Kanwar Yatra (कांवड़ यात्रा) का अनसुना सच हुआ उजागर, यह सच जानकार हो जाओगे हैरान ! | Spiritual Leader Saint Rampal Ji
सावन का पवित्र महीना शिव के महीने के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव को बहुत पसन्द है। बरसात के रूप में आसमान से टपकता पानी बहुत से जीवों को नई जिंदगी प्रदान करता है। सूखे वृक्ष, पौधे हरे भरे हो जाते हैं, फल लगने लगते हैं, बहुत से नए जीव उतपन्न होने लगते हैं और इन्हीं जीवों के नए जीवन के साथ सावन का मौसम शुरू होता है। हर जगह फैली मिट्टी की मनोरम गंध वातारवण को और भी सुहावना बना देती है । एक तरफ लोग बारिश के पानी में मस्ती करते नजर आते हैं और वहीं दूसरी और बहुत से शिव भक्त कांवड़ यात्रा करते दिखाई देते हैं।
नमस्कार दर्शकों, आज के इस कार्यक्रम में हम आपको कांवड़ यात्रा के विषय मे बताने वाले हैं। कांवड़ यात्रा के इतिहास से लेकर , यात्रा करने से होने वाले लाभ-हानि तक की सारी जानकारी आज हम आपको देने वाले हैं। तो बड़े ही आराम से बैठिये और कांवड़ यात्रा के विषय में पूरी जानकारी के लिए हमारे साथ अंत तक बने रहिये. दर्शकों सावन का महीना आते ही हज़ारो लाखो की तादाद में शिव भक्त कांवड़ यात्रा करते नज़र आते हैं। कांवड़ि अपने कंधे पर कांवड़ लेकर दोनों छोरों पर जल कलश बांधकर भोलेनाथ का नारा लगाते हुए यात्रा करते हैं। आजकल तो महिलाएं व बच्चे भी कावड़ यात्रा में भाग लेते हैं और हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लेकर आते हैं और शिवलिंग पर श्रद्धा से जल चढाते हैं। ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान शिव धरती पर आते हैं और प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
आप सभी ये अच्छे से जानते हैं कि सावन का महीना शुरू होते ही शिव भक्तों के द्वारा कांवड़ यात्रा निकाली जाती है पर क्या आप जानते हैं कि-
- कांवड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है?
- कांवड़ यात्रा का इतिहास क्या है?
- भगवान शिव का कांवड़ यात्रा से क्या सम्बन्ध है?
- सबसे पहली कांवड़ यात्रा किसने निकाली थी?
- कांवड़ यात्रा करने से क्या लाभ होते हैं?
- क्या कांवड़ यात्रा करने से कोई हानि भी हो सकती है?
- कांवड़ यात्रा करना सही है या गलत ?
- हमारे हिन्दू धर्म के पवित्र सद्ग्रन्थों में कांवड़ यात्रा करने के विषय मे क्या प्रमाण है ?
तो आइए अब जानते हैं इन्ही सब सवालों के जवाबों के साथ जुड़ी हुई आगे की जानकारी :-
कांवड़ यात्रा (kanwar Yatra) क्यों निकाली जाती है ? क्या है इसका इतिहास ?
लोक मान्यता हैं कि यदि आप भगवान ! शिव को प्रसन्न करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो कांवड़ यात्रा जरूर करनी चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि शिवलिंग पर गंगा का पवित्र जल चढ़ाने से भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
कांवड़ यात्रा का इतिहास कुछ इस प्रकार है
सागर मंथन के दौरान 14 रत्नों में जब विष निकला तो भगवान शिव ने वो विष पीकर सृष्टि की रक्षा की। परन्तु विष पीने से उनका कंठ नीला पड़ गया जिस कारण उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब ये घटना घटी तो भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण ने कांवड़ यात्रा करके शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया था जिससे भोलेनाथ पर विष का प्रभाव कम हुआ था । रावण की इस भक्ति से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए थे।
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— SA News Channel (@SatlokChannel) August 1, 2021
रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। सबसे पहले कांवड़ यात्रा करने वाले भगवान शिव के प्रिय भक्त भी रावण ही है। भगवान शिव के लिए रावण ने 10 बार अपना शीश भी काटकर समर्पित कर दिया था और उनकी भक्ति करके बहुत से वरदान प्राप्त किये थे। ऐसा माना जाता है कि रावण के अतिरिक्त भगवान राम ने भी कांवड़ यात्रा करके शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित किया था। और उसी दिन से ये मान्यता है कि शिव लिंग पर गंगा जल चढ़ाने से भगवान शिव का विष कम होता है जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और मनोकामना पूरी करते हैं।
कांवड़ यात्रा करने से आखिर लाभ क्या होता हैं?
