Shri Krishna Ji को भी कर्मो का फल भोगना पढ़ा | दुर्वाषा ऋषि की कथा | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

जानिए आखिर क्यों Shri Krishna Ji को भी कर्मो का फल भोगना पढ़ा दुर्वाषा ऋषि की कथा के साथ Spiritual Leader Saint Rampal Ji के माध्यम से.


पिछले जन्मों के किए कर्मों की मार से जब स्वयं श्री कृष्ण नहीं बच सके तो आप कैसे बचोगे!

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पारख के अंग की वाणी नं. 145 :-

गरीब, कष्ण गोपिका भोगि करि, फेरि जती कहलाय। याकी गति पाई नहीं, ऐसे त्रिभुवनराय।। 145।।

सरलार्थ :- श्री कृष्ण के विषय में श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) में प्रमाण है कि श्री कृष्ण मथुरा वृंदावन की गोपियों (गोपों की स्त्रियों) के साथ संभोग किया करते थे। वे फिर भी जती कहलाए। (अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य की स्त्री से कभी संभोग न करने वाला या पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी को जती कहते हैं।) उसका भेद ही नहीं पाया। ऐसे ये तीन लोक के मालिक {श्री कृष्ण के अंदर प्रवेश करके काल ब्रह्म गोपियों से सैक्स करता था। स्त्रियों को तो श्री कृष्ण नजर आता था। काल ब्रह्म सब कार्य गुप्त करता है।} हैं।


वाणी नं. 142.144:-

गरीब, योह बीजक बिस्तार है, मन की झाल किलोल। पुत्रा ब्रह्मा देखि करि, हो गये डामांडोल।।142।।
गरीब, देह तजी दुनियां तजी, शिब शिर मारी थाप। ऐसे ब्रह्मा पिता कै, काम लगाया पाप।।143।।
गरीब, फेरि कल्प करुणा करी, ब्रह्मा पिता सुभान। स्वर्ग समूल जिहांन में, योह मन है शैतान।।144।।


सरलार्थ :- एक समय ब्रह्मा जी देवताओं तथा ऋषियों को वेद ज्ञान समझा रहे थे मन तथा इंद्रियों पर संयम रखने पर जोर दे रहे थे। ब्रह्मा जी की बेटी सरस्वती पति चुनने के लिए अपने पिता की सभा में गई जिसमें युवा देवता तथा ऋषि विराजमान थे। उनको आकर्षित करने के लिए सब श्रृंगार करके सज-धजकर गई थी। अपनी पुत्रा की सुंदरता देखकर काम के वश होकर संयम खोकर विवेक का नाश करके अपनी बेटी से संभोग ने को उतारू हो गया था। ब्रह्मा पाप के भागी बने। मन तो कबीर परमात्मा की भक्ति तथा तत्त्वज्ञान से काबू आता है।


वाणी नं. 146:-

गरीब, बाण लगाया बालिया, प्रभास क्षेत्र कै मांहि। सुक्ष्म देही स्वर्गहिं गये, यहां कुछ बिछर्या नाहिं।।146।।

सरलार्थ :- श्री कृष्ण जी के पैर में बालिया नामक शिकारी ने तीर मारा। श्री कृष्ण जी की मृत्यु हो गई, परंतु सूक्ष्म शरीर सहित स्वर्ग चला गया।(146)



दुर्वाषा ऋषि की कथा-Rishi Durvasa Story [Hindi]


वाणी नं. 147.149:-

गरीब, दुर्बासा कोपे तहां, समझ न आई नीच। छप्पन कोटि जादौं कटे, मची रुधिर की कीच।।147।।
गरीब, गूदड़ गर्भ बनाय करि, कीन्हीं बहुत मजाक। डरिये सांई संत सैं, सुखदे बोलै साख।।148।।
गरीब, दश हजार पुत्र कटे, गोपी काब्यौं लूटि। गनिका चढी बिवान में, भाव भक्ति सें छूटि।।149।।


सरलार्थ :- एक समय दुर्वासा ऋषि द्वारिका नगरी के पास वन में आकर ठहरा। धूना अग्नि लगाकर तपस्या करने लगा। दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू थे। {ऋषि संदीपनी श्री कृष्ण के अक्षर ज्ञान करवाने वाले शिक्षक (गुरू) थे।} दुर्वासा जी की ख्याति चारों ओर द्वारका नगरी में फैल गई कि ऐसे पहुँचे हुए ऋषि हैं। भूत, भविष्य तथा वर्तमान की सब जानते हैं। द्वारिका के निवासी श्री कृष्ण से अधिक किसी भी ऋषि व देव को नहीं मानते थे। उनको अभिमान था कि हमारे साथ श्री कृष्ण हैं। कोई भी देव, ऋषि व साधु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान मान रखा था।


