सुभाष सैनी (Subhash Saini) जी की आपबीती, संत रामपाल जी महाराज से प्राप्त सतभक्ति से जीवन हुआ सुखी

संत रामपाल जी महाराज एक ऐसा नाम जो आध्यात्मिक जगत के सच्चे संत हैं और सबसे बड़ी बात समाज सुधार के लिए प्रयत्नशील समाज सुधारक (Social reformer) हैं। संत रामपाल जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। साथ ही, उनका ज्ञान अद्वितीय है और सबसे बड़ी बात यह है कि वे सभी पवित्र धर्मग्रंथों के अनुसार सही भक्ति विधि बताते हैं।


सतभक्ति से लाभ प्रोग्राम द्वारा समाज के ऐसे लोगों को सामने लाया गया जो न जाने कितनी समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई सद्भक्ति से उनकी सभी समस्याएं खत्म हो गईं और उन्हें एक नई ज़िंदगी मिली जो आज लाखों लोगों के लिए उदाहरण हैं। तो आज हम आपको एक ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी से परिचित करवाएंगे जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ बल्कि शारीरिक और आर्थिक लाभ भी मिला।

"सतभक्ति से लाभ-Benefits of True Worship" की थीम इस प्रकार है


  • सुभाष सैनी (Subhash Saini) जी की आपबीती
  • संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा
  • नाम दीक्षा लेने के बाद कि जिंदगी में आये बदलाव
  • नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव
  • मेरा समाज को संदेश
  • सारांश


नाम सुभाष सैनी (Subhash Saini) जी की आप बीती

मेरा नाम सुभाष सैनी (Subhash Saini) है। मैं ग्राम-चंदौली, सोनीपत (हरियाणा) से हूँ। परमात्मा सतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आने से पहले मैं जो भी हमारे हिंदू धर्म में देवी देवता हैं,  माता शेरावाली हैं, पितर होते हैं, घर की पूजाएं होती हैं, हनुमान जी सबकी पूजा करता था। माता शेरावाली की मैंने बहुत भक्ति की है। 9-9 दिन मैंने नवरात्रों में व्रत रखे हैं। पहले परमात्मा की दया से घर में सब ठीक था। लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे होश संभाला तो कुछ प्रश्न मुझे पंच करते रहे। इसलिए मैंने मोक्ष प्राप्ति की सोची कि मैं इस दुनिया में दोबारा नहीं आना चाहता। मैं मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूँ और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक गुरु का होना बहुत जरूरी है। मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से ही मैंने जैसे मेरे पड़ोस वाले ने ज्ञान दिया कि गुरुमीत राम रहीम हैं। डेरा सच्चा सौदा, सिरसा वाले उनकी शरण में जाओ, वो ही सच्चे संत हैं, उनकी शरण में जाने से आपको आपके सारे सवालों का जवाब मिलेगा और मोक्ष की प्राप्ति भी होगी। सन् 2002 में मैंने गुरमीत राम रहीम डेरा सच्चा सौदा सिरसा वाले से नाम ले लिया।

नाम दीक्षा लेने के बाद मेरी मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि मैंने उनके सारे नियमों का पालन किया। मांस-मीट, अंडा, बीड़ी, शराब बगैरह मैं पहले भी नहीं पीता था और नाम लेने के बाद भी मैंने कभी नहीं खाया-पीया, कभी नशा नहीं किया। सब नियमों में रहते हुए भी मुझे कभी शारीरिक लाभ नहींं हुआ। आध्यात्मिक संतुष्टि नहींं हुई, न मानसिक लाभ नहीं हुआ। उल्टा जो पहले हमारे घर में सुख शांति थी वह भी समाप्त होती गई, शरीर में भी विकार और बीमारी बढ़ती चली गयी। घर में भी कोई सुख-शांति नहीं रही, गृह क्लेश बढ़ता गया। मेरे पिताजी की भी मृत्यु हो गयी और मेरा बिल्कुल विश्वास उठता चला गया, सभी देवी-देवताओं से और गुरुमीत राम रहीम से भी।

