श्राद्ध की वह सच्चाई जो आज ताज आप से छुपाई गयी (Reality of Shradh) Explained by Spiritual Leader Saint Rampal Ji

श्राद्ध की वह सच्चाई जो आज ताज आप से छुपाई गयी (Reality of Shradh) Explained by Spiritual Leader Saint Rampal Ji

"खबरों की खबर का सच" कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज के कार्यक्रम में हम बात करेंगे हिन्दू धर्म मे प्रचलित प्राचीन परंपरा श्राद्ध कर्म की। हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक की जाने वाली इस क्रिया का मूल उद्देश्य अपने पूर्वजों को याद करना व उनकी आत्मिक शांति के लिए पंडितो को भोजन कराना है। इसी कर्म में अन्न के कुछ अंश को कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी निकाला जाता हैं।  माना जाता है कि हो सकता है कि मरने वाला कौआ या किसी अन्य योनि में चला गया हो । इसलिए रोटी के कुछ टुकड़ो को घर की छत पर रख दिया जाता है और यदि कोई कौवा छत पर रखी रोटी को खा लेता है  तो ऐसा माना जाता है  कि पूर्वजो ने भोजन ग्रहण कर लिया।


ये सारी क्रिया हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओ में इस कदर समाई है कि वो इस क्रिया के संबंध में हमारे सद्ग्रन्थों के विवेचन की आवश्यकता भी महसूस नही करते। दरअसल जिस प्रकार एक देश का शासन चलाने के लिए संविधान होता है उसी तरह भगति मार्ग में भी दिशा निर्देश होते है । पवित्र वेद व गीता जी ऐसे ही सद्ग्रन्थ है जिनमे भगति मार्ग का दिशा निर्देशन किया गया है। इन्हें आध्यात्म का संविधान भी कह सकते है। 


किसी भी धर्मिक क्रिया की सार्थकता या निरर्थकता इसी बात पर निर्भर करती है कि क्या उसका समर्थन पवित्र वेद या गीता जी  करते है या नही? परन्तु यहां ताज्जुब की बात है कि जो श्राद्ध क्रिया वर्षो से हमारे समाज मे चल रही है किसी ने उसे सद्ग्रन्थों के पैमाने पर कसने का प्रयास ही नही किया। लेकिन अब  संन्त रामपाल जी ने पवित्र वेदों व गीता जी से श्राद्ध क्रिया को तोलकर इसकी निरर्थकता को उजागर किया है


उन्होंने पवित्र गीता जी से सिद्ध किया है  कि श्राद्ध कर्म करना भूत योनि में जाने की तैयारी के समान है। श्राद्ध कर्म  करना भूत पूजा है जिसके बारे में  गीता जी के अध्याय नं. 9 के श्लोक नं 25 में कहा है  –


यान्ति, देवव्रताः, देवान्, पितऋन्, यान्ति, पितव्रताः।

भूतानि, यान्ति, भूतेज्याः, मद्याजिनः, अपि, माम्।


अर्थात देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं।औऱ मुझे पूजने वाले मुझे प्राप्त होते है।

 

ऐसा ही समर्थन परमात्मा प्राप्त परम सन्त गरीबदास जी महाराज  ने अपनी अमर वाणी में  किया है-


गरीब, भूत रमै सो भूत है, देव रमै सो देव।

 राम रमै सो राम है, सुनो सकल सुर भेव।।‘‘

 

पवित्र गीता जीपवित्र वेद प्रभु का संविधान है। जिसमें केवल एक पूर्ण परमात्मा की पूजा का ही विधान है, अन्य देवताओं – पितरों – भूतों की पूजा करना मना है।


 पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 मैं गीता ज्ञान दाता कहता है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। इसलिए अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य अर्थात जो साधना के कर्म करने योग्य हैं तथा अकर्तव्य अर्थात जो साधना के कर्म नहीं करने योग्य हैं की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। अन्य साधना वर्जित हैं।


हम श्राद्ध न करे तो हम अपने पूर्वजों के लिये क्या करें?



