krishna Janmashtami in Hindi: जन्माष्टमी की वह सच्चाई जो आज तक आप से छुपाई गई | Spiritual Leader Saint Rampal Ji
नमस्कार दर्शकों! खबरों की खबर के हमारे इस खास कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज के कार्यक्रम में हम आपके लिए कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़ी विशेष जानकारी लाये हैं।
दर्शकों,श्रावण मास का महीना बहुत शुभ माना गया है। ये महीना त्योहारों से भरपूर होता है। इस महीने में नाग पंचमी, तीज, मुहर्रम, रक्षा बंधन आदि त्योहारों के साथ तीन लोक के भगवान श्री विष्णु ऊर्फ श्री कृष्ण जी का जन्म दिवस अर्थात कृष्ण जन्माष्टमी आती है। इस साल जन्माष्टमी 30 अगस्त, सोमवार को मनाई जाएगी।
सुंदर और मनमोहक भगवान श्री कृष्ण जी का नाम सुनते ही उनके भक्तों को उनकी बाल लीलाएं याद आने लगती हैं। माखन चुराना, गोपियों के पानी के मटकेे फोड़ना, यशोदा मइया को तंग करना, गोपियों के साथ रासलीला करना, अपनी बाँसुरी की मधुर आवाज से सबको अपनी और आकर्षित कर लेने के साथ-साथ बालक रूप में होते हुए बड़े से बड़े दानवों का सर्वनाश करने जैसी उनकी आलौकिक लीलाओं से हर कोई परिचित है।
विष्णु अवतार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की श्रावण मास को कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे कंस की कारागार में माता देवकी से आठवीं सन्तान के रूप में हुआ। भगवान विष्णु जी के अवतार होने के कारण वह बचपन से ही दिव्य शक्तियुक्त थे। जन्म लेने के बाद से ही वे आलौकिक लीलाये करने लग गए थे और बुराई का विनाश करना प्रारम्भ कर दिया था। अवतार रूप में आये भगवान कृष्ण जी ने अपनी नटखट बाल लीलाओं से सबको मोहित कर लिया जिससे आज भी लोग उन्हें व उनकी लीलाओं को याद करते हुए उनके जन्मोत्सव को बहुत ही धूम धाम से मनाते हैं।
जन्माष्टमी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मनाई जाती है
जन्माष्टमी के आगमन से पहले ही घर-घर में जोर-शोर से इसे मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पूरे भारत में इस त्यौहार का उत्साह देखने लायक होता है। बच्चे, बूढ़े, युवा,माताएं,बहनें और गृहणियां सभी श्रद्धा, भक्ति और उत्साह से जन्माष्टमी का दिन मनाते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी को श्रद्धालु विभिन्न प्रकार से मनाते हैं। कहीं फूलों और इत्र की सुगंध से, तो कहीं माखन की हांडी फोड़ने के कार्यक्रम आयोजित करके। इस दिन मंदिरों को विशेष रूप से कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकियों से सजाया जाता है। गांव तथा शहरों की गलियों और मंदिरों में भगवान कृष्ण की लीलाओं व झांकियों और भजन कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग भगवान श्री कृष्ण जी की प्रतिमा को पंचामृत स्नान करवाकर तथा नए वस्त्र पहनाकर उन्हें झूला झूलाते हैं। उन्हें माखन और छप्पन व्ंयंजनों का भोग भी लगाते हैं। इस दिन लोग जन्माष्टमी का व्रत रखते हुए केवल जल व फलाहार ही करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण जी व उनकी लीलाओं के बारे कौन नहीं जानता? सब इस पवित्र त्योहार से बखूबी परिचित हैं। परन्तु आज हम त्रिलोकी नाथ, सुदर्शन चक्रधारी श्री विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण जी के जन्म उत्सव के अवसर पर जानेंगे भगवान कृष्ण जी से जुड़े बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य व उनकी लीलाओं से जुड़े रहस्यों के बारे में… जो आपने न कभी सुने होंगे और न देखे होंगे।
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— SA News Channel (@SatlokChannel) August 29, 2021
दोस्तों, हम सभी ने अभी तक यही सुना है कि श्री कृष्ण जी ने कंस को मार दिया, पूतना मार दी, शिशुपाल से युद्ध किया, कालयवन को हराया और भी न जाने कितने ही दानवों का नाश किया। गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर सारे बृरजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया परन्तु आज हम यहाँ भगवान श्री कृष्ण जी के जीवन के दूसरे पहलू पर प्रकाश डालेंगे और आपको केवल सत्य बताएंगे।
क्या आप जानते हैं की भगवान श्री कृष्ण जी अर्थात विष्णु जी भी जन्म-मृत्यु के चक्र में आते हैं?
