आज आप Mukti Bodh-मुक्ति बोध में पढेंगे कि राजा बड़ा है या भक्त राज | संत रामपाल जी माहराज
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"-पेज नंबर (171-172)
राजा बड़ा है या भक्त राज
एक बार सुल्तान अधम अपने बलख शहर के बाहर एक तालाब पर जाकर बैठ गया। उसका पुत्र राजा था। पता चला तो हाथी पर चढ़कर बैंड-बाजे के साथ तालाब पर पहुँचा। पिता जी से घर चलने को कहा। सुल्तान ने साफ शब्दों में मना कर दिया। लड़के ने कहा कि आपने यह क्या हुलिया बना रखा है? आप यहाँ ठाठ से रहो। आप भिखारी बनकर कष्ट उठा रहे हो। मेरी आज्ञा से आज सब कुछ हो जाता है। सुल्तान ने कहा कि जो परमात्मा कर सकता है, वह राजा नहीं कर सकता। लड़के ने कहा कि आप आज्ञा दो, वही कर दूँगा। आपको हमारे पास रहना होगा। सुल्तानी ने कहा कि ठीक है, स्वीकार है। मैं हाथ से कपड़े सीने की एक सूई इस तालाब में डालता हूँ। यह सूई जल से निकालकर मेरे को लौटा दे।
राजा ने सिपाहियों, गोताखोरों तथा जाल डालने वालों को बुलाया। सब प्रयत्न किया, परंतु व्यर्थ। लड़के ने कहा, पिताजी! एक सूई के बदले हजार सूईयाँ ला देता हूँ। क्या आपका अल्लाह यह सूई निकाल देगा? तब सुल्तान ने कहा कि हे पुत्र! यदि मेरा अल्लाह यही सूई निकाल देगा तो क्या तुम भक्ति करोगे? क्या सन्यास ले लोगे? लड़के ने कहा कि आप पहले यह सूई अपने प्रभु से निकलवाओ, फिर सोचूँगा। इब्राहिम ने कहा कि परमात्मा की बेटी मछलियों! मुझ दास की एक सूई आपके तालाब में गिर गई है। मेरी सूई निकालकर मुझे देने की कृपा करें। कुछ ही क्षणों के उपरांत एक मछली मुख में सूई लिए इब्राहिम के पास किनारे पर आई।
इब्राहिम ने सूई पकड़ ली और मछलियों का हाथ जोड़कर धन्यवाद किया। तब सुल्तानी ने कहा, बेटा! देख परमात्मा जो कर सकता है, वह मानव चाहे राजा भी क्यों न हो, नहीं कर सकता। अब क्या भक्ति करेगा? पुत्र ने कहा कि भगवान ने आपको सूई ही तो दी है, मैं तो आपको हीरे-मोती दे सकता हूँ। भक्ति तो वृद्धावस्था में करूँगा। भक्त इब्राहिम उठकर चल पड़ा। अपनी गुफा में चला गया।
‘‘विकार जैसे काम, मोह, क्रोध, वासना नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं‘‘
विकार मरे ना जानियो, ज्यों भूभल में आग।जब करेल्लै धधकही, सतगुरू शरणा लाग।।
एक समय इब्राहिम सुल्तान मक्का में गया हुआ था। उनका उद्देश्य था कि भ्रमित मुसलमान श्रद्धालु मक्का में हज के लिए या वैसे भी आते रहते हैं। उनको समझाना था। उनको समझाने के लिए वहाँ कुछ दिन रहे। कुछ शिष्य भी बने। किसी हज यात्री ने बलख शहर में जाकर बताया कि इब्राहिम मक्का में रहता है। छोटे लड़के ने पिता जी के दर्शन की जिद की तो उसकी माता-लड़का तथा नगर के कुछ स्त्री-पुरूष भी साथ चले और मक्का में जाकर इब्राहिम से मिले। इब्राहिम अपने शिष्यों को शिक्षा देता था कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले लड़के तथा परस्त्री की ओर अधिक देर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनके प्रति मोह बन जाता है।
अपने लड़के को देखकर इब्राहिम से रहा नहीं गया, एकटक बच्चे को देखता रहा। लड़के की आयु लगभग 13 वर्ष थी। शिष्यों ने कहा कि गुरूदेव आप हमें तो शिक्षा देते हो कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले बच्चे की ओर ज्यादा देर नहीं देखना चाहिए, स्वयं देख रहे हो।
