भक्त भवन मंत्री की कथा | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

आज हम आपको भवन मंत्री भक्त की रक्षा परमात्मा ने की कथा के बारे में बताएंगे | संत रामपाल जी महाराज


भक्त भवन मंत्री की रक्षा परमात्मा ने की

भक्त भवन महामंत्री था। राजा का चाचा था तथा बहुत वफादार था। राणा अपना चाचा होने के नाते तथा निष्कपट से सेवा करने के कारण भवन पर बहुत विश्वास करता था। भवन को परमात्मा पर पूर्ण विश्वास था। एक अन्य मंत्री चाहता था कि मैं महामंत्री बनूँ तो सब कमांड मेरे हाथ में आ जाए। अब महामंत्री भवन के आधीन रहना पड़ता है। वह जो कहता है, वही करना पड़ता है। मेरी नहीं चलती। राजा के सामने महामंत्री भवन की निंदा करता रहता था। परंतु राजा को विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे चाचा मेरे विरूद्ध चल सकता है या मेरे राज्य को हड़पना चाहता है। परंतु दुष्ट मंत्री को चैन नहीं था।


भक्त भवन मंत्री की कथा



काष्ठ (लकड़ी) की तलवार और लोहे की म्यान

राजा महामंत्री भवन को शिकार करने के समय या किसी अन्य शहर में जाना होता था तो सदा साथ रखता था। शिकार करने जाते थे। भवन जीव नहीं मारना चाहता था। परंतु राजा को नाराज भी नहीं करना चाहता था। इसलिए काष्ठ (लकड़ी) की तलवार बनाकर लोहे की म्यान में डाल रखी थी। बाहर से तो तलवार तेज धार वाली लगती थी। अंदर लकड़ी का टुकड़ा था। भवन शिकार के समय राजा से दूसरी ओर घोड़ा दौड़ा ले जाते थे। कोई जीव हिंसा नहीं करते थे। भवन का परमात्मा पर अटूट विश्वास था। जो भी कार्य गलत होता, तभी कहते थे कि परमात्मा जो करता है, अच्छा करता है। अच्छा हुआ, अच्छा हुआ। किसी ने मंत्री को बताया कि भवन महामंत्री ने काष्ठ की तलवार ले रखी है। कहता है कि जीव हिंसा नहीं करनी चाहिए। चापलूस मंत्री ने भवन के पीछे से उसकी तलवार देखी। वास्तव में काष्ठ की थी। एक-दो को और दिखाई। तीन-चार ने आँखों देखी। चापलूस मंत्री ने सबसे कहा कि भवन अपने भतीजे को मरवाना चाहता है। स्वयं राज्य चाहता है। भाईयो! मेरे साथ राजा के पास चलो।


मंत्री अपनी मंडली को लेकर राजा के पेश हुआ। सबने एक सुर में कहा कि राजन्! हम आँखों देखकर आए हैं। भवन आपका रक्षक नहीं है। आपको धोखा दे रहा है। काष्ठ की तलवार ले रखी है। आप स्वयं मँगाकर देखें। हम पर विश्वास ना करो। राजा ने कहा कि यदि भवन की तलवार काष्ट की मिली तो सबके सामने उसकी गर्दन काट दूँगा। राजा ने सब मंत्री तथा महामंत्रियों को आदेश दिया कि दूसरे शहर में जाना है। सब अपने अस्त्र-शस्त्र लगाकर आधे घंटे में तैयार होकर ड्योडी द्वार पर हाजिर हों। सब अपनी-अपनी तलवार व अन्य शस्त्र लेकर ड्योडी द्वार पर खड़े हो गए। राजा आए और बोले सब मंत्री-महामंत्री तथा अन्य अंगरक्षक अपनी-अपनी तलवार लेकर एक पंक्ति में खड़े हो जाएँ। ऐसे ही हो गया। राजा प्रत्येक के पास जाकर कहे कि अपनी तलवार की धार चैक कराओ।


परमात्मा कबीर जी ने किया चमत्कार

तुमने धार ठीक से बनवा रखी है कि नहीं। सबकी तलवार लोहे की थी। जब भवन का नंबर आया तो भवन को लग रहा था कि चंद मिनटों का जीवन शेष है। परमात्मा को याद कर लूँ। भवन परमात्मा का नाम जो गुरूजी से ले रखा था, जाप करने लगा। राजा ने कहा कि महामंत्री! तलवार म्यान से निकाल। भवन को नहीं पता लगा कि कब तलवार म्यान से बाहर निकली। वह तो अंतिम श्वांस ले रहा था। ज्यों ही भवन ने पूरे बेग के साथ तलवार म्यान से बाहर निकाली तो तलवार लोहे की थी। उसकी चमक आँखों को ऐसे लग रही थी जैसे आकाशीय बिजली का चमका लगा हो। देखने वाले जो आँखों देख चुके थे कि भवन की तलवार काष्ठ की थी। उनको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। इस घटना के पश्चात् भवन की आस्था परमात्मा में पूर्ण रूप से दृढ़ हो गई। परंतु दुष्ट मंत्री बाज नहीं आया।


