Spiritual Research: करवा चौथ की कहानी का सच | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

Spiritual Research: करवा चौथ की कहानी का सच | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सुलझाने वाली SA news  की इस खास पेशकश में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। दिन बीते, राते बीती, हफ्ते बीते, महीने बीते और साल बीतने पर आखिरकार फिर से आज वह दिन आ ही गया है  जिस दिन हर तरफ माँ दुर्गा की तरह सजी धजी देवी स्वरूप विवाहित महिलाएं ही दिखाई देती हैं। 

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जी हाँ..दर्शकों, बिल्कुल सही पहचाना आपने! हम बात कर रहे हैं, करवा चौथ के व्रत की। भारतीय महिलाओं के लिए ये करवा चौथ का व्रत सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। करवाचौथ का व्रत सभी सुहागन महिलाओं के लिए बहुत ही खुशी का पर्व होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि करवाचौथ का व्रत रखने से पति की उम्र लम्बी हो जाती है और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 


दर्शकों, इस दिन पूरा श्रृंगार करके, दुल्हन की तरह सजकर,पूरे दिन भूखे रहना, शाम को करवा चौथ की कहानी सुनना व सुनाना और फिर बेसब्री से रात को चाँद का इंतज़ार करना, ये सब चीजें इस दिन को बहुत ही स्पेशल बना देती हैं। परन्तु क्या आप यह जानते हैं कि ये स्पेशल दिन ही आपका जीवन नाश कर सकता है ? करवाचौथ का व्रत रखने वाले 99.9% प्रतिशत लोग करवाचौथ का व्रत रखने से होने वाले नुकसान के बारे में नही जानते होंगे।


आज के इस वीडियो में हम आपको करवाचौथ के व्रत की पूरी दासतां सुनाएंगे।  कि आखिरकार करवाचौथ के व्रत का इतिहास क्या है? 

  • क्यों रखा जाता है करवाचौथ का यह वर्त ?
  • इसके पीछे की कहानी क्या है ?
  • इस व्रत को रखने के क्या लाभ और क्या हानियां हैं?

दर्शकों,आज हम आपको इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर से परिचित करवाने वाले हैं, तो वीडियो को अंत तक जरूर देखें और जाने अपने मन मे उठे हर सवाल का जवाब, हमारे साथ।


करवाचौथ के इतिहास (History of Karwa Chauth)


दर्शकों, वैसे तो करवा चौथ की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि ये परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवताओं की विजय के लिए ब्रह्मा जी ने देवों की पत्नियों को व्रत रखने का सुझाव दिया था। जिसे स्वीकार करते हुए सभी देवताआें की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार व निर्जल व्रत किया। नतीजा ये रहा कि युद्ध में सभी देव विजयी हुए आैर इसके बाद ही सभी देवताओ की पत्नियों ने अपना व्रत खोला। 

उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आैर आकाश में चंद्रमा निकल आया था। मान्यता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत शुरू हुआ। ये भी कहा जाता है कि शिव शंकर जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था। महाभारत काल में भी इस व्रत का जिक्र है आैर पता चलता है कि कुंती ने भी पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था। 


पौराणिक कथाओँ के अनुसार यह भी कहा जाता है कि सबसे पहले इस व्रत को करने की शुरूआत देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए की थी। इसी व्रत को करने से उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं।


अब जानते है करवाचौथ के दिन सुनी और सुनाई जाने वाली कहानी के बारे में -

दशकों, करवा की कहानी कुछ इस प्रकार है-

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। प्यार इतना था कि वो पहले उसे खाना खिलाते और बाद में खुद खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। उस समय चंद्रमा के न निकलने के कारण वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी। ऐसे में सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। जो दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। 


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भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। इससे वह बौखला जाती है। तब उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। 


करवाचौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं  सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। 


जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। ये भाभी उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई की वजह से तुम्हारा व्रत टूटा था इसलिए उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। 

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इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने की बहुत कोशिश करती है लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। और तभी से सब सुहागन मानती हैं कि जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान मिला, वैसा ही सब सुहागिनों को भी मिलेगा, जिस कारण सभी सुहागन महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं।


दर्शकों करवाचौथ का व्रत रखने के बारे में हमने ये कथाएं तो जरूर सुनी हैं परंतु इन कथाओं के लिए हम अपने धर्मिक सद्ग्रन्थों को नहीं टाल सकते।  हिन्दू धर्म के प्रमुख सद्ग्रन्थ, पवित्र चारों वेद व पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता हैं। इन ग्रंथों में कहीं भी व्रत रखने के लिए नहीं लिखा। किसी भी अध्याय में व्रत का जिक्र तक नहीं है।


