Spiritual Research: होली मनाना कहाँ से शुरू हुआ?, क्या है असली राम नाम होली? | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj

नमस्कार दर्शकों ! "खबरों की खबर का सच " के इस कार्यक्रम में आपका बहुत बहुत स्वागत है। आज हम आपके लिए "होली मनाना कहाँ से शुरू हुआ?, क्या है असली राम नाम होली?" से जुड़ी जानकारी लेकर आये हैं।

खबरों की खबर के इस खास कार्यक्रम में आपका बहुत-2 स्वागत है। त्योहार कोई भी हो घर में खुशियां जरूर लाता है। एक अलग सी रौनक होती है घर में, नए कपड़े पहनना, मिठाईयां लाना, घर सजाना, खास पकवान बनाना, रिश्तेदारों का आना-जाना ये सब त्योहारों में चलता रहता है। इन्ही त्योहारों में से हम बात करेंगे रंगों के त्योहार की यानी होली की। खुशियों का यह त्योहार दुश्मन-मीत/मित्र में फर्क नहीं करता, धर्मों में फर्क नहीं करता। सब लोग मिलजुलकर इस त्योहार को मनाते हैं। होली के त्योहार के पीछे एक पौराणिक कथा है। इस पौराणिक कथा व होली मनाने की शुरुआत कैसे हुई इसके विषय में आपको बताते हैं।

होली क्यों मनाई जाती है?

विष्णु पुराण में भी यह कथा वर्णित है। हिरण्यकश्यप नाम का एक ब्राह्मण राजा था। उसके भाई हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु के अवतार वराह ने मारा था। इसका बदला लेने के लिए हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को खत्म करना चाहता था। वह तपस्या करने चला गया। जिस समय वह तपस्या करने गया था उस समय उसकी पत्नी कयाधु गर्भवती थी। हिरण्यकश्यप के तपस्या करने जाते ही इंद्र जी कयाधु को उठा ले गए। उन्हें डर था कि उसके गर्भ मे कोई दैत्य होगा और वो वह हिरण्यकश्यप की तरह बलशाली होगा। इसलिए उन्होंने सोचा कि इसके पैदा होने से पहले ही इसे मार दिया जाए। तभी इंद्र जी को नारद जी मिल जाते हैं। नारद जी कयाधु को इंद्र से बचाते हैं और अपने आश्रम में ले जाते हैं।

वहां नारद जी कयाधु को उपदेश देते हैं और भगवान विष्णु जी की कथाएँ सुनाते हैं। उस समय कयाधु जी के गर्भ में प्रह्लाद जी थे जिन्होंने सारा ज्ञान सुन लिया था। वो नारद जी के आश्रम में ही पैदा हुए और प्रतिदिन ज्ञान सुनते रहे। करीब 6-7 वर्ष की आयु तक वे वहीं हरि कथा सुनते रहे। जिसके कारण उनके अन्तर्करन में भगवान विष्णु की ही भक्ति चलती रहती थी। बाल्य अवस्था में ही यानी 6-7 साल की आयु में प्रह्लाद जी माता कयाधु के साथ अपने घर/राजमहल में आये जब हिरण्यकश्यप ने अपनी तपस्या पूरी कर ली थी और वह वापिस अपने राजमहल में लौट आया था।


हिरणकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान माँगा कि संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके, न वो रात में मरे न दिन में, न पृथ्वी पर न आकाश में, न घर मे न बाहर और न ही कोई शस्त्र उसे मार सके। ये वरदान पाकर वो खुद को भगवान समझने लगा। अपने राज्य में उसने सबको कह दिया कि मैं ही भगवान हूँ मेरी पूजा किया करो और किसी भगवान की पूजा नहीं करनी। जो किसी और कि इष्ट की पूजा करेगा उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। मृत्यु के डर से प्रजा ने हिरण्यकश्यप की पूजा शुरू करदी थी।


एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को गोद मे बिठाकर बड़े प्यार से पूछा कि तुम्हे क्या अच्छा लगता है। प्रहलाद ने कहा कि मुझे जंगल मे जाकर एकांत स्थान पर बैठकर भगवान विष्णु की भक्ति करना अच्छा लगता है। ये बात सुनकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो उठते हैं क्योंकि वह भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानते थे। पर फिर अपने क्रोध को शांत करता है और सोचता है कि अभी प्रहलाद को मालूम नहीं है इसलिए ये ऐसा बोल रहा है। हिरण्यकश्यप के गुरु शुक्राचार्य जी थे। और शुक्राचार्य जी के दो पुत्र थे- शंद और अमर्क। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को शिक्षा ग्रहण करने के लिए शुक्राचार्य जी के पुत्रों के पास भेजना शुरू कर दिया। वो दोनों प्रहलाद जी को यही शिक्षा देते थे कि हिरण्यकश्यप ही भगवान है और कोई भगवान नहीं है।

हिरण्यकश्यप ये कर सकते है वो कर सकते हैं। वो अमर हैं। उन्हें कोई नहीं मार सकता। वो सबके रक्षक हैं। अब इस तरह का ज्ञान प्रतिदिन सुनकर प्रहलाद जी उसी ज्ञान में रंगने लगते हैं। तब भगवान एक लीला करते हैं। जिस रास्ते से प्रहलाद जी शंद और अमर्क ब्राह्मणों के पास शिक्षा ग्रहण करने जाया करते थे उसी रास्ते पर एक कुम्हारी का घर पड़ता था। एक दिन कुम्हार व कुम्हारी ने कच्चे घड़े/मटके तैयार करके एक जगह रखे हुए थे ताकि अगले दिन इन्हें आग से जलते एक आवे में इन्हें डालकर पका सकें।



एक बिल्ली ने रात को एक घड़े में अपने बच्चों को जन्म दिया और भोजन की तलाश में चली गयी। अगले दिन कुम्हार और कुम्हारी ने वो मटके फटाफट एक के बाद एक आवे में डालने शुरू कर दिए। आवा बंद कर दिया। आवा 1 महीने तक बंद रहता था और उसकी आंच से सारे मटके पक जाते थे। आवा बंद होने के बाद बिल्ली वहाँ आती है और मटकों को वहाँ न पाने पर जोर जोर से मियाउ-मियाउ करती हुई आवे के चारों तरफ चक्कर लगाती है। अब कुम्हारी भी माँ थी, उससे उस बिल्ली का दर्द देखा नहीं गया। वो भी रोने लगी और भगवान से बिल्ली के बच्चों की रक्षा के लिए प्राथना करने लगी। इतने में प्रहलाद वहाँ से जा रहा होता है और जब वो उस माई को रोते हुए देखता है तो कारण पूछता है। माई उसे सारा वृतान्त बताती है।

तब प्रहलाद पूछता है कि फिर बिल्ली के बच्चों को आप कैसे बचाओगे। कुम्हारी रोते हुए बोलती है कि अब तो बिल्ली के बच्चों को भगवान ही बचा सकते हैं। यहाँ न तो मैं कुछ कर सकती और न ही आपके पिता जी, ये काम भगवान का है। भगवान ही बचा सकता है। अब प्रहलाद कुम्हारी से कहता है माई मेरे पिता जी के अतिरिक्त और कोई भगवान नहीं है उनके होते हुए आप किसी और भगवान से प्राथना कर रही हो, यदि पिता जी को पता चला तो आपको मरवा देंगे। तब कुम्हारी बोली महाराज मुझे मालूम है पर यहाँ आपके पिता जी इन बच्चों को नहीं बचा सकते। अगर उन्होंने ये आवा तोड़ भी दिया तो तब तक तो बच्चे इतनी तेज आंच में मर चुके होंगे, उन्हें तो भगवान ही बचा सकता है।

