विश्व मे सबसे सुखी व्यक्ति कौन है? |

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दर्शकों क्या आप जानते हैं कि विश्व मे सबसे सुखी व्यक्ति कौन है? 

दरअसल दुनिया में हर गरीब व्यक्ति सोचता है की अमीर सुखी होगा, अमीर सोचता है राजा लोग सुखी होंगे, राजा सोचता हैं कि भगवान से बढ़कर कोई सुखी नहीं। दरअसल देखा जाए तो जिसके पास जिस वस्तु का आभाव होता है वो उस व्यक्ति को सुखी मान लेता है जिसे वो आभाव नहीं होता। कोई मजदूर व्यक्ति है वो सर्विस मैन को सुखी समझता है, वहीं वो सर्विसमैन न जाने कितनी मुश्किलों से अपना समय व्यतीत कर रहा होता है। सर्विसमैन बिज़नेस करने वाले को सुखी मानता है पर वो ये नहीं जानता कि वास्तव में जो बिज़नेस कर रहे हैं वो कितना दुखी हैं!



दर्शकों, आज हम जिस विषय मे बात करेंगे वो बात तो आम बात है पर ये ऐसी बातें हैं जिनके बारे में हम अक्सर अकेले बैठकर सोचा करते थे पर कोई हल न मिलने पर उसे नजरअंदाज कर दिया करते थे। हम बात कर रहे हैं सुख व दुख की। हर कोई किसी न किसी वजह से दुखी है। परन्तु अपने दुख में हर कोई दुसरो को सुखी समझने की गलती कर बैठता है। आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि- आम लोगों की मान्यता के अनुसार सुखी कौन है और वास्तव में सुखी कौन है? 


बहुत से लोगों का कहना है कि भगवान ने नाइंसाफी से जीवों की सृष्टि की है। कुछ को गरीब बनाया तो कुछ को अमीर। किसी को पशु बनाया तो किसी को कीट। किसी को स्वास्थ्य दिया तो किसी के हाथ-पैर छीन लिए। किसी को मजदूर बनाया तो किसी को अधिकारी। ये नाइंसाफी नहीं तो और क्या है?


गरीब व्यक्ति आर्थिक तंगी के कारण बहुत दुखी रहता है, दिन भर मजदूरी करता है फिर भी परिवार का पेट नहीं पाल पाता। किसान खेती करके दुसरो का पेट तो भर देता है परन्तु अपने परिवार में वो खुद ही अन्न की कमी से जूझ रहा होता है। कोई वैद्य दुसरो के रोग तो बहुत ही आसानी से ठीक कर देता है परन्तु स्वयं को वही रोग हो जाये तो ठीक नहीं कर पाता। हर कोई दूसरे को सुखी समझता है परन्तु इस संसार मे कोई भी जीव सुखी नहीं है। इसके लिए जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी  विश्व मे एकमात्र ऐसे सन्त हैं जिन्होने पूरे विश्व को सुखी करने के लिए अपने जीवन को भी दांव पर लगा रखा है। 


दर्शको जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी ने अपने सत्संग प्रवचन में बताया-

"कबीर, तन धर सुखिया कोई न देखा, जो देखा सो दुखिया हो।

उदय अस्त की बात करत है, मने सबका किया विवेका हो।।"


आगे बताते हैं-

घाटे बाधे सब जग दुखिया, के गृहस्थी वैरागी हो।

सुखदेव ने दुख के डर से, गर्भ में माया त्यागी हो।


सतगुरु रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि इस लोक में कोई भी सुखी व्यक्ति नहीं है। कोई व्यक्ति व्यापार करता है, यदि उसे उस व्यापार में हानि हो जाती है तो वो व्यक्ति दुखी रहता है, और यदि उसे लाभ हो गया तो और ज्यादा दुखी हो जाएगा। वो कैसे?


