Spiritual Research: क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्योहार है, क्या है इसकी सच्चाई? [Hindi] | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

Spiritual Research: लोहड़ी क्यों मनाई जाती है? [Hindi] | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

नए वर्ष में नए सिरे से त्योहार शुरू हो रहे हैं। इन्हीं त्योहारों में सबसे प्रथम त्योहार पहली जनवरी से ही प्रारम्भ हो गया था जिसे नए वर्ष के रूप में पूरे विश्व मे मनाया गया। उसके बाद 5 जनवरी को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म दिवस था जिसे पूरे भारतवर्ष में खासकर पंजाब व हरियाणा में मनाया गया था। इसी के साथ साथ लोहड़ी का त्योहार भी आने वाला है जिसकी तैयारियां लोगो ने अभी से शुरू कर दी हैं। बाजारों में लोहड़ी पर बिकने वाला समान भी लगना शुरू हो गया है। मूंगफली, गच्चक, रेवड़ी, तिल, आदि बाजारों में उच्च स्तर पर बिक रहे है।

दर्शकों, लोहड़ी का त्योहार उत्तर भारत मे बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। हरियाणा व पंजाब में इस त्योहार को सबसे अधिक प्रसन्नता से मनाया जाता है। माना जाता है कि लोहड़ी का त्योहार फसल की बुआई व कटाई से सम्बंधित है। परन्तु इस त्योहार के पीछे की कथा कुछ और ही है जिसके विषय मे आज हम आपको बताने वाले हैं। लोहड़ी त्योहार से जुड़ी और भी बातों पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि लोहड़ी का त्योहार कैसे मनाया जाता है और इस त्योहार को मनाने के पीछे क्या मान्यता है तो चलिए शुरू करते हैं, लोहड़ी के इतिहास से


लोहड़ी के इतिहास से जुड़ी कथा


लोहड़ी का एक लोक गीत बहुत प्रसिद्ध है जिसमे लोहड़ी का इतिहास छिपा है। वो लोक गीत:- सुंदर मुंदरिये के नाम से जाना जाता है। 

इस गीत में बताया गया है कि एक समय मे एक दुल्ला भट्टी नाम का डाकू था परन्तु वो डाकू लोगो का भला किया करता था। लूट मार के समान से वो गरीब लोगों की मदद किया करता था। एक दिन उसने देखा कि सुंदरी व मुंदरी नाम की 2 अनाथ युवतियों को उनके चाचा ने किसी जमींदार को बेच दिया। दुल्ला भट्टी ने उन दोनों लड़कियो को वहाँ से छुड़वाकर उनकी रक्षा की और लोहड़ी की रात को आग जलाकर उन दोनों युवतियों का हिन्दू लड़को से विवाह करवा दिया और उनकी झोली में शक्कर डालकर उन्हें विदा किया। 

सभी ने दुल्ला भट्टी की इस बात को सराहा और उनके इस नेक कार्य को याद रखने व लोगो मे इंसानियत जगाए रखने के लिए इस दिन उस कथा को याद किया जाता है और उसी तरह आग जलाकर, आग में आहुति डालकर, आग के चारो तरफ चक्कर लगाकर इस त्योहार को मनाया जाता है। शक्कर से बनी गच्चक, मूंगफली, आदि खाद्य पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। आग में आहुति भी इन्ही सामग्री की दी जाती है। इसलिए सुंदरी व मुंदरी के विवाह की खुशी में सभी ढोल व नगाड़ो से इस दिन इस त्योहार को बड़े ही जोश व खुशी के साथ मनाते हैं। और आजतक ये परम्परा ऐसे ही चली आ रही है। तो अभी आपने जाना कि लोहड़ी की कथा क्या है। परन्तु क्या आप जानते हैं लोहड़ी मनाने से होता क्या है? बहुत से लोग नहीं जानते कि लोहड़ी का क्या महत्त्व है। तो अब हम आपको लोहड़ी के महत्व के बारे में बताते हैं। 


लोहड़ी मनाने से किसी तरह का सुख होना या किसी प्रकार का लाभ मिलना ये सब लोगो की मान्यताएं हैं। लोहड़ी की कथा से हमे ये पता चलता है कि लोहड़ी मनाने का उद्देश्य किसी तरह का सुख प्राप्ति या लाभ प्राप्त करना नहीं था बल्कि उस दिन इंसानियत की याद को लोगों के दिलो में ताजा रखने का था। लोहड़ी के त्योहार का केवल इतना ही महत्व है कि लोहड़ी की कथा से हमें इंसानियत के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है और हमे भी दुल्ला भट्टी की तरह निःस्वार्थ लोगो की मदद करनी चाहिए जिससे आत्मिक शांति व सुकून मिलता है।


