अरविंद कुमार (Arvind Kumar) जी की आपबीती, संत रामपाल जी महाराज से प्राप्त सतभक्ति से जीवन हुआ सुखी

संत रामपाल जी महाराज एक ऐसा नाम जो आध्यात्मिक जगत के सच्चे संत हैं और सबसे बड़ी बात समाज सुधार के लिए प्रयत्नशील समाज सुधारक (Social reformer) हैं। संत रामपाल जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। साथ ही, उनका ज्ञान अद्वितीय है और सबसे बड़ी बात यह है कि वे सभी पवित्र धर्मग्रंथों के अनुसार सही भक्ति विधि बताते हैं।



सतभक्ति से लाभ प्रोग्राम द्वारा समाज के ऐसे लोगों को सामने लाया गया जो न जाने कितनी समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई सद्भक्ति से उनकी सभी समस्याएं खत्म हो गईं और उन्हें एक नई ज़िंदगी मिली जो आज लाखों लोगों के लिए उदाहरण हैं। तो आज हम आपको एक ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी से परिचित करवाएंगे जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ बल्कि शारीरिक और आर्थिक लाभ भी मिला।

सतभक्ति से लाभ-Benefits of True Worship की थीम इस प्रकार है


  • अरविंद कुमार (Arvind Kumar) जी की आपबीती
  • संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा
  • नाम दीक्षा लेने के बाद कि जिंदगी में आये बदलाव
  • नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव
  • मेरा समाज को संदेश
  • सारांश


अरविंद कुमार (Arvind Kumar) जी की आप बीती

मेरा नाम अरविंद कुमार (Arvind Kumar) है। मैं गांव - लभकरी, करनाल, हरियाणा का रहने वाला हूँ। पहले भक्ति-साधना का तो पता नहीं लेकिन देखा-देखी भक्ति करता था। मैं आर्य समाज में ढोलक-बाजे बजाने का काम करता था। वहां आर्य समाज में स्वामी दयानंद का प्रचार करते थे और पैसे बनाते थे। हमें पैसे कमाने से मतलब था। आर्य समाज में पत्थर की पूजा के लिए मना कर रखा था इसलिए हम पत्थर की पूजा नहीं करते थे। परिवार वाले करते थे। हमें कोई दिक्कत नहींं थी। ऐसे ही घूमता-घूमता मैं जींद जिले में चला गया। वहां पर रामपाल जी महाराज पाठ कर रहे थे। पाठ करने के बाद वो बाहर घूमने के लिए आये हुए थे तो मुझे बोले कि भक्त ये आप क्या कर रहे हो? मैंने बोला कि आर्य समाज का करने के लिए आये हुए हैं हम।

इधर हमारी तरफ एक गुरु हैं उस गुरु के लिए कुछ ग्राही-गुरुही करने के लिए आये हुए हैं। तो बोले कि छोड़ दो ये कुछ नहीं है, परमात्मा की भक्ति करो। मैं जाति से जोगी हूँ और हम मंदिरों में पूजा पाठ करते हैं, मेरा परिवार तो अब भी करता है। मैं आर्य समाज से जुड़ा हुआ था तो मूर्ति पूजा में कम ही विश्वास करता था। वो बोले कि परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए इन सब में कुछ नहीं है तो मैं बोला किसने गुरु बना दिया आपको और 1-2 अपशब्द भी कहे बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी को, आपको गुरु किसने बना दिया? गुरु तो हम हैं, सारा संसार हमारी पूजा करता है, आप जाटों की कौन पूजा कर सकता है? जाट भगवान नहीं हो सकते। हम जोगी हैं, शिवजी की जटाओं से जाट निकले हुए हैं, हम शिवजी के बच्चे हैं। आप हमारी भक्ति करो हम आपकी भक्ति थोड़े ही कर सकते हैं। परमात्मा ने मेरी कमर पर हाथ रखकर कहा कि कोई बात नहीं परमात्मा आपका भला करें।