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प्रहलाद बोला माई आपको पूरा विश्वास है कि भगवान यहाँ भी इनकी रक्षा कर देगा जहाँ मेरे पिता जी भी नहीं कर सकते? कुम्हारी ने कहा हां बेटा मुझे पूरा विश्वास है। प्रहलाद ने कहा कि ठीक है जब ये आवा पके तो मुझे बताना और मेरे सामने ही आवा खोलना। और अगर बच्चों की रक्षा नहीं की भगवान ने तो आपको दण्ड मिलेगा। इतना कहकर प्रहलाद अपनी शिक्षा ग्रहण करने चला जाता है। जो आवा 1 महीने में पकना था भगवान की लीला से वो 3 दिन में पक कर तैयार हो गया। तब कुम्हारी ने प्रहलाद को बताया और कहा महाराज आज आवा भगवान की कृपा से जल्दी पक गया है और आज हम इसे खोलेंगे। तब प्रहलाद के सामने आवा खोला जाता है और जिस मटके में बिल्ली के बच्चे थे केवल वही मटका कच्चा था बाकी सब पक चुके थे, उस मटके के आंच तक नहीं लगी थी। जब वो मटका निकाला तो उसमें बच्चे खेलते हुए मिले। ये देखकर प्रहलाद जी को बहुत बड़ा झटका लगा और उन्होंने उसी समय वो शिक्षा त्याग दी और उन दोनों ब्राह्मणों को भी कह दिया कि आप दोनों ने मुझे आज तक गलत शिक्षा दी है, मेरे पिता जी भगवान नहीं है, भगवान तो विष्णु जी हैं। और उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति फिर से शुरू कर दी। 


जब ये बात हिरण्यकश्यप को पता चली तो प्रहलाद से वार्ता की। तब भी प्रहलाद ने यही कहा कि पिता जी आप भगवान नहीं हो, भगवान तो विष्णु जी ही हैं। फिर उसने पूछा कि कहाँ है तेरा भगवान? तब प्रहलाद ने बोला कि भगवान तो सर्वव्यापक है, वो हर जगह हैं। ये बात सुनकर वो इतना क्रोधित हो गया कि उसने प्रहलाद मारने की ठान ली। एक पिता अपने ही पुत्र का दुश्मन बन गया। और तरह-2 से उसे मारने की कोशिश की गई परन्तु भगवान प्रहलाद की रक्षा करते रहे। 

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अनेक प्रकार से प्रह्लाद को मारने की कोशिश की गई। पर प्रहलाद का एक ही उत्तर रहता कि भगवान विष्णु हर जगह व्यापक हैं। वही भगवान है। एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका के पास एक वरदान वाली चादर थी जिसे ओढ़कर अगर वो अग्नि में बैठ जाय तो उसे अग्नि जला नहीं सकती थी. हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए होलिका को बुलाया और होलिका अपनी चादर ओढ़कर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है। हवा के वेग से वो चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ जाती है और होलिका जलकर मर जाती है। 


जब सारे प्रयत्न कर लिए और प्रहलाद नहीं मरा तब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा कि तू हर समय भगवान-भगवान करता रहता है कहाँ है तेरा भगवान? तब भी प्रहलाद का एक ही उत्तर था कि भगवान तो हर जगह है। हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आ जाता है और कहता है कि भगवान हर जगह नहीं है मैं ही भगवान हूँ। और अगर तेरा भगवान हर जगह है तो दिखाई क्यों नहीं देता। इस खम्भे में क्यों नहीं दिखाई दे रहा और इतना कहते ही उसने अपने हाथ से उस खम्भे को मारा। 

ततपश्चात तभी भगवान विष्णु नर सिंह अवतार में उस खम्भे से निकलकर प्रगट हुए और गोधूलि समय यानी सुबह और शाम के समय के सन्धिकाल में दरवाजे की चौखट पर बैठ कर अत्याचारी हिरणकश्यप की छाती फाड़ कर उसे मार दिया। राक्षसी होलिका के जलकर मरने के बाद से होलिका दहन की प्रक्रिया हर वर्ष मनाई जाती है। तब से लोग लकड़िया इकठी करके होलिका दहन करते है। इसे धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है।


