धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज की वास्तविक सच्चाई, जिससे आज तक आप अनजान है | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज की वास्तविक सच्चाई, जिससे आज तक आप अनजान है | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

 

नमस्कार दर्शकों, खबरों की खबर के हमारे इस कार्यक्रम में आपका बहुत बहुत स्वागत है।  आज हम बात करेंगे आने वाले त्योहारों की महत्त्व की। हर त्योहार की अपनी एक कहानी है, महत्व है। आज के वीडियो में हम इसी के विषय में जानेंगे। तो चलिए शुरुआत करते हैं आज की इस खास वीडियो की।

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दर्शकों/दोस्तों, दशहरा अर्थात विजय दशमी के समाप्त होते ही लोगों में दीपावली की उत्सुकता बढ़ जाती है। दीपों का त्योहार दीपावली चारों तरफ प्रकाश और खुशहाली लेकर आता है। बच्चे तो बच्चे, बड़े बुजुर्ग भी इस त्योहार पर खुशी प्रकट किए बिना नहीं रह पाते। नवरात्रि, दशहरा, करवाचौथ के समाप्त होते ही अन्य बहुत से त्योहार जैसे धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज के आने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ये त्योहार ही होते हैं जो घर मे खुशियां ले आते हैं, बिछड़े लोगों को आपस मे मिलाते हैं।


अब हम सबसे पहले आने वाले त्योहार के बारे में बात करते हैं जो दीपावली से दो दिन पहले ही आता है जिसे धनतेरस के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के पर्व पर लोगों द्वारा बड़े ही उत्साह से नए बर्तन खरीदे जाते हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं कि ये पर्व क्यों मनाया जाता है और इस दिन बर्तन क्यों खरीदे जाते हैं? 


धनतेरस के पीछे बहुत सी कथाएं व मान्यताएं हैं। मान्यताओं के अनुसार धनतेरस माँ लक्ष्मी से जुड़ा पर्व है। इस दिन लक्ष्मी माता ने एक गरीब किसान को वरदान दिया था और हमेशा के लिए उसपर लक्ष्मी कृपा बरसाते रहने का वचन दिया था। ये दिन यमदेव को भी समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यमराज के निमित दीप दान किया जाना चाहिए। ऐसा करने से उस परिवार में अकाल मृत्यु नही होती। अन्य कथाओं के अनुसार इस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धनमंत्री का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। भगवान धनमंत्री को चिकित्सा का देवता भी कहा गया है। 

जब वे प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। कलश के साथ प्रकट होने के कारण ही इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि धन वस्तु खरीदने से धन में 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर चांदी के बर्तन व जेवर खरीदने को बहुत ही शुभ माना गया है क्योंकि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करती है। धनतेरस ओर लोग धनिया के बीज खरीदकर भी घर मे रखते है और दीपावली के बाद जमीन में बो देते है। धनतेरस पर विशेष रूप से भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है।


इस तरह धनतेरस त्योहार मनाया जाता है


दर्शकों दीपावली के त्योहार की जानकारी तो बच्चे बच्चे को है। भगवान श्री रामचन्द्र जी जब 14 साल के वनवास के बाद माता सीता व अपने भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो उनके आने की खुशी में अयोध्या के लोगों ने दीप जलाए थे। उस दिन की खुशी की याद बनाये रखने के लिए लोग प्रतिवर्ष उस दिन दीप जलाते और खुशी मनाते। ये परम्परा चलती रही और धीरे धीरे लोगों ने इस दिन को सम्पूर्ण जगमग करने के लिए आतिशबाजी व पटाखों का इस्तेमाल शुरू कर दिया जिससे इस दिन आसमान से लेकर पृथ्वी भी जगमगाती है। घरों की दीवारों पर जगमगाती लाइट्स लगाई जाती है, आंगन में रंगोली बनाई जाती है, दीप जलाए जाते हैं, पटाखे जलाते हैं। हर तरफ जगमगाहट ही नजर आती है। सब खुशी से एक दूसरे के घर मिठाईयां व तोहफे लेकर जाते हैं, गले मिलते हैं, मुँह मीठा करते हैं और भगवान राम अर्थात भगवान विष्णु जी को याद करते हैं। 


