कबीर परमात्मा का प्रकट दिवस ही क्यों मानते हैं जयंती क्यों नहीं | Spiritual Leader Saint Rampal Ji
नमस्कार दोस्तों, खबरें की खबर स्पेशल कार्यक्रम में आज आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज की स्पिरिचुअल रिसर्च में हम यह जानेंगे की आखिर पूरे विश्व में केवल कबीर साहेब का ही प्रकट दिवस क्यों मनाया जाता है? आखिर क्यों उनकी जयंती नही मनाई जाती? साथ ही आपको प्रमाणों के साथ जयंती और प्रकट दिवस के बीच का तफावत भी बताएंगे तो चलिए शुरू करते है।
हमारा देश भारत, एक विशाल देश हैं। जहां अनेकों धर्म, संस्कृति और रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग रहते हैं। आदिकाल से लेके भारत देश की भूमि पर ऐसे अनेकों चमत्कार और रहस्यमई घटनाएं देखने को मिलती हैं जो जनमानस के लिए सिर्फ एक रहस्य ही बन कर रह जाती है। लेकिन आज की इस वीडियो में हम आपको आज एक ऐसे रहस्य के बारे में बताएंगे जिसका जानना आपके लिए बेहद जरूरी हैं। हम सब जानते हैं कि इस पृथ्वी पर या इस पूरे ब्रह्मांड में जो भी जीवात्मा है उसका जन्म और मरण होता हैं।
- जब हम इतिहास की ओर देखते हैं तो किसी ना किसी महापुरुष की जयंती के बारे में जरूर सुनते हैं लेकिन क्या कभी आपने ऐसा सुना है कि कोई जन्म ना लेकर प्रकट होता हैं?
- और उसकी जयंती ना मनाकर प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।
- जी हां! आपने बिल्कुल सही सुना। जयंती और प्रकट दिवस दोनों अलग-अलग होते हैं।
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— SA News Channel (@SatlokChannel) June 27, 2021
जयंती उन लोगों की बनाई जाती है जिनका जन्म मां के गर्भ से होता है और प्रकट दिवस उनका होता है जो किसी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते। लेकिन आज तक अब आपके मन में यह प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि इस पूरे ब्रह्मांड में सभी का जन्म हुआ है यहां तक कि विष्णु जी के सभी अवतारों का भी जन्म हुआ है और उनकी भी जयंती मनाई जाती है। लेकिन हम प्रकट दिवस के बारे में बहुत ही कम सुनते हैं। तो फिर ऐसा कौन है जो मां के गर्भ से जन्म ना लेकर प्रकट होता हैं। यह तो एक अनसुनी कहानी जैसा है कि कोई धरती पर प्रगट हुआ हो व जन्म और मरण से रहित हो क्योंकि यहां तीन लोक के भगवान भी जन्म और मरण के चक्कर में हैं।
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लेकिन पूर्ण परमात्मा 'कबीर साहेब' जो किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते। वह अपने सनातन परमधाम सतलोक से स्वयं चलकर आते है और पृथ्वी पर कमल के फूल पर प्रकट होते है और निःसन्तान दम्पति को मिलते है। कबीर साहेब जी के जन्म के बारे में बहुत सारी भ्रांतियां फैली है और ज्यादातर लोग कबीर साहेब जी के जन्म के बारे में कुछ नही बोलते हैं। कुछ जन्म लिया हुआ मानते हैं पर 100 प्रतिशत सत्यता से प्रमाणित नही कर सकते। लेकिन आज हम आपको प्रमाणित करके बतायेगें कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जन्म ना लेकर प्रकट होते है।
परमात्मा की एक वाणी है:-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
इस वाणी में यह खुद कबीर परमात्मा प्रमाणित करके बताया है कि मेरा जन्म किसी माँ के गर्भ से नहीं होता। मैं बालक रूप में प्रकट होता हूं। काशी के लहरतारा तालाब पर कमल के पुष्प पर प्रकट हुए और निःसन्तान दम्पति नीरू नीमा को मिले।
इसके प्रत्यक्ष द्रष्टा रामानन्द जी के शिष्य अष्टानन्द जी थे। इसलिए एकमात्र कबीर साहेब जी ऐसे महापुरुष हैं जिनका का प्रकट दिवस मनाया जाता हैं बाकी अन्य देवता व महापुरुषों की जयंती मनाई जाती हैं। क्योंकि कबीर साहेब जी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते। कबीर परमेश्वर जी ने अपने प्रगट होने के बारे में अपनी और भी वाणी के माध्यम से समझाया है कि
मात पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
कबीर साहेब जी सतलोक से चलकर आये थे तब अपना शिशु रूप बनाकर इस धरती पर अपना ज्ञान बताने के लिए प्रकट हुए थे। वे कई दोहों व वाणियो के माध्यम से जगत का उद्धार करने के लिए तत्वज्ञान का प्रचार किया।
जब कबीर परमात्मा 600 साल पहले जब काशी के लहर ताला तालाब पर कमल के फूल कर प्रकट हुए व अपनी अनेकों लीलाओं के माध्यम से अपनी समर्थता का परिचय दिया था कि ऐसा केवल पूर्ण परमात्मा ही कर सकते है।पवित्र शास्त्र भी इस बात समर्थन करते है कि पूर्ण परमात्मा किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, वह प्रकट होते है।
कबीर परमात्मा ने स्वयं अपने जन्म के बारे में सभी भ्रांतियों को दूर किया
कबीर साहेब जी का प्रतिवर्ष जेष्ठ मास की पूर्णमासी को प्रकट दिवस मनाया जाता हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को परमेश्वर कबीर साहेब के प्रकट होने की जानकारी नही होने के कारण जयंती मनाते हैं। वास्तविक सत्य यही है कि कबीर साहेब जी सन 1398 में जेष्ठ मास की पूर्णमासी को सतलोक से आकर सशरीर इस लोक में प्रकट हुए और 120 वर्ष तक काशी में अपने तत्वज्ञान का प्रचार करके अपनी पुन्य आत्माओं का उद्धार किया। उनके द्वारा बोली गई वाणियों का संग्रह किया गया जिसे कबीर सागर नाम दिया गया। इसे पांचवा वेद भी कहा जाता हैं।
आदरणीय गरीब दास जी महाराज जिनको कबीर परमेश्वर जी का साक्षात्कार हुआ तथा अपनी कृपा दृष्टि से परमेश्वर ने उनको सतलोक दर्शन करवाया। पूर्ण परमेश्वर के ज्ञान से परिचित होने के पश्चात गरीब दास जी महाराज जी ने कबीर परमेश्वर जी के प्राकट्य के बारे में कलम तोड़ महिमा बोली है:-
गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भवन चतुर्दश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब,अनंत कोटि ब्रह्मांड में बंदी छोड़ कहाये।
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माये।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनि शब्द सिंध सबमांहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठाही।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूर्ण ब्रह्म कबीर है, अविगत पुरुष अलेख।।
गरीब, सेवक होय कर ऊतरे, इस पृथ्वी के माही।
जीव उधारण जगतगुरु, बार बार बलि जाहि।।
अब आपके मन में यह शंका नहीं रही होगी कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब का जन्म नहीं होता। वह स्वयं प्रकट होते है अपने निज धाम सतलोक से आते है और शिशु रूप धारण करके इस लोक में अपने तत्वज्ञान का संदेश करते है।
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