कौन कितना प्रभु? सबसे बड़ा भगवान कौन है? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

कौन कितना प्रभु? सबसे बड़ा भगवान कौन है? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

खबरों की खबर का सच के इस कार्यक्रम में आपका स्वागत है। दर्शकों यूं तो हम सभी अपनी- अपनी प्रचलित भक्ति-साधना करते ही रहते हैं। कभी श्री रामचंद्र जी की तो कभी कृष्ण जी की। कभी दुर्गा जी की तो कभी गणेश जी की। लेकिन कभी न कभी आप सभी के मन में ये सवाल ज़रूर आया होगा कि इन सब में आखिर सबसे बड़ा भगवान कौन है? कौन है वो प्रभु जिसकी भक्ति करने से हमें सब तरह से लाभ मिले और हमारा मोक्ष भी हो।

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तो दर्शकों, आपको बता दें कि इस विषय मे अब आपको ओर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमारे इस रविवार का विषय यही है कि ― कौन कितना प्रभु , जिसके जवाब में हम आपको बहुत चौंका देने वाली सच्चाई से रुबरु करवाएंगे। बशर्ते आप  विडिओ को अंत तक ज़रूर देखिएगा। इस विडिओ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा जी, श्री काल ब्रह्म जी जिन्हें क्षर ब्रह्म यानि क्षर पुरूष भी कहते है, श्री परब्रह्म जी जिन्हें अक्षर ब्रह्म यानि अक्षर पुरूष भी कहा जाता है तथा परम अक्षर ब्रह्म जी जिन्हें परम अक्षर पुरूष व संत भाषा में जिसे सत्यपुरूष भी कहते हैं इनकी यथा स्थिति संक्षिप्त में बताई है जो इस प्रकार है :- 


दर्शकों, हमारी इस पड़ताल में सबसे पहली शक्ति है- परम अक्षर ब्रह्म {जिनका वर्णन गीता जी अध्याय न० 8 श्लोक 3, 8,10 तथा 20 और 22 में ,

  • गीता अध्याय 2 श्लोक 17 मे,
  • गीता अध्याय 15 श्लोक 17 मे,

तथा गीता अध्याय 18 श्लोक 46 और 61, 62, 66 में है , जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान बोलने वाले प्रभु ने अर्जुन को कहा है तथा कहा है कि उसकी शरण में जाने से परम शान्ति यानि जन्म-मरण से छुटकारा मिलेगा तथा (शाश्वतम् स्थानम्) सनातन परम धाम यानि अविनाशी लोक (सतलोक) प्राप्त होगा।} 


गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में इसी की शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता ने कहा है


श्लोक 66 में कहा है कि (सर्वधर्मान्) मेरे स्तर की सर्व धार्मिक क्रियाओं को (परित्यज्य माम्) मुझमें त्यागकर तू (एकम्) उस कुल के मालिक एक परमेश्वर की (शरणम्) शरण में (व्रज) जा। (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (सर्व) सब (पापेभ्यः) पापों से (मोक्षयिष्यामि) मुक्त कर दूँगा, (मा शुच) शोक न कर।


दर्शकों, यह एक परमेश्वर सबका मालिक सबसे बड़ा (समर्थ) कबीर जी ही है जो काशी (बनारस) शहर (भारत देश) में जुलाहे की लीला किया करते और यथार्थ व सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (सूक्ष्मवेद) को बताया करता थे। इसी ने सर्व ब्रह्मंडों की रचना की है। इसी ने क्षर पुरूष, अक्षर पुरूष, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवी दुर्गा जी समेत सर्व जीवात्माओं की उत्पत्ति की है। 

दर्शकों, यह तथ्य इतना सत्य जानो जैसे आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व एक वैज्ञानिक निकोलस ने बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष (धुरी) पर घूमती है जिसके घूमने से दिन तथा रात बनते हैं। उस समय सब मानते थे कि सूर्य, पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। जिस कारण से दिन तथा रात बनते हैं। संसार के सब मानव का यही मत था। इस झूठ को इतना सत्य मान रखा था कि उस वैज्ञानिक का विरोध करके फाँसी पर चढ़वा दिया। परन्तु आज वह चार सौ वर्ष पूर्व वाली बात सत्य साबित हुई और सूर्य घूमता है, यह झूठ सिद्ध हुई।

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ऐसे ही वर्तमान में काशी के जुलाहे कबीर को कुल का मालिक बताना इतना सत्य है जितना लगभग चार सौ वर्ष पूर्व पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमना बताना था। सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अकह लोक यानि अनामी लोक, इन चार लोकों का समूह अमर लोक यानि सनातन परम धाम कहलाता है। इन चारों अमर लोकों में कबीर जी की राजधानी है। उनमें तख्त (सिहांसन) बने हैं। उस सिहांसन के ऊपर बैठकर परमेश्वर कबीर जी राजा की तरह सिर के ऊपर मुकुट तथा छत्र आदि से शोभा पाते है। 

  • वह सतलोक में ‘सतपुरूष’ कहलाते है
  • अलख लोक में ’अलख पुरूष‘, 
  • अगम लोक में ’अगम पुरूष‘ तथा 
  • अनामी लोक में ’अनामी पुरूष‘ की पदवी प्राप्त है। 