दीपावली के अगले दिन ही आता है गोवर्धन पूजा का त्योहार


गोवर्धन पूजा त्योहार की शुरुआत द्वापर युग से हुई थी। हिन्दू मान्यता के अनुसार गोवर्धन ओज से पहले ब्रजवासी इंद्र देवता की पूजा करते थे। परन्तु भगवान कृष्ण जी ने उनकी पूजा करने से मना कर दिया और उनके कहने पर करीब 1 वर्ष तक गाय की पूजा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। ये सब देखकर इंद्र देवता क्रोधित हो गए और ब्रज पर भारी वर्षा करने लगे जिसपर भगवान कृष्ण जी ने उस गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर पूरे ब्रज की रक्षा की। इस लीला को देखकर इंद्र देव शर्मिंदा हुए और उनसे माफी मांगी। तब से प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष के प्रतिपाद को गोवर्धन पूजा की जाने लगी। गो धन अर्थात गाय की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार गौ को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। गौ माता स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इस दिन लोग घर के आंगन में गाय के गोबर से पर्वत बनाकर उसे जल, मोली, रोली, चावल, फूल, 56 प्रकार के भोजन रखकर, तेल का दीपक जलाकर उसकी पूजा और परिक्रमा करते हैं। इस दिन भगवान गिरिराज, कृष्ण जी व लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है।


इस तरह गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता रहा है। जैसे ही गोवर्धन पूजा पूरी हुई तो भैया दूज की तैयारी प्रारम्भ हो जाती है।


कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भैया दूज मनाया जाता है। इस दिन भी अपनी बहन के घर जाता है, बहन अपने भाइ कोे तिलक लगाती हैं, भाई दूज की कथा सुनती हैं, भाई को मिठाई आदि खिलाती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य व लम्बी उम्र के लिए प्राथना करती हैं। उसके बाद ही वे स्वयं भोजन करती हैं। ये त्योहार भाई बहन के प्रेम का त्योहार है। 

इस त्योहार की भी कथा है जो भगवान सूर्या के पुत्र यमराज व पुत्री यमुना से जुड़ी है

कथा के अनुसार यमुना अपने भाई यमराज से मिलने उसके पास जाती रहती थी और जब भी जाती तो उन्हें अपने घर आने की प्राथना करती। भाई यमराज अत्यधिक व्यस्त होने से बहन यमुना के घर नहीं जा पाता था। एक दिन यमराज जी फुर्सत में बैठे थे तो उन्हें यमुना की बात याद आयी और वे यमुना से मिलने उसके घर चले गए। उस दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि थी। अपने भाई को घर पर देखकर यमुना बहुत प्रसन्न हुई और अपने भाई का बहुत ही आदर सत्कार से स्वागत किया, उन्हें तिलक लगाया, विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर खिलाये। इससे यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्रसन्न हुआ जिसके बदले में उसने यमुना को वरदान मांगने को कहा। यमुना ने वरदान में मांगा कि प्रतिवर्ष इस दिन उनके भाई यमराज को उनसे मिलने उनके घर आना होगा और इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाएगा और बहने उसका अच्छे से स्वागत करेंगी तो उन्हें यमराज का भय नहीं रहेगा और जो यमुना के जल में स्नान करेगा वो कभी यमपुरी नहीं जाएगा। यमराज अपनी बहन की खातिरदारी से बहुत खुश थे इसलिए उन्होंने ये वरदान दे दिया।


और तभी से ये त्योहार रूप में मनाया जाने लगा और हर साल इस दिन बहने अपने भाइयों को अपने घर पर आमंत्रित करती हैं और उनकी लम्बी उम्र और उज्ज्वल भविष्य की प्राथना करती हैं।


