संत गरीब दास महाराज जी की सम्पूर्ण कथा (Complete Story of Saint Rampal Ji Maharaj) | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj

संत गरीब दास महाराज जी की सम्पूर्ण कथा (Complete Story of Saint Rampal Ji Maharaj) | Spiritual leader Saint Rampal Ji Maharaj

आज की स्पिरिचुअल यानी आध्यात्मिक पड़ताल में हम पूर्ण ब्रह्म परमात्मा कबीर जी के अवतार संत गरीबदास जी की जीवनी (Complete Story of Saint Rampal Ji Maharaj) और अमर ग्रंथ "श्री ग्रंथ साहेब" की रचना के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं आज का कार्यक्रम।

काल ज्योति निरंजन के 21 ब्रह्मांडों में से एक पृथ्वी भी है जिसमें हम रह रहे हैं। काल ज्योति निरंजन जिसे सदाशिव भी कहते हैं इसके कुल 24 अवतार हो चुके हैं। 25वां अवतार अभी आना शेष है, जिसे कल्कि या नी:कलंक नाम से जाना जाएगा। 



पवित्र वेदों में प्रमाण है कि सर्व ब्रह्मांडों के रचनहार परमेश्वर कविरदेव जी प्रत्येक युग में धरती पर आते हैं और अपने सत्यज्ञान को अपनी प्यारी आत्माओं को स्वयं ही सुनाते हैं और उन्हें अपने ज्ञान का ग्वाह भी बनाते हैं। कलयुग में परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने निज धाम सतलोक से आकर अपनी पुण्य आत्माओं जैसे संत गरीबदास जी, गांव छुड़ानी , जिला झज्जर, हरियाणा वाले, आदरणीय नानक देव जी, पवित्र सिख धर्म के प्रवर्तक, आदरणीय दादू दास जी, आदरणीय धर्मदास जी, बांधवगड़ मध्यप्रदेश वाले, आदरणीय मलुक दास जी और आदरणीय घिसा दास जी, खेखड़ा, मेरठ उत्तरप्रदेश वाले, इन 6 आत्माओं को अपना शिष्य बनाया।


आज हम आपको परमेश्वर कबीर जी की प्यारी आत्मा संत गरीबदास जी महाराज जी के अवतरण के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।


आदरणीय गरीबदास साहेब जी का जन्म हरियाणा के जिला झज्जर, गांव छुड़ानी में सन 1717 में जाटों के एक प्रसिद्ध धनखड़ परिवार में पिता श्री बलराम जी और माता श्रीमती रानी देवी जी के यहाँ हुआ था। गांव छुडानी में गरीबदास जी महाराज का नानका था। इनके पिता श्री बलराम जी का विवाह गांव छुड़ानी में शिवलाल सिहाग की बेटी रानी देवी से हुआ था। श्री शिवलाल जी का कोई पुत्र नहीं था। इसलिए श्री बलराम जी को घर जमाई रख लिया था, बलराम और रानी जी को विवाह के 12 वर्ष बाद गरीब दास जी का जन्म हुआ । श्री शिवलाल जी - गरीबदास जी के नाना जी के पास 2500 बीघा ज़मीन थी। जिसकी वर्तमान में 1400 एकड़ जमीन बनती है। उस सारी ज़मीन के वारिस श्री बलराम जी हुए तथा उसके पश्चात उनके इकलौते पुत्र संत गरीबदास जी हुए। गरीबदास जी बचपन से ही अन्य ग्वालों के साथ गौ चराने जाया करते थे। कबलाना गाँव की सीमा से सटे नला खेत में 10 वर्ष के बालक गरीबदासजी जांडी के पेड़ के नीचे प्रातः 10 बजे अन्य ग्वालों के साथ जब भोजन कर रहे थे तभी वहाँ से कुछ दूरी पर सत्यपुरुष कबीर साहेब जी ज़िंदा महात्मा के रूप में सतलोक से अवतरित हुए। संत गरीबदास जी महाराज को साहेब कबीर जी के दर्शन दस वर्ष की आयु में सन् 1727 में नला नामक खेत में हुए थे।