 

दर्शकों, जैसे भारत देश का प्रधानमंत्री जी देश का एकमात्र शासक है। प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेता है। उनके दस्तावेज पर हस्ताक्षर करता है तो मंत्री लिखा जाता है। प्रधानमंत्री कार्यालय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करता है तो प्रधानमंत्रा लिखा जाता है। व्यक्ति वही होता है। कबीर परमेश्वर विशेषकर सतलोक (सत्यलोक) में बैठकर सब नीचे व ऊपर के लोकों को संभालते हैं। इसलिए सतलोक का विशेष महत्व हमारे लिए है। उसमें सतपुरूष पद से जाना जाता है। इसलिए ‘‘सतपुरूष’’ शब्द हमारे लिए अधिक मायने रखता है। 

 

जैसे प्रधानमंत्री जी का शरीर का नाम अन्य होता है। ऐसे सतपुरूष यानि परम अक्षर ब्रह्म का नाम ‘‘कबीर है। सतपुरूष कबीर जी की सत्ता अक्षर पुरूष व उसके सात संख ब्रह्मंडों पर तथा क्षर पुरूष व इसके इक्कीस ब्रह्मंडों के ऊपर भी है। इसलिए परम अक्षर ब्रह्म को वासुदेव (सब जगह पर अपना अधिकार रखने वाला) भी कहा गया है। गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में इसी वासुदेव के विषय में कहा है।  दर्शकों, अब आपको श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा शिव (तमगुण) की स्थिति बताते हैं। क्षर पुरूष अर्थात काल रूपी ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मंड हैं। एक ब्रह्मंड में तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी एक-एक कृत के स्वामी यानि प्रभु हैं। 

जैसे एक प्रांत में एक मुख्यमंत्री होता है जो प्रांत का मुखिया होता है। अन्य मंत्रीगण उसके आधीन होते हैं तथा मुख्यमंत्री जी देश के प्रधानमंत्री जी के आधीन होता है। ऐसे ही क्षर पुरूष यानि काल ज्योति निरंजन अपने प्रत्येक ब्रह्मंड में मुख्यमंत्री रूप में है तथा श्री ब्रह्मा जी रजगुण विभाग के, श्री विष्णु जी सतगुण विभाग के तथा श्री शिव जी तमगुण विभाग के मंत्री हैं। ये केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) के प्रभु (मालिक) हैं। परम अक्षर ब्रह्म यानि सतपुरूष कबीर जी को प्रधानमंत्री जी या देश के राष्ट्रपति जी मानो। 


संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी स्वयं मिले थे। उनको ऊपर के ब्रह्मंडों में लेकर गए थे। सब देवों की स्थिति से अवगत करवाया था। अपने सतलोक में भी लेकर गए थे। अपनी स्थिति से भी अवगत करवाया था। फिर वापिस पृथ्वी के ऊपर छोड़ा था। तब संत गरीबदास जी ने भी बताया है कि :-

गरीब, तीन लोक का राज है, ब्रह्मा विष्णु महेश।

ऊँचा धाम कबीर का, सतलोक प्रदेश।।

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रति नहीं भार।

सतगुरू पुरूष कबीर है, कुल के सिरजन हार।।

 

तो दर्शकों, आपको अब ये बताना भी ज़रूरी समझते हैं कि 600 वर्ष पहले इस धरातल पर अवतरण करने वाले कबीर परमात्मा जी वर्तमान में स्वयं एक बार फिर इस पृथ्वी पर तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में अवतरित हैं। 600 वर्ष पूर्व कबीर परमात्मा जी द्वारा इन भगवानों की यही स्थिति बताने के कारण उनपर अनगिन जुल्म ढहाए थे। कभी झेरे कूंए में डाला, कभी खूनी हाथी से मरवाने की कोशिश की। किंतु परमात्मा को कौन मार सकता है? वे हर समय सुरक्षित खड़े मिले। वर्तमान में उन्हीं के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी को भी यही संघर्ष करना पड़ रहा है। आज समाज पढा लिखा है, कहते हैं समझदार को संकेत बहुत होता है। 

 

इसलिए दर्शकों आप सभी से हमारा निवेदन है अपने मनुष्य जीवन को तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में समर्पित होकर भक्ति करके सफल बनाएं क्योंकि मनुष्य जन्म होना व तत्वदर्शी सन्त का मिलना ऐसा सौदा बार बार हाथ नहीं लगता। 

 

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज जी कहते हैं-  

ये संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दोपहरे नु। 

गरीबदास ये वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नु।। 

 

जिस तरह एक कुत्ता रात्रि में उपर को मुख करके रोता है, यदि ये मनुष्य जन्म आपने व्यर्थ गंवा दिया तो आपकी हमारी हम सभी की भी यही स्थिति होगी। पशु-पक्षियों के शरीरों में कष्ट उठायेंगे। तब किसी की कोई सूनवाई नहीं होगी। इसलिए मनुष्य शरीर में रहते हुए अपने सांसारिक काम भी करते करते जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की शरण लेकर भक्ति करके अपना मनुष्य जीवन सफल बनाएं। 

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