Spiritual Research: "क्या है छठ पूजा की सच्चाई जिससे आज तक आप सभी अंजान है? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

Spiritual Research: "क्या है छठ पूजा की सच्चाई जिससे आज तक आप सभी अंजान है?" | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

 

खबरों की खबर के हमारे इस खास कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है। सजे बाजार, पटाखों की आवाज, जगमगाते घर, दीपों से सजा हर एक आशियाना, भगवान श्री राम चन्द्र जी के वनवास के उपरांत सीता माता जी को साथ लेकर अयोध्या वापिस लौटने के दिन की समस्त भारतवर्ष के हिन्दू परिवार खुशी मनाते हुए दिखते है। दीपावली पर्व के साथ-साथ कुछ अन्य पर्व भी दीपावली की शान बढ़ा देते हैं। धनतेरस, गोवर्धन पूजा, विश्कर्मा दिवस, भाई दूज, आदि। इन्ही त्योहारों के बाद एक पर्व और भी आता है जिसे छठ पूजा के नाम से जाना जाता है। 

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आज हम आपको छठ पूजा की विशेषता बताएंगे

दर्शकों आप जी को हर प्रकार की जानकारी देना हमारा कर्तव्य है। इसलिए आज छठ पूजा से सम्बंधित पूरी जानकारी हम आपके सामने रखने वाले हैं। कृपया ध्यान से सुने छठ पूजा की महानता व पूजा से सम्बंधित तथ्य।


  • छठ पूजा ,षष्ठी पूजा का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को हिन्दुओ द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व साल में दो बार आता है, एक चैत मास में और दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में।
  • छठ पूजा भारत का विशेष पर्व है जो वैदिक काल से मनाया जाता रहा है। परंतु भारत के बिहार राज्य में ये पर्व खास तौर से मनाया जाता। ऐसा माना जाता है कि यह पर्व बिहार के लोगो का सबसे बड़ा पर्व है। बिहार में ये पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
  • छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ पूजा में किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा नहीं कि जाती। छठ पूजा के दौरान उपवास रखे जाते हैं। लम्बे समय तक पानी मे खड़े होना व प्रसाद देना छठ पूजा की विशेष क्रियाओं में शामिल है। माना जाता है कि- 
  •  चार दिन तक मनाये जाने वाले इस पर्व के पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद रूप में ग्रहण की जाती है।

फिर दूसरे दिन उपवास रखा जाता है जिसमे अन्न व जल का त्याग करना होता है। संध्या समय मे खीर बनाकर पूजा की जाती है। फिर खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है और व्रत खोला जाता है। तीसरे दिन डूबते सूर्य को दूध चढाते/अर्पण करते हैं। और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाते हैं।  इस तरह चार दिन तक छठ पूजा मनाई जाती है। इन चार दिनों में लहसुन और प्याज का सेवन वर्जित होता है।


दर्शकों, छठ पूजा से जुड़े बहुत से तथ्य व कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा राजा प्रियवत से जुड़ी है। कहा जाता है कि राजा प्रियवत को कोई संतान नहीं थी। महृषि कश्यप के कहने से राजा प्रियवत ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र रूप में एक सन्तान हुई परन्तु वो मृत पैदा हुआ। जिसके बाद पुत्रवियोग में जब राजा प्रियवत अपने प्राण त्यागने लगे। उसी समय ब्रह्मा जी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और बताया कि मैं षष्ठी भी कहलाती हूँ। षष्ठी देवी ने राजा को अपनी(षष्ठी की) पूजा करने के लिए कहा। राजा ने उनकी पूजा की जिससे उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई और उनका वंश आगे चला। उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पूजा होने से छठ पूजा का चलन शुरू हुआ। 


एक अन्य कथा के अनुसार प्रथम देव व असुर संग्राम में जब देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देव सूर्य मंदिर में छठी मइया की आराधना की थी। छठी मईया ने प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद त्रिदेव रूप आदित्य, अदिति के पुत्र हुए जिन्होंने देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से छठ पूजा का चलन भी शुरू हो गया था।

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छठ पूजा को लेकर इस तरह की और भी कथाये प्रचलित हैं। ये पूजा लोकवेद में आती है। किसी भी शास्त्र में इसका कोई प्रमाण नहीं है। 


राजा प्रियवत ने पूजा की तो उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई, माता अदिति ने पूजा ने की तो उन्हें भी पुत्र प्राप्ति हुई, कर्ण ने पूजा की तो वो महान योद्धा बने। लोगो का कहना है कि छठ पूजा करने से हमारी सुरक्षा होती है व स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। परंतु आश्चर्य की बात ये है कि छठ पूजा का प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं मिलता। चारों वेद व गीता में इस पूजा का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। छठ पूजा लोकवेद में आती है जिसके करने से साधक को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। यदि छठ पूजा करने से आयु लम्बी होती है, व्यक्ति स्वस्थ रहता है तो छठ पूजा करने वाले साधक जो बेमौत मर जाते हैं उनकी रक्षा क्यों नहीं होती? अकाल मृत्यु से क्यों नहीं बचाव करती छठ पूजा?


रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाने वाला छठ पूजा का यह पर्व शास्त्रों से बहुत दूर है


हिन्दू धर्म के पवित्र शास्त्र; पवित्र चारो वेद व श्रीमद्भागवत गीता जी छठ पूजा करने का समर्थन नहीं करते। जिससे स्पष्ट होता है कि छठ पूजा करने से साधक को कोई लाभ नहीं हो सकता। छठ पूजा का कोई आधार नहीं है और ऐसी निराधार पूजा करने से हम परमात्मा प्राप्ति नही कर सकते। शास्त्रों के अनुसार साधना करने से ही साधक को सर्व लाभ प्राप्त होते हैं। पूर्ण मोक्ष के साथ-साथ पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है। 

श्रीमद्भभागवत गीता जी में निर्देश दिया गया है कि तत्वदर्शी सन्त की शरण मे जाओ और उनसे तत्वज्ञान प्राप्त करके सतभक्ति करो जिसके बाद ही आपको परम् शांति व शास्वत स्थान की प्राप्ती होगी । ऐसे में अब प्रश्न ये उठता है कि तत्वदर्शी सन्त को खोजें कैसे? कैसे पहचान पाएंगे कि तत्वदर्शी सन्त कौन है?


गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई गई है जो वर्तमान में मौजूद जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी पर फिट होती है। सन्त रामपाल जी महाराज ही वो तत्वदर्शी सन्त हैं जिनके बारे में गीता जी अध्याय 15 के श्लोक 1 में वर्णन है। यही वो पूर्ण सन्त है जो शास्त्रों के अनुसार सत्यभक्ति व साधना बताते हैं जिससे साधक पूर्ण मोक्ष का अधिकारी बन जाता है और परम शांति प्राप्त करता है। 

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अन्य देवी देवता हमारे कर्मों को नहीं काट सकते, वे साधक का जन्म मरण नहीं मिटा सकते, वे स्वयं नाशवान है, जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे हैं।  केवल और केवल पूर्ण सन्त, तत्वदरेशी सन्त ही हमे सर्व लाभ व सुख दे सकते हैं। उनके द्वारा बताई गई भक्ति से साधक परमात्मा प्राप्ति करता है।

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