यदि मान्यता के अनुसार कहें तो कांवड़ यात्रा करने से अश्व मेघ यज्ञ का फल मिलता है। परंतु हिन्दू धर्म के पवित्र सद्ग्रन्थों में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। दर्शकों कांवड़ यात्रा सावन के महीने में की जाती है और सावन के महीने में बहुत से जीवों की उत्पत्ति होती है जो हमारे यात्रा करने से पैरों तले कुचलकर मर जाते हैं। सन्तो का कहना है सावन के महीने में तो घर से बाहर भी कम ही निकलना चाहिए ताकि जीव हत्या के पाप से बच सकें।
क्योंकि जितने जीव प्रतिदिन हमसे मरते हैं उससे कई गुना अधिक जीव सावन के महीने में यात्रा के दौरान एक ही दिन में मारे जाते हैं जिसका पाप यात्री को लगता है। तो कावड़ यात्रा करना बिल्कुल व्यर्थ है क्योंकि इससे हमें लाभ की बजाय उल्टा हानि ही होती है और यदि यह मान भी लें कि कांवड़ यात्रा करने से अश्व मेघ यज्ञ का पूण्य मिलता है तो पुण्य तो एक हुआ पर करोड़ो जीवों की हत्या का पाप अलग से लगा।
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दूसरा यह है कि हिन्दू धर्म के पवित्र चारों वेद व पवित्र गीता जी मे कहीं भी कांवड़ यात्रा करने का जिक्र व आदेश नहीं है जिस कारण यह मनमाना आचरण हुआ। और गीता जी में यह स्पष्ट किया गया है कि मनमाना आचरण करने वालों को कोई लाभ नहीं मिलता और न ही उनकी गति ( अर्थात् मोक्ष ) होता हैं। तो इससे स्पष्ट होता है कि कांवड़ यात्रा निकलना व्यर्थ है, शास्त्र विरुद्ध है और अंध श्रद्धा भक्ति के तहत आता है।
लोगों का मानना है कि भगवान शिव के शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने से उन पर विष का प्रभाव कम होता है। तो यहाँ विचार करने की बात है कि- \ एक तरफ तो हम भगवान शिव को अजर- अमर अविनाशी परमात्मा मानते हैं और दूसरी तरफ हम भगवान का विष उतारने का प्रयत्न करते हैं। तो क्या भगवान शिव जी इतने भी समर्थ नहीं है जो अपने ऊपर से विष को स्वयं उतार सके? क्या वाकई में भगवान शिव को विष उतारने के लिए हम जीवों की जरूरत है? नही।
असलियत तो यह है कि ये इस प्रकार की सभी क्रिया काल भगवान द्वारा हम सभी को अपने जाल में फंसे रखने के लिए चलाई हुई है। वर्तमान समय में कांवड़ यात्रियों की संख्या हजारों से लाखों में पहुंच गई है फिर क्या कारण हैं कि इतने तेजी से बढ़ रही धार्मिक भावनाओं के बावजूद मानव मूल्यों में गिरावट आई हैं? दिन प्रतिदिन समाज में बुराइयां बढ़ रही हैं। और कांवड़ यात्रा के दौरान हर रोज कावड़ियों के आपसी लड़ाई की घटना समाचार पत्रों में देखने को मिलती हैं।
आखिर यह किस प्रकार की भक्ति हैं जो इंसान के अंदर के व्यसन ही नहीं खत्म कर सकती?