सुनकर यकीन नहीं हो रहा होगा, इसलिए हम आपको श्रीमद देवीभागवत महापुराण से प्रमाणित करके बताते हैं।-
प्रमाण:- श्रीमद देवीभागवत महापुराण, तीसरा स्कंद, पृष्ठ 123 पर प्रमाण मिलता है कि श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि उनका आविर्भाव और तिरोभाव अर्थता जन्म और मृत्यु हुआ करता है, वे अविनाशी और नित्य नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान श्री विष्णु जी अर्थात श्री कृष्ण जी का जन्म मृत्यु होता है, वे अविनाशी नहीं है अर्थात नाशवान प्रभु (जो स्वयं जन्म मृत्यु में हैं उन) की भक्ति करने से हमारा मोक्ष नहीं हो सकता, वे हमारा जन्म मृत्यु का रोग नहीं काट सकते।
अब बात करते हैं घर घर में सम्मान के साथ रखी, पूजी और पढ़ी जाने वाली श्रीमद्भगवतगीता की
सब मानते हैं कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को दिया है जबकि गीता जी का ज्ञान ब्रह्म-काल ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके दिया है और गीता जी के अध्याय 11 के श्लोक 32 मे ये सिद्ध भी हो जाता है। फिर भी यदि गीता ज्ञान को श्री कृष्ण जी का आदेश मानते हुए भी चलें तब भी आज कोई गीता जी मे उनके दिए दिशा निर्देश व आदेश के अनुसार भक्ति साधना-क्रिया नही कर रहा। सब मनमानी पूजा कर रहे हैं जिस कारण आज कोई भी पूर्ण रूप से सुखी नहीं है और मनमाना आचरण करने से किसी को कोई लाभ नहीं मिल रहे। आइये अब हम आपको गीता में लिखे उन रहस्यों के बारे में बतातेे हैं जिनके बारे में आज तक किसी ने भी आपको नहीं बताया।
🪶 गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करना मना किया गया है, परन्तु फिर भी लोग व्रत रखते हैं।
गीता जी अध्याय 6, श्लोक 16 में लिखा है कि-
"हे अर्जुन यह योग (साधना) न तो अधिक खाने वाले की, या बिल्कुल न खाने (व्रत रखने) वाले की सिद्ध होती है। न अधिक जागने वाले की, न अधिक श्यन करने (सोने) वाले की सिद्ध होती है न ही एक स्थान पर बैठकर साधना करने वाले की सिद्ध होती है।"
अर्थात भूखे रहना यानी व्रत रखने से साधक की योग यानी भक्ति कभी सफल नहीं हो सकती। अतः जन्माष्टमी पर व्रत रखने से कोई लाभ नहीं है। यह व्यर्थ साधना है।
मोक्ष मंत्रों की जिनका गीता जी में वर्णन है पर किसी को उनका भेद नहीं
गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता अपनी भक्ति का ॐ जाप बताता है परन्तु ॐ जाप से भी मोक्ष सम्भव नहीं है क्योंकि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म भी स्वयं जन्म-मृत्यु में है। गीता अध्याय 4 श्लोक 5 ये सिद्ध करता है। इससे आगे गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता ने मोक्ष मंत्रो का सांकेतिक रूप ’’ऊँ तत् सत्’’ के रूप में विवरण देते हुए इस मन्त्र के जाप से पूर्ण मोक्ष संभव बताया है।
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इससे स्पष्ट होता है कि गीता जी में न बताए जाने वाले अन्य जितने भी मन्त्र हैं, जैसे हरे राम, राम-राम, राधे राधे, कृष्णा-कृष्णा, हरि ॐ तत सत, ॐ नमः शिवायः, ॐ भगवते वासुदेवायः नमः, मृत्युंजय जाप आदि मन्त्र जिनका जाप नकली धर्मगुरु करने को बताते हैं वे सब शास्त्रविरुद्ध व मनमाना आचरण होने से व्यर्थ हैं अर्थात उनसे मोक्ष बिल्कुल भी सम्भव नहीं है। गीता अ.17 श्लोक 23 में बताए गए मंत्रों का सतगुरु/सच्चे सन्त/तत्वदर्शी सन्त की शरण मे जाकर जाप करने से ही मोक्ष सम्भव है। गीता ज्ञान दाता पूर्ण मोक्ष के लिए किसी अन्य परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है।
गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 18:62 से 66 में अर्जुन से परम शांति और शाश्वत स्थान प्राप्त करने के लिए किसी अन्य "परमात्मा" की शरण में जाने को कह रहा है। इससे सपष्ट होता है कि गीता ज्ञान दाता की शरण में रहने से मोक्ष सम्भव नहीं है जिस कारण वह परम शांति के लिए किसी अन्य परमेश्वर की शरण मे जाने को कह रहा है।
