Spiritual Research: राम-रावण के वह अनसुने रहस्य जो आज तक आपने नहीं सुने |

Spiritual Research: राम-रावण के वह अनसुने रहस्य जो आज तक आपने नहीं सुने | इन रहस्यों को जानने के देखें SA NEWS की यह खास पेशकश | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

नमस्कार दर्शकों, अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सुलझाने वाली SA news  की इस खास पेशकश में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। दर्शकों, रामायण की कथा को बचपन से ही हम अपने माता-पिता, दादा-दादी, बुक्स व टेलीविजन के माध्यम से देखते व सुनते आए हैं। फिर भी रामायण को जितनी बार भी देख लो मन नहीं भरता। भगवान रामचन्द्र जी की वो लीलाएं आज तक सबको प्रभावित करती आयीं हैं। 

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दर्शकों आज हम आपको रामायण की कथा ही सुनाने वाले हैं बस फर्क इतना होगा कि जो कथा हम हमेशा से सुनते आए हैं उसमें हमारे कुछ शंकाएं रह जाती हैं जो हमारे दिमाग मे तो आती हैं परन्तु हम उसके बारे में सोचना बंद करके अन्य कामों में व्यस्त हो जाते हैं। कुछ लोगों की शंकाये जब हमारे सामने आईं तो उनकी शंकाओ का समाधान करने के उद्देश्य से हम आज का ये वीडियो लेकर आये। शंकाये कुछ ऐसी थी-


★ जब सीता माता को रावण जंगल से उठाकर ले गया तब भगवान श्री रामचन्द्र जी सभी वृक्षों व जानवरों से सीता माई के बारे में पूछते हुए विलाप कर रहे थे, इसका क्या कारण है? क्या वे भी हमारी तरह आम इंसानों की तरह मोह में बंधे हैं?

★ यदि श्री राम चन्द्र जी भगवान हैं तो वे स्वयं क्यों नहीं पता लगा सके कि सीता माई कहाँ हैं? वे तो अन्तर्यामी हैं, उन्हें तो सब पता होना चाहिए!

★ लंका पर चढाई करने के लिए पुल का निर्माण किसने किया? हनुमान जी ने, नल नील ने या भगवान राम चन्द्र जी ने?

★ जब रामचंद्र और लक्ष्मण जी को सर्पो ने बांध लिया था तो वे अपनी शक्ति से आज़ाद क्यों नहीं हो पाए, उन्हें गरुड़ की सहायता क्यों लेनी पड़ी? वे तो भगवान थे।

★ रावण की लंका में सभी राक्षस स्वभाव के थे, परंतु फिर भी रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण का स्वभाव अलग कैसे था। 

★ रावण तो भगवान शिव जी के परम भक्त था तो फिर अंत समय मे उसकी रक्षा क्यों नहीं हो पाई?

★ रावण की मौत का रहस्य जानने के बाद भी श्री रामचन्द्र जी रावण को मारने में बहुत बार असफल रहे। जब वे हार मानने वाले थे तब उनकी सहायता किसने की और कैसे वो बाण रावण की नाभि में लगा?

★ 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस आने के कुछ समय बाद ही मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने अपनी गर्भवती पत्नी सीता जी को घर से क्यों निकाल दिया ? क्या कारण था कि श्री रामचंद्र जी को अपना यह पूरा जीवन पत्नी वियोग में ही बिताना पड़ा ?


बहुत से लोगो ने इन शंकाओ को उजागर किया और उत्तर जानना चाहा जिसके उपलक्ष्य में हम ये सत्य आध्यात्मिक ज्ञान आपके सामने लाये हैं। सभी तथ्यों को ध्यान से सुनें।  तो चलिए शुरू करते हैं इन सभी शंकाओ का समाधान करना।


