Story of Maluk Das (संत मलूकदास) | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

Story of Maluk Das (संत मलूकदास) | Spiritual Leader Saint Rampal Ji: खबरों की खबर कार्यक्रम में आपका एक फिर से स्वागत हैं। आज की इस spiritual research में हम बात करेंगे मलूकदास जी की जीवन के बारे में। और साथ ही यह भी जानेंगे कि कैसे संत मलूकदास जी को सतगुरू कबीर परमात्मा की शरण मिली।

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संत मलूकदास जी का जन्म सं. 1632 की वैशाख सुदी 5 को, कड़ा (जि इलाहाबाद) के कक्कड़ खत्री सुंदरदास के घर हुआ था। इनका पूर्वनाम 'मल्लु' था और इनके तीन भाइयों के नाम क्रमश: हरिश्चंद्र, शृंगार तथा रामचंद्र थे मलूकदास जी बचपन से ही भगवान में आस्था रखते थे जिस कारण से उनके माता-पिता भी उन्हें पसंद नहीं करते थे। मलूक दास जी जब बड़े हुए तो खेती का कार्य किया करते थे और अपने क्षेत्र के बड़े नम्बरदार थे। गाँव में उनकी अच्छी महिमा थी।

आदरणीय मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में पूर्ण परमात्मा कबीर जी मिले


परमात्मा अपनी पुण्य आत्माओं को शरण में लेने के लिए पता नहीं क्या-क्या प्रयत्न करते हैं।

परमात्मा की एक वाणी है:- 


सौ छल छिद्र मैं करू, अपने जन के काज।

गैल-गैल लाग्या फिरू, जब तक धरती आकाश।।



एक बार कबीर परमात्मा उस गांव में अपने भक्तों के घर सत्संग करने आए हुए थे। जब परमात्मा अपने भक्तों के घर जाते हैं तो भगत परमात्मा की सत्कार में समर्पित हो जाते हैं।  परमात्मा एक दिन किसी भगत के घर सत्संग करते तो दूसरे दिन किसी और भगत के घर। ऐसे ही अन्य भक्तों के अंदर प्रेरणा हुई कि परमात्मा हमारे घर पर भी सत्संग करें।  परमात्मा जिस दिन भगत के घर सत्संग करते वहीं पर भोजन भी करते थे। और भगत कोशिश करता कि हम परमात्मा को अच्छे से अच्छा भोजन खिलाएं। परमात्मा के भोजन में देसी घी का हलवा बनता था जिसकी महक आस-पड़ोस के घरों में भी जाती थी।

परमात्मा के अनमोल ज्ञान का विरोध शुरु से ही रहा है और इसी कारण से उस गांव के कुछ लोगों ने चौधरी मलूक दास जी के पास शिकायत करी कि गांव में एक ठग आया हुआ है जो रोज गरीब लोगों के घर जाकर अच्छे-अच्छे पकवान खाता है। और रात्रि में सत्संग करता है जिसमें गांव की बहन बेटियां भी जाती है तो गांव में कुछ गड़बड़ ना हो जाए इसलिए अब आप देख लो।

मलूक दास जी परमात्मा की पुण्य आत्मा थी उन्होंने मन में विचार किया कि साधु-संतों के साथ लड़ना नहीं चाहिए। प्यार से ही सारी बातें देखता हूं कि वास्तविकता क्या है फिर उनसे बाद में बात करूंगा।

मलूक दास जी ने गांव के लोगों के द्वारा बताई गई बातों की तह तक जाने के लिए गांव में कबीर परमेश्वर जी जिस भी भगत के घर सत्संग करते वहां देखने जाते तो उन्होंने देखा कि परमात्मा के लिए रोज देसी घी में हलवा बनता है। यह देखकर मलूक दास जी ने सोचा कि बात तो सचमुच सही है कि यह रोज गरीब लोगों के घर देसी घी में हलवा खाता है।

मलूक दास जी ने 3 दिन तक कबीर परमात्मा पर नजर रखें फिर उन्होंने सोचा कि अब इनसे बात करनी पड़ेगी देखें तो सही आखिर कौन है। अगले दिन कबीर परमात्मा साधारण वेशभूषा में बैठे हुए थे और गले में एक माला डाल रखी थी जैसे साधु संत डालते हैं। मलूक दास जी कबीर परमात्मा के पास जाकर बोले कि हे भक्त आप यह क्या कर रहे हो आज मुझे तीसरा दिन हो गया आप जी को देखते हुए। आप रोज अच्छी खीर हलवे खाते हो, काम करके क्यों नहीं खाते? अपनी मेहनत से कमाकर खाओ।


परमात्मा कबीर साहेब जी ने कहा कि देखो चौधरी साहब! परमात्मा तो मुझे बिना काम किए हुए बैठे-बैठे दे रहा है। खूब खीर हलवे खाता हूं और परमात्मा के गुण गाता हूं। और जैसे मैं परमात्मा के गुणगान और महिमा का वर्णन करता हूं अगर वैसे ही सब लोग करने लग जाए तो परमात्मा सबको रोज खीर हलवा खाने को देगा।

और आप भी प्राप्त कर सकते हो खीर और हलवा, मलूक दास जी यह बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें यह बात जचि नहीं।