इससे स्पष्ट है कि होली मनाने का उद्देश्य धर्म को बढ़ावा देने का ही रहा है। इस त्योहार पर कोई किसी से भेदभाव नही करता। सभी प्राणियों में परमात्मा व्यापक है, सबसे प्रेम से और आपस मे मिलजुलकर रहना चाहिए। तभी इस दिन सभी एक दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं और सारी दुश्मनी भुलाकर होली मनाई जाती। चाहे कोई दुशमन हो या सखा या अलग-2 धर्मों के लोग हों सभी मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं।


आज की पेशकश में जो खास बात हम आपको बताना चाहते हैं वो ये है कि कुछ लोग प्रतिदिन होली मनाते हैं। यह जानकर आपको भी हैरानी होगी कि ऐसा कौन है जो प्रतिदिन होली मनाता है।


तो आइए अब आपको उनके विषय मे बताते हैं


एक महापुरुष हैं जो सन्तो की बानी को खोलकर बताते हैं। उस महापुरुष ने सन्त गरीबदास जी महाराज जी की बानी (वाणी) को आधार बनाते हुए कहा कि होली तो प्रतिदिन मनाई जानी चाहिए।


अब आप सोच रहे होंगे कि प्रतिदिन होली क्यों मनाए और ऐसा कौनसी बानी में लिखा है? तो अब हम आपको पूरी detail में बताते हैं कि वह महापुरुष कौन है जो प्रतिदिन होली मनाने के लिए कहते है और ये होली कैसे मनाई जाती है।


सन्त गरीबदास जी महाराज जी की एक बानी है:-

जैसे किरका जहर का रंग होरी हो।

कहो कौन तिस खावे राम रंग होरी हो।।


इस बानी का सरलार्थ जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी ने किया और बताया कि होरी मतलब खुशी मनाना और होली खेलनी है तो राम के रंग की होली खेलो और प्रतिदिन खुशी मनाओ। परमात्मा की भक्ति करने से जो खुशी मिलती है वो इस नकली होली से नहीं मिल सकती जिसमें लाल पीले मुँह करके एक दूसरे पर रंग डालते हैं। ये होली तो वर्ष में एकबार मनाई जाती है पर राम के रंग की होली प्रतिदिन मनाई जाती है।




उनका कहना है कि तुम एक दिन की खुशी मनाते हो और सारा दिन जहर खाते हो। दूसरों का बुरा सोचना, बुरी नियत रखना, रिश्वत लेना, मिलावट करना ये जहर खा रहे हो और होरी मनाने की सोचते हो, खुशी की आशा करते हो? ऐसे आपके घर मे होरी यानी खुशी नहीं हो सकती।

होरी कैसे होगी?

जिसको ये पता लग गया कि बुरी नियत रखना, धोखा करना आदि  जहर है फिर वो उस जहर को नहीं खायेगा। और फिर देखना इस परमात्मा की तरफ से आपको कितनी होरी यानी खुशी मिलेगी, ये राम रंग होरी होगी जो प्रतिदिन आपके घर में होती रहेगी।


गरीबदास जी ने यह भी कहा है, जिसे सन्त रामपाल जी ने बताया है:-

सतनाम पालड़े रंग होरी हो, चौदह लोक चढ़ावे राम रंग होरी हो।

तीन लोक पासिंग रखे रंग होरी हो, तो न तुले तुलाया राम रंग होरी हो।।


गगन मण्डल में गुमट है रंग होरी हो।

जहाँ श्वेत ध्वजा फैराहवे राम रंग होरी हो।।

गरीबदास जी ने कहा है कि हम तो राम रंग वाली होली खेलते हैं और प्रतिदिन खेलते हैं। तुम ये झूठी होली मनाते हो, अब खुशी मनाओ। अब होगी असली खुशी, असली होली मनाओ राम के रंग की।


सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में खुशियां ला रहे हैं। उनकी शरण मे आने से सभी पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं, जीव भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करता है। यहाँ भी खुश और परलोक में भी सुखी। तो इस तरह की होली मनाओ जिससे जीवन में सुख सदा बना रहे।


उम्मीद है आज की ये नई पेशकश आपके होली से सम्बन्धित सभी प्रश्नो को दूर कर देगी। फिर मिलेंगे अगले विषय के साथ तब तक के लिए नमस्कार।

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