किस्मत तथा पुर्बले संस्कार क्या होते हैं? क्या पुनर्जन्म होता है? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

किस्मत तथा पुर्बले संस्कार क्या होते हैं? क्या पुनर्जन्म  होता है? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

खबरों की खबर के हमारे कार्यक्रम में आपका स्वागत है। पशु, पक्षी, जीव-जंतु, मक्खी, मच्छर, कीट, पतंग, सूक्ष्म जीव, मनुष्य आदि प्रतिदिन जन्म व मर रहे हैं। आज किसी के घर मनुष्य की मृत्यु हो रही है तो किसी के घर एक नवजात शिशु जन्म ले रहा है, कहीं कोई पशु मर रहा है तो कहीं जन्म ले रहा है। बहुत से ज्ञानियों का कहना है कि जन्म मरण सदा ही बना रहेगा। कोई भी इससे वंचित नहीं हो सकता। कुछ ज्ञानी सन्त, महंत, पंडित व ब्राह्मण ये कहते हैं कि आज जो मनुष्य रूप में जन्मा है जरूरी नहीं कि अगले जन्म में भी वो मनुष्य ही बने, वो 84 लाख जूनियो में से किसी भी जूनि में जा सकता है। जबकि मुस्लिम पन्थ के काजी, मौलवियों की मान्यता इसके बिल्कुल विपरीत है। वे पुनर्जन्म में ही विश्वास नहीं करते। उनकी माने तो पुनर्जन्म होता ही नहीं। 

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इस तरह की अलग अलग बाते सुनकर हम इस बारे में अधिक जानने की रुचि ही खो देते हैं। दर्शकों आज के वीडियो में हम आपको प्रारब्ध अर्थात पुर्बले संस्कारो के विषय मे जानकारी देने वाले हैं। बहुत से लोग खासकर युवा पीढ़ी इस बात से अनजान हैं कि प्रारब्ध क्या होता है और हमारे जीवन में इसकी क्या महत्वता है! तो आज आप सभी के लिए हम ये वीडियो लाये हैं, यथार्थ व प्रमाणित जानकारी के लिए कृपया पूरा वीडियो ध्यान से देखें।


प्रारब्ध क्या होते हैं?


अक्सर हम घर के बुजुर्गों को ये कहते हुए बहुत बार सुनते हैं कि हमारी किस्मत में यही लिखा होगा, हमारे भाग में यही होगा। पर बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि किस्मत क्या है, कौन बनाता है हमारी किस्मत? कैसे बनती है हमारी किस्मत? 


किस्मत क्या है ये जानने से पहले हम जानेंगे कि प्रारब्ध क्या है?


प्रारब्ध पाप व पूण्य कर्मो का संग्रह है। हमारे रारब्ध कर्मो से ही हमारी किस्मत बनती है।


आज हम जितने भी मनुष्य जन्म प्राप्त प्राणी हैं हम आज के जन्में नहीं हैं। युगों युगों से हम जन्मते व मरते आ रहे हैं। जैसे ही हमारा जन्म होता है पाप और पुण्य का मीटर चालू हो जाता है। इसी तरह हर जन्म में हमनें बहुत से पुण्य कर्म किये और बहुत से पाप भी कमाए। हमारे सभी पाप और पुण्य कर्मो का लेखा जोखा धर्मराय के पास जमा होता रहता है। पिछले जन्मों में हमने जितने भी पाप व पूण्य एकत्रित किये उन सभी पाप पुण्य में से कुछ तो हमें अगले जन्म में भुगतने होते हैं और कुछ जो रह जाते हैं वो हमारे संग्रहित होते रहते हैं। इसी तरह हमारे अब तक जितने भी जन्म हुए उन सभी जन्मों के बचे हुए पाप व पूण्य कर्म संग्रहित होते रहे जिन्हें प्रारब्ध के कर्म कहा जाता है। 


यही प्रारब्ध के कर्मो में से कुछ पाप व कुछ पुण्यों का ratio बनाकर जीव का अगला जन्म तैयार कर दिया जाता है। उस जन्म की उन पाप व पूण्य कर्मों की निश्चित ratio को किस्मत कहते हैं। यदि कोई मनुष्य जन्म प्राप्त प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसके इस जन्म के पाप व पूण्य कर्म सहित प्रारब्ध के कर्मो में से कुछ पूण्य, कुछ पाप इकठ्ठे करके एक नया जीवन पशु का, पक्षी का या फिर यदि मनुष्य जन्म प्राप्त हो तो भिखारी का, अमीर का या गरीब का जीवन मिलता है।


जिसके ज्यादा पूण्य है तो उसके पूण्य का ratio अधिक होगा। जिसके पाप ज्यादा है तो उसके पाप कर्मो का ratio अधिक होगा। 