क्योंकि जब मैंने नाम लिया तो मुझे बहुत अच्छा लगा, सतलोक और सच्चखंड की जो बातें हुईं। मुझे लगा कि हम सचखंड जाएंगे और मोक्ष को प्राप्त करेंगे। लेकिन धीरे-धीरे जैसे मैंने वहां पर देखा संगत की तरफ से फ्री सेवा होती थी जैसे दीवार बनाना, फसल काटना, पशुओं के लिए चारा काटना आदि सेवाएं चलती थी जोकि फ्री सेवाएं थी लेकिन उन्हीं को देखने के लिए या उन कमरों में पंखों के नीचे बैठने के लिए हमें पैसे देने पड़ते थे। मुझे यह अजीब लगा वहां पर जो भी खाने पीने की चीजें थीं वह बाजार से भी ज्यादा कीमत की थीं। वही चीज अगर आप बाजार से खरीदते तो कम कीमत में आप खरीद सकते हैं। वहां मैंने आम बाजार से ज्यादा मंहगाई देखी, वहां नाचना-गाना और इससे भी बहुत ज्यादा तब महसूस हुआ जब गुरुमीत राम रहीम जी ने कहा कि जो भी गुरुजी के बिल्कुल पास बैठना चाहता है वो 1 लाख रुपये की टिकट कटवायें।

जो थोड़ा पीछे बैठना चाहता है वह ₹50 हजार की टिकट कटवायें, जिसका 20 हजार का बजट है वह उससे थोड़ी पीछे बैठेगा और जिनके पास बिल्कुल पैसे नहींं है वह सबसे पीछे जाकर बैठेंगे। मैंने सोचा कि ऐसे भी भक्त हैं जिनके पास कुछ भी नहींं है लेकिन वह भी गुरु जी का दर्शन करना चाहते हैं। गुरु जी को तो सभी को एक समान भाव से देखना चाहिए। यहां यह क्या है कि जो पैसे वाले हैं वह तो आगे बैठें, कम पैसे वाले हैं वह पीछे और जिनके पास कुछ नहींं है वह बिल्कुल ही पीछे बैठें, जहां से उनके दर्शन तो क्या उनकी आवाज सुनना भी बहुत मुश्किल है। यह भी मुझे बहुत चोट लगी।

यह जो मैं भक्ति करता था उससे मुझे कोई लाभ नहींं हुआ, जैसे-जैसे मैं उनकी भक्ति करता गया उल्टा मुझे नुकसान ही होता गया। शरीर में भी नुकसान, पूरा शरीर बीमारियों का घर बन गया और घर में भी कोई सुख-शांति नहीं हुई और गृह क्लेश बढ़ते चले गए। मैंने MCom किया है तो जब मैं माता शेरावाली की भक्ति करता था तो मुझे पूरा विश्वास था कि मुझे सरकारी नौकरी मिल जाएगी। मेरी माता शेरावाली, मेरे गुरुजी, मेरे पिताजी गुरुमीत राम रहीम मुझे अवश्य नौकरी दिलाएंगे, मेरे भाग्य में जरूर है। लेकिन मुझे कहीं से किसी तरह का कोई लाभ नहीं हुआ और मेरी कोई सरकारी नौकरी भी नहीं लगी।


संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा

संत रामपाल जी महाराज से नामदीक्षा मैंने 27 दिसम्बर 2013 में ली। हुआ यूं कि नवंबर 2012 में शाह मस्ताना जी का जन्म दिन था, तो मैं बालगढ़ से बरनावा आश्रम में जा रहा था, उसी गाड़ी में 2 भक्त एक सरदार जी और एक उनकी भक्तमति जी (पत्नी) भी बैठे हुए थे। उनसे मैंने कहा कि मैं पिताजी को पूरा संत नहींं मानता। मुझे नहींं लगता कि गुरमीत राम रहीम जी पूरे संत हैं। उन्होंने कहा कि नहीं ये पूरे संत हैं, आप पिताजी के लिए ऐसा क्यों कह रहे हो कि वो पूरे संत नहीं हैं? मैंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि ये पूरे संत हैं, मेरी आत्मा स्वीकार नहीं कर रही, मेरे सवालों का जवाब अगर मुझे मिल जाएगा तो मुझे संतुष्टि हो जाएगी। मुझे अभी तक मेरे सवालों का जवाब यहाँ से नहीं मिला। उन्होंने कहा कि आप उन सवालों का जवाब एक पुस्तक है कबीर साहेब की अनुराग सागर, आप उस पुस्तक को पढ़िए, उसके पढ़ने से आपको उन सवालों का जवाब मिलेगा।

मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने उस पुस्तक को पढ़ा है?  वो बोले हाँ पढ़ा है। मैंने कहा क्या ज्ञान प्राप्त किया उस पुस्तक से तो बोले कि हमें सारे सवालों का जवाब मिला और हमें पता है कि गुरुमीत राम रहीम जी पूरे संत हैं। मैंने कहा कि मैं नहीं मानता। अनुराग सागर को पढा़, समझा और गहराई तक देखा तो मेरे ज्ञान योग को परमात्मा ने खोला और मैंने देखा कि जिस संत को यही नहीं पता कि कबीर साहेब कौन है तो वो पूरा संत हो ही नहीं सकता। जिस संत को कबीर साहेब का ही ज्ञान नहीं तो वो पूरा हो ही नहीं सकता किसी भी कीमत पर। तो फिर मैंने पूरी पृथ्वी पर नजर फैला कर देखा क्योंकि पहले मैं सभी संतों का TV पर जो प्रोग्राम आता था वो भी देखता था और पुस्तकें भी पढ़ता था। मुझे लगा कि कोई भी संत पूरा नहींं है। सभी सुनी सुनाई बातें और कबीर साहेब और नानक जी के ज्ञान को चोरी करके आगे अपना ज्ञान प्रचार कर रहे हैं। अनुराग सागर को पढ़ने के बाद मैं रोने लगा धर्मदास की तरह ही, मैं पूरे दिन रोता रहता था कि हे कबीर साहेब आप कहाँ हैं। आपको मैं कैसे ढूंढू, पृथ्वी पर आप कहाँ हैं? अगर मेरा ये जन्म चला गया तो मैं चौरासी लाख योनियों में चला जाऊंगा। जिस संत को मैंने पूरा सतगुरु मान रखा था वो संत भी पूरा नहीं है।

आप पृथ्वी पर कहां हैं? अगर हैं तो वह जगह बताओ अगर नहींं हैं तो बताओ कि बेटा तेरा मोक्ष नहींं हो सकता और अभी तुझे इस पृथ्वी पर, इस काल के लोक में ही रहना पड़ेगा। हे परमात्मा कबीर साहेब मुझे इतना ज्ञान नहींं कि मैं आपको ढूंढ सकूं, आपने ही वो रास्ता भी दिखाना हैं। तभी कुछ दिनों बाद ही आध्यात्मिक ज्ञान गंगा, जो परमात्मा सतगुरु रामपाल जी महाराज की पुस्तक है, को लेकर कुछ भक्त आ रहे थे। वो बोले कि भक्त जी इस पुस्तक को ले लो तो मैं बोला कि इसमें क्या है तो वो बोले कि इसमें पूर्ण संत की पहचान है, कौन पूरा संत है इस पृथ्वी पर और कौन वो परमात्मा है इसकी जानकारी इस पुस्तक को पढ़ने से होगी।