बल्कि, गीता जी के अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करना मन किया है और स्पष्ट लिखा है कि अधिक खाने वाले और बिल्कुल न खाने वालों का योग यानी भक्ति कभी सफल नहीं होती। बिल्कुल न खाना मतलब व्रत रखना। व्रत रखने वालों का योग कभी सफल नहीं होता। ये हम नहीं कह रहे, हमारी श्रीमद्भागवत गीता जी कह रहीं हैं।


और जो साधना हमारे शास्त्रों में ही नहीं लिखी वो साधना हम एकमात्र किसी देवी, देवता या सुनी सुनाई कथा से प्रभावित होकर कैसे कर सकते हैं? शास्त्रविरुद्ध साधना करनी जीव को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। ये भी गीता जी स्पष्ट करती है।


शास्त्रविरुद्ध साधना करके हम परमात्मा के खिलाफ जा रहे हैं जिससे बड़ा पाप और कोई हो ही नहीं सकता।


दर्शकों, सन्तों ने अपनी वाणी में करवाचौथ का व्रत रखने वालों के लिए यहां तक बताया है कि-


"पढ़े जो करवाचौथ कहानी। तास गधेरी निश्चय जानी।।

करे एकादशी संजम सोई। करवाचौथ गधेरी होई।।"


अर्थात करवाचौथ का व्रत रखने वाली गधी बनेगी। 


इसलिए व्रत रखने से कोई लाभ हो ही नहीं सकता, केवल हानि ही होती है। और जो लोग यह कहते कि-- करवाचौथ का व्रत रखने से पति की उम्र लम्बी होती है तो हर साल व्रत रखने वाली सुहागन महिलाओं में से बहुत से महिलाएं विधवा क्यों हो जाती है?

इसके अलावा बहुत सी खबरें तो ऐसी आती हैं जिसमें करवाचौथ के दिन ही सुहागन को उसके पति की मृत्यु का समाचार मिल जाता है। तो हम आपसे पूछना चाहेंगे कि इस व्रत ने क्या आँट लगाई? क्यों नहीं बचाया उन पतियों को जिनकी पत्निया दिलों-जान से हर साल करवाचौथ व्रत रखती आयी परन्तु फिर भी विधवा हो गयी? इसका जवाब है किसी के पास? नहीं है! और हो भी नहीं सकता क्योंकि इस साधना का आधार केवल दन्त कथाएँ हैं, पवित्र शास्त्र नहीं।


जो महिलाएं अस्वस्थ होती हैं, जिनकी दवाइयां चल रही होती हैं या जो महिलाएं अन्य किसी प्रोब्लम के कारण निराहार व निर्जल व्रत नहीं रख सकती तो उन्हें समाज क्या कहेगा? उनके पतियों की रक्षा कैसे होगी? क्या कभी किसी ने सोचा है?


जो हमारी तकदीर में लिखा है, जब तक हमारा जीवन है तभी तक व्यक्ति जीवित रह सकता है। पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त किस्मत में लिखा कोई नहीं टाल सकता। जो गलत साधनाये हम कर रहे हैं उससे हम परमात्मा से कोसों दूर हो रहे हैं जिस कारण हम उसकी शरण से वंचित हैं और लाभ नहीं ले पा रहे। हम सबका रक्षक केवल और केवल पूर्ण परमात्मा है जो न केवल हमारी रक्षा करेगा बल्कि हमें पूर्ण मोक्ष भी देगा।


वो पूर्ण परमात्मा कौन है? कैसा है? कहाँ रहता है? ये जानने के लिए आपको जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनने होंगे जो प्रमाणों सहित ये सिद्ध करते हुए बताते हैं कि पूर्ण परमात्मा कौन है! कैसा है! कहाँ रहता है?किसने देखा है।


दर्शकों, वेदोनुसार वो पूर्ण परमात्मा अपने साधक की जीवन वृद्धि भी कर सकता है।  इसलिए करवाचौथ जैसी निराधार साधनाओ को त्यागकर हमे सन्त रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेकर पूर्ण परमात्मा की साधना करनी चाहिए जिससे हमें सर्व लाभ के साथ साथ मोक्ष भी मिलेगा। तो देर मत करो और जल्दी से जल्दी सन्त रामपाल जी महाराज की शरण मे आओ और अपना कल्याण करवाओ।

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