मुक्ति बोध-Mukti Bodh-सुमिरन के अंग का सरलार्थ [शारीर में बने कमलों की जानकारी ] | Spiritual Leader saint ramapl Ji

आज मुक्ति बोध-Mukti Bodh के ‘‘सुमिरन के अंग’’ के सरलार्थ में जानिए शारीर में बने कमलों की जानकारी संत रामपाल जी के द्वारा
दोनों धर्मों (हिन्दु-मुसलमान) का परमात्मा एक ही है। तत्वज्ञान के अभाव से मुसलमान कहते हैं कि जिसने ’’कुरान शरीफ’’ का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी से कहा, वह कादर अल्लाह (समर्थ प्रभु) है। हिन्दु कहते हैं कि जिसने ’’गीता’’ का ज्ञान अर्जुन को दिया, वह श्री कृष्ण ही सर्वशक्तिमान प्रभु है। संत गरीब दास कह रहे हैं कि मुसलमान उसे बेचून अल्लाह कहते हैं, हिन्दु अलख निराकार अलेख का अर्थ अदृश्य भी होता है जो दिखाई नहीं देता) कहते हो, उसकी पहचान करो। वह कौन है, फिर उसके पश्चात् परमात्मा का विशेष नाम की (भक्ति हेत) भक्ति हृदय में श्रद्धा उत्पन्न करके करो।

sharir ke kamlo ki janakari


■ वाणी संख्या 13 से 16


गरीब, अष्ट कमल दल राम है, बाहिर भीतर राम। पिंड ब्रह्मंड में राम है, सकल ठौर सब ठाम।।13।।
गरीब, सकल व्यापी सुंनि में, मन पवना गहि राख। रोम रोम धुन होत है, सतगुरु बोले साख।।14।।
गरीब, मूल कमल में राम है, स्वाद चक्र में राम। नाभि कमल में राम है, हृदय कमल बिश्राम।।15।।
गरीब, कंठ कमल में राम है, त्रिकुटि कमल में राम। संहस कमलदल राम है, सुंनि बसति सब ठाम।।16।।

सरलार्थ :- मानव शरीर में नौ (9) कमल हैं। जिनका कबीर वाणी (सुक्ष्म वेद) के अतिरिक्त कहीं वर्णन नहीं है। ऋषि-महर्षि केवल सात कमल बताते हैं, परन्तु परमेश्वर कबीर जी ने अपने द्वारा बनाऐ शरीर का यथार्थ ज्ञान कराया है।

वाणी नं. 13 में कहा है कि अष्ट कमल में भी राम है, अष्ट कमल दल में अक्षर पुरूष (परब्रह्म) का प्रसारण केन्द्र है। मानव शरीर एक टैलीविजन (T.V.) की तरह है। इसमें कमल रूपी चैनल लगे हैं। इन कमलों में प्रत्येक प्रभु का प्रसारण केन्द्र है, जैसे मूल कमल गणेश देव का चैनल है, नाभि कमल विष्णु-लक्ष्मी जी का चैनल है, हृदय कमल में शिव-पार्वती जी का चैनल है। कण्ठ कमल में देवी दुर्गा जी का चैनल है। त्रिकुटी कमल सतगुरू रूप में कबीर जी का चैनल है

संगम कमल क्या है?

(काल तो धोखा देने के लिए गुप्त रहता है) त्रिकुटी कमल से पहले छठा संगम कमल है जो मुख्य रूप में सरस्वती का चैनल है जहाँ पर भक्तों तथा भक्तमतियों की परीक्षा होती है। इस कमल की तीन पंखुडि़याँ हैं। इसलिए इसको संगम कमल कहा जाता है। जब पंखुड़ी नं. 1 तथा नं. 2 में स्त्री -पुरूष भक्त भिन्न प्रवेश करते हैं, वहाँ पर स्त्री-भक्तमतियों को पुरूष रूप में काल के सुन्दर दूत अपनी अदाओं से लुभाते हैं। जिन स्त्रियों का मन भक्ति के कारण निश्चल हो चुका है, वे उनके जाल को समझ कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाती हैं। जो कच्ची होती हैं, वे वहीं आड़ पकड़ जाती हैं।