दुर्वाषा ऋषि की परीक्षा

द्वारिका के नौजवानों को शरारत सूझी। आपस में विचार किया कि साधु लोग ढोंगी होते हैं। इनकी पोल खोलनी चाहिए। चलो दुर्वासा ऋषि की परीक्षा लेते हैं। श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्यूमन ने गर्भवती स्त्रा का स्वांग धारण किया। पेट के ऊपर छोटा कड़ाहा बाँधा। उसके ऊपर रूई-लोगड़ रखकर वस्त्र बाँधकर स्त्री के कपड़े पहना दिए। उसका एक पति बना लिया। सात-आठ नौजवान यादव उनके साथ दुर्वासा के डेरे में गए और प्रणाम करके निवेदन किया कि ऋषि जी आपका बहुत नाम सुना है कि आप भूत-भविष्य तथा वर्तमान की जानते हैं। ये पति-पत्नी हैं। इनके विवाह के बारह वर्ष बाद परमात्मा ने संतान की आशा पूरी की है।


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ये यह जानना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का होगा या लड़की। ये यह जानने के लिए उतावले हो रहे हैं। कृपया बताने का कष्ट करें। दुर्वासा ऋषि ने ध्यान लगाकर देखा तो सब समझ में आ गया। क्रोध में भरकर बोला, बताऊँ क्या होगा? सबने एक स्वर में कहा कि हाँ! ऋषि जी बताओ। दुर्वासा बोला कि इस गर्भ से यादव कुल का नाश होगा। चले जाओ यहाँ से। सब भाग लिए। गाँव में बुद्धिमान बुजुर्गों को पता चला कि बच्चों ने ऋषि दुर्वासा के साथ मजाक कर दिया।


दुर्वाषा ऋषि का श्राप 


ऋषि ने यादव कुल का नाश होने का शॉप दे दिया है। जुल्म हो गया। सब मरेंगे। अब क्या उपाय किया जाए? सब मिलकर अपने गुरू तथा राजा श्री कृष्ण जी के पास गए तथा सब हाल कह सुनाया। श्री कृष्ण जी से कहा कि इस कहर से आप ही बचा सकते हो। श्री कृष्ण जी ने कहा कि उन सब बच्चों को साथ लेकर ऋषि दुर्वासा के पास जाओ। इनसे क्षमा मँगवाओ। तुम भी बच्चों की ओर से क्षमा माँगो। सब मिलकर ऋषि दुर्वासा के पास गए तथा बच्चों से गलती की क्षमा याचना करवाई। स्वयं भी क्षमा याचना की। ऋषि दुर्वासा बोले कि वचन वापिस नहीं हो सकता। सब वापिस श्री कृष्ण के पास आए तथा कहा कि दुर्वासा के शॉप से बचने का उपाय बताएँ। श्री कृष्ण ने कहा कि जो-जो वस्तु गर्भ स्वांग में प्रयोग की थी। उनका नामों-निशान मिटा दो।


उन्हीं से अपने कुल का नाश होना कहा है। कपड़े-रूई-लोगड़ को जलाकर उनकी राख को प्रभास क्षेत्र में नदी में डाल दो। जो लोहे की कड़ाही है, उसे पत्थर पर घिसा-घिसाकर चूरा बनाकर प्रभास क्षेत्र में दरिया में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। द्वारिकावासियों ने अपने गुरू श्री कृष्ण जी के आदेश का पालन किया। लोहे की कड़ाही का एक कड़ा एक व्यक्ति को घिसाने के लिए दिया था। उसने कुछ घिसाया, पूरा नहीं घिसा। वैसे ही दरिया में फैंक दिया।


घिसने से उस कड़े में चमक आ गई थी। एक मछली ने उसे खाने की वस्तु समझकर खा लिया। उस मछली को एक बालिया नाम के भील ने पकड़कर काटा तो कड़ा निकला। उसका लोहा पक्का था। बालिया ने उससे अपने तीर का आगे वाला हिस्सा विषाक्त बनवा लिया। कड़ाहे का जो लोहे का चूर्ण दरिया में डाला था, उसका तेज-तीखे पत्तों वाला घास उग गया। पत्ते तलवार की तरह पैने थे। कपड़ों तथा रूई-लोगड़ (पुरानी रूई) की राख का भी घास उग गया।

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