Spiritual Research: Guru Purnima in Hindi | क्यों मनाया जातता है गुरु पूर्णिमा का पर्व? क्या है सच्चे गुरु का जीवन में महत्त्व? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

Spiritual Research: Guru Purnima in Hindi |  क्यों मनाया जातता है गुरु पूर्णिमा का पर्व? क्या है सच्चे गुरु का जीवन में महत्त्व? | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

नमस्कार दर्शकों !! खबरों की खबर कार्यक्रम में एक बार फिर से आप सभी का स्वागत हैं। आज की इस spiritual research में हम बात करेंगे गुरू पूर्णिमा के बारे में और साथ ही जानेंगे कि वर्तमान में सच्चा गुरू कौन हैं?

गुरू पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती हैं। इस दिन  लोग  अपने अपने गुरु की पूजा करते हैं लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि किस गुरु की पूजा करनी चाहिए क्या आप जिनको गुरु मानते हैं क्या वो पूर्ण गुरु है या नहीं .


गुरू का हमारे जीवन में क्या महत्व हैं? 

हम जिस संसार में रह रहे हैं, उसमें संसारिक गुरू हमे संसार से जुडी व्यवहारिक बातें, शिष्टाचार और नेक - नीति ही सिखा सकते हैं । वे हमे आत्मज्ञान अर्थात् हम कहाँ से आए हैं, हमे कहाँ जाना हैं, हमारे जीवन जीने का वास्तवित उद्देश्य क्या हैं , इस तरह  अनमोल जीवन के बारे में नहीं बता सकते हैं और यह ज्ञान सिर्फ आध्यात्मिक गुरू ही बता सकता हैं। बिना आध्यात्मिक गुरू के मानव जीवन अधूरा हैं। आत्मज्ञान परमात्म ज्ञान के बारे में हमे पूर्ण गुरू ही बता सकते हैं। शिक्षा हमें सभ्य व्यक्ति, व्यावसायिक और धनी तो बना सकती है परंतु मोक्ष का मार्ग आध्यात्मिक सद्गुरु ही दिखा सकते हैं।




मानव जीवन बहुत अनमोल है

आज हमें मानव जीवन मे सर्व सुख सुविधाएँ प्राप्त हैं लेकिन काल चक्रव्यूह के कारण यह चौरासी लाख कष्टप्रद योनियां भोगने के बाद ही मिलता हैं।  84 लाख योनियों में कुत्ते , गधे , सूअर आदि का जीवन मिलता हैं जिनमें अनगिनत कष्ट उठाने होंगे। 

इन महाकष्टों से सिर्फ गुरू ( सतगुरु ) ही हमें बचा सकते हैं 

ऐसे महापुरूष जो हमें असंख्यो कष्टों से बचाकर पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। उनकी महिमा अवर्णनीय हैं। 

कबीर साहेब जी ने सच्चे गुरू की शरण ना मिलने से होने वाले दुखों का वर्णन इस प्रकार किया :- 

"सतगुरु के उपदेश का, लाया एक विचार। 

जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।। 

नरक द्वार मे दूत सब, करते खैचातान। उनसे कबहु ना छूटते, फिरते चारों खान।। 


कबीर साहेब जी ने गुरू का महत्व बताते हुए कहा हैं कि आप जी जो बिना गुरू के जो भी धार्मिक  क्रियाए करते हो, जैसे भी कोई बता देता है वैसे ही कर लेते हो लेकिन इन सब क्रियाओं से कोई लाभ नहीं होगा।

कल्याण तो पूर्ण सतगुरू धारण करोगे तब ही होगा

और आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा नहीं मानते। उन्होंने भी गुरू बनाये थे। ये तीन लोक के मालिक (धनी) होकर भी गुरु जी के आगे नतमस्तक होते थे।


राम कृष्ण से कौन बड़ा उन्हों भी गुरू कीन।

तीन लोक के वे धनी गुरू आगे आधीन।।



इतिहास गवाह हैं मीरा बाई, रविदास जी, ध्रुव, प्रहलाद, राम, कृष्ण, हनुमान, रावण, नारद मुनि, गुरू नानक देव जी, नामदेव, शुकदेव जी इन सभी ने गुरू बनाए तथा अपने सभी कार्य गुरू जी की आज्ञा लेकर किए और अपना मानव जीवन सार्थक किया । और कबीर साहेब जी ने स्वयं पूर्ण परमात्मा होते हुए भी स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया था । 


कबीर परमात्मा ने गुरू की महिमा के बारे में कहते हैं कि 


"सात समंदर की मसि ( स्याही ) करू, लेखनी करू वनराय। 

धरती का कागज करूँ, गुरू गुण लिखा न जाए।" 


इसलिए गुरू का महत्व सर्वोपरि हैं। 


हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया हैं। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। 


"गुरु गोविन्द दोउ खड़े , किसके लागुं पाय। 

बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दिया बताए ।। 


अब प्रश्न हैं कि क्या गुरु के बिना मोक्ष नहीं हो सकता? 