क्योंकि आज तक हम वही घिसी पिटी दन्तकथा सुनते आए हैं कि अगर काम नहीं करेंगे तो खाने को नहीं मिलेगा लेकिन पूर्ण परमात्मा इतना समर्थ है कि अगर हम सब उसकी सत् भक्ति और महिमा का गुणगान करे तो परमात्मा घर बैठे ही ठाट कर देता है।

मलूक दास जी ने कहा कि  क्या आपका भगवान मुझे बिना काम करें खाना खिला देगा? तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि अगर आप परमात्मा पर विश्वास रखोगे तो अवश्य खिला देगा।

तब मलूक दास जी ने कहा कि आज मैं घर से बिना खाना खाए आया हूं आज अगर आपके परमात्मा ने मुझे खाना खिला दिया तो मैं आपका चेला बन जाऊंगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो मैं आपको मेरे खेत में मजदूरी का काम करवाऊँगा। है मंजूर? तब परमेश्वर ने कहा कि हां मंजूर है।

यह बात बोलकर मलूक दास जी अपने खेतों के विपरीत दिशा में दूर जंगल में जाकर एक वृक्ष के ऊपर बैठ गए।

कुछ समय उपरांत वहां पर गांव के गडरिया भेड चराते हुए आए और उन्होंने उसी पेड की छाया देखकर वही पर खीर बनाई। उसी दौरान जंगल में डाकुओं के घोड़ों की आवाज सुनकर वह लोग वहां से भाग गए। 

जब डाकू वहाँ पर आये तो उन्होंने देखा कि यहां पर किसी ने खीर बना रखी है। खीर खाने के उद्देश्य से डाकुओं ने उस खीर के को उठाया तभी एक डाकू ने कहा कि क्या पता गांव के लोगों ने हमें भ्रमाने के लिए इसमें जहर मिला दिया हो इसलिए पहले किसी और को यह खीर खिलाएंगे उसके बाद ही हम खाएंगे। जब आसपास देखा तो ऊपर पेड़ पर मलूक दास जी बैठे हुए दिखे।

उनको नीचे उतारा और मलूकदास जी ने खीर खाने से मना कर दिया तब उन्होंने बंदूक दिखाकर नीचे उतारा और जबरदस्ती मार-मार कर वह खीर खिलाई। मलूकदास जी ने ही मन परमात्मा कबीर जी से प्रार्थना की कि हे गुरु देव आज मेरी रक्षा करना, मैं‌ आजीवन आपके चरणों में दास बनकर रहूंगा  जब उन्होंने मना करने का कारण पूछा तो मलूक दास जी सारी बात बताई कि वह इस वजह से खीर नहीं खा रहे थे।

मलूक दास जी जंगल से सीधा कबीर परमेश्वर जी के पास आए और परमेश्वर जी को सर्व वार्ता बताई और कहा कि परमात्मा आज आपने जान बचा दी नहीं तो वह मुझे मार ही डालते। आपका भगवान तो मार मार कर खीर खिलाता है। परमात्मा की पुण्य आत्मा मलूक दास जी को परमेश्वर कबीर जी ने अपने वास्तविक ज्ञान से परिचित करवाया और अपने परमधाम सतलोक को ले गए तथा दो दिन बाद पुनः भेजा। दो दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे। फिर सतलोक से वापसी पर निम्न वाणी उच्चारण की:


जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।।

एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर।

सुर-नर मुनि थक गए, रूक गया दरिया नीर।।

काँशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर।

कोई गाढ़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर।

चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।

दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।



मलूकदास जी ने भी कबीर परमात्मा को सतगुरु भी कहा है और कहा कि चार दाग से न्यारा अर्थात किसी तरह से नष्ट न होने वाले अजर अमर शरीर युक्त वह कबीर साहेब ही है। 

कबीर साहेब को अंत में खसम अर्थात स्वामी भी कहा है जो साबित करता है मलूकदास जी कबीर को अपना परम गुरु व परमात्मा मानते थे। यह इस बात का भी संकेत है कि मुरारी कबीर जी को ही कहा है।


मलूक दास जी ने अपने अमृतवाणी में स्पष्ट कहा है कि वह पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही है जो अजर अमर है जिनका किसी मां के गर्भ से जन्म नहीं होता। वह अविनाशी परमात्मा है। जिसकी गवाही हमारे पवित्र शास्त्र भी देते हैं। वह परमात्मा अपने निजधाम सतलोक में विराजमान हैं। उसी एक परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए और वर्तमान में तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज वही भक्ति विधि बता रहे हैं जो शास्त्रों में वर्णित है।

संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई जा रही सद्भक्ति से हम कबीर परमेश्वर के पास अपने निजधाम सतलोक में वापस जा सकते हैं। अतः आप सभी से निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज जी को आम इंसान ना समझे बल्कि उनके तत्वज्ञान से यह निर्णय करें कि वास्तव में संत रामपाल जी महाराज वही सत भक्ति

 बता रहे हैं जो शास्त्रों में वर्णित है। तो आप भी देर ना करते हुए संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना व अपने परिवार का कल्याण करवाएं।

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