सन्त रामपाल जी महाराज जी ने बताया- कि यदि किसी को व्यापार में लाभ हुआ, प्रॉफिट हुआ तो वो व्यापार को बढ़ाने के लिए उसमे और पैसे लगाएगा। और पैसे लगाने के लिए कर्जा भी लेगा, और जब तक कर्जा नही उतरेगा तब तक उसके ये टेंशन बनी रहेगी । जिससे शरीर मे हानि हो सकती है। और यदि बढ़ाये गए बिज़नेस में घाटा पड़ गया तो या तो वो सारी जिंदगी दुखी रहेगा या आत्म हत्या का रास्ता अपनाएगा, हो सकता है उसे हार्ट अटैक हो जाये जो शरीर मे हानि का कारण बने।


तो सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ये उदाहरण देकर समझाते हैं कि इस लोक में कोई भी सुखी नहीं है। चाहे किसी को हानि हो या लाभ, कोई राजा हो या आम व्यक्ति। सभी को कोई न कोई चिंता बनी रहती है और उसी चिंता में सारा जीवन व्यतीत करके प्राणी दुखी रहता है। आम व्यक्ति सोचता है कि अमीर सुखी होगा, अब कोई किसी अमीर व्यक्ति से जाकर मिले, उनसे बात करें तो पता चलेगा कि वो कितना दुखी है। गरीब व्यक्ति से ज्यादा दुखी तो अमीर व्यक्ति है जिसे प्रतिदिन कई कई मुश्किलों को झेलना पड़ता है। इसी तरह अमीर व्यक्ति सोचता है कि राजनेता सुखी होंगे। दर्शकों, यकीन मानिए, राजा से दुखी व्यक्ति संसार मे नहीं हो सकता। एक दिन भी उसका चैन से नही कटता। एक रात भी वो चैन की नींद नहीं सो पाता। तो सतगुरु रामपाल जी ने बताया कि इस लोक में कोई भी जीव सुखी नहीं है। 


अब आपके मन मे प्रश्न उठा रहा होगा, फिर सुखी कौन है? क्या केवल भगवान ही सुखी है? अगर ऐसा है तो भगवान तो बड़ा ही खुदगर्ज है जो अपने बच्चों को दुखी देखकर भी शांत बैठा है!


ऐसी बात नहीं है। सन्त रामपाल जी महाराज जी ने बताया-


"सुरपति दुखिया, भूपति दुखिया, रंक दुखी बपरीति हो।

कहे कबीर सुनो भाई साधो, एक सन्त सुखी मनजीति हो।"


यहाँ जगतगुरु रामपाल जी महाराज जी परमेश्वर कबीर साहेब जी की वाणी को खोलकर बताते हैं व स्पष्ट करते हैं कि सुर पति अर्थात देवता भी दुखी हैं, भू पति अर्थात पृथ्वी के राजा भी दुखी हैं और रंक यानी गरीब तो स्वाभाविक दुखी है। परमेश्वर कबीर साहेब जी अंत मे कहते हैं ये सारे के सारे दुखी हैं वो सन्त जिसने मन पर विजयी पा ली हो केवल वही जीव सुखी है अन्यथा सभी प्राणी दुखों से घिरे हुए हैं।


अब सन्त व मनजीति कैसे बना जाए?


संतो ने मन को जीतना तो हवा को रोकने के समान बताया है। मन को जीतना आसान नहीं, मन को कोई भी काबू नहीं कर सकता। परन्तु सच्चे सतगुरु की शरण मे आकर भक्ति करने वाला भक्त/साधक मन के विकारों से अपना बचाव कर सकता है और सतगुरु के बताए मार्ग पर चलकर भक्ति मर्यादा में रहता है तो पूरा जीवन सुखी व्यतीत करता है। उस प्यारी आत्मा को यहाँ भी सुख मिलता है और परलोक में भी वो सुखी रहता है। तत्वदर्शी सन्त की शरण मे आने वाला साधक मनजीति सन्त बन जाता है और सुख का आनन्द लेता है।


तो दर्शकों, यदि आप भी सम्पूर्णतः सुखी होना चाहते हैं तो सतगुरु अर्थात सच्चे व पूरे गुरु की शरण ग्रहण करो और शास्त्रोनुसार बताई भक्ती करके मनजीति सन्त बनकर सुखी जीवन जियो। वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी  संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे एवं पूर्ण गुरु हैं जो विश्व का कल्याण करने हेतु परमात्मा के आदेशानुसार इस भक्ति मार्ग को पूरे विश्व मे पहुंचा रहे हैं।


अतः आप सभी से प्राथना है कि सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें और सुखी जीवन जिते हुए मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बनें। आज की इस वीडियो में बस इतना ही जल्द मिलेंगे मिलेंगे एक और नए टॉपिक के साथ  तब तक देखते रहिए sa news सच जो आप जानना चाहते हैं 

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