परमेश्वर कबीर साहेब जी सतलोक से आए और पृथ्वी पर उतरे तथा रास्ते रास्ते कबलाना की ओर छुड़ानी को जाने लगे। जब ग्वालों के पास आए तो ग्वालों ने कहा बाबा जी राम-राम! परमेश्वर जी ने कहा राम राम! ग्वालों ने कहा कि बाबाजी! आओ खाना खाओ। परमेश्वर जी ने कहा कि खाना तो मैं अपने गांव से खाकर चला था। ग्वालों ने कहा कि,” महाराज खाना नहीं खाते तो दूध तो आपको अवश्य पीना पड़ेगा हम अतिथि को कुछ खाए-पिए बिना नहीं जाने देते।” परमेश्वर ने कहा कि मुझे दूध पिला दो और सुनो! मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं। परमेश्वर के ऐसा कहते ही जो बड़ी आयु के पाली ग्वाले थे उन्होंने कहा कि आप तो मजा़क कर रहे हो आप जी की दूध पीने की नियत नहीं है। भला कुंवारी गाय भी कभी दूध देती है? परमेश्वर ने कहा कि मैं कुंवारी गाय का दूध पीऊंगा। परमेश्वर के अपनी बात को दोहराने पर बालक गरीबदास ने एक बछिया जिसकी आयु डेढ़ से दो वर्ष की थी जिंदा बाबा के पास लाकर खड़ी कर दी।


परमात्मा कबीर जी का ने कुंवारी बछिया की कमर पर आशीर्वाद भरा हाथ रखना


परमात्मा ने बछिया की कमर पर आशीर्वाद भरा हाथ रखा। परमात्मा के हाथ रखते ही बछिया के स्तन लंबे हो गए, जिसके बाद संत गरीबदास जी ने  एक मिट्टी के साफ पात्र को बछिया के स्तनों के नीचे रखा। स्तनों से अपने आप दूध निकलने लगा। मिट्टी का पात्र भर जाने पर दूध निकलना अपने आप बंद हो गया। पहले जिंदा बाबा ने दूध पिया, शेष दूध को अन्य पाली ग्वालों को पीने के लिए कहा तो बड़ी आयु के ग्वाले कहने लगे कि बाबा जिन्दा कुवारी गाय का दूध तो पाप का दूध है, हम इस पाप के दूध को नहीं पिएंगे। आप ना जाने किस जाति के हो। आप का जूठा दूध हम नहीं पिएंगे। यह दूध आपने जादू जंतर करके निकाला है जिससे हम पर इस जादू जंतर का प्रभाव पड़ेगा। संत गरीबदास जी पुण्य आत्मा थे इसलिए उन्होंने कहा कि हे बाबा जी! आपका जूठा दूध तो अमृत है। मुझे दीजिए, बालक पूरी संत गरीबदास जी ने शेष दूध पीया, जिसके बाद परमेश्वर जिंदा वेशधारी कबीर जी ने संत गरीबदास जी को ज्ञान उपदेश दिया तथा प्रथम उपदेश देकर तत्वज्ञान बताया।


परमेश्वर कबीर जी द्वारा गरीबदास जी को सर्व ब्रह्मांड दिखाना


संत गरीबदास जी ने कबीर परमात्मा जी से आग्रह किया कि मुझे आपका गाव दिखा दो बाबा जी, संत गरीबदास जी के अधिक आग्रह करने पर परमेश्वर कबीर जी ने बालक गरीबदास जी को सतलोक दिखाया, रास्ते में एक ब्रह्मांड में बने सर्व लोकों को दिखाया। श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवजी से मिलवाया। उसके पश्चात ब्रह्म लोक तथा श्री देवी दुर्गा का लोक दिखाया। फिर दसवें द्वार ब्रह्मरंध्र को पार करके काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडो के अंतिम छोर पर बने 11वें द्वार को पार किया तथा फिर अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्मांडों वाले लोक में प्रवेश किया। संत गरीबदास जी को सर्व ब्रह्मांड दिखाए तथा अक्षर पुरुष से मिलवाया। पहले उसके दो हाथ थे परंतु परमेश्वर कबीर के निकट जाते ही अक्षर पुरुष ने 10,000 (दस हज़ार) हाथों का विस्तार कर लिया, जैसे मौर पक्षी अपने पंख को फैला लेता है उसी प्रकार अक्षर पुरुष को जब संकट का अंदेशा होता है तब वह ऐसा ही करता है। इसी प्रकार क्षर पुरुष के 1,000 (एक हज़ार) हाथ हैं जिसने महाभारत के युद्ध के दोरान अर्जुन को अपना 1,000 हाथों वाला विराट रूप दिखाया था।


