Spiritual Research: माह-ए-मोहर्रम , जानिए मुहर्रम की सच्चाई | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

हर बार की तरह इस बार भी हम आपके लिए एक ऐसी खबर लाये हैं जिससे आपको खबर के साथ साथ उसकी विस्तृत जानकारी भी मिलेगी। अगस्त का महीना हमारे लिए कुछ ऐसी यादें लाता है जिसे हम हमेशा अपने दिलों में बनाये रखते हैं, हमेशा उन दिनों पर कुछ खास किया जाता है जिससे वो याद हमेशा यादगार बनी रहे और हमारी आगे की पीढ़ी भी उसे याद रखे। श्रावण मास के इस महीने में रक्षाबंधन, तीज, आज़ादी दिवस, नागपंचमी जैसे यादगार त्योहार आते हैं। जो बरसों से चले आ रहे हैं, मनाए जा रहे हैं। इसी महीने में मुसलमान धर्म का भी एक पर्व शामिल है जिसका नाम "मुहर्रम" है।

माह-ए-मोहर्रम , जानिए मुहर्रम की सच्चाई

इस वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, मोहर्रम का महीना 9 अगस्त से शुरू हो चुका है। मोहर्रम का महीना शुरू होने के 10वें दिन आशूरा होता है, उस दिन इस वर्ष 20 अगस्त को मोहर्रम मनाया जाएगा।


आज हम बात करेंगे मुहर्रम की और आपको बताएंगे मुहर्रम का इतिहास


मुहर्रम क्या है? क्यों मनाया जाता है? कब से मनाया जा रहा है? कब तक मनाया जाता है? मुहर्रम की कहानी क्या है? क्या है मुहर्रम का इतिहास? इसी खबर में हम आपको इन सभी प्रश्नों के उत्तर देंगे और परिचित करवाएंगे उन राज़ों से जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। और अंत में कुछ ऐसी सच्चाई पेश करेंगे जो आपके होश उड़ा देगी।


सबसे पहले जानते हैं कि दरअसल मुहर्रम है क्या?


 ‘माह-ए-मोहर्रम' 

 दर्शकों इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने के पहले दिन से इस्लाम का नया वर्ष प्रारंभ होता है। इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने यानी मुहर्रम को बहुत ही महत्वपूर्ण महीना माना जाता है। इस महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इस त्यौहार की खास बात ये है कि यह बाकी सब त्योहारों से बिल्कुल अलग है क्योंकि इसको खुशी की बजाए मातम के रूप में मनाया जाता है।  1341 वर्ष पहले मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को पैगंबर हजरत मोहम्मद जी के नाती हज़रत हुसैन का कत्ल किया गया था। इसी कारण इस्लाम में इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मोहर्रम का दसवाँ दिन शिया और कुछ सुन्नी मुसलमानों द्वारा मातम के रूप में मनाया जाता है। 


मुहर्रम के दिन क्या किया जाता है?


प्रत्येक वर्ष मुहर्रम के दिन को इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने और शोक मनाने के लिए याद किया जाता है। वैसे देखा जाये तो मुहर्रम एक त्योहार नहीं है, बल्कि मुसलमानों के हिजरी वर्ष का य़ह पहला महीना है जिसे शहादत का महीना कहा जाता है। मुहर्रम के नौवें और दसवें दिन को मुसलमान रोजे़ रखते हैं तथा मस्जिद व अपने घरों में अल्लाह की इबादत करते हैं। और मोहर्रम का चांद नजर आते ही, अजादार अपने इमाम के गम में गमजदा हो जाते हैं। इस दिन ताजिया, जोकि पैगंबर मोहम्मद जी के नवासे हजरत इमाम हुसैन और हजरत इमाम हसन के मकबरों का प्रतिरूप होते है, वो  निकाला जाता है। अब आप सब भी जानना चाहते होंगे कि मुहर्रम का इतिहास क्या है? क्या है मुहर्रम की कहानी? क्या हुआ था मुहर्रम के दिन? क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?


मुहर्रम के दिन जो हुआ वो कुछ ऐसा था


दर्शकों इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार मुहर्रम के दिन जो हुआ वो कुछ ऐसा था। 10 अक्टूबर, 680 ईस्वी में और इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की 10 तारीख को कर्बला के युद्ध में पैगंबर हज़रत मोहम्मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन एक धर्मयुद्ध में शहीद हो गए थे। कर्बला जो कि आज इराक में है, वहां वे अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहते थे।


इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जा रहे थे। लेकिन रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। उस दिन मुहर्रम का दिन था, जब हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रुक गया। पूरा काफिला प्यास से व्याकुल था। तब उन्होंने देखा कि फरात नदी ही पानी का एकमात्र ज़रिया था। जिस पर यजीद की फौज ने हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा रखी थी। इसके बावजूद भी इमाम हुसैन झुके नहीं और आखिर में दोनों सेनाओं ने युद्ध का एलान कर दिया और युद्ध शुरू हो गया। मुहर्रम के दसवें दिन तक हुसैन अपने भाइयों और अपने साथियों के शवों को दफनाते रहे और अंत में अकेले युद्ध किया फिर भी दुश्मन उन्हें मार नहीं सके। किन्तु एक दिन शाम के समय नमाज़ पढ़ते वक्त उन्हें मौका देखकर मार दिया गया। कर्बला के मैदान में 72 जानिसारों के साथ हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए और तभी से शहादत को याद किया जाता है।


इसलिए मोहर्रम के पहले महीने के दसवें दिन को हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मातम के रूप में मनाया जाता है। मोहर्रम के दसवें दिन को मुस्लिम लोग रोज़ा रखते हैं। और इस दिन शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन ने जो इंसानियत के लिए पैगाम दिए हैं उन्हें लोगों तक पहुंचाते हैं। इस प्रकार मोहर्रम का दिन मनाया जाता है।


ये तो जानकारी दी आपको मुहर्रम के बारे में। अब बात करते हैं उस हैरानी वाली खबर की जिससे सुनकर आप दंग रह जाएंगे।


सबसे पहले तो बात करते है कि  इस्लामिक दृष्टि से मोहर्म मनाना चाहिए भी या नही। क्योंकि सहि -ए- मुस्लिम हदीस और नबी हजरत मोहम्मद साहब जी की जिन्दगी का एक वाकिया है हजरत जाफर तैयब जोकि हजरत महोम्मद साहब जी के चाचा के बेटे थे। वो अहलै बैताब मे जाया करते थे उनकी चार शादियां हुई थी। अहलै बैताब के दौरान उनका इंतकाल हो गया। जिससे उनकी जो 4 बीवीया थी वो बैहवा हो गई जिससे वो जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी तब हजरत महोम्मद साहब जी ने उन्हें बोला कि नाहू हराम है, नाहू का मतलब है चीखना चिल्लाना, सीने को पीटना , हाय चला गया, हाय मर गया ये चीजें हराम है। 

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उनको आराम से समझाया लेकिन नही माने तब आप जी हजरत महोम्मद साहब  जी ने फरमाया कि इनके मुहँ मे खाक फैक दो। जबकि हजरत जाफर तैयब महोम्मद साहब जी के सगे चाचा के बेटे थे फिर भी उनकी आंखों में एक आंशु भी नही था । तो दर्शकों यहां विचार करने वाली है कि जब हजरत महोम्मद साहब जी आंखों में एक आंशु का कतरा भी नही था तो इस्लामिक दृष्टि से, इस्लामिक ग्रंथों से यदि देखा जाये तो इंतकाल के समय चिखना चिल्लाना हराम बोला जाता है लानत बोली जाती है। इसलिए मोहर्रम  का त्यौहार मनाना भी व्यर्थ है। क्योंकि  मुस्लिम समाज को यहां आपने शरीर को कष्ट देने की बजाय उनकी याद मे अल्लाह की उस परवरदिगार की इबादत करनी चाहिए । और अल्लाह की इबादत का सही तरीका बाखबर संत रामपाल जी ही बताते है ।


दूसरा यह भी है कि मुस्लिम लोगों का मानना है कि मोहर्रम के इस माह में अल्लाह की खूब इबादत करनी चाहिए। पैगंबरों ने इस माह में खूब रोजे़ रखे और अपने साथियों का भी ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। अब यहाँ विचार करने की बात है कि अल्लाह की बन्दगी बस एक ही दिन क्यों? या कुछ दिन ही क्यों? हमेशा क्यों नही? क्या रोज़े रखने से कुछ लाभ हो सकता है?


इसके विषय मे हम यही कहेंगे कि अल्लाह की बन्दगी तो आठों पहर और सोते जागते करनी चाहिए। अल्लाह की बन्दगी का कोई महीना विशेष या दिन विशेष नहीं होता है। अल्लाह की बन्दगी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त जिसे कुरान के सूरत अल फुरकान 25 की आयत 59 में बाख़बर कहा है, उनके द्वारा बताई साधना विधि से की जा सकती है। और वर्तमान में वो बाखबर संत रामपाल जीमहाराज जी ही है । इन्हीं की बदौलत आज पूरा समाज इस बात से अवगत हो रहा है कि अल्लाह कौन है और कैसा दिखता है। हर ग्रन्थ से यह प्रमाणित करके बताने वाले तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज ही हैं। पूरे विश्व का उद्धार करने वाले भी सन्त रामपाल जी महाराज ही हैं। 


यदि अल्लाह को पाना है, जन्नत जाना है तो सन्त रामपाल जी महाराज का ज्ञान सुनिये जो जन्नत तो क्या जन्नत से ऊपर के मंडलों का भी ज्ञान रखते हैं। तो देर न करें। सही और गलत की पहचान करके सही मार्ग चुनें और अपना जीवन सफल बनायें।

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