मैंने उन लोगों से बहस करना शुरू कर दिया कि भाई आप भी कोई न कोई संत को उठाकर ले आए होगें, आप भी कहोगे कि हमारा संत पूरा है। राधा स्वामी वाले कहते हैं कि हमारा पूरा है। धन धन सतगुरु वाले कहते हैं कि हमारा पूरा है, निरंकारी वाले कहते हैं कि हमारा पूरा है, पर मुझे तो कोई पूरा संत इस पृथ्वी पर नजर नहींं आ रहा है। लस्सी को कोई खट्टी नहींं बताता है, तुम भी कहोगे कि हमारा संत पूरा है लेकिन मुझे तो लगता है इस पृथ्वी पर पूरा संत है ही नहींं। उन्होंने सोचा यह तो कोई ऐसा ही है जो बहस कर रहा है, वो चले गए। इतने में ही मेरे मन में ख्याल आया कि ₹10 की ही तो पुस्तक थी ये, ले लेता तो अच्छा रहता, क्या पता परमात्मा कबीर साहेब मुझे किस पुस्तक के माध्यम से क्या रास्ता दिखाना चाहते हों। लेकिन इतने में ही वह काफी आगे निकल चुके थे तभी 2 बहनें मेरे पास आईं, बोली कि भाई साहब यह पुस्तक ले लो मैंने उनसे भी वही सवाल किए लेकिन उन्होंने कहते कहते मेरे हाथ में पुस्तक थमा दी फिर जैसे ही मैंने पहले पेज को खोल कर देखा तो कबीर साहेब का और सतगुरु रामपाल जी महाराज का स्वरूप मैंने जैसे ही देखा तो मुझे बहुत खुशी हुई।

मुझे कबीर साहेब की तस्वीर देखते ही बहुत खुशी हुई क्योंकि उनके लिए तो मैं तड़प रहा था। लेकिन जैसे ही मेरी संत रामपाल जी महाराज पर नजर गई तो मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसे ही कोई कबीर साहेब के नीचे फोटो खिंचवाने से कोई कबीर थोड़े ही बन जाएगा। कबीर साहिब तो कबीर साहिब ही हैं और रहेंगे। लेकिन मैं नहींं जानता था कि यह संत रामपाल जी कौन हैं? तभी आत्मा से जवाब आया कि हो सकता है यही कबीर साहिब हैं तू इस पुस्तक को ले और पढ़ तो सही। फिर मैंने उनसे पुस्तक ली और उस पुस्तक को पढ़ा।

जो भक्तों के अनुभव थे मुझे ऐसा लगा कि शायद उनको पैसे देकर उनसे लिखवाया और बुलवाया गया है। मैं उन भक्तों के अनुभवों को पढ़ता और फिर उनको फोन करता और पूछा कि भाई पहले तो यह बताओ कि जो आपने इस पुस्तक में लिखवाया है वह सच है कि नहींं है। वह बोलते बिल्कुल सही है मैं कहता कि आपको कुछ पैसे दिए हैं तो वह भी बता दो तो बोलते हैं कि नहींं कोई पैसे नहीं मिले। तो मैं कहता कि मैं मोक्ष करवाना चाहता हूं, पूर्ण संत की शरण में जाना चाहता हूँ, अगर आपने मुझे भ्रमित किया तो मेरी आत्मा से जो बद्दुआएं निकलेगी उसका फल आपको हजारों-हजारों जन्मों तक भोगना पड़ेगा। इतनी बद्दुआएं मेरी आत्मा से निकलेंगी ठीक है। बोले कि सब सही है और भी बहुत से भक्तों के अनुभव मैंने पढ़े और उनसे भी फ़ोन करके पूछा तो सभी का जवाब यही था। एक भक्त थे जो सोनीपत के ही थे और उनका भी उसमें लिखा हुआ था तो मैंने उनके पास फोन किया और गीता भवन चौक, सोनीपत में मेरी दुकान थी, उसका पता उनको दिया तो बोले 2-3 दिन बाद हम आपके पास आएंगे और आपको पूरी बात समझाएंगे तो वो भक्त जी आ गए। मेरी उन्होंने सारी बातें सुनी और समझाई तो मैंने अंत में यही निचोड़ निकाला कि भाई ठीक है अगर सच्चा सतगुरु होगा तो मुझे अपना बना लेगा, अगर नकली होगा तो मेरी शर्म उतर चुकी है, मेरा तो धंधा है मैं तो कभी माता को पूजता हूँ, कभी गुरुमीत राम रहीम सिंह का भक्त बनता हूँ।