तो मैं वो प्रोग्राम करता रहा और मेरी नई-नई शादी हुई थी, मैं जवान अवस्था में था उस समय दु:ख सुख जानता नहींं था। तो मेरा काम बिगड़ने लगा, जो प्रोग्राम करता था वो भी फेल, मैं सिलाई का काम करता था वो भी फेल, फिर मैंने झोली लेकर मांगना शुरू कर दिया जी। मैं गांव-गांव मांगने के लिए जाता, जोगी जात से हूँ, गांव वाले कहते कि हट्टा-कट्टा तेरा शरीर है करके खा। मैं सब सुनता था। फिर मुझे एक तांत्रिक मिल गया करनाल में, उस तांत्रिक ने मुझे कुछ तांत्रिक विद्या सिखाई तो मैं उस तांत्रिक विद्या को करने लगा। चौंके-चाके, पोछे-पाछे देने लग गया तो उससे रोटी मिलने लगी मुझे, लेकिन मेरे घर में बीमारियों का घर बढ़ने लगा तो मैंने सोचा कि इनका इलाज हो रहा है, मेरा इलाज हो नहीं रहा।

किसी ने कहा कि गोरखनाथ की भक्ति कर, तुम जोगी हो गोरखनाथ तुम्हारा गुरु है, तुम उसकी भक्ति करो। मैंने कहा गोरखनाथ कुछ नहींं होता मैं आर्य समाज से जुड़ा हुआ हूं ॐ से बढ़कर कुछ नहींं है। ओम की साधना करनी चाहिए परमात्मा निराकार। क्योंकि उसमें निराकार का ही रट्टा लगाते हैं वो लोग और कुछ नहींं लगाते, वो स्टेज पर जाते हैं आर्य समाजी और वो कोई भक्ति नहींं बताते। संस्कृत बोलते हैं बढ़िया और देशभक्तों का नाम लेते हैं और जनता को भड़काते हैं और कुछ नहीं करते।

मैंने उनके प्रोग्राम में 10 साल तक काम किया है, मेरे को पता है उनके बारे में। मेरे गांव से नरसिंह पंडित जी हैं वह इस काम में मेरे गुरु रह चुके हैं और जो आस-पास प्रोग्राम करता था उसमें जनता भड़काने का काम था और कुछ नहींं था। हम हिंदू हैं हिंदू सर्वोत्तम हैं, भारत हिंदुओं का देश है। मुसलमानों को कट्टर मानते थे मुसलमान को मार दो, ये कुछ नहींं हैं ऐसी बातें मेरे को सिखाते थे, भड़काने वाली बातें सिखाते थे।

तो उस चीज को थोड़ा बदलने लग गया, बदलने के कारण मेरे घर पर बीमारियों का दौर शुरू हो गया। इसी दौरान आर्य समाजियों ने 2006 में परमात्मा संत रामपाल जी महाराज को जेल में बंद करवा दिया और उस समय भी इस कुत्ते ने परमात्मा के लिए बहुत अपशब्द कहे कि यह तो ढोंगी है। मेरे को पता है मेरे साथ यह गांव में झोली लेकर मांगने जाता था। ऐसे मुझे जो उनको नहींं बोलना था वह बोला और वह शब्द में यहां बोल भी नहींं सकता जो मैंने उनको बोले हैं फिर 2010 के बाद मेरे घर में बीमारियों का दौर इतना शुरू हो गया, इतना शुरू हो गया कि मैं कंगाल हो गया पूरी तरह से, घर में खाने को कुछ नहीं था।  घर में डांगर नहींं रहा, मकान नहीं रहा, बुरी हालत हो गई।

संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा

एक दिन 2012 की बात है, मैं टीवी पर प्रोग्राम देख रहा था तो संत रामपाल जी महाराज का सत्संग आया था तो मैं तब भी परमात्मा के बारे में गलत बोला कि ये संत रामपाल तो ढोंगी है, यह टीवी पर कैसे आने लग गया? तो मैं 6 महीने तक उनका प्रोग्राम देखता रहा परमात्मा शास्त्र दिखाते रहे, मैं पढ़ा लिखा कम हूं फिर भी मैं शास्त्रों को समझता रहा।

सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक है उसको मैंने पढा़ हुआ है, उसमें लिखा है कि परमात्मा निराकार है लेकिन वेदों में तो परमात्मा साकार और सशरीर बता रखा है। तो मेरे यह बात नहींं जंची कि परमात्मा कबीर को बता रहे हैं, कबीर तो धानक, जुलाहा था वह परमात्मा कहां से हुआ? अगर परमात्मा होता तो इतना गरीब क्यों होता? परमात्मा तो श्री रामचंद्र जी, विष्णु जी, शिवजी हैं तो मेरा फिर भी विश्वास नहीं बना। मेरे गांव के पास ही गांव है जिसमें मैं सिलाई करता हूं उसमें एक भक्त है जिसने संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ले रखी थी। वह मेरे पास कपड़े सिलवाने के लिए आया तो मैंने बोला भाई मैं बहुत परेशान हूं। बहुत दिक्कत आ रही है मेरे घर में। बहुत बीमारियां बढ़ रही हैं। वो बोला एक संत रामपाल जी महाराज हैं, मुझे शुगर का रोग था अब उसमें आराम है और मैंने नाम लिया 2009 में और आज मैं ठीक हूं।

मैंने कहा कि किन पागलों के चक्कर में पड़ गए तुम? देवी देवता, जो परमात्मा हैं, उनको तो तुम लोगों ने छोड़ रखा है और इन संतों के चक्कर में क्यों पड़ गए? मैं राधास्वामी के वहां भी गया था। वहां मैंने देखा कितना बुरा हाल है मेरे को पता है। मैंने पहले सीताराम पलाडे वाले गुरु से नाम लिया हुआ था। मैंने कहा गुरु-वुरु कुछ नहीं होता। मैं हरिद्वार गया, किसी ने वहां मेरे को एक ठग विद्या की चीज दे दी और बोला कि आप पर्चियां काटो आधे पैसे आपके, आधे पैसे हमारे तो मैंने गांव वालों को लूटना शुरू कर दिया मैंने ₹3000, ₹5000 का काम किया लेकिन घर पर रोटी की फिर भी दिक्कत। 

तो जी वो दुबारा लड़का फिर मेरे पास कपड़ा लेने के लिए आया कहा कि समझ में आई तेरे बात? उसने बोला तो मुझसे ये चिप ले और सत्संग सुना कर तो मैंने बोला कि मैं सत्संग तो रोज देखता हूं, तो उसने कहा है कि आप देखते जरूर हो लेकिन उसको गहनता से नहीं समझते। मैंने कहा भाई ये गहनता क्या चीज है? तो बोला कि थोड़ा समझो ध्यान से तो मैंने ध्यान से समझा तो परमात्मा की एक बात मुझे पकड़ गई परमात्मा ने कहा कि जिस भक्ति के करने से इंसान के दु:ख नहींं कट सकते, पाप नहींं कट सकते हों तो वो भक्ति नहींं करनी चाहिए। तो दास का दिमाग घूम गया कि इतनी भक्ति की तुमने और यह क्या कह रहा है। तो उस प्रोग्राम को देखने की बहुत इच्छा हुई जब ध्यान से देखा तो पता चला ब्रह्मा, विष्णु, महेश तो कुछ भी नहींं हैं और परमात्मा तो बरवाले के अंदर बैठे हैं और तुम कहां धक्के खा रहे हो?

तो दास सत्संग देखने के बाद परिवार सहित 26 जनवरी 2013 को संत रामपाल जी महाराज जी के चरणों में गया। उन्होंने पहले नियम समझाए कि बीड़ी-सिगरेट नहीं पीनी, ये वो नहीं करना तो मैंने कहा मेरे तो चलेगा नहीं काम, मैं बीड़ी-शराब पीता था, कभी ईलाज करवाने जाते थे तो वो बोलते मुर्गा लेकर आओ, मांस लेकर आओ तो हमारा काम बेकार होने लगा था। मैं जवाब दे दिया कि नाम नहीं लूंगा। वहां पर एक भक्त था उसने मेरे को ऐसे समझाया, ऐसे समझाया कि मैं दंग रह गया जी।

