नमस्कार दर्शको! खबरों की लेंगे खबर कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज की स्पिरिचुअल रिसर्च में हम भारत में हर साल मनाए जाने वाले पर्व "हनुमान जयंती" की; इस विशेष पड़ताल में हम जानेंगे की हनुमान जी का मोक्ष केसे हुआ? और वह कौनसे राम की भक्ति करते थे ??? तो चलिए शुरू करते है हमारा विशेष कार्यक्रम खबरों की लेंगे खबर और जानते हैं हनुमान जी के अनसुलझे रहस्यों को।
पवित्र हिन्दू धर्म में जब भी किसी सच्चे, दृढ़ भक्त व सेवक का जिक्र होता है तो हनुमान जी का नाम सर्वप्रथम हमारे मुख पर आता है, जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भगवान की भक्ति और सेवा करना था, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। हनुमान जी को महावीर, पवनसुत, रामदूत, मारुति नंदन, कपीश, बजरंग बली आदि नामों से भी जाना जाता है। सभी भक्तजन अपनी सर्वमनोकामना पूर्ति एवं दुख निवारण हेतु हनुमान जयंती का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते है। पर क्या कभी आपने सोचा है? की हनुमान जी आप की सर्व मनोकामनाओं को पूर्ण नही कर सकते है? क्योंकि हनुमान जी तो स्वयं एक भक्त थे , वे खुद अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किसी अन्य की भक्ति व सेवा करते थे
क्या हनुमान जी की भक्ति करना शास्त्रों के अनुसार सही है?
दरअसल हनुमान जी का जन्म वानर राज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ से हुआ था। हनुमान जी स्वयं रामभक्त थे। परंतु श्रधालु उनकी भक्ति पर आसक्त होकर भक्तजन हनुमान जी को ही पूजने लगे। श्रीमद्भगवत गीता जी के अध्याय 16, श्लोक 23 में स्पष्ट है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो मनमाना आचरण करते हैं अर्थात एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति ना करके अन्य देवी-देवताओं तथा भूतों को पूजते हैं, ऐसे साधकों को ना तो कोई सुख प्राप्त होता है, ना ही कोई सिद्धि प्राप्त होती है और ना ही उनकी गति अर्थात मोक्ष होता है। अतः गीता जी के अनुसार एक पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त किसी भी देवी देवता की भक्ति करना सही नहीं।
हनुमान जी के जीवन के ऐसे रहस्य के बारे में चर्चा करते है जिसके बारे में आपने कभी नही सुना होगा।
हनुमान जी पहले दसरथ पुत्र श्री राम की भक्ति करते थे। उनकी भक्ति और सेवा में ही वे अपना सर्व कल्याण मानते थे। रामायण में प्रकरण मिलता है कि माता सीता की खोज करने के हनुमान जी को लंका भेजा गया था। तब हनुमान जी लंका में जाकर माता सीता से एक कंगन उनकी निशानी के रूप में श्री राम के लिए लेकर आए। हनुमान जी जब वह कंगन लेकर वापिस आ रहे थे तो रास्ते में एक बहुत ही सुंदर सरोवर दिखा आसपास फलदार वृक्ष भी थे, हनुमान जी को भूख भी लगी थी तो सोचा की पहले स्नान करूंगा ,फिर भोजन करता हु। हनुमान जी ने उस कंगन को सरोवर के किनारे एक पत्थर पर रख दिया और स्नान करने लगे। तभी एक बंदर वहाँ आया और कंगन उठा कर भाग गया।
हनुमान जी की नज़र कंगन पर ही थी। हनुमान जी उस बंदर के पीछे दौड़े। देखते-देखते बंदर ने उस कंगन को एक ऋषि मुनींद्र जी की कुटिया के बाहर रखे हुए एक बड़े घड़े (कुम्भ) में डाल दिया। जब हनुमान जी ने उस घड़े में झांककर देखा तो वह घड़ा ऐसे-ऐसे अनगिनत कंगनों से भरा था। हनुमान जी ने एक कंगन उठा कर देखा तो सारे ही कंगन एक जैसे थे। भेद नहीं लग रहा था। हनुमान जी असमंजस में पड़ गए। सामने एक ऋषि जी आश्रम में बैठे हुए दिखाई दिए, उनके पास जाकर हनुमान जी ने प्रार्थना की कि हे ऋषिवर! मैं माता सीता की खोज में निकला था, उनका पता भी लग गया। एक कंगन माता ने मुझे दिया था। उसको रखकर स्नान करने लग गया। बंदर ने शरारत की और कंगन को इस घड़े में डाल दिया कृपया कुछ मदद करें। हनुमान जी ने कहा कि ऋषिवर! इस घड़े के अंदर सभी कंगन एक जैसे ही नज़र आ रहे हैं। मुझे पहचान नहीं हो रही, वह कंगन कौन सा है ?