दर्शको भगवान श्री रामचन्द्र जी तीन लोक के भगवान हैं जो पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। तीनो देवों से ऊपर इनके माता पिता, देवी दुर्गा व ज्योति निरंजन काल विराजमान हैं जिनके आदेश से त्रिलोकिये भगवान सब कार्य करते हैं। तीनो देव के पिता ब्रह्म ने ही भगवान श्री कृष्ण जी मे प्रवेश करके गीता का ज्ञान दिया था जिसमें उन्होंने ये स्पष्ट किया कि बुद्धिमानों की बुद्धि व बलवानों का बल मेरे हाथ मे है, मैं जब चाहूँ ऑन कर दूं और जब चाहे बन्द कर दूं। 

इसी कारण श्री रामचन्द्र जी को ये पता नहीं लग सका कि उनकी पत्नी का अपहरण किसने किया है, वो कहाँ है? सुरक्षित हैं भी या नहीं? किस स्तिथि में हैं। 

जबकि रामचन्द्र जी जिसे समय विलाप करते हुए सभी वृक्षों पर पशु पक्षियों से सीता माता के बारे में पूछ रहे थे तब माता पार्वती जी सीता रूप बनाकर उनके सामने प्रकट हो गयी परन्तु श्री रामचन्द्र जी ने उन्हें तुरंत पहचान लिया और बोले हे दक्षपुत्री माया आप अकेली कैसे आयी? भगवान शिव को कहाँ छोड़ आई?

अब यहाँ विचार करने की बात है कि उस समय राम जी ने अन्तर्यामी होते हुए पार्वती जी को तो पहचान लिया परन्तु वही अन्तर्यामी रामचन्द्र जी को ये पता नहीं कि उनकी पत्नी कहाँ है। इसका उत्तर स्पष्ट है कि ये तीन लोक के भगवान हैं जिनकी बुद्धि और बल इनके पिता ब्रह्म के हाथ मे हैं।


अब बात करते हैं  राम चन्द्र जी सीता माई के विलाप में रो रहे थे और सभी से सीता माई का पूछ रहे थे। क्या वो भी मोह के बंधन में बंधे प्रभु हैं?*


दर्शकों भगवान श्री रामचन्द्र जी की स्तिथि से अवगत होने के पश्चात ये सभी समझ गए होंगे कि जितने भी देवी देवता हैं ये सभी पांचो विकार- काम, क्रोध, मोह, लोभ व अहंकार से ग्रसित हैं। दैव्य शक्ति होने के कारण इनपर इन सभी विकारों का प्रभाव कम हो सकता है परन्तु मिट नहीं सकता। ये पांचो विकार तो पूर्ण परमात्मा के ज्ञान से ही मिट सकते हैं।


तीसरा प्रशन्न थोड़ा जटिल है परन्तु उत्तर स्पष्ट है। तीसरा प्रश्न है-


अब प्रश्न आता है कि लंका पर चढ़ाई के दौरान समुंदर पर पुल कैसे बना ?


ये प्रश्न भले ही जटिल क्यों न हो, परन्तु इसका उत्तर आपको स्पष्ट रूप में मिलेगा।

दर्शकों त्रेता युग मे एक मुनीन्द्र ऋषि थे जो नल नील के गुरुजी थे। नल नील अपने गुरुजी की सेवा करते और उनके साथ रहते। धीरे धीरे वे आश्रम में आने वाले भक्तों की सेवा भी करने लगे और उनके कपड़े व बर्तन धोने के लिए नदी किनारे ले जाया करते थे। नदी में बर्तन व कपड़े भिगोने के लिए छोड़कर दोनों भाई परमात्मा की चर्चा करने लग जाते थे और फिर बर्तन व कपड़े धोकर आश्रम में ले आते थे। परन्तु किसी का कोई कपड़ा तो किसी का कोई बर्तन नहीं मिलता। उनके चर्चा करने के समय कुछ वस्तुएं पानी मे बह जाती जिसका उन्हें ध्यान नहीं रहता। ऐसा काफी बार हो गया था। तब सभी ने परिधान होकर गुरुजी से बताया। नल नील ने माफी मांगी तब उनके गुरुजी मुनीन्द्र ऋषि जी ने नल नील को आशीर्वाद दिया कि बेटा अब तुम्हारे हाथ से जल पर रखी कोई भी वस्तु डूबेगी नहीं और न ही बहेगी। जहाँ रख दोगे वहीं स्थिर हो जाएगी। और ऐसा ही होता। 


