सतगुरू के बिना जीव का कल्याण संभव नहीं | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

जानिए आखिर क्यों सतगुरू के बिना जीव का कल्याण संभव नहीं! | संत रामपाल जी महाराज


सतगुरू के बिना जीव का कल्याण संभव नहीं



वाणी नं. 123.125 :-

गरीब, अधरि सिंहासन गगनि में, बौहरंगी बरियाम। जाका नाम कबीर है, सारे सब के काम।।123।।
गरीब,पड़ाधनीसे काम है,प्रहलाद भगतिकूंबूझि। नरसिंहउतर्याअर्शसैं,किन्हैंनसमझीगूझि।।124।।
गरीब, नर मगेश आकार होय, कीन्ही संत सहाय। बालक वेदन जगतगुरु, जानत है सब माय।। 125।।


सरलार्थ :- परमात्मा कबीर जी का (अधर) ऊपर सतलोक में सिंहासन है। वह सब भक्तों के कार्य सिद्ध करता है।

प्रहलाद भक्त को धणी (परमात्मा) से काम पड़ा तो परमात्मा ने उसका कार्य सिद्ध किया। प्रहलाद भक्त से पता करो कि कैसी अनहोनी परमात्मा ने की थी। परमात्मा समर्थ कबीर (अर्श) आकाश से उतरा था। हिरण्यकशिपु को मारा था। (नर) मानव (मृगेश) सिंह रूप बनाकर संत प्रहलाद की सहायता की थी। जैसे बच्चा भूखा-प्यासा होता है तो उसकी (बेदन) पीड़ा (कष्ट) को माता जानती है। दूध-जल पिलाती है। ऐसे जगतगुरू अपने शिष्य के कष्ट को जानता है। अपने आप कष्ट निवारण कर देता है।


वाणी नं. 126.133 :-

गरीब, इस मौले के मुल्क में, दोनौं दीन हमार। एक बामे एक दाहिनै, बीच बसै करतार।।126।।

परमात्मा के सब जीव हैं। दोनों धर्म (हिन्दू तथा मुसलमान) हमारे हैं। एक परमात्मा के दायीं ओर जानो, दूसरा बायीं ओर। दोनों के मध्य में परमात्मा निवास करता है।

गरीब, करता आप कबीर है, अबिनाशी बड़ अल्लाह। राम रहीम करीम है, कीजो सुरति निगाह।।127।।

कबीर जी स्वयं ही सृष्टि के रचयिता हैं। अविनाशी (बड़) बड़ा (अल्लाह) परमात्मा हैं। राम कहो, रहीम कहो। (करीम) दयालु हैं। (किजो सुरति निगाह) ध्यान से देखो यानि विचार करो।


गरीब, नर रूप साहिब धनी, बसै सकल कै मांहि। अनंत कोटि ब्रह्मंड में, देखौ सबहीं ठांहि।।128।।
गरीब, घट मठ महतत्त्व में बसै, अचरा चर ल्यौलीन। च्यारि खानि में खेलता, औह अलह बेदीन।।129।।


परमात्मा (नर) मानव रूप में हैं। सबका (धनी) मालिक सर्वव्यापक है। 


गरीब, कौन गडै कौन फूकिये, च्यार्यौं दाग दगंत। औह इन में आया नहीं, पूरण ब्रह्म बसंत।।130।।


कोई तो मुर्दे को पृथ्वी में गाड़ देता है। कब्र बनाता है। कोई अग्नि में जला देता है। यह सब मुझे (कबीर परमेश्वर जी को) अच्छा नहीं लगता। पूर्ण मुक्ति प्राप्त करो। वह तो (परमात्मा) चारों दागों में नहीं आता। एक जमीन में गाड़ते हैं। एक धर्म अग्नि में जला देता है। एक जल प्रवाह कर देता है। एक जंगल में पक्षियों के खाने के लिए डाल देता है। ये चार दाग कहे जाते हैं। परंतु परमात्मा कबीर जी किसी दाग में नहीं आया अर्थात अजर-अमर है कबीर जी।


गरीब, मात पिता जाकै नहीं, नहीं जन्म प्रमाण। योह तो पूरण ब्रह्म है, करता हंस अमान।।131।।

परमात्मा के कोई माता-पिता नहीं हैं। उनके जन्म का कहीं पर प्रमाण नहीं है। कबीर परमात्मा पूर्ण ब्रह्म भक्तों को (अमान) शांति प्रदान करता है।


गरीब, आतम और प्रमात्मा, एकै नूर जहूर। बिच कर झ्यांई कर्म की, तातैं कहिये दूर।।132।।

आत्मा तथा परमात्मा की एक जैसी छवि है। बीच में पाप कर्मों का (झांई) मैल है। इसलिए परमात्मा जीव से दूर कहा जाता है।


गरीब, परमात्म पूरण ब्रह्म है, आत्म जीव धर्म। कल्प रूप कलि में पड्या, जासैं लागे कर्म।।133।।

परमात्मा तो पूर्ण ब्रह्म बताया है। आत्मा जीव धर्म से जन्मती-मरती है। इसलिए जीव धर्म में है।

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3 Comments

  1. बहुत ही जबरदस्त ब्लाग है सबके मालिक कबीर साहेब जी ही हैं।

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  2. विश्व के एकमात्र तत्वदर्शी संत संतरामपालजी महाराज हैं।

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