नमस्कार दर्शकों ! "खबरों की खबर का सच " के इस कार्यक्रम में आपका बहुत बहुत स्वागत है। आज हम आपके लिए तीर्थ धामों व उनकी यात्रा (Information about Indian Pilgrimage Places) से जुड़ी जानकारी लेकर आये हैं।
- क्या है तीर्थ धाम?
- इनका निर्माण कैसे हुआ ?
- तीर्थ यात्रा करने से साधक को क्या क्या लाभ मिलते हैं?
- तीर्थयात्रा शास्त्रानुकूल है या विरूद्ध?
और बात करेंगे कि संत भाषा में चित शुद्ध तीर्थ किसे कहा गया है अर्थात सर्वश्रेष्ठ तीरथ कौन सा है ? तो चलिए शुरुआत करते हैं कार्यक्रम की और सबसे पहले बात करते हैं कि क्या है तीर्थ व धाम ? तीरथ धाम वे पवित्र स्थान है जहां पर या तो किसी महापुरुष का जन्म हुआ था या निर्वाण। जहां या तो किसी साधक ने साधना की थी या अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन। संक्षिप्त में कहे तो तीरथ धाम किसी ऋषि मुनि या देवी देव की कथा से जुड़ी यादगारे मात्र है।
Information About Indian Pilgrimage Places [Hindi]: मुख्य तीर्थ स्थलों व धामों का निर्माण कैसे हुआ?
सबसे पहले बात करते हैं अमरनाथ धाम की। अमरनाथ धाम हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण धाम माना जाता है। यहां पर हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग कठिनतम रास्तों से चलकर दर्शन करने पहुंचते हैं। अमरनाथ धाम के बारे में माना जाता है कि भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती जी को इसी एकांत स्थान पर अमर मन्त्र दिया था यानी पार्वती जी को शिव जी से दीक्षा मिली थी। इसी कारण यह स्थान पार्वती जी के लिए अमर धाम कहलाया। वैसे तो अमरनाथ धाम केवल पार्वती जी के लिए ही महत्वपूर्ण धाम था परंतु आम जनता आज वहाँ जाकर अपने आप को धन्य मानती है।
Spiritual Research: What is the unheard Truth of the Pilgrimage? How were #HinduPilgrimage sites Established? | SA News Channel
— SA News Channel (@SatlokChannel) February 14, 2021
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अब बात करते हैं केदारनाथ धाम की। महाभारत में एक कथा वर्णित है कि पांचों पांडव अंतिम समय में हिमालय पर्वत पर तप कर रहे थे। एक दिन सदाशिव जिसे ब्रह्म भी कहते हैं उसने भैंस का रूप बनाया और उस क्षेत्र में घूमने लगा। दूध लेने के उद्देश्य से भीम उसे पकड़ने के लिए दौड़ा तो भैंस पृथ्वी में समाने लगी। भीम ने भैंस का पिछला भाग मज़बूती से पकड़ लिया जो पृथ्वी से बाहर रह गया था वह पत्थर का बन गया। जिसके बाद वहां एक धाम बना। जिसे केदारनाथ धाम कहा जाने लगा। भैंस का सिर वाला भाग काठमांडू नेपाल में निकला और पत्थर का बन गया जिसे बाद में पशुपति नाथ कहा गया। फिर उसके ऊपर मंदिर बना दिया गया। जो पशुपति नाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और आज तक वहां अनेकों श्रद्धालु दर्शन करने जाते हैं।
भैंस के शरीर के अन्य अंग जैसे अगले पैर, पिछले पैर आदि जहाँ जहाँ निकले, वहाँ वहाँ पर अन्य केदार बने। ऐसे ऐसे 7 केदार हिमालय में बने हैं। उनको केदार नाम देकर यादगार बनाई गई । ये सब मंदिर अथवा धाम किसी न किसी कथा के साक्षी हैं।
Information About Indian Pilgrimage Places [Hindi]: वैष्णों देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णा देवी के मंदिरों की स्थापना हुई?
