क्या जगन्नाथ रथ यात्रा निकालना सही है? क्या है जगन्नाथ मन्दिर की सच्ची कहानी? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji
खबरों की खबर कार्यक्रम के Spiritual Research में आपका स्वागत हैं। आज की इस वीडियो में हम बात करेंगे जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में। साथ ही जानेंगे जगन्नाथ पुरी से जुड़े हर एक रहस्य के बारे में कि जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कैसे हुआ? क्यों जगन्नाथ के मंदिर में आज तक छुआछूत नहीं होती? कौन है असली जगन्नाथ?
दोस्तों भारत में हर वर्ष अनेक धार्मिक यात्राओं का आयोजन किया जाता हैं और इन धार्मिक यात्राओं में लोग अपने परिवार व रिश्तेदारों के साथ यात्राएं करते हैं लेकिन जगन्नाथ रथ यात्रा एकमात्र ऐसी यात्रा है जिसमें लोग नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियों की यात्रा निकाली जाती है और लोग इस यात्रा को देखने के लिए जुड़ते हैं।जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को प्रारंभ होती है। प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी जगन्नाथ रथयात्रा 12 जुलाई को है। यह रथ यात्रा लगभग 10 दिनों तक चलती हैं।
दोस्तो अब जानते है कि जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कैसे हुआ था और क्यों आज तक जगन्नाथ के मंदिर में छुआछूत नहीं होती? उड़ीसा प्रांत में एक राजा इंद्रदमन थे। इंद्र दमन श्री कृष्ण के दृढ़ भक्त थे। एक दिन श्रीकृष्ण ने राजा के स्वपन में दर्शन दिए और एक मंदिर बनाने का आदेश दिया और उस मंदिर में गीता उपदेश की इच्छा व्यक्त की।
राजा इंद्र दमन ने कृष्ण आदेश का पालन करके मंदिर बनवाया लेकिन मंदिर निर्माण पूरा होते ही समुद्र उस मंदिर को तोड़ देता। 5 बार समुद्र ने मंदिर का निर्माण होते ही मंदिर को ध्वस्त कर दिया। राजा अब हताश होकर बैठ गया और दुबारा मंदिर न बनवाने का निर्णय लिया। क्योंकि राजा का सारा धन समाप्त हो गया था।
कबीर परमेश्वर ने एक बार काल ब्रह्म को मंदिर बनवाने का वचन दिया था और इसी वचन अनुसार कबीर परमेश्वर राजा इंद्र दमन के सामने प्रकट हुए और मंदिर बनवाने का आग्रह किया किंतु राजा ने मंदिर बनवाने से इंकार कर दिया और बोले कि जब श्री कृष्ण ही समुद्र को मंदिर तोड़ने से नहीं रोक पाए तो और कौन रोक सकता है भला?
कबीर परमेश्वर ने अपना पता बताते हुए वहां से प्रस्थान कर गए। राजा के स्वपन में श्री कृष्ण जी आए और श्री कृष्ण ने कहा कि जो संत आज आप से मिले थे वह कोई साधारण संत नहीं है उसकी शक्ति का कोई वार पार नहीं है। कृष्ण का आदेश पाकर राजा इंद्र दमन ,कबीर परमात्मा के पास गए और मंदिर को समुद्र के तोड़ने से बचाने का आग्रह किया।
Spiritual Research: क्या जगन्नाथ रथ (#RathYatra2021) यात्रा सही है? क्या है जगन्नाथ मन्दिर का इतिहास? जानने के लिए देखें👇👇https://t.co/dkIaA7HNsz
— SA News Channel (@SatlokChannel) July 11, 2021
कबीर परमेश्वर जी आए और राजा को आदेश दिया कि समुद्र से थोड़ी दूरी पर एक चबूतरा बनवाओ। मैं उस पर बैठकर परमात्मा की भक्ति करूंगा। तुम मंदिर का निर्माण पुनः शुरू करो .... जैसे ही मंदिर का निर्माण पूरा हुआ तभी समुद्र अपनी तेज लहरों के साथ ऊपर उठता हुआ आगे की ओर बढ़ने लगा उसी समय कबीर परमेश्वर ने उसे वहीं रोक दिया । कबीर साहेब जी की कृपा से इस तरह छठी बार में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ। कबीर परमेश्वर ने अपनी समर्थता का परिचय देते हुए मंदिर का निर्माण करवाया। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी वहां पर मौजूद है जिस स्थान पर कबीर परमेश्वर ने समुद्र को रोका था वहां आज भी एक गुंबद यादगार के रूप में मौजूद हैं।
और इसी दौरान नाथ परंपरा के एक सिद्ध महात्मा राजा के दरबार में आए और राजा से कहा कि मूर्ति बिना मंदिर कैसा? आप चंदन की लकड़ी की मूर्ति बनवाओ और मंदिर में स्थापित करो। राजा ने तीन मूर्तियां बनवाई जो हर बार टूट जाती थी। तीन बार मूर्तियों का निर्माण हुआ लेकिन तीनों बार मूर्तियां खंड हो जाती। राजा फिर से चिंतित हुआ फिर अगली सुबह राजा के दरबार में कबीर परमेश्वर एक मूर्तिकार के रूप में आए और राजा से कहा कि मुझे 60 साल का मूर्ति बनाने का अनुभव है अगर मैं मूर्तियां बनाऊँगा तो नहीं टूटेगी।