फिर मैंने परमात्मा का नाम लेने वाला फॉर्म भरवाया और नाम लेने के लिए चला गया तो वो कह रहे थे कि कहां चले गए थे। आपका नाम पुकारा जा रहा था तो मैं बोला कि नहाने गया हुआ था तो बोले कि यहाँ नहाने की जरूरत नहीं है यहाँ तो आत्मा साफ होनी चाहिए, शरीर साफ नहीं। मैं अचंभित हो गया कि परमात्मा का नाम बिना नहाए ही दिया जाता है, ये तो कमाल है। तो फिर मैंने परमात्मा का नाम लिया और परमात्मा ने मुझे मन्त्र दिए तो मुझे परमात्मा वहां खड़े नजर आ रहे थे। जब मालिक ने मुझे प्रथम मन्त्र दिया तो मालिक मुझे कह रहे थे, पास में भक्त भी बैठे थे, बोले कि आना पड़ा बेटे यहीं पर ही। बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी कह रहे थे कि आना पड़ा बच्चे यहीं पर, तेरे लिए तो मैंने क्या-क्या नहीं किया। तेरे लिए मैंने कितने कष्ट सहे, बहुत मुश्किल थी तू ऐसे नहीं आया, तू बहुत घमंडी बच्चा है।

जब मालिक ने मुझे LCD से नाम दिया तो उस LCD के अंदर मुझे परमात्मा नजर आ रहे थे। बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी मुझे कबीर परमात्मा के रूप में नजर आ रहे थे क्योंकि धर्मदास जी कहते थे कि परमात्मा के दाढ़ी है और ऊपर टोपी पहनते हैं तो मैंने परमात्मा का वो रूप देखा, बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज का वो रूप देखा मैंने। मैंने कहा कि ये तो परमात्मा का कोई न कोई चमत्कार है। नाम लेने के बाद में मैं बिल्कुल हक्का-बक्का रह गया और वहीं बैठ गया।

 

मेरी भक्तमति मेरे पास आई कि क्या हो गया? क्योंकि मैं ऐब बहुत करता था बीड़ी-शराब, मांस का, ये कैसे छूटेंगे। परिवार में जाकर क्या मुंह दिखाऊंगा। तेरा तो धर्म ही बदल गया। तेरे को तो भक्ति ही नहीं करनी। तेरे को तो देवी-देवता नहीं पूजने। खेड़ा नहीं पूजना क्योंकि हम ऐसी जाति से है कि पूजा तो हम लेते हैं। खेड़े की पूजा-पाठ का सामान भी हम लेते हैं। मंदिरों का भी लेते हैं तो वो कैसे लेंगे? जब मैं घर पर आया तो परिवार ने मेरा पूरा विरोध किया, बहुत ज्यादा विरोध किया कि तूने तो धर्म बदल लिया।

नाम दीक्षा लेने के बाद जिंदगी में आए बदलाव

नाम लेने के एक महीने के बाद जब मैं गुरुजी के पास गया तो मैंने गुरुजी से बोला कि मेरी भक्तमति को कैंसर का रोग है। तो बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ने कहा कि परमात्मा ठीक करेंगे तो मैंने कहा परमात्मा तो आप कबीर साहब बता रहे हो और अभी तो हमारा विश्वास नहीं जम रहा है कि परमात्मा कबीर साहेब कैसे हुए। तो उन्होंने कहा कि आप सत्संग सुनो, सत्संग से आपको पता चल जाएगा तो मैं जैसे गुरु जी ने बोला वैसे रोजाना मंत्र जाप करता रहा। मैंने सत्संग एक भी दिन नहींं अटेंड करने की कोशिश नहींं कि क्योंकि मुझे ठोकर लगी हुई थी। आर्थिक दशा बहुत खराब हो रखी थी तो परमात्मा ने मेरी धीरे-धीरे आर्थिक दशा ठीक करना शुरू कर दिया।

तो मैं बच्चों को तो कहता कि आप भक्ति करो सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरी भक्तमति भी परमात्मा से प्रार्थना करती रहती थी कि परमात्मा मुझे कैंसर का रोग है मैं ठीक नहींं हो रही। हमारी आर्थिक दशा ठीक नहींं तो परमात्मा ने ऐसी दया की 2 महीने के अंदर कि उसके कैंसर के रोग का पता नहींं चला कि वो गया कहाँ? मेरा तो तब से परमात्मा में पूरा विश्वास बन गया था क्योंकि जिस रोग के लिए मैं दर-दर भटक रहा था। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था कि ये रोग ठीक नहीं होगा, आप इसका ईलाज जहाँ चाहे कराओ। अपनी सेवा कर लो और वो ठीक हो गया तो मेरा विश्वास बन गया, भक्तमति का विश्वास नहीं बना।

