 

बहुत से लोग ये जानना चाहते हैं कि शिवरात्रि वाले दिन क्या क्या क्रियाएं की जाती है। मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि वाले दिन लोग जो क्रियाएं करते हैं, वो बताते हैं-

  • शिवरात्रि पर भगवान शिव के लिए व्रत रखा जाता है।
  • शिवलिंग पर दूध, जल व बेलपत्र चढ़ाकर शिवलिंग की पूजा की जाती है।
  • प्रसाद रूप में भांग वितरित की जाती है व पी जाती है।
  • आरती, भजन गाकर भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया जाता है।


हमारी टीम ने शिवरात्रि को और भी Detail में समझा जिससे ये तथ्य सामने आए-


शिवरात्रि पर व्रत क्यों रखा जाता है?

एक समय एक शिकारी था। वो प्रतिदिन जंगल मे जाता, शिकार करता और अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन यानी शिवरात्रि वाले दिन जब वो जंगल मे शिकार के लिए गया तो उसे कोई शिकार नहीं मिला। काफी देर वो शिकार ढूंढता रहा पर कुछ हाथ नहीं आया। अंत मे वो एक झील के पास जाकर एक बेलपत्र के पेड़ पर ये सोच कर बैठ गया कि कोई न कोई जानवर पानी पीने तो आएगा ही तब उसका शिकार करूंगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो पत्तों और घाँस फूंस के नीचे था जिस कारण वो दिखाई नहीं दिया। शिकारी के पेड़ पर चढ़ते समय कुछ बेलपत्र टूट कर शिवलिंग पर गिर गए और इस तरह शिवरात्रि की एक पहर की पूजा सफल हुई। (ऐसा लोगो का मानना है।) थोड़ी देर में वहाँ एक हिरनी पानी पीने आती है, शिकारी तीर मारने लगता है। हिरनी बोलती है कि मुझे मत मारो, मेरे 2 बच्चे हैं, मैं अपने पति को बच्चे सौंप आती हूँ फिर आप मुझे मार देना।

मुझे इतना समय दो कि मैं अपने पति को बच्चे सौंप आऊँ। शिकारी ने उसे जाने दिया और इन्तेजार करने लगा। तभी एक अच्छा तगड़ा हिरन आया, शिकारी ने फिर दाव लगाया। इस दौरान फिर से कुछ पत्ते शिवलिंग पर गिर गए। हिरन बोला मुझे मत मारो, मुझे इतना समय दो कि मैं अपने बच्चों को अपने से बिछड़ने से पहले उन्हें समझा आऊँ फिर आप मुझे मार लेना। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। हिरन हिरनी ने आपस मे सलाह करके बच्चों को समझाकर वापिस शिकारी के पास चलने लगे तो बच्चे बोले आपके बिना हम क्या करेंगे हम भी साथ जाएंगे तो वो भी साथ चल पड़े। पूरा परिवार शिकारी के पास आया, शिकारी ने फिर दाव लगाया और उसकी हिलझुल से फिर से पत्ते शिवलिंग पर गिरे, तीसरे पहर की पूजा भी सम्पन्न हुई और शिवलिंग से एक प्रकाश निकला जो उसके शरीर ने समा गया जिससे उसे बहुत ज्ञान हो गया, उसमे दया भर गई। उसने हिरन के परिवार को कुछ नहीं कहा और उन्हें जाने दिया। उसके इस तरह शिवरात्रि वाले दिन भूखा रहने और शिवलिंग की अनजाने में पूजा करने और जीव हिंसा त्यागने पर शिवजी बहुत खुश हुए। 

तो इस तरह इस दिन व्रत रखा जाने लगा और शिव लिंग की पूजा होने लगी जिससे भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सके और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। हमारी रिसर्च से हमें पता लगा कि व्रत रखना तो हमारे सद्ग्रन्थों में मन किया हुआ है। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 के श्लोक में पूरी तरह स्पष्ट है कि जो बिल्कुल नहीं खाते यानी व्रत रखते है और अधिक खाने वालों का मोक्ष सम्भव नहीं। जब गीता जी मे ही व्रत रखना मना किया है तो व्रत रखकर भगवान के आदेश के विरुद्ध जा रहे हैं जो गलत है।

दूसरा व्रत के पीछे की जो कथा बताई गई है तो उसमें शिकारी ने जान बूझ कर भोजन नहीं किया था क्योंकि उसके पास खाने को कुछ नहीं था। यानी उसने व्रत नहीं रखा था, यदि उसके पास भोजन होता तो वह भूख नहीं रहता। 

इससे सिद्ध होता है कि व्रत रखना व्यर्थ है, मनमाना आचरण है। व्रत के साथ साथ शिव लिंग की पूजा भी होती है। आइए उसके बारे में बताते हैं-

शिव लिंग पूजा क्या है? शिव लिंग का रहस्य-

  • शिव महापुराण भाग-1, प्रकाशक खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन मुम्बई, हिंदी टीकाकार हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र।
  • विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नन्दिकेश्वर यानी शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई। 
  • इसमें स्पष्ट किया है कि जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी का आपस मे युद्ध हुआ था उस समय एक तेजोमय लिंग प्रकट हुआ था। उसी दिन से वह शिवजी का लिंग विख्यात हुआ। 

विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 9 श्लोक 40-43, पृष्ठ 18 पर लिखा है कि- इसमें मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे दर्शन के निमित साक्षात ईश्वर तक्षणही मैं सगुण रूप हुआ हूँ। ये चालीसवाँ अध्याय है।

 


मेरे ईश्वर रूप को सक्लत्व जानों और यह निष्कल स्तम्भ ब्रह्म का बोधक है। 41स्वां अध्याय। लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रों तुम नित्य ही इसकी रचना करना। 42स्वां अध्याय। यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के भेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। 43स्वां अध्याय समाप्त।


अब विचार करने की बात है पहले तो तेजोमय स्तम्भ ब्रह्मा और विष्णु के बीच मे खड़ा कर दिया। यह सब ये काल ब्रह्म यानी सदाशिव ने भगवान शिवजी का रूप धारण करके किया। शिव रूप में प्रकट होकर और अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया। और उस तेजोमय स्तम्भ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग, गुप्तांग के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की और स्त्री के गुप्तांग लिंगी की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी में प्रवेश करके ब्रह्मा और विष्णु से कहता है कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप है यानी इन दोनों को ऐसे रखकर नित्य पूजा करना।

इसके बावजूद यह बेशर्म पूजा सब पूरे हिन्दू समाज मे देखा देखी चल रही है। इस पूजा का विवरण न तो किसी वेद में है और न ही गीता जी मे। इससे सिद्ध होता है कि ये पूजा व्यर्थ है, अनुत्तम है, शास्त्रविरुद्ध है। ये सब व्यर्थ पूजा है। व्रत रखना, शिव लिंग पूजा करना व भांग पीना तीनों ही मनमाना आचरण होने से शास्त्रविरुद्ध हैं। और शास्त्रविरुद्ध साधना करने से जीव को कोई लाभ नहीं होता। यही बात गीता जी के अध्याय में लिखी है। ये तो बात हुई शिव रात्रि की। अब हम आपको उस शख्श से पूरी तरह परिचय करवाते हैं, जिससे शिवरात्रि सम्बंधित हैं- यानी तीन लोक के भगवान शिव जी से।


भगवान शिव कौन है?

तीन लोक में एक विभाग के भगवान हैं भगवान शम्भू। तमगुण युक्त भगवान शंकर संहार क्रिया करते हैं। अपना अधिकतर समय समाधि में रहते हुए भोलेनाथ अपने स्वांसों को नियंत्रित करते हैं। माता गौरी/पार्वती के पति परमेश्वर हैं भगवान शिव। ये वो जानकारी है जो आप सभी जानते हैं। अब पेश करेंगे वो जानकारी जो आप नहीं जानते।

भगवान शिव पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। ये अजर-अमर-अविनाशी नही है। इनका भी जन्म मृत्यु होता है। इनकी भी उतपत्ति हुई है। सबसे लंबी आयु वाले भगवान शिव की दीर्घ आयु का राज़ उनका समाधि लगाना है जिससे वो अपने स्वांसों को नियंत्रित करके सबसे अधिक आयु के हकदार हैं। ये सब सुनकर आपको आश्चर्या जरूर लगा होगा


भगवान शिव की उतपत्ति


इससे सिद्ध हुआ कि भगवान शिव की माता दुर्गा हैं। (पिता काल है)। भगवान शिव जन्मते व मरते हैं। ये नित्य नही है। दूसरा ये भी पूरी तरह स्पष्ट है कि श्री ब्रह्मा, विष्णु, शिव नियमित कार्य ही कर सकते हैं। किसी के पाप पुण्य घटा बढ़ा नहीं सकते।

भगवान शिव कितने शक्तियुक्त है?

ये सभी जानते है कि भगवान शिव अति शक्तिशाली है। शिव पुराण में एक प्रकरण आता है कि एक बार भस्मागिरी नाम का एक साधु एक पैर पर खड़ा होकर भगवान शिव के लिए तप किया करता था। उस दुष्ट के मन मे दोष था कि भगवान शिव की तपस्या करके उनसे वरदान मांगूगा और शिव जी को खत्म करके पार्वती से शादी करूंगा। और जिस भगवान शिव को हम अंतर्यामी कहते हैं उन्हें ये नहीं पता था कि इसके मन में क्या दोष चल रहा है। एक दिन पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने भस्मागिरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उसको आशीर्वाद दिया और वरदान मांगने को कहा। तब भस्मागिरी ने शिवजी वचन बद्ध करवा लिया और उनसे उनके हाथ मे पहना हुआ भस्म कड़ा मंगा। भगवान शिव ने उसे उसकी सुरक्षा के लिए भस्म कड़ा दे दिया।