जब सबको पता चला कि भगवान राम जी की पत्नी सीता को रावण उठाकर ले गया तो सभी राम चन्द्र जी की मदद के लिए पहुँचे। जब राम चन्द्र जी ने समुंदर से रास्ता मांगा तो समुंदर ने नल नील के विषय मे बताया और राम चन्द्र जी ने उन दोनों को तुरंत आगे बुलाकर पूछा कि क्या तुम्हारे पास ऐसी कोई शक्ति है जिससे जल पर पत्थर तैर सकते हो? तो उन्हें इस बात का अभिमान हो गया और वे परमात्मा अपने गुरुजी को याद करना भूल गए और अभीमानवश होकर जल में पत्थर फेंके परन्तु पत्थर जल में डूब गए। ये देखकर सब मायूस हो गए। तब समुंदर ने कहा कि इन्होंने महान भूल करदी, अपने गुरुजी को याद नहीं किया जिस कारण अब इनके पास वो शक्ति नहीं रही। तब नल नील को पश्चाताप हुआ और अपने गुरुजी को याद करने लगे। तभी ऋषि मुनीन्द्र जी वहाँ पहुंचे और कहा कि अब तुम दोनों के पास ये शक्ति कभी नहीं रहेगी। 

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जिसके बाद रामचन्द्र जी ने मुनीन्द्र ऋषि से आग्रह किया कि हे महापुरुष जब आप अपने शिष्यों को ये शक्ति दे सकते हो तो आप मेरी भी सहायता कर सकते हो। हे महात्मा जी कृपया मेरी सहायता कीजिये। तब कबीर परमेश्वर ने एक पहाड़ी के चारो तरफ अपनी डंडी से लकीर खींच दी और कहा कि इस पहाड़ के सब पत्थर हल्के हो गए हैं ये पानी मे नहीं डूबेंगे। तुम इनसे पुल बना सकते हो। रामचन्द्र जी ने और सभी ने मुनीन्द्र ऋषि जी को प्रणाम किया और पुल बनाने लगे। हनुमान जी उस पहाड़ से बड़े बड़े पत्थर लेकर आये, नल नील शिल्पकार थे जिस कारण पत्थरों को आकार में काटकर समुंदर पर जोड़ना उनकी जिम्मेदारी थी। इस तरह सभी की मदद से पुल तैयार हुआ। परन्तु पुल बनवाने वाले पूर्ण परमात्मा थे जो मुनीन्द्र ऋषि के रूप में त्रेता युग मे आये हुए थे।

कबीर साहेब जी ने इस विषय मे बताया-

सतयुग मे सत् सुकृत के टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा।

द्वापर में करुणामय कहाया, कलियुग नाम कबीर धराया।।


कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं अपनी प्यारी आत्माओ का कल्याण करते हैं। समुन्दर पर पुल बनवाने वाले भी मुनीन्द्र ऋषि के रूप में आये हुए कबीर परमेश्वर ही थे।


अब बात करते हैं युद्ध के दौरान जब श्री राम चन्द्र जी, लक्ष्मण जी व उनकी सेना को सर्पों ने बंधी बना लिया था तब वे बन्धन मुक्त परमात्मा भगवान विष्णु जी स्वयं बन्धन मुक्त क्यों नहीं हो सके? उन्हें गरुड़ की सहायता की जरूरत क्यों पड़ी?*


दर्शकों, भगवान श्री रामचन्द्र जी बन्धनमुक्त परमात्मा नहीं हैं। वे स्वयं इस काल लोक में काल के बंधे हुए हैं, तो वह खुद को या किसी और को मुक्त कैसे करवा सकते हैं? बंधनों से मुक्त होने के लिए निर्बंध की आवश्यकता पढ़ती है और निर्बंध तो केवल

बन्दीछोड़ परमेश्वर कबीर साहेब जी ही है, वास्तव में यही पूर्ण परमात्मा हैं जिन्हें कोई बांध नहीं सकता। 


राक्षसों की नगरी लंका में रहते हुए भी मंदोदरी व विभीषण कासव भाव देवताओं जैसा कैसे था ?