वो या तो उसको पता है या परमात्मा को पता है कि उसका विश्वास क्यों नहीं बना? परमात्मा की दया से वो रोग बिल्कुल ठीक हो गया, उसकी रिपोर्टस् मेरे पास पड़ी है। कोई भी मेरे पते पर आकर यह चीज पता कर सकता है कि पहले मेरी क्या हालत थी और आज बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की दया से क्या हालत है। आज मेरी परमात्मा की दया से इतनी दशा अच्छी है कि मेरे घर हर तरह की मौज है।

नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव

जिस समय में आश्रम के अंदर गया उस दिन 25 जनवरी 2013 का दिन था। उस समय मेरे को ऐसे महसूस हुआ कि जैसे मैं स्वर्ग लोक में पहुँच गया हूँ। मेरी आत्मा को बहुत ज्यादा संतुष्टि मिली। वहाँ सब भक्त जी-भक्त जी करके बोल रहे थे। मैं बड़ी-बड़ी जगहों पर गया। मैं राधास्वामी के डेरे में भी गया, वहां पर भी पैसे देने पड़ते हैं रोटी खाने के लिए। लेकिन यहां फ्री में खाना, फ्री में बैठना, फ्री में लैट्रिन-बाथरूम। इतनी साफ-सफाई मैंने जिंदगी में कहीं नहीं देखी, करोड़पति के यहां भी नहीं देखी मैंने इतनी साफ-सफाई। हमें स्वर्ग तक का ज्ञान था तो वो आश्रम मुझे स्वर्ग के समान लगा।

संत रामपाल जी महाराज और आर्य समाज के बीच तनाव का कारण सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक है। सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक को मैंने खुद पढा है, उसमें ऐसी-ऐसी बातें कह रखी हैं कि मैं बता नहीं सकता। उसमें लिखा है कि जिस लड़की की आंखें भूरी हैं उससे शादी न कराओ तो मान लो मेरी लड़की की आंखें भूरी हैं तो मैं उसको कहाँ भेजूंगा? संत रामपाल जी महाराज जी ने इसका विरोध किया कि इसको खत्म कर दो ये सही नहीं है। उसमें लिखा है कि सूरज के ऊपर भी दुनिया बसी है तो सूरज के ऊपर तो कोई जा भी नहीं सकता तो दुनिया कैसे बसेगी?

संत रामपाल जी महाराज जी ने महर्षि दयानंद सरस्वती पर कोई टिप्पणी नहीं की और न बुरा बोला है। उन्होंने कहा कि ये जो किताब है उसको बंद कर दो। पहले हमारा समाज पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन आज समाज पढा-लिखा है। जब उसको पढ़ेगा तो बच्चों पर गलत असर पड़ेगा इसलिए उन्होंने किताब बंद करने के लिए कहा और कुछ नहीं कहा। बाकी जो स्वामी दयानन्द सरस्वती की किताबों में लिखा है वही संत रामपाल जी महाराज बता रहे हैं। हमारे वेदों में लिखा है कि परमात्मा साकार है, सशरीर है, उसका नाम कबीर है और वो कहते हैं कि परमात्मा निराकार है।

जो किताब है उसकी कमाई साल की बहुत ज्यादा है। उसको बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाते थे आर्य समाज के आचार्य लोग और जो गुरुकुल है उनमें उस किताब को भेंट करते थे। हमारी जो नौजवान पीढ़ी है वो उस किताब को पढ़कर क्या सोचेगी? उस किताब की कमाई को लेकर वो लोग विचलित हो गए कि ये तो इसका खुलासा कर रहा है, हमारी कमाई तो खत्म हो गयी, कमाएंगे कैसे। क्योंकि आज पीढ़ी पढ़ी-लिखी हो गयी है तो जब वो उसको पढ़ेंगे और पहले लोग किताब ले लेते थे और घर में रख लेते थे, मैंने भी 100-50 किताबें रख रखी हैं, पढ़ी नहीं। संत रामपाल जी महाराज समझा रहे हैं कि इसमें ये लिखा है, इसमें ये भी लिखा है तो जब उसको पढ़ेंगे तो उसको छोड़ देंगे तो उन्होंने विवाद करना शुरू कर दिया।

