Mukti Bodh-मुक्ति बोध: सुमरण की महिमा | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

Mukti Bodh-मुक्ति बोध में सुमरण की महिमा के बारे में पढ़ेंगे | संत रामपाल जी महाराज


हम पढ़ रहे हैं मुक्तिबोध पुस्तक पेज नंबर (71-72) 

सुमरण की महिमा

गुरू जी से दीक्षा में प्राप्त नाम का जाप करो तो उसकी सफलता तब मानना जब रोम-रोम (शरीर के बाल-बाल भगवन प्यार में) खड़े हो जाऐं। जैसे कोई अच्छी या बुरी सूचना मिलने पर रोमांच होता है। धुन (लगन से उमंग उठे) होए। स्मरण से सुरति-निरति
(ध्यान) में ऐसी कल्पना हो कि जैसे मैं आकाश में कुंजमल जो सुक्ष्म शरीर में है, उसमें बैठकर नाम जाप की माला फेर रहा हूँ यानि मेरी आध्यात्मिक (रूहानी) चढ़ाई वहाँ तक हो चुकी है।(94)



वास्तव में बंदगी (विशेष नम्रता से बार-बार झुक-झुककर जाप करने को बंदगी कहते हैं) वह है जब सुरति-निरति यानि ध्यान नाम जाप पर लगे। भावार्थ है कि नाम का जाप विशेष कसक (तड़फ) के साथ लिया जाए। जैसे हाथी ने मरते समय ररंकार भाव से
परमात्मा को याद किया था। उस भाव से रमता लखै {रमता (सर्वव्यापक) मालिक को (लखै) देखै कि परमात्मा सब जगह है} सुरति की माला (सुमरणी) बनावै (ध्यान का एक भाव नाम पर तथा तुरंत दूसरा भाव निरबान यानि वांछित मोक्ष पर) यानि निरति को मोक्ष
की ओर लगावै। जैसे नाम जपते-जपते कुछ क्षण निर्वाण यानि मोक्ष स्थान (सतलोक) की भी सुध लेवे कि वहाँ पर जाऐंगे, मौज से रहेंगे, जन्म-मरण का कष्ट नहीं, रोग-शोक नहीं, वहाँ जाऐंगे। फिर लौटकर नहीं आऐंगे। इस प्रकार निरति मिलै निरबान का भावार्थ
समझो।(95)

अष्ट कमल (आठवां कमल) की जानकारी

संहस्र कमल भी अष्ट कमल (आठवां कमल) है। यहाँ तक सर्व कमलों में काल का राज्य है। शरीर के अंदर तथा बाहर भी उसकी धुनि साज-बाज बजता है यानि काल का डंका बजता है। जो शरीर में धुन (आवाज-शब्द) सुनाई देती है। ये सब काल की धुन (शब्द, आवाज) हैं। सुन्न का भावार्थ है कि प्रत्येक कमल के आसपास सुन्न (खाली स्थान) है जो प्रत्येक की सीमा का प्रतीक है। परंतु यह काल का जाल है। इस काल लोक में परमेश्वर का भी निवास है, परंतु परमेश्वर केवल दीक्षितों का ही साथ देता है। (हद जीवों से दूर है, बेहदियों के तीर) इस प्रकार उस परमात्मा से जो जुड़े हैं, उनका साथ परमेश्वर देते हैं।(96)

साधक कहता है कि हमारे को तो सब स्थानों पर आप ही दिखाई देते हो। आप ही की शक्ति से सब धुनि आती हैं। सुन्न भी आप ही लगते हो क्योंकि आपकी शक्ति से सब बने हैं। इनमें आप से दूसर (दूसरी वस्तु) कौन है? जो आता-जाता है, वह कौन है? यानि
जन्म-मरण हमारा किसलिए है?(97)

उत्तर दिया है कि इस जन्म-मरण का मूल कारण अविद्या यानि तत्वज्ञान का अभाव है। जिस कारण से जन्म-मरण के फेर यानि चक्र को नहीं समझ सके जो कर्मों के कारण हो रहा है। सत्य भक्ति के अभाव से पाँच तत्व तथा पच्चीस प्रकृति अपने स्वभाव से कर्म कराकर जीवन नष्ट करा देती है। फिर अपने-अपने भागों में बाँट ले जाती है।(98)

सत्यनाम बिन यह शरीर रूपी नगर सूना (खाली) है। इस शरीर में इच्छाओं तथा इच्छा पूर्ण न होने की चिंता तथा अन्य दुःख-सुख का ढ़ोल बज रहा है, शोर हो रहा है। जैसे लड़का उत्पन्न हुआ तो खुशी का शोर। उस शोर में भगवान भूल गया। फिर लड़का मर
गया। फिर दुःख की रोहा-राट (हाहाकार) रूपी शोर। उस शोर में परमात्मा की भूल। इस प्रकार यह जीवन इस चूं-चूं में समाप्त हो जाता है। कभी धन इकट्ठा करने के विचारों का शोर। इस प्रकार मानव शरीर का मूल कार्य छोड़कर जीवन अंत कर दिया। लूट न लूटि बंदगी यानि राम नाम इकट्ठा नहीं किया। हे हंस, हे भोले मानव! भोर हो गया यानि मृत्यु हो गई। जैसे भोर (सुबह) नींद खुलती है, स्वपन समाप्त होता है तो स्वपन में बना राजा अपनी झौंपड़ी में खटिया पर पड़ा होता है। इसी प्रकार मानव शरीर रहते भक्ति नहीं की तो मृत्यु उपरांत पशु-पक्षी वाली योनि रूपी खटिया पर पड़ा होगा यानि पशु-पक्षी बनकर कष्ट पे कष्ट उठाएगा।(99)

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