दर्शकों जब परमेश्वर कबीर साहेब जी त्रेता युग में मुनीन्द्र ऋषि के रूप में आये थे। तब लंका में रानी मन्दोदरी की दासी को परमेश्वर कबीर साहेब जी मिले थे उसे ज्ञान समझाया जिसके बाद उनका पूरा परिवार मुनीन्द्र जी की शरण म आ गया था। तब धीरे धीरे वो नौकरानी रानी मन्दोदरी को कबीर साहेब जी का ज्ञान बताती जिससे मन्दोदरी बहुत प्रभावित हुई और ऋषि मुनीन्द्र जी की शरण ग्रहण की। मन्दोदरी ने आने पति रावण को भी बहुत समझाना चाहा परन्तु रावण नहीं माना। जब मन्दोदरी रावण को ज्ञान बताती तो विभीषण भी ज्ञान सुनता था। एक दिन विभीषण ने मन्दोदरी से ज्ञान के बारे में पूछा तो मन्दोदरी ने विभीषण को भी अपने गुरुजी मुनीन्द्र ऋषि से नाम दिलवा दिया। वे दोनों परमात्मा की सतभक्ति करते थे जिस कारण से वे राक्षस कुल में होते हुए भी राक्षस स्वभाव के नहीं थे।


 रावण भगवान शिव का परम भक्त था, तो उसकी रक्षा क्यों नहीं हुई? दर्शको आपको बता दें कि भगवान ब्रह्मा विष्णु और शिव शंकर पृथ्वी स्वर्ग और पाताल इन तीनो लोक में केवल 1-1 विभाग के मंत्री हैं यह जिसने जैसा किया केवल उतना ही दे सकते हैं उसको घटा बढ़ा नहीं सकते यानी के मृत्यु को नहीं टाल सकते । जैसे रावण ने शंकर जी के सामने 10 बार अपना शीश काटकर चढ़ा दिया था तो शंकर जी ने दसों बार शीश वापस कर दिया इससे ज्यादा ये नहीं कर सकते परंतु वेदों में लिखा है कि केवल पूर्ण परमात्मा ही साधक की मृत्यु को टाल सकता है इस तरह रावण की मृत्यु का कारण यह भी था कि रावण को अपनी भक्ति पर, अपने राज्य पर, अपनी औलादों पर अभिमान हो गया था जिस कारण रावण भगवान से दूर होता चला गया। वो भक्ति करता था पर अभिमानी हो गया था। और जहाँ अभिमान होता है वहाँ भगवान नहीं होता। इसलिए उस अहंकारी का नाश हुआ  भगवान श्री रामचन्द्र जी को विभीषण ने रावण का मृत्यु बिंदु बता दिया था कि रावण की नाभि में तीर लगने से ही उसकी मौत होगी। ये जानने के बावजूद वे इतने दिनों से रावण को मारने का प्रयत्न करते रहे परन्तु नाभि पर वार न कर सके। जब थक हार गए और रावण नहीं मरा तब राम चन्द्र जी ने भगवान को याद किया और परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सूक्ष्म रूप में उनका तीर ले जाकर रावण की नाभि में मार दिया जिससे रावण की मौत हुई।


अब बात करते हैं की अग्निपरीक्षा दिला कर सीता जी को वापस घर लाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी ने सीता माता को घर से क्यों निकाल दिया था?


दर्शकों, श्री रामचन्द्र जी रात को एक आम व्यक्ति के वेश में नगरी में घुमा करते थे जिससे लोगों की आपत्तियों की दूर कर सकें। एक दिन जब वे रात्रि में बाहर गए तो एक व्यक्ति अपनी पत्नी को डांटते हुए कहा रहा था कि चली जा यहाँ से अब क्या लेने आई है यहाँ? तीन दिन तक कहाँ गायब थी? क्या पता किसके साथ थी? इतने दिन बाहर रहकर आयी है अब मैं तुझे स्वीकार नहीं कर सकता। मैं उस रामचन्द्र की तरह पागल नहीं जिसने 12 वर्ष तक बाहर पराये मर्द के साथ रही अपनी पत्नी को स्वीकार कर लिया। चली जा यहाँ से और दोबारा यहाँ मत आइयो। ये सब सुनकर राम चन्द्र जी को लगा कि उनका तो मजाक बनकर रह गया है। जिस कारण से अगले ही दिन उन्होंन अपनी पत्नीे सीता माता को ये कहकर घर से निकाल दिया  कि मैं लोगों के व्यंग सहन नहीं कर सकता ।


