नमस्कार स्वागत है आप का Spiritual Leader Saint Rampal JI Maharaj जी के Official Blogger Account में. आज हम आप को विषय "क्या तीर्थ स्थानों पर जाने से कोई लाभ है?" से परिचित करवाएँगे. आइए जानते है तीर्थ स्थानों पर जाने से कोई लाभ संभव है या नहीं के बारे में.
क्या तीर्थ स्थानों पर जाने से कोई लाभ संभव नहीं?
भगवान कोई पशु तो है नहीं कि उसको पुजारी जी ने मन्दिर में बांध रखा है। भगवान तो कण-कण में व्यापक है। ये सभी साधनाएँ शास्त्रों के विरुद्ध हैं। जरा विचार करके देखो कि ये सभी तीर्थ स्थल (जैसे जगन्नाथ का मन्दिर, बदरीनाथ, हरिद्वार,मक्का-मदीना, अमर नाथ, वैष्णो देवी, वृन्दावन, मथुरा, बरसाना, अयोध्या राम मन्दिर, काशी धाम, छुड़ानी धाम आदि), मन्दिर, मस्जिद, गुरु द्वारा, चर्च व ईष्ट धाम आदि ऐसे स्थल हैं जहाँ पर कोई संत रहते थे।
तीर्थ स्थानों पर जाने से कोई लाभ है? |
वे वहाँ पर अपनी भक्ति साधना करके अपना भक्ति रूपी धन जोड़ करके शरीर छोड़ कर अपने ईष्ट देव के लोक में चले गए। तत्पश्चात् उनकी यादगार को प्रमाणित रखने के लिए वहाँ पर किसी ने मन्दिर, किसी ने मस्जिद, किसी ने गुरु द्वारा, किसी ने चर्च या किसी ने धर्मशाला आदि बनवा दी। ताकि उनकी याद बनी रहे और हमारे जैसे तुच्छ प्राणियों को प्रमाण मिलता रहे कि हमें ऐसे ही कर्म करने चाहिए जैसे कि इन महान आत्माओं ने किये हैं। ये सभी धार्मिक स्थल हम सभी को यही संदेश देते हैं कि जैसे भक्ति साधना इन नामी संतों ने की है ऐसी ही आप करो।
इसके लिए आप इसी तरीके से साधना करने वाले व बताने वाले संतों को तलाश करो और फिर जैसा वे कहें वैसा ही करो। लेकिन बाद में इन स्थानों की ही पूजा प्रारम्भ हो गई जो कि बिल्कुल व्यर्थ है और शास्त्रों के विरुद्ध है। ये सभी स्थान तो एक ऐसे स्थान की भांति हैं जहाँ पर किसी हलवाई ने भट्ठी बना कर जलेबी, लड्डु आदि बना कर स्वयं खा कर और अपने सगे-साथियों को खिला कर चले गए। उसके बाद में उस स्थान पर न तो वह हलवाई है और न ही मिठाई। फिर तो वहाँ केवल भट्ठी ही है। वह न तो हमारे को मिठाई बनाना सिखला सकती है और न ही हमारा पेट (उदर) भर सकती है।
अब कोई कहे कि आओ भईया! आपको वह भट्ठी दिखा कर लाऊँगा जहाँ पर एक हलवाई ने मिठाई बनाई थी। चलो चलते हैं। वहाँ जा कर उस भट्ठी को देख लिया और सात चक्कर भी काट आए। क्या आपको मिठाई मिली? क्या आपको मिठाई बनाने की विधि बताने वाला हलवाई मिला? इसके लिए आपने वैसा ही हलवाई खोजना होगा जो सबसे पहले आपको मिठाई खिलाए और बनाने की विधि भी बताए। फिर जैसे वे कहे केवल वही करना, अन्य नहीं।
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ठीक इसी प्रकार तीर्थ स्थानों की पूजा न करके वैसे ही संतों की तलाश करो जो शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करते व बताते हों। फिर जैसे वे कहे केवल वही करना, अपनी मन मानी नहीं करना।
■ सामवेद संख्या नं. 1400 उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5(संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य)ः-
भद्रा वस्त्र समन्या3वसानो महान् कविर्निवचनानि शंसन्।
आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ।।5।।
हिन्दी :- चतुर व्यक्तियों ने अपने वचनों द्वारा पूर्ण परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) की पूजा का सत्यमार्ग दर्शन न करके अमृत के स्थान पर आन उपासना (जैसे भूत पूजा, पितर पूजा, श्राद्ध निकालना, तीनों गुणों की पूजा (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शंकर) तथा ब्रह्म-काल की पूजा मन्दिर-मसजिद-गुरूद्वारों-चर्चों व तीर्थ-उपवास तक की उपासना) रूपी फोड़े व घाव से निकले मवाद को आदर के साथ आचमन करा रहे होते हैं। उसको परमसुखदायक पूर्ण ब्रह्म कबीर सहशरीर साधारण वेशभूषा में (‘‘वस्त्र का अर्थ है वेशभूषा-संत भाषा में इसे चोला भी कहते हैं। जैसे कोई संत शरीर त्याग जाता है तो कहते हैं कि महात्मा तो चोला छोड़ गए।‘‘)
सत्यलोक वाले शरीर के समान दूसरा तेजपुंज का शरीर धारण करके आम व्यक्ति की तरह जीवन जी कर कुछ दिन संसार में रह कर अपनी शब्द-साखियों के माध्यम से सत्यज्ञान को वर्णन करके पूर्ण परमात्मा के छुपे हुए वास्तविक सत्यज्ञान तथा भक्ति को जाग्रत करते हैं।
■ गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23
यः, शास्त्राविधिम्, उत्सृज्य, वर्तते, कामकारतः, न, सः,
सिद्धिम्, अवाप्नोति, न, सुखम्, न, पराम्, गतिम्।।
अनुवाद : जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न परम गति को और न सुख को ही।
■ गीता अध्याय नं. 6 का श्लोक नं. 16
न, अति, अश्र्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्,
अनश्र्नतः, न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।
अनुवाद : हे अर्जुन! यह योग अर्थात् भक्ति न तो बहुत खाने वाले का और न बिल्कुल न खाने वाले का न एकान्त स्थान पर आसन लगाकर साधना करने वाले का तथा न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।
पूजैं देई धाम को, शीश हलावै जो। गरीबदास साची कहै, हद काफिर है सो।।
कबीर, गंगा काठै घर करै, पीवै निर्मल नीर। मुक्ति नहीं हरि नाम बिन, सतगुरु कहैं कबीर।।
कबीर, तीर्थ कर-कर जग मूवा, उडै पानी न्हाय। राम ही नाम ना जपा, काल घसीटे जाय।।
गरीब, पीतल ही का थाल है, पीतल का लोटा। जड़ मूरत को पूजतें, आवैगा टोटा।।
गरीब, पीतल चमच्चा पूजिये, जो थाल परोसै। जड़ मूरत किस काम की, मति रहो भरोसै।।
कबीर, पर्वत पर्वत मैं फिर्या, कारण अपने राम। राम सरीखे जन मिले, जिन सारे सब काम।।
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4 Comments
Good knowledge
ReplyDeleteAwesome
ReplyDeleteतीर्थ पर जाने से क्या लाभ होगा , वे तो यादगारे मात्र है।।
ReplyDeleteकबीर पर्वत पर्वत में फिरा, कारण अपने राम। राम सरीखे जन मिले, जिन सारे सब काम।
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