आज Mukti Bodh-मुक्ति बोध के पारख के अंग की वाणीओ के माध्यम से जानिए शास्त्रविरूद्ध साधना करना व्यर्थ की साधना है | संत रामपाल जी महाराज
Mukti Bodh-मुक्ति बोध के पारख के अंग की वाणीयां
शास्त्रविरूद्ध साधना करना व्यर्थ है
गरीब, च्यार बर्ण षट आश्रम, बिडरे दोनौं दीन। मुक्ति खेत कूं छाडि़ करि, मघर भये ल्यौलीन।।67।।
गरीब, नौलख बोडी बिसतरी, बटक बीज बिस्तार। केशो कल्प कबीर की, दूजा नहीं गंवार।।68।।
गरीब, मगहर मोती बरषहीं, बनारस कुछ भ्रान्त। कांसी पीतल क्या करै, जहां बरसै पारस स्वांति।।69।।
गरीब, मगहर मेला पूर्ण ब्रह्मस्यौं, बनारस बन भील। ज्ञानी ध्यानी संग चले, निंद्या करैं कुचील।।70।।
गरीब, मुक्ति खेत कूं तजि गये, मघहर में दीदार। जुलहा कबीर मुक्ति हुआ, ऊंचा कुल धिक्कार।।71।।
गरीब, च्यार बर्ण षट आश्रम, कल्प करी दिल मांहि। काशी तजि मघहर गये, ते नर मुक्ति न पांहि।।72।।
गरीब, भूमि भरोसै बूडि़ है, कलपत हैं दहूं दीन। सब का सतगुरु कुल धनी, मघहर भये ल्यौलीन।।73।।
गरीब, काशी मरै सौ भूत होय, मघहर मरै सो प्रेत। ऊंची भूमि कबीरकी, पौढैं आसन श्वेत।।74।।
गरीब, काशी पुरी कसूर क्या, मघहर मुक्ति क्यौं होय। जुलहा शब्द अतीत थे, जाति बर्ण नहीं कोय।।75।।
गरीब, काशी पुरी कसूर योह, मुक्ति होत सब जाति। काशी तजि मघहर गये, लगी मुक्ति शिर लात।।76।।
सरलार्थ :- जो कहते हैं कि काशी में मरने वाले मुक्ति प्राप्त करते हैं और मगहर में मरने वाले नरक जाते हैं, यह गलत है। सबका मालिक कुल धनी यानि पूर्ण परमात्मा कबीर जी मगहर से सतलोक गए। भूमि के कारण मुक्ति की इच्छा के (भरोसे) विश्वास पर जीवन नष्ट कर जाते हैं।
पारख के अंग की वाणी नं. 77.84
गरीब, मुक्ति खेत मथुरा पुरी, कीन्हां कष्ण किलोल। कंश केशि चानौरसे, वहां फिरते डामांडोल।।77।।
गरीब, जगन्नाथ जगदीश कै, उर्ध्व मुखी है ग्यास। मसक बंधी मन्दिर पड़ी, झूठी सकल उपास।78।।
गरीब, एकादशी अजोग है, एकादश दर है सार। द्वादश दर मध्य मिलाप है, साहिब का दीदार।।79।।
गरीब, माह महातम न्हात हैं, ब्रह्म महूरत मांहि। काशी गया प्रयाग मध्य, सतगुरु शरणा नांहि।।80।।
गरीब, कोटि जतन जीव करत हैं, दुबिध्या द्वी न जाय। साहिब का शरणा नहीं, चालैं अपनै भाय।।81।।
सरलार्थ:- जो कहते हैं कि मथुरा-वृंदावन में जाने से मुक्ति होती है। वे सुनो! उसी मथुरा में जहाँ श्री कृष्ण लीला किया करते थे। आप उस स्थान पर जाने मात्रा से मोक्ष मानते हो। उसी मथुरा में कंस, केसी (राक्षस) तथा चाणूर (पहलवान) भी रहते थे जो श्री कृष्ण ने ही मारे थे। इसलिए सत्य साधना करो और जीव कल्याण कराओ जो यथार्थ मार्ग है। कोई जगन्नाथ के दर्शन करके और एकादशी का व्रत करके मोक्ष मानता है, यह गलत है। शास्त्र विरूद्ध है। कोई काशी नगर में, कोई गया नगर में जाने से मोक्ष कहते हैं। वे भूल में हैं। यदि पूर्ण सतगुरू की शरण नहीं मिली है तो मोक्ष बिल्कुल नहीं होगा। जब तक तत्त्वदर्शी सतगुरू नहीं मिलेगा, शंका समाप्त नहीं होगी। सब अपने स्वभाववश भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं जो व्यर्थ है।
गरीब, जीव जिवांसे ज्यौं जल्या, जलकै मांही सूक। सतगुरु पुरुष कबीर से, रहे अनंत जुग कूक।।82।।
गरीब, जीव जिवांसे ज्यौं जल्या, जलसैं मान्या दोष। सकल अविद्या विष भर्या, अगनि परै तब पोष।।83।।
एक जंवासे का पौधा है। वह बारिश के दिनों में यानि जल से सूख जाता है। सब पौधे जल से हरे-भरे होते हैं, परंतु जंवासा का पौधा जल से नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार कर्महीन व्यक्ति सत्यज्ञान सुनकर जल मरते हैं। झगड़ा करते हैं। बिल्कुल नहीं मानते। अन्य पुण्यात्माएँ सत्य ज्ञान सुनकर गदगद होते हैं। कल्याण करवा लेते हैं।(82,83)
गीता अध्याय 9 श्लोक 25 वाला प्रकरण है। जिसमें कहा है कि
यान्ति देवव्रताः देवान् पितृन् यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्याः यान्ति मद्याजिनः अपि माम्।।
अर्थात् (देवव्रताः) देवताओं को पूजने वाले (देवान्) देवताओं को (यान्ति) प्राप्त होते हैं। (पितृव्रताः) पित्तरों को पूजने वाले (पितृन्) पित्तरों को (यान्ति) प्राप्त होते हैं। (भूतेज्याः) भूतों को पूजने वाले (भूतानि) भूतों को (यान्ति) प्राप्त होते हैं। (मत्) मेरा (याजिन्) पूजन करने वाले (अपि) भी (माम्) मुझे (यान्ति) प्राप्त करते हैं।
गरीब, राम रमे सो राम हैं, देवत रमे स देव। भूतौं रमे सो भूत हैं, सुनौं संत सुर भेव।।84।।
अर्थात् जो परमात्मा की भक्ति करते हैं। वे परमात्मा जैसे गुणों वाला अमर पद प्राप्त करते हैं अर्थात् परमात्मा कबीर जी को प्राप्त होते हैं। जो देवताओं की भक्ति करते हैं, वे देवताओं जैसे गुण वाले हो जाते हैं। जन्म-मरण सदा रहता है। स्वर्ग जाते हैं। पुण्यों को खर्च कर पुनः जन्म-मरण के चक्र में गिरते हैं। जो भूतों की पूजा करते हैं, श्राद्ध निकालते हैं, पिंडदान करते हैं, अस्थि उठाकर गंगा पर मुक्ति हेतु ले जाते हैं। तेरहवीं, महीना आदि क्रियाकर्म करते हैं, पित्तर बनते हैं और महाकष्ट उठाते हैं। फिर नरक में जाते हैं। चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों में कष्ट भोगते हैं।(84)
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