जबकि वे स्वयं सीता जी की अग्नि परीक्षा लेकर उन्हें अपने साथ लाये थे परन्तु एक धोबी के मजाक करने पर उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल दिया ।


तो क्या ये सही इंसान भी थे जिन्हने एक गर्भवती महिला को आम व्यक्ति के व्यंग्य करने पर घर से निकाल दिया? जबकि अग्नि परीक्षा में सीता माई सफल हुई थी जिससे सिद्ध भी होता है कि वे पूर्णतया सती व पतिव्रता थी फिर भी रामचन्द्र जी ने उन्हें घर से निकाल दिया। जिसके बाद वो कभी नहीं मिले।


दर्शकों, अब बात करते हैं असली मुद्दे की,आखिर क्या कारण था कि श्री रामचंद्र जी ने पूरा जीवन पत्नी के वियोग में ही बिताना पड़ा।


दर्शको श्री रामचंद्र जी जो कि भगवान विष्णु जी के ही अवतार है उन्होंने एकबार नारद जी से मजाक किया था जिस कारण से नारद जी विवाह नहीं कर पाए और विष्णु जी को श्राप दे दिया कि तू भी एक जीवन पत्नी के वियोग में जियेगा तब तुझे मेरे कष्ट का अहसाह होगा। और उसी श्रापवश विष्णु जी राम रूप में त्रेतायुग में आये और पहले वनवास में 12 वर्ष पत्नी के वियोग में रहे और जब सीता गर्भवती हुई तब पूरा जीवन पत्नी के वियोग में जिए।


तो ये कैसे भगवान हुए जो अपना श्राप न नष्ट कर सके। ये पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। केवल पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही तीन ताप का नाश कर सकते हैं। सभी संकटों को दूर कर सकते हैं दर्शको हमें पता है की इन सभी शंकाओ का समाधान जानकर आप चौंक गए होंगे। पर यहाँ एक बात और भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि दशहरा यानी विजय दशमी मनाना व्यर्थ का आचरण है। लोग दशहरा इसलिए मनाते हैं ताकि ये यादगार बनी रहे कि इस दिन दुनिया से बुराई का नाश हुआ था और अच्छाई की जीत हुई थी।


परन्तु विचार करने की बात है, कि सीता माता को रावण की कैद से मुक्त करवाने के लिए राम चन्द्र जी ने रावण के साथ युद्ध किया, उसे मार दिया और फिर उसी सीता माता की अपने घर से निकाल दिया। तो युद्ध करने का और रावण को व इतनी जनता को मारने का क्या फायदा हुआ?  इतनी जीव हत्या का पाप और बढ़ गया। और दूसरा जिस दिन सीता माता जी के आने की खुशी में लोगों ने दीप जलाकर सीता माता का स्वागत किया था तो उस  दुख की घड़ी का क्या जब उन्हें घर से निकाल दिया गया? फिर आज दीपावली किस उपलक्ष्य में मनाई जाती है? माता सीता जी के घर आने की खुशी में या उनके महल त्याग कर जाने की खुशी में?


आज का समाज समझदार है, सब संकेत समझ सकता है। इन विचारों पर गौर करें और ये आन उपासना और ये निराधार त्योहार मनाना छोड़कर परम् पिता परमात्मा की सतभक्ति करे। सतभक्ति से सर्व लाभ प्राप्त होंगे और मोक्ष भी होगा। वर्तमान में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी के भेजे हुए अवतार जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी सभी सद्ग्रन्थों से प्रमाणित सतभक्ति बता रहे हैं। इसलिए अब देर न करें, तत्वज्ञान समझें और उनसे नाम दीक्षा लेकर अपना जीवन सफल बनायें।

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