परमेश्वर कबीर जी ने संत गरीबदास जी को अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्मांडों का भेद बताया उन्हें 12वें द्वार के सामने ले गए जो अक्षर पुरुष के लोक की सीमा पर बना हुआ है। ज़िंदा वेशधारी परमेश्वर कबीर जी ने संत गरीबदास जी को बताया कि जो 10वां द्वार है वह मैंने सत्यनाम के जाप से खोला था। जो 11वा द्वार है वह मैंने तत तथा सत जो सांकेतिक हैं जिसे सारनाम भी कहते हैं उससे खोला था। अन्य किसी मंत्र से उन दीवारों पर लगे ताले नहीं खुलते। अब यह 12वां द्वार है यह मैं सत शब्द यानी सार शब्द से खोलूंगा। इसके अतिरिक्त किसी नाम के जाप से यह नहीं खुल सकता। परमात्मा कबीर जी ने मन ही मन में सारनाम का जाप किया जिससे 12वां द्वार खुल गया । परमेश्वर जिंदा रूप में तथा संत गरीबदास जी की आत्मा भंवर गुफा में प्रवेश कर गए। भंवर गुफा के खत्म होते ही वे सत्यलोक में प्रवेश करके उस श्वेत गुंबद के सामने खड़े हो गये जिसके मध्य में सिंहासन के ऊपर तेजोमय श्वेत नर रूप में परम अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब जी विराजमान थे। जिनके एक रोम से इतना प्रकाश करोड़ सूर्य तथा चांद से भी अधिक था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस परम अक्षर ब्रह्म के संपूर्ण शरीर की कितनी रोशनी होगी। सतलोक स्वयं भी हीरे की तरह प्रकाशमान है। उस प्रकाश को जो परमेश्वर जी के पवित्र शरीर से तथा उसके अमरलोक से निकल रहा है, केवल आत्मा की आंखों से ही देखा जा सकता है। उसे चर्म दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।


संत गरीबदास जी का आश्चर्य चकित होना 


इसके बाद जिंदा बाबा अपने साथ बालक गरीबदास जी को लेकर उस सिंहासन के निकट गए तथा वहां रखे चंवर को उठाकर तख्त पर बैठे परमात्मा के ऊपर चलाने लगे। बालक गरीबदास जी ने विचार किया कि यह है परमात्मा और यह बाबा तो परमात्मा का सेवक है। उसी समय तेजोमय शरीर वाला प्रभु सिंहासन त्याग कर खड़ा हो गया और जिंदा बाबा के हाथ से चंवर ले लिया और जिंदा बाबा को सिंहासन पर बैठने का संकेत किया। जिंदा वेशधारी प्रभु असंख्य ब्रह्मांडों के मालिक के रूप में सिंहासन पर बैठ गए और फिर पहले वाला तेजोमय प्रभु जिंदा बाबा पर चंवर करने लगा। 


इस अद्भुत लीला को देखकर संत गरीबदास जी विचार कर ही रहे थे कि इनमें परमेश्वर कौन हो सकता है, इतने में तेजोमय शरीर वाला प्रभु जिंदा बाबा वाले शरीर में समा गए, दोनों मिलकर एक हो गए। जिंदा बाबा के शरीर का तेज उतना ही हो गया, जितना तेजोमय पूर्व में सिंहासन पर बैठे सत्य पुरुष का था।