संत रामपाल जी महाराज में हिम्मत होगी तो मुझे अपना बना लेंगे और अगर हिम्मत नहीं होगी तो मैं इनको भी छोड़कर किसी ओर की शरण में चला जाऊंगा लेकिन मैं जाऊंगा जरूर। मैं नहीं जानता कि संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत हैं या नहीं। जैसे ही मैं आश्रम में गया तो आश्रम में सतगुरु रामपाल जी महाराज को उस दिन परमेश्वर कबीर साहेब पर सत्संग सुनाते हुए सुना कि "कबीर इज गॉड"। हजारों प्रमाण सतगुरु रामपाल जी महाराज ने दिखाए कि कबीर इज गॉड, कबीर इज गॉड और ये सुनते हुए मैं इतना जोर-जोर से रोने लगा कि यही संत पूरा हो सकता है जो कबीर साहेब को परमात्मा और सतगुरु रूप में बार-बार स्पष्ट कर रहा है। हमारे वेदों से, कुरान शरीफ से, बाईबल से और गुरुग्रंथ साहिब से और गुरु नानक की वाणी से। गुरु नानक को मैं विशेष श्रद्धा और मान-सम्मान अपनी आत्मा में दिया करता था। जब नानक साहिब की वाणी से भी साबित करके दिखाया कि कबीर इज गॉड तब मुझे लगा कि बिल्कुल यही संत पूरा हो सकता है।

संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आने के बाद या जिस दिन मैंने नामदीक्षा ली, मेरे से कभी कोई पैसा नहींं लिया गया। ये तो मीडिया वालों का बनाया गया प्रोपेगैंडा है जोकि उछाल रहे बात को, बदनाम कर रहे हैं कि संत रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेने के लिए 10,000 लिए जाते हैं, 20,000 लिए जाते हैं। जबकि यहाँ बिल्कुल किसी प्रकार का पैसा भी नहीं लिया जाता, खाना-पीना, नाश्ता, रहना सब चीजें, सब सुविधाएं फ्री में दी जाती हैं, कहीं कोई पैसा नहीं लिया जाता।


नाम दीक्षा लेने के बाद जिंदगी में आए बदलाव


परमात्मा सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेने के बाद मुझे बहुत सारे लाभ हुए। 12 साल गुरुमीत राम रहीम की शरण में रहने से भी मुझे वो लाभ नहीं मिले जो केवल 12 दिन संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आने के बाद मुझे शारीरिक लाभ मिले। पहले मैं दवाइयां भी खाता था लेकिन मुझे कोई लाभ नहींं मिला। पता नहींं कितनी ही दवाइयां, कितने ही डॉक्टरों को मैंने बदल कर देखा लेकिन मुझे कोई फायदा नहींं हुआ, लाभ नहीं मिला। संत रामपाल जी महाराज की जैसे ही मैं शरण में आया, नामदीक्षा मैंने ली और नाम जाप करना शुरू किया तभी उसी दिन से ही मैंने दवाईयां लेना बंद कर दिया और 12 दिन में ही मेरी सब बीमारियां, वो सब चमत्कार मुझे दिखे कि बगैर दवाई लिए ही मेरे सारे शरीर के कष्ट दूर हो गए।

  

जब 2 महीने नाम लिए हो गए तो मेरी भक्तमति बोली कि पहले आप संतुष्टि कर लो फिर मैं नाम ले लूंगी। 2 महीने बाद मैंने मेरी पत्नी को नाम दिलाया। पिछले 4-5 साल से उसे हैपेटाइटिस B पॉजिटिव की समस्या थी। अन्य भक्तों को देखा सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से प्रार्थना करते हुए तो वो बोली कि मैं भी प्रार्थना करूंगी, गुरुजी से कहूंगी कि गुरुजी मुझे हैपेटाइटिस की बीमारी है ठीक करो परमात्मा। तो मैंने कहा कि आप कहो चाहे ना कहो गुरुजी को सब पता है, वो तो जानी जान हैं, वो अपने आप सब ठीक कर देंगे, तो मेरी पत्नी कहने लगी कि नहीं मैं भी प्रार्थना करूंगी। मैंने कहा कि ठीक है तुम भी प्रार्थना कर लेना।