वो परमात्मा कौन है? इसका वर्णन
🪶 गीता जी में तीनों गुणों अर्थात तीनों भगवानों की पूजा करना वर्जित किया गया है। श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा अध्याय 9 श्लोक 20 से 23 में प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया कि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) अर्थात तीनो भगवानों की भक्ति करने वालों को असुर स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले, मूढ़ लोग बताया है। अर्थात 4 गाली इकठ्ठे ही दी हैं।
इससे सिद्ध होता है कि इन भगवानों की भक्ति करने से कोई लाभ नहीं
अब यहाँ विचार करने की बात है कि हिन्दू भक्त समाज श्रीमद्भगवद्गीता में आस्था रखते हुए और इस पवित्र ग्रंथ के प्रति अत्यंत सम्मान रखते हुए भी, गीता जी में दिए गए आदेशों के विपरीत साधनाएं कर रहा है। जिस कारण गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार उन्हें कोई भी लाभ, सुख या मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं
भगवान श्री कृष्ण जी केवल तीन लोक के मालिक हैं। सतोगुण युक्त कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। तीनों देवता; श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी, 21 ब्रह्मांड के मालिक, ब्रह्म की संतान हैं। ये अविनाशी नहीं है। इसलिए ये पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।
हमने किस आधार से भगवान श्री कृष्ण जी को परमात्मा माना?
भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज को इंद्र देवता के प्रकोप से बचाया था। जिससे उन्हें भगवान मान लिया गया।
इस विषय मे परमात्मा अपनी वाणी में कहते हैं-
गोवर्धन श्री कृष्ण धारयो, द्रोणगिरि हनुमन्त।
शेषनाग सब सृष्टि उठारयो, इनमें कौन भगवंत!!
कबीर साहेब जी कहते हैं कि एक पर्वत उठाने से यदि कोई भगवान हो जाता है तो पुराणों के अनुसार शेषनाग तो अपने फन पर पूरी पृथ्वी उठाये हुए है तो इनमें से भगवान कौन हुआ? परमात्मा की पहचान के लिए हमारे शास्त्र, हमारे सद्ग्रन्थ ही प्रमाण है।
कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण जी जब बाँसुरी बजाते थे तो सभी पशु पक्षी बांसुरी की मधुर आवाज से आकर्षित होकर उनके पास आकर मोहित होकर बैठ जाते थे। उनकी इस लीला से भी हमने उन्हें भगवान मान लिया एकबार कालिन्द्री नदी के किनारे परमात्मा कबीर साहेब जी ने बाँसुरी बजायी थी तो ऊपर के लोकों से देवी देवता भी उनकी बाँसुरी की मधुर धुन सुनने के लिये नीचे आ गए थे। उनकी बाँसुरी की धुन इतनी आकर्षित थी कि कालिन्द्री नदी का जल भी स्थिर हो गया था।
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हमे ये भी सुनने को मिलता है कि कृष्ण जी ने राजा मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज को आरे से कटवाकर जीवित कर दिया था। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि वही कृष्ण जी अपने सगे भांजे अभिमन्यु को जीवित क्यों नहीं कर पाए? अभिमन्यु की मृत्यु से उनके कुल का नाश हो रहा था, सभी रो रहे थे, स्वयं भगवान कृष्ण जी भी रो रहे थे, उस समय सबको अभिमन्यु की जरूरत थी परन्तु श्री कृष्ण जी अभिमन्यु को जीवित नहीं कर सके।
इसका कारण हमें तत्वदर्शी सन्त ही बता सकते हैं कि ऐसा क्यों हुआ था? और तत्वदर्शी सन्त ने बताया है कि ये देवी देवता किसी की आयु नहीं बढ़ा सकते। जिनकी आयु शेष है केवल उन्हें ही जीवित कर सकते हैं परन्तु जिनकी आयु शेष नहीं है उन्हें वे जीवित नहीं कर सकते। कबीर भगवान पूर्ण परमात्मा हैं जिन्होंने कितनों को ही जीवित कर दिया और उन्हें नाम भक्ति देकर उनका कल्याण भी किया।