लोहड़ी का त्योहार मनाना जरूरी नहीं है। जरूरी है उस त्योहार की कथा से शिक्षा ग्रहण करना और उसे अपने जीवन में लागू करना। 

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लोहड़ी का त्योहार मनाना पूरी तरह से मनमाना आचरण है जिसके विषय मे हमारे किसी भी सद्ग्रन्थ में प्रमाण नहीं है। हिन्दू समाज हो या सिख समाज, लोहड़ी के त्योहार को मनाने से किसी पर भी न तो कोई असर हुआ और न ही कोई लाभ मिला जिससे स्पष्ट होता है कि लोहड़ी मनाना व्यर्थ है। रही बात इस दिन पर सुंदरी व मुंदरी के विवाह की खुशी मनाने का तो इस वक्त खुशी मनाने का कोई मतलब नहीं बनता। क्योंकि कहते है ना 

बीत गयी सो बात गयी

हमे भूतकाल से प्रेरणा लेकर वर्तमान में नेक कर्म  कर भविष्य को सही बनाने की तैयार करनी चाहिए । ये लोक खुशी मनाने लायक है ही नही। 


अब ये बात सुनकर सब इस बात को नकारा कर देंगे कि ऐसे कैसे खुशी न मनाई जाए


दर्शकों यहाँ इस प्रश्न के जवाब में हम आप सभी से एक सीधा सा सवाल पूछना चाहेंगे कि जब घर परिवार मे कोई आपत्ति आती है या किसी की मृत्यु हो जाती है या किसी का एक्सीडेंट हो जाता है या अन्य कोई भी घटना घट जाती है और उन्ही मुश्किल दिनों में या उसी मुश्किल पल में परिवार के किसी सदस्य का जन्म दिवस आ जाता है या कोई त्योहार आ जाता है तो उस दिन हम उस त्योहार को क्यों नहीं मनाते? क्यों हम अपने जन्म दिन की खुशी जाहिर नही करते? क्यों उस दिन हम हद से ज्यादा दुखी होते हैं? आस पड़ोस उस दिन खुशी मनाता है और हम उस दिन उदास बैठे होते हैं, ऐसा क्यों होता है?

 

वाणी में बताते हैं-

"न जाने काल की कर डारे, किस विधि ढल जाए पासा वे।

जिन्हा दे सिर ते मौत खुड़कदी, उनहानु केहड़ा हांसा वे।।"


इस काल के लोक मे किस चीज की खुशी मनाए इंसान जहाँ अपनी मृत्यु का भरोसा नहीं कब आ जाये। गुरु नानक देव जी कहते है जिनके सिर पर हर समय मौत का डर हो उन्हें किस बात की खुशी हो सकती है अर्थात इस लोक में खुशी मनाने लायक कुछ नही है।

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दूसरा इन त्योहारों को मनाने का हमारे किसी भी सद्ग्रन्थ में कोई प्रमाण नहीं है जिससे ये सिद्ध होता है कि आज तक हम जो करते आये वो मनमाना आचरण था, शास्त्रों व भगवान के सन्देश के विरुद्ध था जिस कारण हमें किसी प्रकार के लाभ नहीं मिल पा रहे थे। वर्तमान में एक से आध्यात्मिक शिक्षक इस दुनिया मे विद्यमान हैं जो हमे सभी धर्मों के सद्ग्रन्थों से परिचित करवा रहे हैं और शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बता रहे है। उनके अनुसार जो भी साधक उनकी शरण मे आकर मर्यादा में रहता हुआ सतभक्ति करेगा उसका गारंटीड मोक्ष होगा और जन्म मृत्यु व बुढ़ापा जैसे भयावह चक्र से वो सदा के लिए मुक्ति पा जाएगा।


तो दोस्तों अगर ऐसा मौका मिल रहा हो तो हाथ से जाने नहीं देना चाहिए, क्या पता फिर ये मौका मिले न मिले! 


तो जो भी श्रद्धालुजन इस आध्यात्मिक शिक्षक के विषय मे जानना चाहते हैं उन सभी को बता दें कि ये महान आध्यात्मिक शिक्षक पूरे विश्व में आध्यात्मिकता का प्रचार प्रसार कर रहे हैं जिनका नाम आज सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। ये महान सन्त: जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी हैं जो विश्व के कल्याण के लिए जन जन तक अपना ज्ञान पहुंचा रहे हैं। दर्शकों इस सुनहरे मौके को चूकना मत और जितना जल्दी हो सके इस महान सन्त की शरण मे आकर जन्म मृत्यु से सदा के लिए निजात पाएं।

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