Spiritual Research: जानिए पाँच यज्ञ कौन कौन सी है तथा यह कैसे होंगी सफल? [Hindi] | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

Spiritual Research: जानिए पाँच यज्ञ कौन कौन सी है तथा यह कैसे होंगी सफल? [Hindi] | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

नमस्कार दर्शकों, खबरों की खबर के इस खास प्रोग्राम में आप सभी का स्वागत है। दर्शकों, कहते है कि जप, तप,दान धर्म आदि साधक के गहनों के समान होते हैं। सभी यही मानते है कि कोई भी साधना इनके बिना अधूरी है परन्तु साधना या पूजा करने में क्या करना जरूरी है और क्या क्या व्यर्थ है ये बहुत ही कम लोग जानते हैं और जो जानते हैं उन्हें सही रास्ते का नही पता। 

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जैसे खेल मेे नियम एक से होते हैं वैसे ही हर स्तर की साधना के नियम भी एक जैसे ही होते हैं। और इन नियमों का पालन किये बिना वो साधना व्यर्थ रह जाती है।  ऐसे ही भक्ति का एक सबसे खास हिस्सा है यज्ञ, जिसके बिना भक्ति-साधना अधूरी है।


तो दर्शको, आज के इस वीडियो में हम आपको यज्ञो के बारे में ही बताएंगे: 

  • आखिर यज्ञ होती क्या हैं? और कितने प्रकार की होती है?
  • इसके करने का सही तरीका क्या होना चाहिए?
  • यज्ञ करने से मोक्ष सम्भव है या नहीं?
  • क्या यज्ञ केवल पंडित व ब्राह्मण को ही करने का अधिकार है?
  • यज्ञ करने से क्या-क्या लाभ और हानि हो सकती है?
  • और कौनसी यज्ञ हमें पुण्य के भागीे बनाने के साथ साथ मोक्ष में भी सहायक है?


दर्शकों, आज तक हमनें केवल होम यानी हवन यज्ञ के बारे में ही सुना है। परंतु यज्ञ केवल हवन करना ही नहीं है। यदि हम कोई भी धार्मिक क्रिया करते हैं दान करना, पक्षियों को दाने डालना, भूखों को भोजन देना, हवन करना, माथा टेकना, जाप करना आदि आदि सभी धार्मिक क्रियाएं यज्ञ में आती हैं। उन लोगो को यकीन नहीं होगा कि वे सब क्रियाएं यज्ञ में आती हैं जिन्होने अब तक हवन यज्ञ को ही सम्पूर्ण यज्ञ मान रखा था। यज्ञ के बारे में ज्यादातर भक्त समाज अब तक पूरी तरह से अपरिचित थे। इसी लिए आज आपको यज्ञ के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी तो विडिओ को अंत तक ध्यान से पढ़ें।


यज्ञ: यज्ञ क्या है? यज्ञ का अर्थ है धार्मिक अनुष्ठान। कोई भी धार्मिक क्रिया करना या कोई अनुष्ठान, पाठ आदि करना ये सब यज्ञ ही है।

मुख्यतः यज्ञ 5 प्रकार की होती है।


1. धर्म यज्ञ

2. ध्यान यज्ञ

3. हवन यज्ञ

4. प्रणाम यज्ञ

5. ज्ञान यज्ञ


परमेश्वर ने भी अपनी अमृत बानी में यज्ञ का प्रमाण दिया है-


"एक यज्ञ है धर्म की, दूजी यज्ञ है ध्यान।

तीसरी यज्ञ है हवन की, चौथी यज्ञ है प्रणाम।

और पांचवी यज्ञ ज्ञान की..."