इसका समाधान भी परमेश्वर कबीर जी ने किया है

कबीर जी कहते है -


भगति बीज होवे जो हँसा , तारू तास के इकहोतर वंशा



मतलब यह है कि यदि कोई शास्त्रानुसार सत्यभगति करता है तो उससे उसकी 101 पीढ़ी पार करने का वचन परमात्मा कबीर जी देते हैं। इस प्रकार यदि हम आज सत्यभगति करेंगे तो इसके परिणामस्वरूप हमारे पूर्वज बेशक वो किसी भी योनि में हो मानव जन्म प्राप्त करेंगे व सत्यभगति ग्रहण करेंगे जिससे उनका मोक्ष होगा। अपने पूर्वजो के कल्याण के लिये इससे बड़ी कोई क्रिया नही हो सकती जो उनको 84 लाख प्रकार के जीवों के शरीर मे होने वाले कष्टों  से बचाएगी। प्रिय दर्शकों हमे इस बात को गहनता से जानना होगा कि जब वेदों में गीताजी में श्राद्ध क्रिया मना है तो फिर ये समाज में प्रचलित क्यों है?


हमे इस फिजूल की क्रिया में लगाने में किसका स्वार्थ सिद्ध हो रहा है?


   

क्यों आज तक हमे, हमारे धर्मगुरुओं ,आचार्यों एवं पंडितो ने शास्त्रविरुद्ध साधना तक ही सीमित रखा? कारण था स्वयं का अज्ञानहीन होना। ये शास्त्रों का नाम अवश्य लेते थे, उन्हें पढ़ भी लेते थे लेकिन उनमें क्या लिखा है यह उनके समझ मे नही आया।

इस बारे में कबीर जी कहते है -


गुरु बिन काहू न पाया ग्याना

ज्यों थोथा भुस छडे मूड किसाना।



धर्मगुरुओं की अज्ञानता व स्वार्थ सिद्धि  खामियाजा आज भी समाज भुगत रहा है शास्त्र विरुद्ध साधना करने से लोगों को लाभ के स्थान पर हानि हो रही है इसके फलस्वरूप अधिकतर जनता नास्तिक हो रही है और आये दिन लोगों का भगवान से विश्वास उठता जा रहा है ।

हम अपने मूल सद्ग्रन्थों वेदो ,गीता जी से दूर होते जा रहे है


प्रिय दर्शकों सद्ग्रन्थ एक ऐसा वन है जिसमे से जड़ी बूंटी निकालना हर एक के बस की बात नही । यही कारण रहा कि आज तक कोई स्पष्ट रूप से इन सद्ग्रन्थों के सार को हमे नही बतला पाया। लेकिन वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज युगों से फैले इस अज्ञान को मिटाने के लिए शास्त्रों से प्रमाण जनता के सामने रख  सत्यज्ञान का उजाला कर रहे है। संन्त रामपाल जी ने सभी धर्मों में फैली परंपरागत साधनाओ को  उन्ही के सद्ग्रन्थों से तौला है। इसी क्रम में उन्होंने वेदों, पवित्र गीता, जी व पुराणों से  श्राद्ध कर्म की निरर्थकता को सिद्ध किया है।


वही एकमात्र संन्त है  जो सत्यज्ञान जनता को बतला रहे है। जिससे उनके अनुयायियों को वो सब लाभ हो रहे है जो भगति से उम्मीद की जाती है। अंत मे हमारी टीम की भी आप सभी प्रिय दर्शकों से हाथ जोडकर विनती है। कि कल 20 सितंबर से शुरू होने वाले श्राद्ध कर्म पर भूत पूजा, पितृ पूजा का त्याग करके उस पूर्ण परमात्मा कबीरदेव की सच्ची भक्ति को शुरू करें जिससे आपके मोक्ष के साथ-साथ आपके पितरों का भी उद्धार हो जाएगा। और वर्तमान में पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र ऐसे संत हैं जो शास्त्र अनुकूल सच्ची भक्ति कराते हैं।

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