भारत देश सन्तों की भूमि कहा जाता है। इस पवित्र भूमि पर अनेको सन्त, भक्त, ऋषि देवी देवताओं के अवतारों का जन्म हुआ है। इन सभी ने अपना उद्देश्य पूरा किया एवं अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया है। खबरों की खबर के हमारे इस कार्यक्रम में आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण जी की लीला के साथ सन्त कबीर जी जिन्हें भक्तिकालीन सन्त के रूप में जाना जाता है उनकी लीला का वर्णन करेंगे एवं जानेंगे ऐसे तथ्य जो चौंका देने वाले होंगे।
भगवान श्री कृष्ण जी की किन लीलाओं के कारण लोग उन्हें परमात्मा मानने लगे और पुरुषोत्तम जानकर उनकी भक्ति करने लगे। आज आपको कृष्ण जी की लीला व परमेश्वर कबीर साहेब जी की मिलती जुलती लीला बताकर स्पष्ट करेंगे कि कौन समर्थ शक्ति है और कौन जीवन वृद्धि करने में सक्षम है और कौन है वो सर्वोच्च परमात्मा जो तीनों लोकों समेत इक्कीस ब्रह्मांडों का भी पालन पोषण करता है।
अब हम दोनों की लीलाओं का भेद स्पष्ट करते हैं
लीला नंबर 1
Darshako हम जानते हैं कि shri कृष्ण जी का जन्म कंस राजा की कारावास में बंद उनकी बहन देवकी और वासुदेव से हुआ था। रातों रात वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास छोड़कर आ गए थे। चूँकि कंस को यह भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी मृत्यु का कारण बनने वाला अब पैदा होगा इसलिए उसने अनगिनत नवजात शिशुओं की हत्या की। वहीं पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जब पृथ्वी पर आए तो वे जननी से जन्म लेकर नहीं बल्कि सशरीर कमल के पुष्प पर लहरतारा में अवतरित हुए। ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 के अनुसार पूर्ण परमेश्वर का जन्म जननी से नहीं होता।
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कबीर परमात्मा और श्री कृष्ण जी दोनों में से कौन ज्यादा शक्तिशाली और बड़े हैं ?https://t.co/kfcsR4YfFZ
लीला नंबर 2
यह भी सर्व प्रसिद्ध है कि कृष्ण जी गायों का दूध पीते और माखन खाते हुए बड़े हुए जिस कारण उन्हें लोग प्रेम से माखनचोर बुलाने लगे थे। जबकि पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब को जब नीरू नीमा अपने घर ले गए तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 के अनुसार परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय से होती है।
लीला नंबर. 3
दर्शकों राजा मोरध्वज की कथा से हिन्दू समाज बखूबी परिचित है। पूरा हिन्दू समाज जानता है कि किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन के एकमात्र भक्त होने के अभिमान को तोड़ने के लिए एक ऋषि के रूप में मोरध्वज के घर गए व अपने शेर के भोजन के लिए पुत्र ताम्रध्वज का सिर कटवा दिया ताम्रध्वज की एवं मोरध्वज की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे जीवित कर इस लीला से अर्जुन का भ्रम भी मिटा दिया कि केवल वही सर्वोत्तम भक्त है। अब एक और परमेश्वर कबीर साहेब जी ने भी की थी जिसके विषय मे बहुत ही कम लोग जानते हैं।
यह कथा है सेउ व सम्मन की।
सम्म्मन नाम का एक चूड़ी बेचने वाला मनिहार अपनी पत्नी नेकी एवं पुत्र सेऊ के साथ रहता था। वह इतना निर्धन था कि कई बार वे सपरिवार भूखे ही सो जाया करते थे। किंतु वे अपने पूज्य गुरुदेव कबीर साहेब जी के परम भक्त थे। एक दिन कबीर साहेब अपने दो भक्तों के साथ सम्मन के घर पर पधारे। कबीर साहेब कमाल का सेवा को लेकर अभिमान तोड़ना चाहते थे।
गुरुजी को आया देखकर सम्मन का परिवार बड़ा प्रसन्न हुआ। गुरुजी व भक्तों के लिए उन्होंने बैठने की व्यवस्था की एवं भोजन का आग्रह किया। कबीर साहेब के हाँ कहने पर वे भोजन की तैयारी करते इसके पहले ही पता चला कि घर में आटा ही नहीं है। नेकी आसपड़ोस में उधर लेने गई किन्तु उसे नहीं मिला चूंकि वे भक्त थे इसलिए ये जानते थे कि सन्तों के भूखे जाने से नगरी उजड़ जाती है। अंततः इसी कारण सेऊ सेठ की दुकान में सेंध लगाकर आटा चुराने गया। सेठ के पकड़ लेने पर उसने सिर बाहर निकाला और सम्मन से अपना सिर काटने की प्रार्थना की। सम्मन जानता था कि यदि सेठ सेऊ को राजा के पास ले गया तो गुरुजी की बदनामी होगी इसी कारण उसने सिर काट दिया। और आटा घर पर दे दिया। उधर नेकी ने खाना बनाते हुए पुत्र का सिर और धड़ घर लेकर रखने के लिए कहा।
