Spiritual Research: क्या मूर्ति पूजा करना गलत है? जानिए मूर्ति पूजा के पीछे का सच | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj

नमस्कार दर्शकों, खबरो की खबर के इस प्रोग्राम में आपका बहुत बहुत‌ स्वागत है। आज हम आपको एक ऐसी सच्चाई रूबरू करायेंगे जिसके बारे मे शायद ही आपने पहले कभी पढ़ा, सुना या समझने की कोशिश की हो। लेकिन अब यह जानकारी हम हमारे पवित्र ग्रंथ भागवत गीता जी से आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं।

दोस्तों वर्तमान भारत मे ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ मंदिर न बनाए गए हों। हर गली , नुक्कड़, बाज़ार और चौराहों पर श्रद्धालुओं ने दान सेवा देकर कई बड़े और छोटे मंदिर बनवाये हैं। भगवान शिव मंदिर, राम मंदिर, भक्त हनुमान मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, कृष्ण मंदिर, दुर्गा मंदिर,भैरों बाबा मंदिर, काली मंदिर,  साईं बाबा मंदिर, जगन्नाथ मंदिर जैसे मंदिर हर क्षेत्र में लोगों ने अपनी श्रद्धा के तहत किसी न किसी देवी देवता को समर्पित करके जरूर बनवाया है। मंदिरों में भगवान शिव-पार्वती जी, विष्णु-लक्ष्मी जी, ब्रह्मा-सावित्री जी, गणेश जी, हनुमान जी, कृष्ण जी, दुर्गा देवी इत्यादि की मूर्तियां रखी होती हैं।

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कहा जाता है कि मंदिर में जाकर भगवान के सामने प्रार्थना करने से भगवान सबकी प्रार्थना सुनते हैं। कोई भगवान शिव को अपना इष्ट देव मानता है तो कोई भगवान विष्णु जी को व उनके अवतारों को भी भगवान मानता है। अधिकतर हिन्दू श्रद्धालुओं ने अपने घरों में भी मंदिर बना रखे हैं जहाँ वे नित ज्योति लगाते हैं व गीता जी के श्लोकों का नितपाठ ,भजन, कीर्तन और आरती करते हैं। हिन्दू धर्म का सर्व श्रेष्ठ ग्रन्थ श्रीमद भगवत गीता जी है जो सब हिंदुओ के घर पर आसानी से मिल ही जाती है। गीता जी में काल भगवान ने जो (अलौकिक) ज्ञान दिया है जिसे समझकर हम परमात्मा तक पहुँच सकते हैं। पर देखने में आया है कि जिन धार्मिक क्रियाकलापों को करने के लिए भगवान ने गीता जी में मना किया है हम सब उन्हीं क्रियाओं को कर रहे हैं, तो इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि क्या हम भगवान को प्रसन्न कर रहे हैं या दुखी कर रहे हैं?

भगवान की पूजा करना, धार्मिक क्रियाएं करना बिलकुल भी गलत नहीं हैं, पर कुछ ऐसी धार्मिक क्रियाएं हैं जिन्हें हम बहुत ही उत्तम मानते हैं परंतु वो पाखण्ड पूजा में गिनी जाती हैं जिससे भगवान कभी प्रसन्न नहीं होते क्योंकि वो धार्मिक क्रियाएं गीता जी में भगवान द्वारा बताए ज्ञान व उनके आदेश से मेल नहीं खाती। जिससे भगवान कभी खुश नहीं हो सकते।

इसी प्रकार मूर्ति पूजा करना भी किसी पाखण्ड से कम नहीं है। एक महान सन्त ने कहा है कि भगवान के आदेश के विरुद्ध जाकर भक्ति करना, और आत्महत्या करने में कोई अंतर नहीं है। आत्महत्या करके व्यक्ति अपना मनुष्य जीवन स्वयं नष्ट करता है, गलत और मनमानी पूजा करना भी फांसी पर लटक कर जीवन नष्ट करने जैसा ही मानिए।