मुझे एक कमरा दे दो जिसमें मैं मूर्तियां बनाऊँगा और जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती उस कमरे को कोई भी ना खोले। राजा ने वही किया फिर कुछ दिन बाद नाथ जी फिर आए और उनके पूछने पर राजा ने पूरा वृतांत नाथ जी को बताया और कहा 10-12 दिन से वह कारीगर मूर्ति बना रहा हैं।
नाथ जी ने कहा कि कहीं वह गलत मूर्तियां ना बना दे, हमें मूर्तियों को एक बार देख लेना चाहिए। यह सोचकर कमरे में दाखिल हुए तो वहां से कबीर परमात्मा गायब हो गए। तीनों मूर्तियां बन चुकी थी लेकिन बीच में ही व्यवधान उत्पन्न होने के कारण तीनों मूर्तियों के हाथ और पांव की उंगलियां शेष रह गई थी। इसी कारण आज भी जगन्नाथ के मंदिर में बगैर अंगुलियों वाली मूर्तियां ही रखी हैं।
कुछ समय उपरांत जगन्नाथ पुरी में मूर्तियों की जब प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कुछ पंडित मंदिर में पहुंचे तभी मंदिर के द्वार की ओर मुह करके कबीर परमेश्वर खड़े थे। पंडित ने कबीर परमेश्वर को अछूत कहते हुए ध्क्का दे दिया और मंदिर में प्रवेश किया। अंदर जाकर देखा तो हर मूर्ति कबीर परमात्मा के स्वरूप में तब्दील हो गई और यह देखकर पंडित भी हैरान रह गए। जिस पंडित में कबीर परमात्मा को अछूत कहा था उस पंडित को कोढ़ का रोग लग गया लेकिन दयालु कबीर परमात्मा ने बाद में उसे ठीक कर दिया और उसके बाद से कभी भी जगन्नाथ पुरी के मंदिर में छुआछूत नहीं हुई।
हर वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं
जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में मान्यता भी है कि इस यात्रा में जो भी व्यक्ति भाग लेता है वह मुक्ति को प्राप्त होता है और उसके दुखों का नाश होता है लेकिन इस यात्रा का हिस्सा बनकर लोग पुण्य की आशा में पाप के ही भागी बनते हैं। यह रथ यात्रा करने से पहले यह जानना भी बेहद जरूरी है कि क्या इस धार्मिक रथ यात्रा का संबंध पवित्र शास्त्रों से हैं? क्या पवित्र शास्त्रों में ऐसे किसी धार्मिक क्रिया के बारे में वर्णन मिलता है?
पवित्र शास्त्रों में उस परमात्मा की सही भक्ति विधि का वर्णन मिलता है लेकिन अगर हम पवित्र शास्त्र जैसे वेद गीता आदि से हटकर कोई भी साधना करते हैं तो वह भगवान के संविधान के विरुद्ध है जिससे कोई भी लाभ नहीं मिलता। और हमारे पवित्र शास्त्रों में कहीं पर भी जगन्नाथ रथ यात्रा का वर्णन नहीं मिलता तो यह यात्रा निकालकर क्या भगवान के संविधान का उल्लंघन नहीं कर रहे?
नकली धर्मगुरुओं द्वारा फैलाई गई अंधश्रद्धा भक्ति से मानव समाज को कुछ भी लाभ नहीं मिलता और पवित्र गीता जी के अध्याय 16 श्लोक 23 में भी वर्णन मिलता है कि जो साधक शास्त्र विरुद्ध भक्ति साधना करता हैं उसको किसी भी तरह का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलता। तो फिर जगन्नाथ यात्रा निकालकर हम कैसे मुक्ति पा सकते हैं? मोक्ष तो पूर्ण परमात्मा की शास्त्रों में वर्णित सत भक्ति से ही हो सकता है।
यहां पर एक विचारणीय बिंदु यह भी है कि क्या श्री कृष्ण बाध्य हैं कि जब तक उन्हें नहीं घुमाया जाए तो क्या वे स्वयं भ्रमण नहीं कर सकते नहीं? नहीं। ना तो श्री कृष्ण बाध्य हैं और ना ही उन्होंने इस तरह की किसी भी भक्ति विधि का समर्थन किया हैं।
जब श्री कृष्ण जी ने राजा इंद्रदमन को मंदिर बनवाने का आदेश दिया था तब यह यह प्रस्ताव भी रखा था कि मंदिर में किसी भी किसी भी प्रकार की मूर्ति ना रखी जाए और ज्ञान उपदेश के लिए सिर्फ गीता का पाठ किया जाये।इसलिए देर ना करते हुए गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत की खोज करने को कहा है और गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के अनुसार उस तत्वदर्शी संत से तीन बार की नाम दीक्षा लेकर उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए।
और वर्तमान में वह तत्वदर्शी संत, संत रामपाल जी महाराज हैं जो अपने साधकों को तीन बार की नाम दीक्षा देते हैं। संत रामपाल जी महाराज कबीर परमेश्वर जी के साक्षात अवतार हैं और जो भी साधक संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सद्भक्ति करता है उस साधक को सर्व सुख व लाभ मिलते हैं। वह पूर्ण मोक्ष का अधिकारी भी होता हैं। इसलिए विलंब ना करते हुए आप भी जल्द से जल्द संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आकर अपने व अपने परिवार का कल्याण करवाएं।
0 Comments