दोस्तों ये तो थी इन त्योहारों की कथाएँ। अब हम जानेंगे सबसे महत्वपूर्ण बात। और वो ये है कि सभी त्योहार मान्यताओं व अंधविश्वास पर आधारित हैं। ये सब निराधार और व्यर्थ है। इनके मनाने से जीव को कोई लाभ नहीं मिलता। किसी भी धर्म के सद्ग्रन्थों में इन त्योहारों को मनाने का प्रावधान नहीं है।


धनतेरस: लोगों की मान्यता है कि धनतेरस पर यमराज को दीप दान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। परन्तु ऐसे कितने ही लोग होते हैं जो ये सब पूजा करते करते ही युवा अवस्था मे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, तो उनकी रक्षा क्यों नहीं होती धनतेरस की पूजा से?


दीपावली: भगवान रामचन्द्र जी सीता माता के साथ इस दिन अयोध्या लौटे तो सभी ने खुशी मनाई। परन्तु जब माता सीता गर्भवती थी और श्री रामचन्द्र जी ने एक धोबी के व्यंग्य करने से सीता माता को घर से निकाल दिया था तो उस दिन का शोक क्यों नहीं मनाया जाता? वो खुशी किस काम की रही जब राम चन्द्र जी ने अपनी पत्नी व बच्चे को ही त्याग दिया? आओ खुद से ये बात पूछे कि ऐसे में क्या हमे दीपावली का त्योहार मनाना चाहिए? 


गोवर्धन पूजा: भगवान श्री कृष्ण जी ने इंद्र देव की पूजा बन्द करवाकर एक इष्ट की पूजा करने का आदेश दिया था, क्या उस आदेश का किसी ने पालन किया? गोवर्धन पूजा जिसका किसी शास्त्र में प्रमाण नहीं वो करने से क्या लाभ होगा? 


भैया दूज: यमराज सत्य का राज करता है, जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। यमराज के पास इतनी शक्ति नहीं कि वो जीवो के पापों को नष्ट कर सके या पूण्य बढ़ा सकें। इस लोक की चाहे कोई कितनी ही बड़ी शक्ति क्यों न हो, कर्मो के लिखे लेख को नहीं मिटा सकती। सतलोक के पूर्ण शक्ति युक्त परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी ही जीवों के पाप कर्म काट सकते हैं और अपने कोटे से उन्हें सर्व लाभ दे सकते हैं।


जी हाँ दोस्तों, पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही सर्व शक्तिमान है जो सब कुछ करने में सक्षम हैं। वो परमात्मा अपनी प्यारी आत्माओ के कल्याण के लिए समय समय पर पृथ्वी पर स्वयं आते रहते हैं या अपने किसी  सन्त/परम् भक्त को पृथ्वी पर सतगुरु रूप में भेजते हैं।


वर्तमान में भी परमात्मा सतगुरु रूप में इस पृथ्वी लोक पर विराजमान हैं जो जीवों के कर्मों में लिखे लेख को बदल सकते हैं। वो महान सन्त जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं। सन्त रामपाल जी महाराज जी सभी धर्मों के शास्त्रों का गयं रखते हैं। सभी सन्तो की वाणियों का अर्थ जानते हैं। वे स्वयं परमात्मा हैं जो सतगुरु रूप में आकर लीला कर रहे हैं। अपनी पुण्यात्माओं को लेने के लिए ही वे सतलोक से आते हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी जब कलियुग में करीब 600 वर्ष पहले आये थे तब उन्होंने कहा था -


"पांच सहंस और पाँचसौ, जब कलियुग बीत जाए।

महापुरुष फरमान तब, जग तारन को आये।।"


अर्थात कलियुग के 5505 वर्ष बीत जाने पर वो महापुरुष जनता के कल्याण के लिए आएगा। और आज वो महापुरुष सन्त रामपाल जी के रूप में जनता के कल्याण के लिए इस पृथ्वी और मौजूद है। जितना जल्दी हो सके उस महापुरुष को पहचानो, उसका तत्वज्ञान ग्रहण करके उनसे नाम दीक्षा लो और अपना कल्याण करवाओ।

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