खबरों की खबर कार्यक्रम में आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम आपके सामने एक ऐसे रहस्य से पर्दा उठाएंगे जो आज से पहले अनसुलझा रहस्य बना हुआ था। आज की spiritual research में हम आपको बताएंगे कि किस भगवान की कितनी उम्र है और चारों युगों की आयु के बारे में व साथ ही जानेंगे 


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देवताओं के राजा, देवराज इंद्र की आयु के बारे में और आज आपको यह भी बताएंगे तीनों प्रधान देवता (ब्रह्मा विष्णु महेश) की उम्र क्या है? काल ब्रह्म की आयु  कितनी होती है यह भी आज आपको बतायेगे। और आज हम इस रहस्य से भी पर्दा उठाएंगे की महाप्रलय कब होती है और उस समय हम सभी जीव आत्माएं कहां रहती है?


आइए शुरुआत करते हैं आज की खास पेशकश

यह सर्वविदित है कि युग चार होते हैं सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग लेकिन इनका समय कितना होता है यह जानकारी आम जन मानस के लिए आज भी समझ से परे है। लेकिन आज की इस spiritual research में हम आपको बताएंगे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग की वास्तविक आयु क्या है।


◆ सतयुग


सत्ययुग की अवधि 17 लाख 28 हजार वर्ष होती है। इस युग में मनुष्य की आयु प्रारम्भ में दस लाख वर्ष और अन्त में एक लाख वर्ष होती है।  सतयुग में मनुष्य की ऊँचाई 21 हाथ यानि लगभग 100 से 150 फुट होती है। 



◆ त्रेतायुग


त्रेतायुग की अवधि 12 लाख 96 हजार वर्ष होती है। इस युग में मनुष्य की आयु प्रारम्भ में एक लाख वर्ष और अंत में दस हजार वर्ष होती है।

त्रेतायुग में मनुष्य की ऊँचाई 14 हाथ यानि लगभग 70 से 90 फुट होती है।


◆ द्वापरयुग


द्वापरयुग की अवधि 8 लाख 64 हजार वर्ष होती है। इस युग में मनुष्य की आयु दस हजार प्रारम्भ में और अंत में एक हजार रह जाती है। द्वापरयुग में मनुष्य की ऊँचाई 7 हाथ यानि 40-50 फुट होती है। 



◆कलयुग


कलयुग की अवधि 4 लाख 32 हजार वर्ष होती है। कलयुग में मनुष्य की आयु एक हजार वर्ष से प्रारम्भ होती है, अंत में 20 वर्ष रह जाती है तथा ऊँचाई साढ़े तीन हाथ यानि 10 फुट होती है। और अंत में 3 फुट रह जाती है। जैसे चारों युगों की आयु आपके लिए रहस्य थी वैसे ही आपके लिए आज तक देवताओं के राजा, देवराज इंद्र की आयु भी एक रहस्य ही है।


देवताओं के राजा, देवराज इंद्र को स्वर्गपति (स्वर्ग के भगवान) के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन स्वर्गपति इन्द्र की भी मृत्यु होती है। इन्द्र की आयु 72 चतुर्युग है। एक चतुर्युग में  43,20,000 (तैतालीस लाख बीस हजार )मनुष्यों वाले वर्ष होते है।


और एक चतुर्युग में चार युगों की आयु आती है। अपनी आयु पूरी करने के पश्चात् इन्द्र की भी मृत्यु होती है। दोस्तों आपको यहां पर एक बात जानकर हैरानी होगी कि जो इंद्र की पटरानी उर्वशी है उसकी उम्र 14 इंद्र की मृत्यु तक है यानि की 14 इंद्र मर जाते हैं तब उर्वशी की मृत्यु होती है।



तीनों प्रधान देवता (ब्रह्मा विष्णु महेश) की उम्र कितनी है?