फिर अगले ही महीने वो दोबारा आयी तो उसने प्रार्थना की कि गुरुजी मुझे हैपेटाइटिस B पॉजिटिव की बीमारी है तो गुरु जी संत रामपाल जी महाराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि कोई बात नहींं बेटा सब ठीक हो जाएगा। तो उसने घर आकर मुझे बताया कि गुरुजी ने कहा है कि बेटा सब ठीक हो जाएगा तो मैंने कहा कि गुरुजी ने बोल दिया है कि ठीक हो जाएगा तो समझ ले कि तेरा रोग ठीक हो गया। अब तू हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव नहीं रहेगी। बोली कि मैं तो जब ठीक हो जाऊंगी तभी मानूँगी। मुझे तो विश्वास था सद्गुरु रामपाल जी महाराज पर कि ये स्वयं परमात्मा हैं, इन्होंने बोल दिया है और कबीर साहेब ने भी कहा है कि

 "संत वचन पलटे नहीं, पलट जावै ब्रह्मण्ड" 

तो मैंने उसकी संतुष्टि के लिए 15-20 दिन बाद उसी लैब से टेस्ट करवाया जहां से हम पिछले 5 सालों से कराते आ रहे थे। टेस्ट में पाया कि हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव आपको नहींं है। मैंने वह रिपोर्ट अपनी पत्नी को दिखाई कि देखो अब तक आपका पॉजिटिव आता था और अब यह नेगेटिव है तो बोली कि हां यह तो वाकई चमत्कार हो गया गुरु जी के आशीर्वाद से ठीक हो गया। मैंने कहा अब तो विश्वास है तो बोली हां। फिर भी मैंने 10 दिन बाद दोबारा दूसरी लैब से टेस्ट करवाया ताकि उसकी संतुष्टि पूरी कर सकूं मुझे तो संतुष्टि है, विश्वास है संत रामपाल जी महाराज जी पर फिर भी एक टेस्ट और करवा लेता हूँ तो मैंने दोबारा दूसरी जगह से टेस्ट करवाया तो वहां भी हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव नहींं था, नेगेटिव ही था तो उसे यह देख कर बहुत खुशी हुई और तब से आज तक 4 साल हो गए हैं वो पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भक्ति कर रही है।

मेरे परिवार में सभी ने नाम लिया है। मेरी माताजी को भी गठिया बाय की समस्या थी। वो बैठी रहती थी चारपाई पर, चल फिर नहीं पा रही थी पिछले 10 साल से। मुझे तड़प हुई कि माता जी को भी नाम दिलाते हैं इसकी बीमारी भी ठीक हो जाएगी और इसका भी मोक्ष होगा। इसकी आयु भी हो चुकी है 60-65 साल के करीब अगर ये नाम नहींं लेगी तो ये 84 लाख योनियों में जाएगी तो मैंने अपनी माता जी को नाम दिलाया और गुरु जी से आशीर्वाद दिलाया तो मेरी माता जी को भी अभी 80% से ज्यादा आराम है।


नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव

जो हम भक्ति कर रहे हैं संत रामपाल जी महाराज जी की बताई हुई उसको अंधभक्ति नहीं कहेंगे। अंधभक्ति उसे कहते हैं जो कि देखा-देखी शिष्य बन जाते हैं, दूसरों की देखा-देखी गुरु धारण करते हैं। अंधभक्ति वो थी जब मैंने गुरमीत राम रहीम से दीक्षा प्राप्त की। वहां मैंने बगैर किसी चीज को जाने, बगैर किसी ज्ञान को खोजे, बगैर प्रमाणों के मैंने उनको गुरु बनाया था। लेकिन संत रामपाल जी महाराज को मैंने गुरु बनाया है तो पूरी छान-बीन करके, पूरे प्रमाणों को मिला करके, गुरु ग्रंथ साहिब को, गुरु नानक देव की जो वाणी है उससे मिलाया और सभी वेदों से, कुरान शरीफ से, गीता जी से, बाइबल से सारे प्रमाणों को जब मैंने देखा तो सभी का फोकस कबीर साहेब पर जाता है।