इब्राहिम ने कहा, पता नहीं मेरा आकर्षण इसकी ओर क्यों हो रहा है? उसी समय एक वृद्ध ने कहा, राजा जी! यह आपकी रानी है और यह आपका पुत्र है। आप राज्य त्यागकर आए, उस समय यह गर्भ में था। आपसे मिलने आए हैं। उसी समय लड़का पिता के चरणों को छूकर गोदी में बैठ गया। इब्राहिम की आँखों में ममता के आँसूं छलक आए। परमेश्वर की ओर से आकाशवाणी हुई कि हे सुल्तानी! तेरे को मेरे से प्रेम नहीं रहा। अपने परिवार से प्रेम है। अपने घर चला जा। उसी समय इब्राहिम को झटका लगा तथा आँखें बंद करके प्रार्थना की कि हे परमात्मा! मेरे वश से बाहर की बात है, या तो मेरी मृत्यु कर दो या इस लड़के की। उसी समय लड़के की मृत्यु हो गई। इब्राहिम उठकर चल पड़ा।
बलख से आए व्यक्ति लड़के के अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने लगे। परमात्मा पाने के लिए भक्त को प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। तब सफलता मिलती है। उस लड़के के जीव को परमात्मा ने तुरंत मानव जीवन दिया और अपने भक्त के घर में लड़के को उत्पन्न किया। बचपन से ही उस आत्मा को परमात्मा का मार्ग मिला। एक बार सब भक्त बाबा जिन्दा के आश्रम में सत्संग में इकट्ठे हुए। वह लड़का उस समय 4 वर्ष की आयु का था। परमेश्वर की कृपा से उसका बिस्तर तथा इब्राहिम का बिस्तर साथ-साथ लगा था। इब्राहिम को देखकर लड़का बोला, पिताजी! आप मुझे मक्का में क्यों छोड़ आए थे?
मैं अब भक्त के घर जन्मा हूँ। देख न अल्लाह ने मुझे आप से फिर मिला दिया। यह बात गुरू जी जिन्दा बाबा (परमेश्वर कबीर जी) के पास गई तो जिन्दा बाबा ने बताया कि यह इब्राहिम का लड़का है जो मक्का में मर गया था। अब परमात्मा ने इस जीव को भक्त के घर जन्म दिया है। इब्राहिम को लड़के के मरने का दुःख बहुत था, परंतु किसी को साझा नहीं करता था। उस दिन उसने कहा, कृपासागर! तू अन्तर्यामी है। आज मेरा कलेजा (दिल) हल्का हो गया।
मेरे मन में रह-रहकर आ रहा था कि परमात्मा ने यह क्या किया? इसकी माँ घर पर किस मुँह से जाएगी? आज मेरी आत्मा पूर्ण रूप से शांत है। जिन्दा बाबा ने उस लड़की पूर्व वाली माता यानि इब्राहिम की पत्नी को संदेश भिजवाया कि वह आश्रम आए। लड़के तथा उसके नए माता-पिता तथा इब्राहिम को भी बुलाया। उस लड़के को पहले वाली माता से मिलाया। लड़का देखते ही बोला, अम्मा जान! आप मेरे को मक्का छोड़कर चली गई। वहाँ पर अल्लाह आए, देखो ये बैठे (जिन्दा बाबा की ओर हाथ करके बोला) और मेरे को साथ लेकर इनके घर छोड़ गए। मैं इस माई के पेट में चला गया। फिर मेरा जन्म हुआ। अब मैं दीक्षा ले चुका हूँ।
प्रथम मंत्र का जाप करता हूँ। हे माता जी! आप भी गुरू जी से दीक्षा ले लो, कल्याण हो जाएगा। इब्राहिम की पत्नी ने दीक्षा ली और कहा कि इस लड़के को मेरे साथ भेज दो। परमेश्वर कबीर जी (जिन्दा बाबा) ने कहा कि यदि उस नरक में (राज की चकाचौंध में) रखना होता तो इसकी मृत्यु क्यों होती? अब तो आप आश्रम आया करो और महीने में सत्संग में बच्चे के दर्शन कर जाया करो। इब्राहिम को उस लड़के में अपनापन नहीं लगा क्योंकि वह किसी अन्य के शरीर से जन्मा था। परंतु उसके भ्रम, मन की मूर्खता का नाश हो गया।
जो वह मन-मन में कहा करता कि अल्लाह ने यह नहीं करना चाहिए था। अब उसे पता चला कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। भले ही उस समय अपने को अच्छा न लगे। अल्लाह के सब जीव हैं, वह सबके हित की सोचता है। हम अपने-अपने हित की सोचते हैं। रानी को भी उस लड़के में वह भाव नहीं था, परंतु आत्मा वही थी। इसलिए माता वाली ममता दिल में जागृत थी। इसलिए उसको देखकर शांति मिलती थी। यह कारण बनाकर परमेश्वर जी ने उस रानी का भी उद्धार किया और बालक का भी।
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