मुनिन्द्र जी बोले कि आपको पहचान हो भी नहीं सकती। यदि पहचान हो जाती तो आप इस काल के लोक में दुखी नहीं होते, और आप पर यह कठिनाइयाँ नहीं आतीं।
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मुनींद्र जी बोले , हे पवन पुत्र हनुमान जी! आप कौन से राम की बात कर रहे हो? हनुमान जी बोले कि हे ऋषिवर! आप क्यों अनजान बन रहे हो? पूरे संसार में एक ही चर्चा हो रही है कि भगवान श्री रामचन्द्र जी ने राजा दशरथ के घर जन्म लिया है और उनकी पत्नी सीता का रावण ने अपहरण कर रखा है, क्या आपको नहीं मालूम? मुनींद्र ऋषि रूप में कबीर परमात्मा ने कहा कि हनुमान जी! जिस राम की आप बात कर रहे हो ऐसे-ऐसे तो 30 करोड़ दशरथ पुत्र राम जन्म ले चुके हैं और यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित सभी जन्म और मृत्यु के अंदर हैं। ये पूर्ण परमेश्वर नहीं हैं। ये केवल तीन लोक के प्रभु हैं। और इनके उपासक भी मुक्त नहीं हो सकते। ये तीनों देवता नाशवान हैं, अजर-अमर नहीं है। इनकी जन्म तथा मृत्यु होती है।
हनुमान जी ने आश्चर्य से पूछा कि क्या सच में 30 करोड़ बार श्री रामचन्द्र जी धरती पर आ चुके हैं ?
मुनींद्र ऋषि रूप में कबीर परमेश्वर जी ने कहा – हाँ हनुमान जी! यह श्री रामचंद्र अपना जीवन पूरा करके मृत्यु को प्राप्त हो जाते है, ऐसे ही तुम्हारे जैसे न जाने कितने ही हनुमान जन्म ले चुके हैं और मर चुके हैं। इस काल ब्रह्म ज्योति निरंजन ने एक फिल्म बना रखी है, जिसमे पात्र आते-जाते रहते हैं। और इसी का प्रमाण यह घड़ा दे रहा है। हर बार आप हनुमान बनकर आते हो और इसी तरह यह बन्दर आपका कंगन उठाकर इस घड़े में डाल जाता है।
हनुमान जी बोले, हे ऋषिवर! मैं आपकी बात मानता हूँ, लेकिन प्रत्येक बार सीता हरण, हनुमान का खोज करके कंगन लाना और बन्दर द्वारा घड़े में डालना होता है पर कंगन तो यहाँ रह गया, हनुमान लेकर क्या जाता है? ऋषि मुनींद्र जी ने कहा कि मैंने इस घड़े को आशीर्वाद दे रखा है कि जो वस्तु इसमें गिरे, वह दोनो एक समान हो जाये। यह कहकर ऋषि जी ने एक मिट्टी का कटोरा घड़े में डाला तो एक और कटोरा वैसा ही बन गया। फिर मुनीन्द्र ऋषि रूप में कबीर जी ने कहा कि हनुमान जी सतभक्ति करो। यह भक्ति पूर्ण नहीं है। यह काल जाल से आपको मुक्त नहीं होने देगी। यह सब सुनकर हनुमान जी बोले कि अब मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपके साथ वार्ता करूँ, इतना कहकर हनुमान जी कंगन उठाकर चले गये।
उस समय सर्व सृष्टि के रचनहार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी मुनींद्र ऋषि के रूप में यह सब लीला कर रहे थे। अपने बनाए विधान अनुसार वे अपनी प्यारी आत्माओं के लिए भटकते फिरते है।
कबीर जी अपनी वाणी में कहते हैं
गोता मारु स्वर्ग में, जा पैठु पताल।
गरीबदास ढूंढता फिरु, अपने हीरे मोती लाल।।
अपने विधान अनुसार कबीर परमेश्वर जी एक बार फिर हनुमान जी को मिले। हनुमान जी एक पहाड़ पर बैठकर भजन कर रहे थे। पूर्ण परमात्मा कबीर जी मुनीन्द्र ऋषि रूप में एक बार फिर हनुमान जी के पास गए और कहा कि हे ”राम भक्त जी!” इतना सुनते ही हनुमान जी ने पीछे मुड़कर देखा तो हनुमान जी असमंजस में थे, बोले- हे ऋषिवर! मुझे ऐसा लग रहा है कि मेने आपको कहीं देखा है। तब मुनींद्र साहिब जी ने हनुमान जी को पिछला वृतांत स्मरण कराया। हनुमान जी को सब कुछ याद आया और ऋषि जी को सम्मान से बिठाया। मुनींद्र जी फिर प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी! आप जो साधना कर रहे हो, यह पूर्ण नहीं है। इससे आपका पूर्ण मोक्ष सम्भव नही। यह सब काल जाल है। फिर मुनीन्द्र जी ने हनुमान जी को सम्पूर्ण “सृष्टि रचना” सुनाई। हनुमान जी बहुत प्रभावित हुए और कहा कि मैं तो अपने रामचन्द्र प्रभु से ऊपर किसी को नहीं मान सकता। हमने तो आज तक यही सुना है कि तीन लोक के नाथ विष्णु हैं और उन्हीं का स्वरुप रामचन्द्र जी पृथ्वी पर आये हैं।