परमेश्वर कबीर जी हैं सबके रचनहार


 कुछ ही क्षणों में परमेश्वर बोले हे गरीबदास! मैं असंख्य ब्रह्मांडों का स्वामी हूं। मैंने ही सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। सर्व आत्माओं को वचन से मैंने ही रचा है। पांच तत्व तथा सर्व पदार्थ भी मैंने ही रचे हैं। क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष व उनके लोकों को भी मैंने उत्पन्न किया है। मैं 120 वर्ष तक पृथ्वी पर कबीर नाम से जुलाहे की भूमिका करके आया था। मैं पहले हज़रत मुहम्मद जी को भी मिला था। पवित्र कुरान शरीफ में जो कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन्, अल्लाहु अकबर आदि शब्द हैं वे मेरा ही बोध कराते हैं तथा मैं ही श्री नानक जी को बेई नदी पर जिंदा महात्मा के रूप में  मिला था। 

मुस्लमानों में जिंदा महात्मा होते हैं, वे काला चोगा घुटनों से नीचे तक तथा सिर पर चोटे वाला काला टोप पहनते हैं। तथा मैं ही बलख शहर में बादशाह अब्राहीम सुलतान अधम तथा श्री दादू जी को मिला था तथा चारों पवित्र वेदों में जो कविर अग्नि, कविर्देव आदि नाम हैं वह मेरा ही बोध हैं। 


‘कबीर बेद मेरा भेद है, मैं मिलु बेदों से नांही। जौन बेद से मैं मिलूं, वो बेद जानते नांही।

 

गाँव छुड़ानी जिला झज्जर, हरियाणा में आज भी उस जंगल में जहाँ पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का सन्त गरीबदास जी को मानव शरीर में साक्षात्कार हुआ था उसकी एक यादगार विद्यमान है।


संत गरीबदास जी को मृत जानकर चिता पर लिटाना 


उधर पृथ्वी लोक पर माता पिता नानी नाना और सभी ग्रामीण, बालक गरीबदास को मृत जानकर चिता पर लिटाकर अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे। तब तक परमेश्वर कबीर जी ने गरीबदास जी के  अन्तः करण में अध्यात्म ज्ञान प्रवेश कर दिया था तथा बाद में संत गरीबदास जी की आत्मा को उनके शरीर में प्रवेश करा दिया। बालक को पुनर्जीवित पाकर सभी का ख़ुशी का ठिकाना नही रहा.


संत गरीबदास जी चिता पर जिंदा होकर बोले: 


अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।

अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।


घर आने पर बहुत उपचार से भी ठीक न हुए बालक को ग्रामीण जन पागल मान बैठे थे। उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा का आँखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी में ‘‘सद्ग्रन्थ‘‘ नाम से ग्रन्थ की रचना की। 



आइए अब जानते है कि कैसे हुई "सदग्रंथ साहेब" ग्रंथ की रचना?


तीन वर्ष उपरांत दादू पंथी संत गोपालदास जो वैश्य परिवार से थे, उस गाँव में आए । तथा संत गरीबदास जी से पूछा बेटा वो कौन था, जिसने तेरा जीवन बर्बाद कर दिया?, तब संत गरीबदास जी ने कहा कि मेरा जीवन बर्बाद नही आबाद कर दिया, संत गरीबदास जी ने वाणी के माध्यम से कहा: 

 

अलल पंख अनुराग है, सुन मंडल रहे थीर।

दास गरीब उधारिया मोहै सतगुरु मिले कबीर।।


हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।

जात जुलाहा भेद न पाया, वो काशी माहे कबीर हुआ।।


इन वाणियों को सुनकर गोपाल दास जी समझ गए यह विशिष्ठ ज्ञानी बालक परमात्मा से मिलकर आया है । गोपाल दास जी के यह प्रश्न करने पर कि उन्हें कौन मिले थे और कहाँ लेकर गए थे? इस प्रश्न के उत्तर में 13 वर्षीय तत्वदर्शी संत गरीब दास जी ने उत्तर दिया कि मुझे जिंदा बाबा मिले थे और सतलोक लेकर गए। वह स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं । 