भक्तो भक्तमतियों की परीक्षा

उनको दूत वहाँ बने सुन्दर एकान्त स्थान पर ले जाकर उनसे यौन सम्बन्ध बनाकर भ्रष्ट करके काल जाल में फँसाकर सरस्वती रूप में विराजमान दुर्गा देवी के पास ले जाते हैं। वह उस भक्तमति को बहुत प्यार देती है तथा अपने स्थान पर रख लेती है। कुछ दिन उपरांत धर्मराज के दरबार में ले जाकर उसका हिसाब करवाया जाता है। तत्पश्चात् उसके पुण्य तथा भक्ति कर्म अनुसार स्वर्ग में अप्सरा बना दी जाती है। इसी प्रकार पुरूष भक्त पंखुड़ी दो में प्रवेश करते हैं। वहाँ पर 72 करोड़ सुन्दर अप्सराऐं रहती हैं उन पुरूषों को वे अपनी अदाओं से लुभाकर जाल में फंसाती हैं। जो उस जाल को इस ज्ञान से समझ जाता है, वह उनकी ओर देखता तक नहीं, अपने गंतव्य (गंतव्य का अर्थ है उद्देश्य वाले स्थान यानि त्रिकुटी की ओर जाने वाली तीसरी पंखुड़ी वाले मार्ग) की ओर चलते रहते हैं। जो कच्चे भक्त होते हैं।

सतसंग में भी इसी तरह टेढ़े देखते रहते हैं, वे भी उन सुन्दर जालिम अप्सराओं की अदाओं से आकर्षित होकर एकान्त स्थान की ओर पेशाब या पानी पीने के बहाने खिसक जाते हैं। आगे वह अप्सरा संकेत करके आगे-आगे चल पड़ती हैं, पीछे-पीछे मजनु भक्त इधर-उधर देखता हुआ अपने को सुरक्षित जानकर उस काल के कूप में गिर कर नष्ट हो जाता है। उसको भी कुछ दिनों उपरान्त उसी अप्सरा के साथ धर्मराज की कोर्ट भेजकर उसका कर्मों का हिसाब (Account) करवाकर स्वर्ग में कर्मानुसार देव पद या पारखद पद देकर उसको ठग लिया जाता है।
 
जो भक्त या भक्तमति परीक्षा पास करके उस तीसरी पंखुड़ी में यानि सत्य मार्ग पर चलकर त्रिकुटी में प्रवेश कर जाते हैं, वे एक परीक्षा से और गुजरते हैं। इस तीसरी पंखुड़ी के मुख्य द्वार को संगम कहते हैं। जैसे भारत देश के उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर के पास गंगा दरिया तथा यमुना दरिया एक हो जाती हैं, तीसरी दरिया सरस्वती नीचे से आकर मिलती बताई गई है। उस स्थान को संगम कहा जाता है। इसी प्रकार यह छठा कमल संगम कमल भी कहा जाता है। सातवां त्रिकुटी कमल है। इसमें दो पंखुड़ी हैं। एक सफेद तथा दूसरी काली।

सातवे कमल के सफेद स्थान पर परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में विराजमान हैं

सफेद स्थान पर परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में विराजमान हैं। जैसे मेरे (रामपाल दास) से दीक्षा प्राप्त भक्तों के लिए मेरा रूप बनाकर परमेश्वर मिलते हैं। काल ब्रह्म भी धोखा करने के लिए सतगुरू का रूप बनाता है। जिन भक्तों ने ज्ञान ठीक से समझा होता है, वे सत्यनाम तथा सारनाम का सुमरन करके जाँच करते हैं। सुमरन के पश्चात् भी यदि सतगुरू रूप है तो वास्तविक परमेश्वर है। यदि नकली सतगुरू काल ब्रह्म होगा तो सुमरन से उसका नकली सतगुरू रूप समाप्त हो जाएगा। काल रूप दिखाई देगा।