उन्होंने संत रामपाल जी महाराज से कहा कि आप ये किताब का विवाद करना बंद कर दो तो संत रामपाल जी महाराज ने कहा कि आप एक काम करो इस समाज को सुधारो इस किताब की तरफ मत जाओ। आप और अन्य संत मिलकर इस समाज को सुधारो। आज के जमाने में भाई, बहन पर विश्वास नहीं करता। बेटी, बाप पर विश्वास नहीं करती। इतना बुरा जमाना आ चुका है कि समाज बिगड़ चुका है बहुत ज्यादा। सब संत मिलकर समाज को सुधारो, वो सुधारने की बजाय उन्होंने कमाई न होने की वजह से संत रामपाल जी महाराज जी पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण करने से उन्होंने खुद उस लड़के को मारा और आज संत रामपाल जी महाराज पर आरोप लगा रखा है। परमात्मा ने सब टेस्ट दे दिए, बोले कि बंदूक से गोलियां चली उनके भी टेस्ट हो गए लेकिन आज तक कोई साबित नहीं कर सका कि वो गोली उस बंदूक से चली है फिर भी ये अंधी सरकार है जो उसका विश्वास नहीं करती और इनसे मिली-जुली है।  

मेरा समाज को संदेश

भक्त समाज को मैं ये सन्देश देना चाहता हूँ कि लोगों की बताई बातें मत सुनो। संत रामपाल जी महाराज जो साधना चैनल पर ज्ञान दे रहे हैं, आप उसको सुनो। आपके पास समय नहीं है सुनने का तो सत्संग के समय नीचे एक लाइन आती है वहां से "ज्ञान गंगा", "भक्ति सौदागर को संदेश", "गहरी नजर गीता में" ये पुस्तकें मंगवाओ। उनको पढ़ो, हमारे शास्त्र क्या कहते हैं वो समझो। संत रामपाल जी महाराज जी जेल में नहीं हैं, काल की जेल में तो हम हैं। उन्होंने तो जेल को स्वर्ग बना रखा है, वो तो हमें पता है उन्होंने क्या कर रखा है, जेल के अंदर भी। साधना चैनल पर एक पट्टी आती है, उसमें आश्रम के नम्बर लिखे आते हैं। आप उन नम्बरों पर फोन कर सकते हो। उन नम्बर पर फोन करके आप किताब मंगवाओ और ये ज्ञान समझो तथा उन नम्बरों पर फोन करके आपको पता चलेगा कि आपके आसपास कहाँ नामदान सेंटर है तो वहां जाकर आप नाम ले सकते हो।

सारांश

"सतभक्ति से लाभ-Benefits by True Worship" प्रोग्राम में बताया गया कि "संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लोगों को लाभ हो रहे हैं" पूर्णतः सत्य हैं। जिसका आप चाहें तो निरीक्षण भी कर सकते हैं। आज संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयायी हैं और ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद बहुत सारे लाभ मिले हैं। 

संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई भक्ति से कैंसर, एड्स व अन्य लाइलाज बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। क्योंकि धर्मग्रंथ ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5, सूक्त 162 मंत्र 5 और सूक्त 163 मंत्र 1-3 में प्रमाण है कि हर बीमारी का इलाज सतभक्ति से ही संभव है, साथ ही वह परमात्मा अपने साधक की अकाल मृत्यु तक टाल सकता है और उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान करता है तथा उस परमात्मा की सतभक्ति से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान पवित्र वेद, पवित्र शास्त्रों के अनुसार है और पवित्र गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत के बारे में जिक्र आया है वह तत्वदर्शी संत कोई ओर नहीं संत रामपाल जी महाराज ही हैं। तो देर ना करते हुए आप भी संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान समझे और उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग प्राप्त करें और 84 लाख योनियों के जन्म मरण से छुटकारा पाएं।

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