बहुत से सन्तों, महंतों, ऋषियों ने मूर्ति पूजा का खंडन किया है। देवी देवताओं की मूर्तियों को प्रतिदिन स्नान करवाना, वस्त्र पहनाना, तिलक लगाना, फूल चढ़ाना, भोजन का भोग लगाना, दूध पिलाना, आरती उतारना, मूर्तियों से प्रार्थना करना,  शिव लिंग की पूजा करना, मूर्ति पूजा करना, शंखनाद  करना ,मंजीरे,ढोलक , हारमोनियम बजाना, धूपबत्ती ,हवन करना सभी कुछ पाखण्ड पूजाओं का ही हिस्सा हैं ।


हम आपको सच से परिचित करवाकर आपके अनमोल मनुष्य जीवन को बेकार जाने से बचाना चाहते हैं। आइए आपको गीता जी के उन श्लोकों से परिचित करवाते हैं जिसमें मूर्ति पूजा का खंडन किया गया है। धीरज रखकर सुनिए, यकीन मानिए आप भी चौंक जाएंगे.


श्रीमद भागवत गीता अध्याय 16 के श्लोक 23-24 में गीताजी का उपदेश देने वाला भगवान अर्थात गीता ज्ञानदाता अर्जुन को बता रहा है कि जो साधक शास्त्रों में वर्णित भक्ति की क्रियाओं के अतिरिक्त साधना व क्रियाएं करते हैं, उनको न सुख की प्राप्ति होती है , न सिद्धि यानी आध्यात्मिक लाभ और ना ही उनकी गति होती है यानी मोक्ष नहीं मिलता अर्थात मनमानी पूजाएं करना व्यर्थ हैं।। 


दोस्तों अब सोचने वाली बात यह है कि साधक परमात्मा की भक्ति साधना सुख, सिद्धि और मोक्ष इन्हीं तीनों लाभों को प्राप्त करने के लिए करता है और यदि यही लाभ न मिले तो वो पूजा व्यर्थ ही समझनी चाहिए। पवित्र हिन्दू धर्म के किसी भी सद्ग्रन्थ में मूर्ति पूजा करने के लिए कहीं कोई प्रमाण नहीं है और जो लोग शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि के अतिरिक्त कोई और साधना करते हैं वो गीता जी अध्याय 16 के श्लोक 23-24 में लिखी शास्त्र विरुद्ध साधना कर रहे हैं ।


गीता जी अध्याय 17 के श्लोक 23 में गीता ज्ञानदाता ने परमात्मा की भक्ति करने की विधि बताई है। पांचों यज्ञों के बारे मे बताया ज्ञान यज्ञ, हवन यज्ञ, धर्म यज्ञ, ध्यान यज्ञ और प्रणाम यज्ञ,  इनका वर्णन हमें हमारे वेदों व गीता जी में मिलाता है। इसके अतिरिक्त की जाने वाली सभी धार्मिक क्रियाएं शास्त्र विरुद्ध हैं जिसका कोई लाभ नहीं है।

जिस तरह बिजली से हमारे घर की सभी लाइटें जगती है, पंखे चलते हैं, बैटरी चलती है, पानी की मोटर , इनवर्टर चलता है, चक्की चलती है, कूलर-एसी,फ्रिज आदि सब कुछ चलता है। जिस प्रकार बिजली के बहुत से लाभ हैं पर यदि हम बिजली के नियमों का पालन न करते हुए बिजली की तार को हाथ में पकड़ लें तो बिजली से करंट भी लग जाता है जो मौत का कारण बनता है। इसलिए परमात्मा के नियमों को भी बिजली की तरह ही जानें जो नियम में रहने से तो बहुत लाभ ही लाभ देगा, पर नियम से बाहर होते ही स्थिति विपरीत भी हो जाती है।

 