इसलिए सबकी किस्मत एक जैसी नहीं होती। कोई अमीर घर मे जन्म लेता है तो गरीब परिवार में जन्मता है। कोई अमीर है परन्तु रोगी है, कोई गरीब है परन्तु स्वस्थ है। किसी का हाथ कटा है तो कोई अंधा है। कोई पशु बना है तो कोई पक्षी जन्म भुगत रहा है। कोई कर पतंग बनकर अपना जीवन जी रहा है तो कोई वृक्ष जूनि भुगत रहा है। ये सब हमारे प्रारब्ध के कर्मो का ही फल हमें प्राप्त हो रहा है। आज हम जैसे भी जी रहे हैं, जो भी हमे प्राप्त है वो सब हमारे प्रारब्ध कर्मों के कारण ही है। यही प्रारब्ध कर्म हमारे वर्तमान जन्म की किस्मत/भाग का हिस्सा बन जाते हैं जिन्हें हमें भुगतना ही पड़ता है।


अब जिनके मन में ये संशय आ रहा होगा कि पुनर्जन्म नहीं होता या जो मनुष्य है वो मनुष्य ही रहता है तो उसके संशय का नाश भी यहाँ कर दिया जाएगा। जैन धर्म की एक पुस्तक है- "आओ जैन धर्म को जाने"। इस पुस्तक मे जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर जैन जी के जन्मों का वृतांत दिया गया है। महावीर जैन वाली आत्मा को भी बहुत सी जूनिया लाखों-करोड़ो बार भुगतनी पड़ी। इससे स्पष्ट होता है कि पुनर्जन्म होता है और प्राणी 84 लाख जूनियों में से कोई भी जूनि प्राप्त कर सकता है।


आभी हमने जाना कि प्रारब्ध क्या होते हैं और किस्मत क्या होती है, साथ ही ये भी जाना कि किस्मत कैसे बनाई जाती है।


अब आपको बताते हैं कि पुर्बले संस्कार क्या होते हैं। बहुत से लोग संस्कार को प्रारब्ध समझ लेते हैं और बहुत से लोग संस्कारो का अर्थ पारिवारिक संस्कार समझ रहे होंगे। यहाँ जिस संस्कार की हम बात कर रहे हैं ये वो संस्कार हैं जिनके कारण हम एक दूसरे से जुड़े हैं। हमारा बहुत अच्छा परिवार होता है, माता पिता, भाई बहन, बेटा, बेटी, पोता पोती, अन्य रिश्ते, मित्र, शत्रु, पड़ोसी, आदि से हम बहुत अच्छे से जुड़े होते हैं। इन सबके साथ हमारा संयोग होना कोई आम बात नहीं है। इस काल लोक में यहाँ कोई किसी का सगा सम्बन्धी नहीं है। हर कोई लेन देन के कारण पिछले संस्कार से जुड़ा है। उदाहरण के लिए बताते हैं जैसे एक पिता सारी उम्र मेहनत करके कमाई करता है और पुत्र नालायक निकल जाता है और अपने पिता की कमाई को शराब,  जुए आदि में उड़ाता व नाश कर देता है।

ऐसे ही एक पुत्र है जो कमा कमाकर पैसा घर लाता है परन्तु उसका पिता शराब आदि में पैसा व्यर्थ करता है।


तो ऐसा क्यों हैं? ये संस्कारवश ही होता है। आज कोई किसी का गलत फायदा उठाकर या किसी की चोरी करते हैं या किसी की आत्मा दुखाते हैं तो अगले जन्म में ये सब उन्हें भुगतना ही पड़ता है। आज कोई पुत्र अपने माता पिता को सता रहा है तो अगले जन्म में वो पिता बनेगा और उसके माता पिता उसके सन्तान रूप में जन्मेंगे और अपना बदला पूरा करेंगे। जब उनके संस्कार पूरे हो जाएंगे तो या तो वे अलग हो जाएंगे या मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। 


संस्कार क्या होते हैं विस्तार रूप से समझाने के लिए इसके विषय मे कथा सुनाते हैं


एक बार की बात है एक व्यक्ति का विवाह हुआ। विवाह के उपरांत एक पुत्र प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म लेते ही उस व्यक्ति की  पत्नी की मौत हो गयी। कुछ वर्ष उपरांत उस व्यक्ति ने दूसरा विवाह किया जिससे एक पुत्र हुआ। पुत्र को जन्म देते ही उसकी भी मृत्यु हो गयी। कुछ वर्षों के बाद पिता की मौत हो गयी। दोनों भाई खेती करते और साथ रहते। कुछ समय बाद बड़े भाई का विवाह हो गया। छोटा भाई बीमार रहने लगा। बहुत इलाज करवाया परन्तु कोई आराम नहीं हुआ। उसकी उतनी ने कहा कि ये बीमार तो चल ही रहा है क्यों न इसे विष देकर मरवा दिया जाए, किसी को शक भी नही होगा और इसके नाम की जमीन भी हमारी हो जाएगी। बड़े भाई ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर छोटे भाई को मरवाने की योजना बनाई। एक डॉक्टर को पैसे देकर अपने भाई को विष का इंजेक्शन लगवा दिया। छोटे भाई की मृत्यु हो गयी। कुछ महीनों बाद उनके एक बालक हुआ। इकलौता बेटा था, उसे खूब प्यार करते, खूब धन लुटाते उसपर। 