जी नहीं, गुरू के बिना मोक्ष संभव नहीं हैं। 

कबीर परमात्मा जी ने बताया हैं कि 


"गुरु बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। 

गुरु बिन दोनो निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।। 


गर्भ योगेश्वर गुरु बिन, किन्ही हरि की सेवा। 

कह कबीर बैकुणठ हे, फेर दिये सुखदेव।।



सुखदेव ऋषि ने बिना गुरु धारण किए ही भगवान श्री विष्णु की आराधना की। जब ऋषि सुखदेव बैकुणठ ( स्वर्ग ) मे पहुँचे, तब गुरु ना होने की वजह से भगवान श्री विष्णु ने उन्हे अंदर प्रवेश करने की आज्ञा नहीं दी और गुरू बनाने के लिए वापिस पृथ्वी पर भेज दिया।

बिना गुरु के स्वर्ग तक प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए गुरु के बिना मोक्ष कदापि संभव नहीं हैं। सच्चे गुरू से ही मोक्ष हो सकता हैं। वर्तमान में अनेकों संत गुरूपद पर विराजमान हैं , जिसके कारण भगत समाज के लिए यह निर्णय कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण हैं कि आखिर सच्चा गुरू कौन हैं? इस समस्या को हल करने के लिए पवित्र श्री मदभगवत गीता के अध्याय 15 श्लोक 1 में लिखा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी भागो को भिन्न भिन्न बता देगा , वह तत्वदर्शी संत अर्थात सच्चा गुरु हैं। 


इसी विषय मे कबीर साहेब जी भी बताते हैं कि 


सतगुरु के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद। 

चार वेद षट शास्त्र, कहे अठारह बोध।। 


जो सच्चा गुरू होगा वह सभी धर्मों के सभी पवित्र शास्त्रों से पूर्णतया परिचित होगा। आज के समय में ऐसा गुरू एकमात्र संत रूप में संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो मानव को परमात्मा से मिलवा कर मोक्ष प्रदान कर रहे हैं।कबीर परमात्मा 600 वर्ष पूर्व काशी में आए थे जब उन्होंने पांच वर्ष की आयु में 104 वर्षीय रामानंद जी को अपना गुरू बनाया। अति आधीन रहकर गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाह किया व समाज को यह उदाहरण करके दिखाया कि जब सृष्टि का पालनहार गुरू बनाकर नियम में रहकर भक्ति कर रहा हैं तो आप किस खेत की मूली हैं।

 

फिर आगे चलकर कलयुग में गरीबदास जी ने कबीर साहब जी को और संत रामपाल जी महाराज ने स्वामी रामदेवानंद जी को अपना गुरु बनाया। अब जिन लोगों के मन में यह शंका रहती हैं कि गुरू नहीं बदलना चाहिए। उनके बारे में कबीर परमात्मा ने बताया हैं कि:


जब तक गुरू मिले न सांचा

तब तक गुरू करो दस पांचा।।


अर्थात् जब तक पूर्ण गुरू नहीं मिल जाता तब तक गुरू बदलते रहना चाहिए, चाहे फिर कितने ही गुरू क्यों ना बनाने पड़े। उदाहरण बताया हैं कि जब हमें हमारी बीमारी का इलाज एक डॉक्टर से नहीं मिल रहा तो दूसरे डॉक्टर के पास जाना पड़ता हैं ठीक इसी प्रकार जब तक पूर्ण गुरू जो शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति देकर मोक्ष करवाने वाले नहीं मिलते तब तक गुरू बदलने में कोई बुराई नहीं। औऱ सच्चा सतगुरु वही है जो हमारे सभी धर्मों के शास्त्रों से सिद्ध ज्ञान और  सतभक्ति देकर मोक्ष देता हैं। आज वर्तमान पूरे विश्व में जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे व पूर्ण गुरू हैं इसलिए सभी दर्शकों से निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज की शरण में आए और अपना कल्याण करवाए। 


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