भस्मागिरी एकदम सीधा खड़ा हो गया और जोर से हँसते हुए बोला कि शंकर तुझे मारूंगा और पार्वती को अपनी उतनी बनाऊंगा। जब शिव जी ने देखा कि भस्मागिरी भस्म कड़े से मारने वाला है तो शिव जी तुरंत  भाग खड़े हुए। यदि अमर थे तो वहीं रुक जाते और भस्मागिरी का सामना करते। यदि अंतर्यामी थे तो उस दुष्ट भस्मागिरी जो बाद में भस्मासुर कहलाया उसके मन का दोष जान लेते। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव मृत्यु से डर कर भस्मागिरी से दूर भाग रहे थे। जिसे मृत्यु से डर लगे वो मृत्युंजय नहीं हो सकता।


एक बार जब भगवान विष्णु जी राम चन्द्र के अवतार में सीता जी का अपहरण हो जाने के बाद व्याकुलता में सभी जीवों व पेड़ो से सीता जी के विषय मे पूछ रहे थे तब ऊपर से भगवान शिव और पार्वती ये देख रहे थे। भगवान शिव ने राम चन्द्र जी को प्रणाम किया। पार्वती ने कहा कि मैं नहीं मानती कि ये तीन लोक के भगवान है और परीक्षा लेने की बात कही। भगवान शिव ने मना कर दिया कि अगर परीक्षा ली तो आप मेरे काम की नहीं रहोगी। पार्वती जी ने उनके सामने तो मन कर दिया पर उनके जाते ही सीता रूप बनाकर राम जी के सामने खड़ी हो गयी। भगवान राम ने तुरन्त पहचान लिया और बोले, हे दक्ष पुत्री अकेले कैसे आना हुआ, भगवान शंकर को साथ नहीं लाये! इससे वो शर्मिंदा हुई और अपनी गलती की माफी मांगी उन्हें प्रणाम किया और वापिस आ गयी। जब भगवान शिव आये तो उन्होंने पूछा कि ले ली परीक्षा? पार्वती जी मे झूठ बोल दिया कि नहीं ली। और उस समय भगवान शिव अंतर्यामी बन गए और पता लग गया कि परीक्षा लेकर आई है और मुझसे झूठ बोल रही है जिस से वो पार्वती जी से क्षुब्ध हो गए।

 


अब यह तो भगवान शिव जान गए कि पार्वती परीक्षा लेकर आई है, पर भस्मासुर के मन मे क्या दोष था ये पता नहीं लगा पाए। इससे सिद्ध हुआ कि भगवान शिव की शक्ति सीमित ही है। अब चलते हैं मुख्य विषय पर जो पूरी रिसर्च का सार है।

भगवान शिव से ऊपर और कौन भगवान है? सुप्रीम गॉड कौन है?


  • भगवान शिव की उतपत्ति माता दुर्गा व सदाशिव यानी ब्रह्म-काल से हुई है। जो भगवान शिव से ऊपर की शक्ति हैं।
  • गीता अध्याय 15 श्लोक 16, 17 में 3 प्रभु के विषय मे बताया है। क्षर पुरुष जिसे ब्रह्म काल भी कहते हैं, जो 21 ब्रह्मांडों का मालिक है।
  • अक्षर पुरुष जिसे अक्षर ब्रह्म, पर ब्रह्म भी कहते हैं, जो सात संख ब्रह्मांड का मालिक है।
  • ये दोनों नाशवान प्रभु बताए हैं।

तीसरा परम अक्षर ब्रह्म जो कुल का मालिक है, असंख्य ब्रह्मांड का मालिक है, सारी सृष्टि का रचनहार है, वो अविनाशी भगवान है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, उनसे ऊपर ब्रह्म, परब्रह्म और परम अक्षर ब्रह्म है। परम अक्षर ब्रह्म ही सुप्रीम गॉड हैं और उनका नाम कबीर साहेब जी है।

हमारी टीम इन ग्रंथों से कैसे परिचित हुई

विश्व में एक महान सन्त हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 में लिखा है कि पूर्ण गुरु वही होगा जो संसार रूपी वृक्ष को जड़ सहित उसके सभी विभागों को भिन्न-भिन्न करके बता देगा, वो महान सन्त सभी धर्मों के सद्ग्रन्थों को खोल खोलकर दिखाते हैं और पूर्ण परमात्मा की जानकारी देते हैं। उन्ही महान सन्त के सत्संग से व हमारी रिसर्च से सच्चाई आपके सामने है। वो महान सन्त का नाम जानने के लिए आप बेताब हो रहे होंगे, वो सन्त जगतगुरु है। जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज ही वो महापुरुष हैं जो पूरे विश्व को सही ज्ञान देकर अज्ञान का पर्दा उठा रहे हैं। उन्होंने संसार रूपी  वृक्ष को पूरी तरह खोलकर बता दिया है। हम आपसे भी निवेदन करते हैं कि उस महान सन्त के परिश्रम को व्यर्थ न जाने दे और उनके द्वारा दिखाए सद्ग्रन्थों को देखें और अद्धभुत ज्ञान की प्राप्ति करें और उनसे नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाए ।

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