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जो माँगता तुरन्त लाकर देते। जब बच्चा 15-16 वर्ष का हुआ तो उसका विवाह कर दिया। विवाह होते ही वो बीमार रहने लगा। माता पिता ने कोई डॉक्टर नहीं छोड़ा हर जगह इलाज करवाया पर हालत बिगड़ती ही गयी। आधी जमीन भी बेच दी। एक दिन वो बालक खाट पर लेटा हुआ था, मरने की कागार पर था, उसका पिता उसके पास बैठा था। तब वो बच्चा बोला कि भाई साहब! बात सुनो। तब उसका पिता उसकी तरफ देखता है और सोचता है कि बीमारी ज्यादा होने के कारण ये मुझे भी पहचान नहीं पा रहा मुझे भाई कह रहा है। तो उसके पिता उसको कहते हैं कि बेटा मैं तेरा पिता हूँ, भाई नहीं। 

वो बच्चा कहता है कि नहीं मैं आपका वही भाई हूँ जिसे आपने विष देकर मरवाया था। मैं अपना हिसाब पूरा करने आया था, मेरे हिस्से की जमीन के पैसे भी मुझपर खर्च हो गए। बस लकड़ियों और कफन का हिसाब और बाकी है वो तैयार करले अब मेरा हिसाब पूरा हुआ और मैं शरीर छोडूंगा। अब उस बड़े भाई को ये बात समझ आ गयी कि उसने जो किया वो बहुत गलत किया और उसका फल उसे मिल गया। उसने उससे कहा कि भाई मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी मुझे ऐसा नही करना चाहिए था। भाई मुझे तो मेरे कर्मो की सजा मिल गयी, और सन्तान है नही, मेरे कुल का नाश हो गया। अब और सन्तान होगी नहीं। पर एक बात बता, तेरे साथ जिस लड़की का विवाह हुआ है अब वो तेरे साथ जीवित जलाई जाएगी, इसका क्या दोष था? उस समय सती प्रथा जोरों पर थी और जिसका पति मर जाता उसे साथ ही जीवित जला दिया जाता था। छोटे भाई ने पूछा कि वो डॉक्टर कहाँ है जिसने मुझे विष दिया था? तो उसने बताया कि वो तो आपकी मृत्यु के 4 वर्ष बाद ही मर गया था। छोटा भाई बोला कि ये मेरी पत्नी रूप में वही डॉक्टर है जिसने मुझे विष देकर मारा था और अब ये जिंदा जलाई जाएगी। इतना कहकर उसने अंतिम सांस ली और मृत्यु को प्राप्त हुआ।


इस कथा से पता लगता है कि किस प्रकार हम सभी आपस मे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये सब हमारे संस्कार ही है।आज कोई किसी से गलत तरीके से पैसे वसूलता है तो अगले जन्म में कई गुना करके उसे देने पड़ते हैं। कोई दामाद बनकर अपना हिसाब पूरा कर रहा है तो कोई संतान रूप में अपना संस्कार पूरा कर रहे हैं। किसी से हमने कुछ लिया है तो उसे दे रहे हैं, किसी को दिया है तो उससे लेने के लिए जन्मे हैं। 

इस प्रकार संस्कारवश प्राणी यहाँ हमेशा बंधा रहता है और कभी पार नहीं हो पाता। दर्शकों, ऐसे में हम सभी कोई ऐसा रास्ता चाहते हैं जिससे हम इस संस्कार रूपी भयंकर जाल/बन्धन से मुक्त हो सके और पाप कर्मों रहित हो जाये। और ऐसा रास्ता दिखाने वाला केवल एक सन्त के अतिरिक्त आज तक विश्व मे कोई सामने नहीं आया।


ऐसा महान सन्त कौन है जो हने यहाँ के बंधन से मुक्त करवा दी और हमे पाप रहित करवाकर हमारा मोक्ष कर दे?


उस महान सन्त का नाम जानकर आओ सभी हैरान रह जाएंगे क्योंकि वर्तमान में उस महान सन्त को सभी जानते हैं परन्तु पहचान कोई कोई ही पा रहा है। वो महान सन्त जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं जो हमे बन्धन मुक्त करने की गारंटी देते हैं। सन्त रामपाल जी महाराज जी ही हमारे पापों का नाश करने में सक्षम हैं। 


सन्त रामपाल जी महाराज जी अक्सर आने प्रवचनो में परमेश्वर की वाणी का जिक्र करते हुए कहा करते हैं-

अमर करूँ सतलोक पठाउँ। ताते बन्दीछोड कहउँ।

बन्दीछोड हमारा नामम। अजर अमर है अस्थिर ठामम।।


कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धरयो, भयो पाप को नास।

जैसे चिंगारी अग्नि की, पड़े पुराने घांस।।


इस प्रकार सतगुरु रामपाल जी महाराज जी हमे पाप व बन्धन मुक्त करवाकर अमर लोक ले जाएंगे जहाँ जाने के बाद साधक फिर लौटकर संसार मे नहीं आता अर्थात जन्म मृत्यु समाप्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है। तो देर किस बात की, जल्दी कीजिये और मनुष्य जन्म रहते सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पा लीजिए और अमर लोक जाकर मोक्ष प्राप्त कीजिये। 



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