बहुत से कावड़ियों को भी कावड़ यात्रा के दौरान नाश करते हुए देखा जा सकता हैं। और सबसे आश्चर्य की बात तो यह हैं कि कुछ लोगों ने नशे का समर्थन भगवान शिव से जोड़ कर किया हैं। उन लोगों का कहना कि भगवान शिव भी व्यसन करते हैं और उनकी धूम्रपान करते हुए की फ़ोटो भी आम समाज में प्रचलित हैं।
लेकिन सच इसके बिल्कुल विपरीत हैं। भगवान शिव ने कभी भी व्यसन नहीं किया। उन्होंने तो विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। लेकिन आज के समय में लोग भगवान शिव की वास्तविकता से परिचित ना होकर व्यसनों को बढ़वा दे रहे हैं। ये भगवान शिव की भक्ति का सही तरीका नहीं हैं।
परमात्मा कहते हैं:-
कंकड़ भांग तम्बाकू पीवे, बकरे काट चढावै है।
सन्यासी शंकर को भूले, बम्ब महादेव ध्यावै है।।
जो लोग व्यसन करते हैं भांग तमाकू आदि का सेवन करते हैं वह भगवान शिव की भक्ति भी नहीं करते। दरअसल कावड़ यात्रा के दौरान शिव भगत भगवान शंकर को याद ना करके बम बम बोलते हुए ही यात्रा करते हैं जिससे जीव को कोई लाभ नहीं मिलता। कावड़ यात्रा के दौरान कावड़िया केवल और केवल पाप कर्म ही इकट्ठा करके लाता है, एक तरफ जीव हत्या का पाप तो दूसरी तरफ नशा करने का पाप ।
जी हां दोस्तों आप सभी को पता है की कावड़ यात्रा के दौरान कावड़िया किस किस प्रकार का नशा करते हैं सुल्फा भांग तम्बाखू गांजा तो उनके लिए एक नॉर्मल सी बात है परन्तु इस तरह शास्त्र विरुद्ध साधना करके हम मोक्ष प्राप्ति नहीं कर सकते।
मोक्ष प्राप्ति के लिए शास्त्रानुकूल साधना करना बहुत जरूरी है। और शास्त्रानुकूल साधना केवल तत्वदर्शी सन्त ही बता सकता है जो सभी धर्मो के सद्ग्रन्थों को बहुत अच्छे से जानता है और शास्त्रानुसार भक्ति प्रदान करके अपने अनुयायियों को अनन्त लाभ प्रदान करता है और उनका मोक्ष भी करता है। आज पूरे विश्व में केवल एक ही तत्वदर्शी सन्त है जो हमारे ही पवित्र सद्ग्रन्थों से ज्ञान देकर हमें शास्त्रानुसार भक्ति विधि बता रहे है और सबको लाभ दे रहे हैं। वो महान सन्त जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं जो पूरे विश्व को शास्त्राधारित ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
सन्त रामपाल जी महाराज ने बताया कि श्रीमद देवी भागवत तीसरा स्कंद पृष्ठ 123 यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी की जन्म मृत्यु होती है, ये अविनाशी प्रभु नहीं है। सन्त रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया कि श्रीमद देवी भागवत में श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी को श्रेष्ठ बताते हैं तो श्री विष्णु जी दुर्गा जी को श्रेष्ठ बताते हुए उनकी भक्ति में लीन है। वहीं दुर्गा जी अपनी भक्ति करने को मना कर देती हैं और एक पुरुष अर्थात ब्रह्म की भक्ति करने को कहती हैं। और ब्रह्म स्वयं गीता जी मे अपनी भक्ति को अनुत्तम बताते हुए पूर्ण परमात्मा की शरण मे जाने को कहता है जिसकी जानकारी तत्वदर्शी सन्त से मिलेगी।
आज वो तत्वदर्शी सन्त पूरे विश्व को शास्त्रानुकुल ज्ञान प्रदान कर रहा है। अंत मे दर्शको से हमारा यही निवेदन है अपने शास्त्रों को ढंग से पढ़े समझे , तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताए गए प्रमाणों को मिलाएं और वास्तविकता से परिचित होकर संत रामपाल जी से नामदीक्षा लेकर अपना जीवन धन्य बनाए।
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