परमात्मा के किए पर सदा विश्वास करना चाहिए। वह जो करता है भक्त के हित का सोचकर करता है।


एक दिन राजा व महामंत्री-मंत्री कहीं जाने को तैयारी में खड़े थे। राजा मंत्रियों से बातें भी कर रहा था तथा तलवार को निकालकर उसकी धार देखने लगा। बातों में व्यस्त होने के कारण राजा को ध्यान नहीं रहा। उसकी दायें हाथ की ऊँगली कटकर दूर गिर गई। राजा को जोर की पीड़ा हुई। महामंत्री बोला कि अच्छा हुआ। जो होता है, अच्छा ही होता है। परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। उस दिन राजा को लगा कि वास्तव में महामंत्री के मन में दोष है। यह मेरा अहित चाहता है। चापलूस मंत्री को मौका मिल गया। राजा के लिए वैद्य बुलाकर लाया। कहने लगा हे राजन्! देख लिया आपने सुन लिया अपने कानों से। राजा ने आदेश दिया कि महामंत्री को जेल में डाल दो। चापलूस मंत्री को महामंत्री बना दिया।




छः महीने में राजा की ऊँगली का जख्म भर गया। राजा के दायें हाथ में केवल तीन अंगुलियाँ थी। नए महामंत्री को साथ लेकर राजा शिकार करने गया। जंगल में शिकार के पीछे घोड़े दौड़ा रखे थे। राजा तथा महामंत्री दोनों सेना से दूर गहरे जंगल में चले गए। आगे कुछ जंगली व्यक्ति मिले। उन्होंने दोनों को घेर लिया तथा पकड़कर रस्सों से बाँधकर घर पर ले गए। जंगली व्यक्तियों ने देवी को नरबली चढ़ाने का संकल्प कर रखा था। पुरोहित को बताया कि दो व्यक्ति पकड़कर लाए हैं। पुरोहित ने कहा कि अच्छी बात है। दोनों की बली चढ़ा देंगे। देवी अधिक प्रसन्न होगी। परंतु जाँच करो कि इनका कोई अंग-भंग ना हो। जाँच करने पर पाया कि एक व्यक्ति की एक अंगुली नहीं है। कटी हुई है। पुरोहित बोला कि जिसकी अंगुली कटी है, उसे जाने दो। वह बली के योग्य नहीं हैं। दूसरे को तैयार करो। देखते-देखते चापलूस मंत्री का सिर काटकर पत्थर की मूर्ति पर चढ़ाकर फिर पकाकर खाने के लिए ले जाने लगे।

राजा तेजी से भागा। सीधा कारागार में गया जहाँ महामंत्री बंद था। उसे कैद मुक्त किया तथा आप बीती बताई और कहा कि आप ठीक कह रहे थे कि जो होता है, अच्छा ही होता है। यदि उस दिन मेरी अंगुली न कटी होती तो आज मेरी मौत होती। राजा ने महामंत्री से प्रश्न किया कि मेरी अंगुली कटी तो मेरी जान बची। मेरे लिए तो अच्छा हुआ। परंतु आपको छः महीने की कैद का कष्ट भोगना पड़ा। आपके लिए क्या अच्छा हुआ? महामंत्री ने कहा कि छः महीने की कैद से मेरी जान बच गई। यदि मैं कैद में ना होता तो आपके साथ जंगल में जाता। उस मंत्री की जगह मेरी बली चढ़ती। राजा ने अपनी गलती की क्षमा याचना की। उसे अपना पुनः महामंत्री बनाया।


परमात्मा की भक्ति किसी भी जाति व धर्म का स्त्री-पुरूष कर सकता है




गरीब, पीपा धनां रैदास थे, सदन कसाई कौनि। अबिगत पूरण ब्रह्म कूं, कहा करी अनहौनि।।61।।
गरीब, रंका बंका तिरगये, नामा छींपा नेह। ऊंचे कुल कूं कोसना, जहाँ भक्ति नहीं प्रवेह।।62।।


सरलार्थ :- परमात्मा की भक्ति किसी भी जाति व धर्म का स्त्री-पुरूष कर सकता है। जो ब्राह्मण लोग यह कहते थे कि शुद्र जाति वाले मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते। ग्रन्थ को हाथ नहीं लगा सकते। उनके द्वारा फैलाए भर्म का निवारण करते हुए कहा है कि नागौर शहर (राजस्थान) का राजा पीपा सिंह ठाकुर था जो भक्त बना। राजस्थान प्रदेश में भक्त धन्ना था जो जाट जाति से था, भक्त बना। भक्त रविदास चमार जाति से था जो भक्त बना। सदना कसाई का कार्य करता था। ज्ञान हुआ, भक्त बना। पाप करना त्याग दिया। भक्त रंका तथा उसकी धर्मपत्नी बंका दोनों भक्त बने जो अति निर्धन थे। जो ऊँचे कुल में जन्में हैं और परमात्मा की भक्ति नहीं करते, उस ऊँचे कुल को धिक्कार है।

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