ऐसा बोलकर संत गरीबदास जी वहाँ से चले गये  । गोपाल दास जी पीछे पीछे चले और गरीबदास जी से नम्र निवेदन किया कि यह ज्ञान लिपिबद्ध करवा दो । तब संत गरीबदास जी ने कहा कि यदि आप पूरा लिखो तो मैं लिखवाऊ,   तब गोपाल दास जी ने सहमती दी कि मैं पूरा लिखूंगा, जिसके बाद परमात्मा से प्राप्त तत्वज्ञान को गरीबदास जी के बेरी के बाग में एक जांडी के पेड़ के नीचे बैठकर छः माह में गोपाल दास जी ने संत गरीबदास जी द्वारा बोली गयी वाणियों को पूरा लिखा और इससे ग्रंथ श्री ग्रंथ साहिब अमरबोध अमरग्रन्थ की रचना हुई ।



इस ग्रंथ में कबीर सागर के 7,000 ( सात हज़ार) शब्द सहित कुल 24,000 (चौबीस हज़ार) शब्द लिखे गए हैं। इस महान ग्रंथ में गुजराती, अरबी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी समावेश है।


बंदीछोड़ संत गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है :


सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आए हरियाणे नुँ ।


जिसका भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिस क्षेत्र में आएंगे उसका नाम हरियाणा है, परमात्मा के आने से पवित्र स्थल, जिस के कारण आस-पास के क्षेत्र को हरिआना कहने लगे। लगभग 236 वर्ष पूर्व कही गई वाणी 1966 में सिद्ध हुई जब सन् 1966 में पंजाब प्रान्त के विभाजन होने पर इस क्षेत्र का नाम हरिआणा पड़ा, जो आज प्रत्यक्ष प्रमाण है और इसी स्थान पर पहले तत्वदर्शी संत गरीबदास जी महाराज और आज वर्तमान में पूर्ण परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज के रूप में विधमान हैं।


परमेश्वर कबीर जी ने 600 साल पहले ही अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को बताया था कि कबीर सागर और कबीर बीजक में काल अपने दूतों द्वारा मिलावट करवा देगा। इसलिए हे धर्मदास! जब बारहवां पंथ गरीबदास पंथ आयेगा तब मैं अपनी वाणी पुन: प्रकट करवाऊंगा और उसी बारहवें पंथ में आगे चलकर में खुद आऊंगा जब कलयुग 5505 ( पचपन सौ पांच) वर्ष बीत जायेगा तब बिचली पीढ़ी वाले मेरे हंसो को अपने निज धाम सतलोक ले जाऊंगा। 


बारहवें पथ होवे उजियारा। तेरहवें पंथ मिटै सकल अन्धियारा।।

सम्वत 1774 होई। ता दिन प्रेम प्रकटे सोई।।

बारहवें पंथ प्रकट होवे मम बानी, शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।

ये बारह पंथ हमि को ध्यावैं। अस्थिर घर का मर्म न पावै।।

बारहवें पंथ में हम हि चल आवें। सब पंथ मिटा कर एक ही पंथ चलावें।।


चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।।

काल फंद छूटै नर लोई। सकल सृष्टि परवानिक होई।।

घर-घर देखो बोध विचारा। सत्यनाम सब ठोर उचारा।।

पाँच हज़ार पाँच सौ पाँचा। तब यह वचन होयगा साचा।।

कलयुग बीत जाए जब ऐता। सब जीव परम पुरूष पद चेता।।



SA News ने अपनी पड़ताल में पाया कि परमेश्वर कबीर जी ने संवत 1774 में आदरणीय संत गरीबदास जी द्वारा अपने ज्ञान को पुन: प्रकट करवाया व अपने बताए अनुसार उसी गरीबदास पंथ में आगे चलकर संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में अवतरित हुए। ऐसे में परमेश्वर को चाहने वाली आत्माओं को चाहिए कि अपने परम पिता परमात्मा को पहचानें व संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं। धन्यवाद।

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