अब आपको हम इन सभी यज्ञ से परिचित करवाएंगे और बताएंगे कि कौनसी धार्मिक क्रिया किस यज्ञ का हिस्सा है।


सबसे पहले बात करते हैं- धर्म यज्ञ की


दर्शकों, धर्म यज्ञ के नाम से ही पता चलता है कि धर्म करने वाली सभी क्रियाए धर्म यज्ञ में ही आती हैं। बहुत से लोग मंदिरों में दान करने को ही धर्म यज्ञ या दान में मानते हैं। धर्म यज्ञ कई प्रकार से की जाती है जैसे पशुओं को खाना खिलाना, पानी पिलाना, पक्षियों, चींटियों को दाना डालना, भूंखे व्यक्तियों को भोजन करवाना, कपड़े बाँटना, धर्मशाला बनवाना,  जमीन, पैसा दान करना, आपत्ति में लोगों की सहायता करना आदि आदि और भी बहुत तरह से धर्म यज्ञ की जाती है।


अब बात करते हैं- ध्यान यज्ञ की


ध्यान की बात करें तो सभी को लगता है कि एक स्थान पर बैठकर हठपूर्वक मन को रोकने का प्रयत्न करने को ध्यान कहते हैं। जैसे ऋषि लोग परमात्मा प्राप्ति के उद्देश्य से हठयोग के माध्यम से ध्यान लगाया करते थे। वास्तव में यह ध्यान नही बल्कि हठयोग द्वारा कठिन तप होता है। और तप करने से भगवान नहीं मिलता परन्तु सिद्धियां आ जाती हैं जो भक्ति मार्ग में बाधक हैं। कुछ लोगों का कहना है कि अपने मन को विचार रहित होने तक हठयोग करना ध्यान कहलाता है अर्थात मन किसी भी वस्तु या विचार पर केंद्रित न रहे, मन को विचार रहित करके Meditate करो, ध्यान लगाओ। और जब संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाये और सोचना भी बंद हो जाये, विचार समाप्त हो जाय यहीे ध्यान की अंतिम स्तिथि है। 


वास्तव में ध्यान का अर्थ है अपने मन को किसी वस्तु या विचार पर केंद्रित करना। तो सोचने की बात है कि जब विचार ही समाप्त हो जाएंगे तो मन को किस पर केंद्रित करेंगे? विचार समाप्त हो ही नहीं सकते। मन को केवल प्रभु के गुणों के चिंतन में केंद्रित करना ध्यान कहलाता है। बहुत से लोग कहते हैं Meditation करने से उन्हें शक्ति मिलती है। मन को रोका नहीं जा सकता बल्कि अन्य विचारों से हटाकर कुछ देर अच्छे विचारों पर लगाया जा सकता है और मन की गति को धीमा किया जा सकता है जिससे मन को आराम मिलता है परन्तु इस पर पूरी तरह रोक लगाना मुमकिन नहीं। परमात्मा के गुणों में ध्यान लगाने से पूर्ण लाभ मिलता है।


ध्यान यज्ञ के बाद आता है - हवन यज्ञ


हवन यज्ञ तो सभी जानते ही हैं। गांय या भैंस के घी को अग्नि में प्रज्वलित/स्वाह करना हवन यज्ञ कहलाता है। परन्तु अब तक हवन यज्ञ करने के लिए ऋषियों द्वारा लकड़ियों में घी प्रज्वलित किया जाता रहा है जबकि शास्त्रों में ज्योति यज्ञ करने का प्रमाण मिलता है। ऋग्वेद मंडल 8 सूक्त 46 मन्त्र 10 में ज्योति यज्ञ करने को कहा गया है। रुई की बाती बनाकर उसमे घी डालकर जलाने से हवन यज्ञ हो जाता है। लाभ घी प्रज्वलित होने से होता है। हवन यज्ञ दो तरह से होता है। देवी-देवताओं के लिये टेढ़ी ज्योति जलाई जाती है और पूर्ण परमात्मा के लिए खड़ी ज्योति जलानी होती है।

चौथी यज्ञ प्रणाम यज्ञ है


साधना उसी साधक की सफल मानी जाती है जिसमें आधीनी होती है। और प्रणाम यज्ञ करने से आधीनी आती है। अहंकारी व्यक्ति परमात्मा प्राप्ति नहीं कर सकता। जैसे रावण ने इतनी कठिन भक्ति भी की और उसमे अहंकार भी बहुत था जिस कारण से उसकी भक्ति सफल नहीं हो पाई और राक्षस कहलाया। श्रीमद्भागवत गीता जी के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्ति के लिए उसे दण्डवत प्रणाम करने को कहा गया है और गीता अध्याय 18 श्लोक 65 में ब्रह्म कहता है कि मुझे प्रणाम कर, मेरा भक्त बन ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा। इससे स्पष्ट होता है कि ब्रह्म तक की भक्ति करने वाले केवल करबद्ध होकर नमस्कार करते हैं और पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए अष्ट अंग से दण्डवत प्रणाम करना होता है। 