तब परमात्मा मुनींद्र जी ने कहा,
तुम कौन राम का जपते जापम, ताते कटे ना ये तीनो तापम।।
मुनींद्र रूप में कबीर साहेब जी ने हनुमान जी को समझाया की, आप जिस राम की भक्ति करते हो वो इस संसार में कष्ट रूपी तीनों तापों को नष्ट नही कर सकते। नारद मुनि द्वारा दिए गए श्राप को भोगने के लिए विष्णु जी राम रूप में यहां धरती पर आए हुए है और अनेकों कष्ट सह रहे है।
कबीर साहेब जी ने कहा:
काटे बंधत विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम। चिन्हों रे नर प्राणियों, गरुड़ बड़ो के राम।।
अगर आपके रामचंद्र समर्थ होते तो नागफांस से खुद को छुड़ा लेते, गरुड़ जी की मदद नहीं मांगते। अब आप ही बताओ की जिस राम को गरुड़ जी ने जीवनदान दिया वह गरुड़ बड़ा है या आपके श्रीराम ? ऐसे कई प्रमाण और दिए ऋषि जी ने जैसे ।
समन्दर पाटि लंका गयो, सीता को भरतार। अगस्त ऋषि सातों पीये, इनमें कौन करतार।।
हे हनुमान! आपके राम तो ऋषि अगस्त्य जितनी शक्ति भी नही रखते जिसने सातों समंदर एक घूंट में पी लिए थे। हनुमान जी बोले, हे ऋषिवर! अगर मैं आपके सतलोक को अपनी आँखों देखूं तो मान सकता हूँ कि जिस राम को मैं सर्वेसर्वा मान बैठा हूँ, वह समर्थ नहीं है।
फिर मुनीन्द्र ऋषि ने हनुमान जी को दिव्य दृष्टि देकर सतलोक दिखाया। ऋषि मुनीन्द्र जी सिंहासन पर बैठे दिखाई दिए। उनके शरीर का प्रकाश अत्यधिक था। सिर पर मुकुट तथा राजाओं की तरह छत्र था। हनुमान जी को सतलोक का दृश्य दिखाया। साथ में तीन लोकों के भगवानों के स्थान भी दिखाए और वह काल दिखाया जो एक लाख जीवों का प्रतिदिन आहार करता है। उसी को ब्रह्म, क्षर पुरुष तथा ज्योति स्वरूप निरंजन काल भी कहते हैं। कुछ देर वह दृश्य दिखाकर दिव्य दृष्टि समाप्त कर दी। मुनीन्द्र जी नीचे आए। हनुमान जी को विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है। जिसके बाद श्री हनुमान जी ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली। अपना जीवन धन्य किया। मुक्ति के अधिकारी हुए। इस प्रकार पवित्र आत्मा परमार्थी स्वभाव हनुमान जी को परमेश्वर कबीर जी ने अपनी शरण में लिया। परमार्थी हनुमान जी को नि:स्वार्थ दुःखियों की सहायता करने का फल मिला। परमात्मा स्वयं आये, और अपने विधान अनुसार अपनी प्यारी आत्मा को मोक्ष मार्ग बताया।हनुमान जी फिर मानव जीवन प्राप्त करेंगे। तब परमेश्वर कबीर जी उनको शरण में लेकर मुक्त करेगें, अब उस आत्मा में सत्य भक्ति बीज डल चुका है।
दोस्तो श्री हनुमान जी ने अपने जीवन काल में जो भी लीलाएं की थी वह सब निर्धारित थी। श्री हनुमान जी अपने जीवन काल में केवल 3 बार ही उड़ पाए है। इन तीनो पर पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने अपनी शक्ति से हनुमान जी को उड़ाया था। यदि परमात्मा अपनी आत्माओं की सहायता न करते तो घोर अनर्थ हो जाते।
वर्तमान समय में भी पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी इस धरती पर मौजूद है। जी हां दोस्तो आपने सही सुना। जगत गुरु तत्व दर्शी संत रामपाल जी महाराज ही कबीर साहेब जी के अवतार है जो स्वयं तत्वज्ञान के प्रचार के लिए धरती पर अवतरित हुए है। ऐसे में इस वीडियो को देखने वाले सभी प्रभु प्रेमी प्राणियों से निवेदन है कृपया संत रामपाल जी महाराज जी से नमदीक्षा ले और अपना कल्याण करवाए। धन्यवाद।
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