सब मानते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है। सबका भला करता है। हम सबके कष्ट दूर करता है।  जैसे बिजली से लाभ लेने हेतु हमें नियमों का पालन करना होता है इसी तरह परमात्मा से लाभ लेने के लिए जिस प्रकार की पूजा विधि हमारे शास्त्रों में लिखी है उन्हें ज्यों का त्यों करना आवश्यक है तथा वेद, गीता, शास्त्रों में मूर्ति पूजा का खंडन किया है।


विश्वस्तरीय सन्त कबीर साहेब जी अर्थात पूर्ण परमेश्वर कबीर साहिब जी ने पत्थर पूजा व मूर्ति पूजा का खंडन करते हुए कहा है कि-


कबीर, पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पुजू पहाड़।

तातें तो चक्की भली, जो पीस खाये संसार।।


वेद पढ़ें पर भेद न जाने, ये बांचे पुराण अठारह।

पत्थर की पूजा करें, भूल गए सृजन हारा।।


कबीर साहेब जी ने बहुत ही स्पष्टता से बता दिया है कि अगर पत्थर पूजने से भगवान मिल सकता है तो मैं पहाड़ की पूजा करूं। लेकिन वो पत्थर की मूर्तियां भगवान से नहीं मिला सकतीं। इससे अच्छा तो पत्थर की चक्की ही भली है जो पूरे संसार को आटा पीस के खिलाती है उनका पेट भरती है।


बहुत से सन्त, महन्त, आचार्य , ब्राह्मण- वेदों, गीता और पुराणों को रट तो लेते हैं परंतु ज्ञान फिर भी नहीं समझ पाते और पत्थर की मूर्तियों की पूजा करते और करवाते रहते हैं और वास्तविक परमात्मा को न तो वह जानते हैं न समझते हैं। जिन महापुरुषों को हम पार अर्थात मोक्ष प्राप्त कर चुके मानते हैं उन्होंने कभी मूर्ति पूजा नहीं कि बल्कि शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि तथा पांचों यज्ञों का पालन किया और मोक्ष प्राप्त किया।


इससे स्पष्ट है कि मोक्ष होगा तो उन मंत्रों से होगा जिसका वर्णन गीता जी अध्याय 17 के श्लोक 23 मे किया है कि

ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृृतः,

ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।


और अध्याय 18 के श्लोक 62 मे कहां है। 


सर्वधर्मान्, परित्यज्य, माम्, एकम्, शरणम्, व्रज,

अहम्, त्वा, सर्वपापेभ्यः, मोक्षयिष्यामि, मा, शुचः।।


कि उसकी प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की शरण मे जा।


गीता अध्याय 16 के श्लोक 23-24 में लिखी मनमानी पूजा अर्थात शास्त्र विरुद्ध साधना जिसमें मूर्ति पूजा शामिल है वह करने से कभी नहीं हो सकता।


दोस्तों, यह सब पवित्र शास्त्रों का अनमोल ज्ञान एक ऐसे सन्त ने बताया जिसने वेदों, गीता, पुराणों व उपनिषदों को अच्छी तरह छान लिया, जान लिया और जनता के सामने रूबरू भी कर दिया। वो महान सन्त और कोई नहीं बल्कि जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं जिन्होंने न केवल हिन्दू धर्म के शास्त्रों को जाना,पढ़ा बल्कि बाकि सभी धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थों को भी अच्छे से समझा और हमारे सामने पेश किया। तो आप सभी से प्रार्थना है कि शास्त्र विरुद्ध साधना करके अपना मनुष्य जीवन व्यर्थ न करें और जितना जल्दी हो सके मूर्ति पूजा त्यागकर सतगुरु रामपाल जी महाराज जी का तत्वज्ञान सुनें, समझें व नामदीक्षा ग्रहण करके शास्त्रों मे वर्णित मंत्रों का जाप कर मोक्ष करवाएं। तो दर्शको आज की हमारी इस पैशकस से सिद्ध हुआ कि मूर्ति पूजा करने से कभी लाभ नहीं हो सकता। आगे भी ऐसी अध्यात्मिक जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहिये SA news के साथ।

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