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सम्मन ने अपने मृत पुत्र का सिर और धड़ लाकर ताक पर रख दिया। इधर भोजन तैयार होने पर 5 बर्तनों में भोजन परोसा गया। कबीर साहेब ने 6 बर्तनों में लगाने के लिए कहा। कोई चारा न देखकर नेकी ने 6 बर्तनों में भोजन परोसा। कबीर साहेब ने सेऊ को भोजन करने के लिए आवाज़ लगाई। सेऊ भीतर से दौड़ता हुआ आ गया जिसकी गर्दन पर कटने का निशान भी नहीं था। सम्मन ने भीतर जाकर देखा तो ताक पर मात्र रक्त के छींटे पड़े थे।
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जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी ने भगवान श्री कृषण जी की लीला व कबीर परमेश्वर की लीला में भिन्नता बताते हुए दर्शाया है कि भगवान श्री कृष्ण जी ने मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज को आरे से कटवाकर जीवित कर दिया लेकिन उन्हें मोक्ष नहीं दे पाए। जिसका जीवन शेष हो उसे मारकर जीवित करना शक्तियुक्त महापुरुषों के लिए आसान होता है किंतु जिसकी आयु खत्म हो उसे जीवित करना केवल पूर्ण परमेश्वर के हाथों होता है।
जिस समय कृष्ण जी के एकमात्र भांजे एवं पांडवों के अंतिम वंश अभिमन्यु की मृत्यु हुई थी तब वे उसे जीवित क्यों नहीं कर सके थे? वहीं दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सेउ को जीवित किया। मृत लड़के कमाल को जीवित किया, कमाली नाम की मृत लड़की को जीवित किया, स्वामी रामानन्द जी का सिर सिकन्दर लोधी द्वारा काट देने पर उन्हें जीवन दान दिया।
लीला नंबर 4
यह सर्वप्रसिद्ध है कि कृष्ण जी की बांसुरी की तान सुनकर सभी मुग्ध हो जाते थे। पशु पक्षी एवं नगर के लोग भी मधुर तान सुनते रहते थे। एक समय सन्त मलूकदास जी ने कबीर साहेब से मुरली की तान सुनने की इच्छा व्यक्त की। तब कबीर साहेब ने यमुना के किनारे बांसुरी बजाई। उस तान को सुनकर स्वर्ग से सभी देवी देवता आ गए। यहां तक कि यमुना नदी का जल भी उस मुरली की मधुर तान को सुनने के लिए रुक गया था। इसे मलूक दास जी ने कहा भी था-
एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर।
सुर-नर मुनि थक गए, रूक गया दरिया नीर।।
लीला नंबर 5
कृष्ण जी त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु का अवतार थे, जिन्होंने राम अवतार में बाली को धोखे से मारा था। उसी बाली वाली आत्मा ने कृष्ण से कर्म का बदला लेने के लिए शिकारी के रूप में तीर मारा। और अपने ही कर्मों की सजा के फलस्वरूप कृष्ण जी की मृत्यु हुई।
वहीं पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जो सभी ब्रह्मांडों के रचनहार एवं पालनहार हैं वे सभी पंडितों, ज्योतिषों, अनेकों शिष्य, हिन्दू एवं मुस्लिम समाज के साथ साथ राजा बीर सिंह बघेल और बिजली खान पठान के सामने सशरीर अपने निजी निवास स्थान सतलोक चले गए। चूंकि दोनों धर्म के लोग कबीर साहेब का अंतिम संस्कार अपने तरीके से करना चाहते थे तब कबीर साहेब ji ने सभी को युद्ध न करने की चेतावनी दी एवं जो कुछ मिले उसे आधा आधा बांटने के सख्त आदेश दिए। इस तरह एक बड़ा गृहयुद्ध टला।
लीला नंबर 6
● अपनी कर्म स्वरूप मृत्यु को श्रीकृष्ण जी नहीं टाल पाए, दुर्वासा ऋषि के श्राप से मर रहे छप्पन करोड़ यादवों को कृष्ण नहीं बचा पाए तथा मृत्यु से पूर्व पांडवों को पाप के कारण हिमालय जाकर तप करने और शरीर गलाने के लिए कहा। वहीं पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब ने अनेकों कर्मबन्धन एवं पाप नष्ट किये। लोगों को रोगमुक्त किया जिनमें सिकंदर लोधी जिसे जलन का भयंकर रोग था शामिल है। कबीर साहेब ji ने सत्यभक्ति दी एवं अनेकों जीवों को पार किया। वेदों में लिखा है कि पूर्ण परमेश्वर बंधन मुक्त करता है एवं घोर से घोर पापों का भी नाश करता है इसलिए वह बन्दीछोड़ है।
उन्हीं परमेश्वर कबीर साहेब जी की सतभक्ति करने से ही साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकता है। और वर्तमान में केवल जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जी ही वो सतभक्ति दे रहे हैं जिससे साधक जन्म मृत्यु के रोग से छुटकारा पा सकता है और अमरधाम सतलोक में स्थायी निवास प्राप्त कर सकता है। तो देरी ना करें, सन्त रामपाल जी महाराज जी की शरण में आएं और अपना कल्याण करवाएं।
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