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यह घटना केवल उसी भक्त को दिखाई देगी जिनको यह ज्ञान याद है और जिसको ज्ञान याद नहीं रहता, वे वहाँ असफल (Fail) हो जाते हैं। काल के पक्ष में पहुँच जाते हैं। जन्म-मरण के चक्र में फँसकर करा-कराया नष्ट करके जन्म-मरण के चक्र में रह जाते हैं। जो भक्त परीक्षा में सफल हो जाते हैं। उनको परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में साथ लेकर धर्मदास की कोर्ट में ले जाते हैं। वकालत करके ब्रह्म काल के स्तर के धार्मिक कर्मों का पुण्य वहाँ जमा कराकर भक्तों को अपने साथ ब्रह्मरन्द्र के सामने त्रिवेणी पर लाते हैं। वहाँ सत्यनाम के ओम् से दूसरे मंत्र का जाप करते हैं। ब्रह्मरन्द्र का किवाड़ तुरंत खुल जाता है।

ब्रह्मरन्द्र की जानकारी

आगे चलकर दो रास्ते हो जाते हैं। बांया रास्ता काल के ब्रह्म लोक में संहस्र कमल में चला जाता है। दांया रास्ता मिनी सतलोक की ओर जाता है। जो काल ब्रह्म के साधक हैं, उनके लिए संहस्र कमल अष्ट कमल है जिसमें ज्योति निरंजन का निवास है। यह ब्रह्म के पुजारियों का आठवां कमल है। परंतु इस स्थान पर केवल वह जा सकता है जिसको काल ब्रह्म किसी उद्देश्य से बुलाता है या परमेश्वर कबीर जी का भक्त सत्यनाम के स्मरण से ब्रह्मरन्द्र को खोलकर जाता है।

जहाँ दो रास्ते ब्रह्मरन्द्र के बाद आते हैं, वहाँ जाते ही ॐ का जाप अपने आप बंद हो जाता है। केवल सत्यनाम के दूसरे मंत्र का जाप चलता रहता है। श्वांस-उश्वांस यानि श्वांस लेते समय और छोड़ते समय यही मंत्र चलेगा। साथ में सारनाम भी दोनों (अंदर-बाहर) श्वांसों में चलेगा।

गरीब, सोहं-सोहं धुन लगे, दर्द बंद दिल मांही। सतगुरू पर्दा खोलही, अगम दीप ले जांही।।

दांई ओर चलने पर यह अष्ट कमल आएगा जो अक्षर पुरूष वाला चैनल है जिसकी दस पंखुडि़यां हैं। इसके आगे मिनी सतलोक है जो नौंवा कमल है। इसकी असँख्य पंखुडि़याँ हैं। परम अक्षर पुरूष यानि सत्य पुरूष का चैनल है। इस प्रकार प्रत्येक कमल में राम (प्रभु) हैं। परंतु पूर्ण परमात्मा (सत्य पुरूष) कुल का मालिक होने से प्रत्येक कमल में अपनी अदृश्य शक्ति से विद्यमान रहता है। इस नौंवे कमल का संबंध (Connection) हृदय कमल (जो चौथा कमल शिव-पार्वती का है) में भी है। मिनी सतलोक वाला seen (दृश्य) वहाँ भी टी.वी. की तरह एक कोने में चलता रहता है।

वहाँ परमेश्वर अन्य रूप में होने से पहचान में नहीं आता। उसे कोई ऋषि जानकर विशेष महत्व नहीं देते। संत गरीबदास जी ने कहा है कि सकल व्यापि यानि सब कमलों तथा सर्व ब्रह्मण्डों में व्यापक परमात्मा सुन्न यानि आकाश में रहता है। उसकी सत्ता सब पर है। वह सकल व्यापी यानि वासुदेव है। (गीता अध्याय 3 श्लोक 15 में सर्वगतम् ब्रह्म का अर्थ सर्वव्यापी ब्रह्म यानि वासुदेव परम अक्षर ब्रह्म है।) हे साधक! तू मन तथा श्वांस को नाम मंत्र पर दृढ़ता से लगाए रख।
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1 Comments

  1. पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज की जय 🌻🙏

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