यथार्थ भक्ति बोध-Yatharth Bhakti Bodh: संत गरीबदास जी की कथा | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj
संत गरीबदास जी की कथा
भक्ति बोध की वाणी का सरलार्थ प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ आवश्यक जानकारी कराते हैं। भक्ति बोध में अधिक वाणी सन्त गरीबदास महाराज जी की हैं। सन्त गरीबदास जी का जन्म गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर प्रांत-हरियाणा में सन् 1717 (विक्रमी संवत् 1774) में हुआ। गाँव छुड़ानी में गरीबदास महाराज जी का नानका है। ये गाँव करौंथा (जिला-रोहतक, हरियाणा) के रहने वाले धनखड़ गोत्र के थे। इनके पिता श्री बलराम जी का विवाह गाँव छुड़ानी में श्री शिवलाल सिहाग की बेटी रानी देवी से हुआ था। श्री शिवलाल जी का कोई पुत्र नहीं था। इसलिए श्री बलराम जी को घर-जमाई रख लिया था। गाँव छुड़ानी में रहते 12 वर्ष हो गए थे, तब सन्त गरीबदास महाराज जी जन्म गाँव छुड़ानी में हुआ था। श्री शिवलाल जी के पास 2500 बीघा (बड़ा बीघा जो वर्तमान के बीघा से 2.75 बड़ा होता था) जमीन थी।
जिसके वर्तमान से 1400 एकड़ जमीन बनती है। (2500 x 2.75/5 = 1410 एकड़) उस सारी जमीन के वारिस श्री बलराम जी हुए तथा उनके पश्चात् उनके इकलौते पुत्र सन्त गरीबदास जी उस सारी जमीन के वारिस हुए। उस समय पशु अधिक पाले जाते थे। लगभग 150 गऊऐं श्री बलराम जी रखते थे। उनके चराने के लिए अपने पुत्र गरीबदास जी के साथ अन्य कई चरवाहा (पाली = ग्वाले) किराए पर ले रखे थे। वे भी गऊवों को खेतों में चराने के लिए ले जाया करते थे। जिस समय सन्त गरीबदास जी 10 वर्ष की आयु के हुए, वे गायों को चराने के लिए नला नामक खेत में गए हुए थे। फाल्गुन मास को शुद्धि द्वादशी के दिन के लगभग 10 बजे परम अक्षर ब्रह्म एक जिन्दा महात्मा के वेश में मिले। कंवारी गाय का दूध पिया। जिन्दा वेशधारी परमात्मा से ग्वालों ने दूध पीने का आग्रह किया तो परमेश्वर ने कहा कि मैं कंवारी गाय का दूध पीऊँगा।
परमात्मा कबीर साहेब जी ने कुवारी गाय का दूध पीया
गरीबदास बालक ने एक बछिया जिसकी आयु डेढ़ वर्ष की थी, जिन्दा बाबा के पास लाकर खड़ी कर दी। परमात्मा ने बछिया की कमर पर आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया। बछिया के स्तन लम्बे-लम्बे हो गए। एक मिट्टी के 5 कि.ग्रा. की क्षमता के पात्र (बरोले) को बछिया के स्तनों के नीचे रखा। स्तनों से अपने आप दूध निकलने लगा। मिट्टी का पात्र भर जाने पर दूध निकलना बन्द हो गया। पहले जिन्दा बाबा ने पिया, शेष दूध को अन्य पालियों (ग्वालों) को पीने के लिए कहा तो जो बड़ी आयु के ग्वाले (सँख्या में 10-12 थे) कहने लगे कि बाबाजी कंवारी गाय का दूध तो पाप का दूध है, हम नहीं पीऐंगे, दूसरे आप न जाने किस जाति के हो, आपका झूठा दूध हम नहीं पीऐंगे, तीसरे यह दूध आपने जादू-जन्त्र करके निकाला है। हम पर जादू-जन्त्र का कुप्रभाव पड़ेगा। यह कह कर जिस जांडी के वृक्ष के नीचे बैठे थे, वहाँ से चले गये। दूर जाकर किसी वृक्ष के नीचे बैठ गए।
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तब बालक गरीबदास जी ने कहा कि हे बाबा जी! आपका झूठा दूध तो अमृत है। मुझे दीजिए। कुछ दूध बालक गरीबदास जी ने पिया। परमेश्वर जिन्दा वेशधारी ने सन्त गरीबदास जी को ज्ञानोपदेश दिया। तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद का ज्ञान) बताया। सन्त गरीबदास जी के अधिक आग्रह करने पर परमेश्वर ने उनकी आत्मा को शरीर से अलग किया और ऊपर के रुहानी मण्डलों की सैर कराई। एक ब्रह्माण्ड में बने सर्व लोकों को दिखाया, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा शिव जी से मिलाया। उसके पश्चात् ब्रह्म लोक तथा श्री देवी (दुर्गा) का लोक दिखाया। फिर दशवें द्वार (ब्रह्मरन्द्र) को पार करके ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मण्डों के अन्तिम छोर पर बने ग्यारहवें द्वार को पार करके अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्माण्डों वाले लोक में प्रवेश किया।
