अध्याय ‘‘भोपाल बोध (Bhopal Bodh)’’ का सारांश | Kabir Sagar | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

 अध्याय ‘‘भोपाल बोध (Bhopal Bodh)’’ का सारांश | Kabir Sagar | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

 

कबीर सागर में भोपाल बोध नौंवा अध्याय पृष्ठ 7 से प्रारम्भ है:-

सारांश यह है कि राजा भोपाल जालन्धर नगर में रहता था। पूर्व जन्म के अच्छे संस्कार वाला था। परमेश्वर कबीर जी की शरण में रहा था, परंतु काल जाल में रह गया। सतगुरू शरण में जो नाम जाप तथा धर्म किए थे, उनकी कमाई से राजा बना था। परमेश्वर कबीर जी ने संत गरीबदास जी (छुड़ानी वाले) को बताया था जो संत गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में लिखा। गोता मारूँ स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीबदास ढँूढ़त फिरूँ, हीरे माणिक लाल।। भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि मैं अपनी अच्छी आत्माओं को ढूँढ़ता फिरता हूँ। स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी पर जहाँ भी कोई मेरा पूर्व जन्म का भक्त जो पार न हो सका, उस नेक जीव को फिर से भक्ति की महिमा तथा आवश्यकता बताने के लिए उनसे मिलता हूँ। उनको जैसे-तैसे भक्ति का महत्त्व बताकर काल-जाल से छुड़वाता हूँ। ये मेरे हीरे-मोती तथा लाल हैं। इनकी खोज करता हूँ। इसी विधान अनुसार परमेश्वर कबीर जी राजा भोपाल को मिले।




उनको ज्ञान समझाने के लिए राजा के चैंक में प्रकट हो गए। उस समय परमेश्वर कबीर जी ने जिंदा बाबा का रूप बना रखा था। वहाँ उपस्थित अधिकारी-कर्मचारियों को ज्ञान सुनाने लगे। उन्हें किसी ने ठग कहा, किसी ने जंत्र-मंत्र करने वाला कहा। एक सिपाही सन्तरी (पौरवे) ने राजा से कहा कि राजन! एक जिंदा बाबा आया है। वह आपसे मिलना चाहता है। वह कह रहा है कि मैं राजा को भक्ति ज्ञान बताना चाहता हूँ। राजा अपना अनमोल जीवन नष्ट कर रहा है। राजा को उनके गुरू ब्राह्मण ने बताया हुआ था कि वेदों में जो ज्ञान परमात्मा का लिखा है, वह सत्य है। यदि कोई उसके विरूद्ध ज्ञान बताता है तो वह झूठा है। उसको दण्डित किया जाना चाहिए। राजा ऐसे ही करता था। अपने गुरू ब्राह्मण को बुला लेता था और आने वाले संत से दोनों की ज्ञान चर्चा करवाता था, जो वेदों के विरूद्ध ज्ञान बताता था। उसको दण्डित करता था। ब्राह्मण को भी वेद ज्ञान नहीं था, परंतु राजा ने उसको विद्वान मान रखा था।

परमेश्वर को ज्ञान था कि ज्ञान चर्चा का कोई लाभ नहीं होगा। राजा ने कहा कि ब्राह्मण को बुलाओ और ज्ञान चर्चा कराओ। ब्राह्मण जो कहे, वैसा करो। परमेश्वर कबीर जी ने राजा की ड्योडी को वचन से गिरा दिया। राजा को बताया गया कि वह संत जंत्रा-मंत्रा जानता है, उसने ड्योडी गिरा दी है। राजा क्रोध में होकर चला तो राजा का महल सोने का बना दिया। किवाड़-दीवार सब स्वर्ण के बन गए। राजा ने विवेक से काम लिया। जिन्दा के चरण छूए और अपनी शरण में लेने की इच्छा व्यक्त की। परमेश्वर कबीर जी ने राजा को दो घण्टे ज्ञान दिया। संसार असार है, आप सदा राजा नहीं रहोगे। संसार छोड़कर जाओगे तो कहाँ जाओगे? राजा प्रभावित हुआ। प्रथम नाम लिया। सत्यलोक की महिमा सुनकर दर्शन की प्रबल इच्छा जाहिर की। राजा को सत्यलोक लेकर गए। वहाँ की शोभा दिखाई। राम-कृष्ण (विष्णु) ब्रह्मा, शंकर जी की शक्ति आँखों दिखाई, नीचे लाए। राजा ने अपनी नौ (9) रानियों को तथा अपने 50 पुत्रों तथा एक पुत्राी को आँखों देखा विवरण सुनाया। परिवार के सर्व सदस्यों ने नाम लिया, मोक्ष करवाया।

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