जिस समय राजा दक्ष की पुत्री सती पार्वती जी अपने पति भगवान शिव से रूठकर पिता दक्ष के घर चली आई तो राजा दक्ष उस समय यज्ञ करवा रहे थे। बहुत बड़े हवन कुंड में हवन चल रहा था। पिता दक्ष ने घर आई बेटी पार्वती जी का अनादर किया जिसका दुख मानकर पार्वती जी ने हवन कुंड की अग्नि में गिरकर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जब पता चला तो अपनी पत्नी के वियोग में उसके बचे हुए नर कंकाल को करीब 10 हजार वर्षों तक उठाये फिरते रहे।
तब श्री विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जिसके बाद शिव जी का मोह भंग हुआ। सती जी के शरीर के भाग कई अलग-अलग जगहों पर गिरे। जहाँ देवी जी का धड़ वाला भाग गिरा वहाँ पर लोगों ने देवी के धड़ को श्रद्धा से दफनाकर ऊपर मंदिरनुमा यादगार बनाई जिससे वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई। इसी प्रकार जहाँ पार्वती जी की आंखों वाला शरीर का भाग गिरा वहाँ पर उसी तरह उसे जमीन में दफनाकर नैना देवी मंदिर बना दिया ताकि घटना का प्रमाण रहे।
हिमाचल के कांगड़ा जिले में जहाँ पर सती पार्वती जी की अधजली जीभ वाला भाग गिरा वह ज्वालादेवी और जहां नाभि वाला शरीर का भाग गिरा वो अन्नपूर्णा देवी नाम के मंदिर से प्रसिद्ध हुए। जहां इन्हीं देवी जी की पूजा शुरू हो गयी । ये सभी स्थल मात्र यादगार हैं। इसी तरह अन्य दर्शन स्थल या धाम जैसे बद्रीनाथ, जग्गन्नाथ पुरी, द्वारिकापुरी, मथुरा-वृंदावन, बनारस प्रसिद्ध हुए।
शुक्र तीरथ की स्थापना के प्रमाण
श्री ब्रह्मा पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र शुक्र ने गोमती नदी के उत्तर तट पर जहां भगवान महेश्वर जी की आराधना करके विद्या पाई थी वह स्थान शुक्रतीर्थ कहलाता है।
श्री ब्रह्मा पुराण के प्रश्न 172 -73 पर प्रमाण है कि 1 दिन राजा पुरूरवा, ब्रह्मा जी की सभा में गए वहां ब्रह्मा जी की पुत्री सरस्वती को देखकर उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की। सरस्वती जी ने हां कर दी और सरस्वती नदी के तट पर सरस्वती जी तथा पुरूरवा ने अनेकों वर्षों तक संभोग किया । एक दिन जब ब्रह्मा जी ने उनको विलास करते देख लिया तब अपनी बेटी को शाप दे दिया, जिसके बाद सरस्वती जी नदी रूप में समा गई और वह स्थान जहां पर पुरूरवा तथा सरस्वती जी ने संभोग किया था वह पवित्र तीर्थ सरस्वती संगम नाम से विख्यात हुआ और जहां पर पुरूरवा ने महादेव की भक्ति कि वह स्थान पुरूरवा तीरथ नाम से विख्यात हुआ। और इसी प्रकार गौतम ऋषि द्वारा एक वृद्धा स्त्री के साथ संभोग क्रिया करने वाले स्थान को वृद्धा संगम तीर्थ तथा
महर्षि कश्यप के जेष्ठ पुत्र आदित्य (सुर्य) ने अपनी पत्नी उषा के साथ गोमती नदी के तट पर घोड़ा व घोड़ी रूप में संभोग किया जिसके बाद वह स्थान अश्व तीरथ, भानु तीरथ तथा पंचवटी आश्रम के नाम से विख्यात हुआ। तो दर्शकों आपने देखा कि किस प्रकार इन तीरथ व धामों की स्थापना हुई इनकी स्थापना का उद्देश्य केवल इतना है कि यदि किसी को पुराणों में लिखी घटना पर विश्वास नहीं हो तो देखने जा सकते हैं लेकिन वहां आध्यात्मिक लाभ पाने के लिए जाना तो अंध श्रद्धा भक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है आप सभी विचार करें कि क्या ऐसे स्थान पर जाने और स्नान करने से कोई लाभ हो सकता है यहां तो आत्म कल्याण के स्थान पर पतन ही होगा। आत्म उद्धार नहीं ।
सर्वश्रेष्ठ तीर्थ चित्त शुद्ध तीरथ
जी हाँ , वास्तव में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ यदि कोई है तो वह 'चित शुद्ध तीर्थ' है। 'चित शुद्ध तीर्थ' यानी तत्वदर्शी सन्त का सत्संग जोकि सर्व तीर्थों से श्रेष्ठ तीर्थ है।
प्रमाण के लिए श्री देवी पुराण छठा स्कंद अध्याय 10, पृष्ठ 417 पर लिखा है
व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा- राजन! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किंतु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चित शुद्ध तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित शुद्ध तीर्थ अर्थात तत्वदर्शी सन्तों का सत्संग सुलभ हो जाये तो मानसिक मैल के धूल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन! इस चित शुद्ध तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरुषों अर्थात तत्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है। मनमाना आचरण हमें सफलता नहीं दिला सकता।
तो दर्शकों 21 ब्रह्मांड में वह तत्वदर्शी संत (संत रामपाल जी) ही है जो शास्त्र अनुकूल साधना बताते हैं और जिनका सत्संग सुनने के बाद मन का मेल भी साफ हो जाता है यानी के चित शुद्ध तीरथ संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन ही है। दर्शकों सतभक्ति करने वाले साधक की जीवन यात्रा अपने सदगुरु के पास पहुंच कर ही पूरी होती है। अतःआप भी इस सर्व श्रेष्ठ तीर्थ का लाभ उठाएं और अपना जीवन कल्याण करवाएं। अब अंत में कुछ वाणियों के साथ हम अपने इस प्रोग्राम से विराम देते है और मिलते अगले रविवार को ऐसी ही कुछ अध्यात्मिक पहेलियों को सुलझाने के लिए ।
पूजैं देई धाम को, शीश हलावै जो। गरीबदास साची कहै, हद काफिर है सो।।
कबीर, गंगा काठै घर करै, पीवै निर्मल नीर। मुक्ति नहीं हरि नाम बिन, सतगुरु कहैं कबीर।।
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मूवा, उडै पानी न्हाय। राम ही नाम ना जपा, काल घसीटे जाय।।
कबीर, पर्वत पर्वत मैं फिर्या, कारण अपने राम। राम सरीखे जन मिले, जिन सारे सब काम।।
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