सभी प्रमाणित करते हैं कि कबीर इज गॉड और संत रामपाल जी महाराज भी एक नहींं, दो नहींं, हजारों प्रमाणों से सिद्ध करते हैं कि कबीर इज गॉड और ये मन्त्र हैं जिनसे आपका मोक्ष होगा। नानक साहेब की वाणी से, सभी से उन्होंने प्रमाणित किया कि ये वो मन्त्र है जिनसे मोक्ष होगा, तो मैंने ऐसे ही विश्वास नहींं कर लिया संत रामपाल जी महाराज पर। पहले जब मैंने संत रामपाल जी महाराज के सत्संग को सुना तो मुझे लगा कि वाकई ये सच्चे संत है। जब धीरे-धीरे 1 महीने और मैंने उनके सत्संगों को सुना तो लगा कि ये गुरु नहीं, गुरुओं का बाप है तो फिर मैं सत्संग सुनता रहा, देखता रहा तो मुझे लगा कि ये गुरुओं का बाप नहीं ये तो बापों का भी बाप है, ये सारी सृष्टि का पिता है और यही कबीर साहिब है और मुझे मेरा कबीर साहिब मिल गया, मुझे मेरा परमेश्वर मिल गया। अब मैं बिल्कुल निश्चिंत हूँ, बेफिक्र हूँ, मुझे कोई चिंता नहीं, आज जो मुझे संत मिला है यही मेरा पिता है, भगवान है, यही परमेश्वर है, यही पूरा संत है।


मेरा समाज को संदेश

सभी मनुष्य जाति, चाहे वो हरियाणा, पंजाब से, भारत से या फिर विश्व से, जो मनुष्यधारी प्राणी है उनसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि अगर पूर्ण संत इस पृथ्वी पर कोई है तो वो संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। इनके अलावा पूर्ण संत इस पृथ्वी पर नहीं है। आज तक कबीर साहेब के ज्ञान को लेकर ही नानक साहेब ने ज्ञान दिया है और अन्य भी जितने भी धर्म-पंथ हैं सभी में कबीर साहेब की वाणियां ही कही और बोली जाती हैं, उन्हीं का ज्ञान दिया जाता है। कबीर साहेब ही स्वयं सतगुरु रूप में आते हैं और आज की तारीख में सतगुरु रामपाल जी महाराज जी के चोले में स्वयं कबीर साहेब आये हुए हैं, आओ सभी इनसे नामदीक्षा लो, अपना मोक्ष कराओ, कल्याण कराओ और जीते जी अपने घर में सुख-शांति, शरीर का सुख प्राप्त करें और अपने सभी दुःखों का निवारण करायें। 

सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेने के लिए बहुत से TV चैंनलों पर जो उनके सत्संग दिखाये जा रहे हैं, उनमें नीचे एक लाइन चलती है। उसमें नम्बर दिए जाते हैं। उन नम्बरों पर बात करके आप उनका पता ले सकते हैं। आज हर जिले में नामदान केंद्र खुले हुए हैं और आप अपने नजदीकी नामदान केंद्र पर जाकर दीक्षा ले सकते हैं।

 

सारांश


"सतभक्ति से लाभ-Benefits by True Worship" प्रोग्राम में बताया गया कि "संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लोगों को लाभ हो रहे हैं" पूर्णतः सत्य हैं। जिसका आप चाहें तो निरीक्षण भी कर सकते हैं। आज संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयायी हैं और ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद बहुत सारे लाभ मिले हैं। 

संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई भक्ति से कैंसर, एड्स व अन्य लाइलाज बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। क्योंकि धर्मग्रंथ ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5, सूक्त 162 मंत्र 5 और सूक्त 163 मंत्र 1-3 में प्रमाण है कि हर बीमारी का इलाज सतभक्ति से ही संभव है, साथ ही वह परमात्मा अपने साधक की अकाल मृत्यु तक टाल सकता है और उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान करता है तथा उस परमात्मा की सतभक्ति से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान पवित्र वेद, पवित्र शास्त्रों के अनुसार है और पवित्र गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत के बारे में जिक्र आया है वह तत्वदर्शी संत कोई ओर नहीं संत रामपाल जी महाराज ही हैं। तो देर ना करते हुए आप भी संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान समझे और उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग प्राप्त करें और 84 लाख योनियों के जन्म मरण से छुटकारा पाएं।

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