ये प्रणाम यज्ञ है

अब बात करते है पांचवी यज्ञ : ज्ञान यज्ञ की। ज्ञान यज्ञ का अर्थ है ज्ञान ग्रहण करना। सद्ग्रन्थों का अध्ययन और तत्वज्ञान सुनना ज्ञान यज्ञ कहलाता है। गीता जी के अध्याय 4 श्लोक 33 में भी ज्ञान यज्ञ को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। ज्ञान ग्रहण करने से सही और गलत का पता चलता है जिससे साधक सही भक्ति मार्ग चुनकर अपना मोक्ष करवा सकता है इसलिए ज्ञान यज्ञ को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है।


ये तो बात हुई यज्ञ क्या है और कितनी प्रकार की होती है। अब आपको बताते हैं कि यज्ञ किस प्रकार किये जाने से लाभ होता है!

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दर्शकों, हर धर्म मे धर्मी व्यक्ति यज्ञ करते हुए दिखाई देते हैं। परन्तु गुरु बिन यज्ञ करना और तत्वदर्शी सन्त की शरण मे आने के बाद सतगुरु के आदेश से यज्ञ करना, दोनों में भिन्नता है। कोई भी धार्मिक क्रिया करने से उसका फल जरूर मिक्ता है परन्तु सतगुरु के बिना की गई यज्ञ का कोई फायदा नहीं। आप दान करते हैं, भक्ति करते हैं, पाठ रखवाते हैं- बहुत अच्छी बात है, लेकिन सतगुरु के बिना की हुई कोई भी धार्मिक क्रिया सफल नहीं होती। 

आपके द्वारा की गई यज्ञ का फल जरूर मिलेगा परन्तु वो मोक्ष में सहायक नही होगा।  उदाहरण के लिए बताते हैं- कहा जाता है कि दान करने से धन प्राप्ति होती है। जो इस जन्म में दान करेगा तो अगले जन्म में उसे कई गुना फल मिलेगा। यदि कोई सतगुरु के बिना दान करता है तो अगले जन्म में उसे सब सुविधाएं मिलेंगी जैसे बड़ा बंगला, गाड़ी में घूमना फिरना होगा, AC कमरे होंगे, खाने की कोई कमी नहीं होगी परन्तु ये सब सुविधाएं उसे पशु जूनि में मिलेंगी। जैसे हम देखते हैं बहुत से कुत्ते जो अमीर लोगो के घर मे होते हैं उन्हें हर तरह की सुविधा प्राप्त होती हैं। उन प्राणियों ने पिछले जन्म में खूब दान किया होता है जो इस जन्म में भुगत रहे हैं। लेकिन इससे उनका मोक्ष नहीं हो पाया और मनुष्य जन्म भी गया।

वहीं दूसरी और जो साधक सतगुरु की शरण मे आकर दान धर्म करता है तो यदि इस जन्म में उसका मोक्ष नहीं हुआ तो अगले जन्म में उसे ये सारी सुविधाएं भी मिलेंगी और मनुष्य जन्म में मिलेंगी। साथ ही उसे फिर सतगुरु भी मिलेंगे और वो आत्मा भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करेगा। इसलिए कोई भी धार्मिक अनुष्ठान अर्थात यज्ञ करने का पूरा लाभ लेना हो तो तत्वदर्शी सन्त की तलाश करके उसकी शरण ग्रहण करने के उपरांत ही लिया जा सकता है। 


कबीर साहेब जी की बानी में लिखा है कि-

कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।

गुरु बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण।। 


गुरु के बिना की हुई भक्ति व यज्ञ विफल ही रह जाती है। इसलिए तत्वदर्शी सन्त को अपना गुरु बनाएं और उनके आदेश से यज्ञ व भक्ति करके अपना कल्याण करवाये। आज पूरे विश्व में केवल जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी ही इस पृथ्वी पर तत्वज्ञान दे रहे हैं। अब और समय व्यर्थ न करके उनकी शरण मे आओ और सभी यज्ञ का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करो।

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