हर अवतार का पृथ्वी पर आने का एक ही उद्देश्य होता है और वो है अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करना। वही भगवान श्री कृष्ण जी ने किया। अधर्मी लोगों और राक्षसों को मारकर उन्होंने विश्व मे शांति और धर्म की स्थापना की। परन्तु पूर्ण परमात्मा अपने तत्वज्ञान की शक्ति से ही अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करते हैं। वो किसी भी जीव को मारते नहीं, क्योंकि सभी जीव उन्हीं के हैं।
यदि भगवान श्री कृष्ण जी का जीवन काल देखें तो वो भी इस दुनिया में आकर सुख नहीं भोग सके। कभी कंस उनकी जान के पीछे पड़ गया था तो कभी कालयवन उन्हें मारना चाहता था। जन्म लेते ही मामा कंस शत्रु हो गया था। सब उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। इन सबसे तंग आकर वो द्वारिका नगरी में रहने लगे पर उसके बावजूद उनके जीवन में शांति नहीं थी। महाभारत का युद्ध हुआ, अपनी आंखों के सामने ही अपने कुल का नाश होते देखा और फिर अंत में एक शिकारी के विषाक्त तीर के टांग में लगने से उनकी मृत्यु हो गयी थी।
देखा जाए तो परमेश्वर कबीर साहेब जी पर भी 52 बार ऐसे जुल्म किये गए थे,सिंकदर लोधी राजा के धार्मिक पीर शेख त़की ने उन्हें जान से मारना चाहा परन्तु बाल भी बांका नहीं कर सके। अंत मे परमेश्वर कबीर साहेब जी मगहर से सबके सामने सहशरीर सतलोक गए। उनका जन्म मृत्यु नहीं होता, क्योंकि वे पूर्ण परमात्मा हैं। वो सहशरीर आते हैं और सहशरीर ही वापिस चले जाते हैं। और यही प्रमाण हमारे सद्ग्रन्थ भी देते हैं।
तीन लोक के प्रभु तीन ताप का नाश भी नही कर सकते
भगवान विष्णु जी स्वयं तीन ताप का कष्ट भोग रहे हैं। नारद जी के दिये श्रापवश उन्हें श्री रामचन्द्र रूप में पृथ्वी पर सीता के वियोग में ही जीवन व्यतीत करना पड़ा। और राम रूप में बाली को धोखे से मारकर कृष्ण रूप में बदला चुकाना पड़ा।
पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी तीन ताप का नाश नहीं कर सकता और न ही कोई कर्मों को काट सकता है। वेदोंनुसार केवल पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही अपने साधक के तीन ताप का नाश करके और पाप कर्म काटकर उन्हें सर्व सुख सम्पन्न करते हैं और मोक्ष मन्त्र प्रदान करके उनका कल्याण भी करते हैं। इन सभी तथ्यों से साबित होता है कि भगवान श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं है, ये स्वयं जन्म-मृत्यु के बंधन में बंधे हुए हैं। ये अविनाशी नहीं हैं। इसलिए गीतानुसार इनकी पूजा करना शास्त्रविरुद्ध होने से मनमाना आचरण है जो व्यर्थ साधना है जिसके करने से जीव को कोई लाभ; सुख व मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई गई है। तत्वदर्शी सन्त की शरण मे जाने के उपरांत गीता जी मे आगे अन्य परमात्मा की भक्ति करने को कहा गया है जिसकी भक्ति करने से जीव परम् शांति व शाश्वत स्थान को प्राप्त होगा अर्थात इस संसार मे वापिस लौटकर नहीं आना पड़ेगा यानी पूर्ण मोक्ष का अधिकारी होगा।
वो तत्वदर्शी सन्त बन्दीछोड जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान भक्त समाज को दे रहे हैं। सन्त रामपाल जी सभी देवी देवताओं की साधना के वास्तविक मन्त्र बताते हैं जिससे साधक को सर्व लाभ प्राप्त होते हैं। और उस पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की सतभक्ति शास्त्रों से प्रमाणित करके बताते हुए मोक्ष की गारंटी देते हैं। आज पूरा विश्व तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज के प्रवचन सुनकर उनके तत्वज्ञान को समझकर उनकी शरण ग्रहण कर रहा है। अतः आप सभी से भी प्रार्थना है कि सत्य ज्ञान को पहचानें व पूर्ण मोक्ष के मार्ग पर चलकर अपना व अपने परिवार का कल्याण करवाएं।
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