सबसे पहले बात करते हैं रजगुण ब्रह्मा की आयु के बारे में। रजोगुण प्रधान ब्रह्मा जिसको इस सृष्टि का उतपत्तिकर्ता व अविनाशी माना जाता है लेकिन आपको यह जानकर अचम्भा होगा कि ब्रह्मा की भी अपनी आयु पूरी करने के बाद मृत्यु होती है।


रजगुण प्रधान ब्रह्मा का एक दिन 1000 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्री होती है। अर्थात् जब पृथ्वी पर  सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग को मिलाकर 1000 चतुर्युग समाप्त हो जाते है तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है केवल दिन और इतना समय गुजरने पर एक रात्रि ब्रह्मा जी की होती है। इसका मतलब है कि जब 2000 बार चतुर्युग/चारों युग समाप्त हो जाते हैं तब ब्रह्मा जी के 24 घण्टे पूरे होते हैं। इसी गणना के हिसाब से एक महीना 30 दिन-रात का है व एक वर्ष बारह महीनों का होता है। अर्थात् ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष की होती है। जो सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग के बराबर है।


यह आयु पूरी करने के पश्चात् ब्रह्मा की भी मृत्यु होती है और जन्म मृत्यु के च्रक बना रहता है।



अब बात करते हैं विष्णु भगवान की, सतगुण प्रधान विष्णु की भी जन्म मृत्यु होती है


ब्रह्मा जी की आयु से सात गुणा अधिक श्री विष्णु जी की आयु है। अर्थात् पचास करोड़ चालीस लाख चतुर्युग बराबर विष्णु जी की आयु है। लेकिन इतनी वर्ष आयु होने के पश्चात् भी विष्णु जी भी जन्म मरण के दीर्घ रोग से मुक्त नहीं हो पाए। तमगुण प्रधान शिव जिसको सृष्टि के संहार कर्ता के रूप में जाना जाता है लेकिन अपनी आयु पूरी करने के पश्चात जन्म मरण के चक्कर में वापस आ जाते हैं। इनका भी जन्म और मरण होता है यह भी अविनाशी भगवान नहीं है।


तमगुण प्रधान शिव की आयु श्री विष्णु जी की आयु से सात गुणा अधिक है। अर्थात् तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख चतुर्युग जितनी शिव की आयु है। तमगुण प्रधान शिव भी इतनी आयु पूरी करने के बाद जन्म मरण के चक्र में आ जाते है।


काल ब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरुष 21 ब्रह्मांड का स्वामी वह भी जन्म मृत्यु के अंदर आता है


70,000 बार तमगुण प्रधान शिव की मृत्यु के उपरांत एक ब्रह्मलोकिय महा शिव (सदाशिव अर्थात् काल) की मृत्यु होती है। ब्रह्मलोकिय महा शिव की आयु जितना एक युग परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का होता है। और ऐसे ऐसे एक हजार युग का परब्रह्म का एक दिन होता है। परब्रह्म के एक दिन के समापन होने के पश्चात् काल ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों का विनाश हो जाता है।

तथा काल व प्रकृति दुर्गा की भी मृत्यु होती है। उस समय महाप्रलय होती है। महाप्रलय के समय काल सहित 21 ब्रह्मांडों का सम्पूर्ण विनाश हो जाता है। आज आपको पता लग गया होगा कि जिन भगवानों को आप अविनाशी मानते हो वह जन्म-मृत्यु में आते हैं। यहाँ आज तक की ज्योति निरंजन काल व इसके 21ब्रह्माण्डों भी अंत में नाश हो जाते है। और इनका जन्म मरण बना रहता है।  अब आप सोच रहे है जब ये मरते है तो फिर अविनाशी कौन है,? तो दोस्तो आपको बता दें कि जो अमर है, जहाँ पर  सब सुख है, वहाँ कोई मरता नहीं उसे सतलोक कहते हैं सतलोक में कोई मरता नहीं। सतलोक में ही कबीर परमेश्वर रहते हैं।


जन्म मरण से छुटकारा तो केवल पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर की भक्ति से ही संभव है। और वर्तमान में तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज कबीर परमात्मा की शास्त्रों के अनुसार सत भक्ति बताते हैं जिससे पूर्ण मोक्ष संभव है।

अतः आपसे निवेदन है कि समय रहते आप भी संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना जीवन धन्य बनाएं।

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