संत गरीबदास जी ने की सतलोक की सैर
सन्त गरीबदास जी को सर्व ब्रह्माण्ड दिखाये, अक्षर पुरुष से मिलाया। पहले उसके दो हाथ थे, परंतु परमेश्वर के निकट जाते ही अक्षर पुरुष ने दस हजार (10000) हाथों का विस्तार कर लिया जैसे मयूर (मोर) पक्षी अपने पंख (चन्दों) को फैला लेता है। अक्षर पुरुष को जब संकट का अंदेशा होता है, तब ऐसा करता है। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है क्योंकि अक्षर पुरुष अधिक से अधिक 10 हजार हाथ ही दिखा सकता है। इसके 10 हजार हाथ हैं। क्षर पुरुष के एक हजार हाथ हैं। जो गीता अध्याय 10-11 में अपना एक हजार हाथों वाला विराट रुप दिखाया।
गीता अध्याय 11 श्लोक 46 में अर्जुन ने कहा कि हे सहस्त्र बाहु (एक हजार भुजाओं वाले) अपने चतुर्भुज रुप में आइए। संत गरीबदास जी को अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्माण्डों के भेद बता व आँखों दिखाकर परमेश्वर जिन्दा बाबा बारहवें (12वें) द्वार के सामने ले गया जो अक्षर पुरुष के लोक की सीमा पर बना है। जहाँ से भंवर गुफा में प्रवेश किया जाता है। जिन्दा वेशधारी परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी को बताया कि जो दसवां द्वार (ब्रह्म रन्द्र) है, वह मैंने सत्यनाम के जाप से खोला था। जो ग्यारहवां (11वां) द्वार है, वह मैंने तत् तथा सत् (जो सांकेतिक मन्त्र है) से खोला था। अन्य किसी भी मन्त्र से उन द्वारों पर लगे ताले (Lock) नहीं खुलते। अब यह बारहवां (12वां) द्वार है, यह मैं सत् शब्द (सार नाम) से खोलूंगा.
इसके अतिरिक्त किसी नाम के जाप से यह नहीं खुल सकता। तब परमात्मा ने मन ही मन में सारनाम का जाप किया, 12वां (बारहवां) द्वार खुल गया और परमेश्वर जिन्दा रुप में तथा संत गरीबदास जी की आत्मा भंवर गुफा में प्रवेश कर गए। फिर सत्यलोक में प्रवेश करके उस श्वेत गुम्बद के सामने खड़े हो गए जिसके मध्य में सिंहासन (उर्दु में तख्त कहते हैं) के ऊपर तेजोमय श्वेत नर रुप में परम अक्षर ब्रह्म जी विराजमान थे। जिनके एक रोम (शरीर के बाल) से इतना प्रकाश निकल रहा था जो करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चाँदों (चन्द्रमाओं) के मिले-जुले प्रकाश से भी अधिक था। इससे अन्दाजा लग जाता है कि उस परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरुष) जी के सम्पूर्ण शरीर की कितनी रोशनी होगी। सत्यलोक स्वयं भी हीरे की तरह प्रकाशमान है। उस प्रकाश को जो परमेश्वर जी के पवित्र शरीर से तथा उसके अमर लोक से निकल रहा है, केवल आत्मा की आँखों से (दिव्य दृष्टि) से ही देखा जा सकता है। चर्म दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
संत गरीब जी का हुए हैरान
फिर जिन्दा बाबा अपने साथ बालक गरीबदास जी को लेकर उस सिंहासन के निकट गए तथा वहाँ रखे चंवर को उठाकर तख्त पर बैठे परमात्मा के ऊपर डुराने (चलाने) लगे। बालक गरीबदास जी ने विचार किया कि यह है परमात्मा और यह बाबा तो परमात्मा का सेवक है। उसी समय तेजोमय शरीर वाला प्रभु सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया और जिन्दा बाबा के हाथ से चंवर ले लिया और जिन्दा बाबा को सिंहासन पर बैठने का संकेत किया। जिन्दा वेशधारी प्रभु असंख्य ब्रह्माण्डों के मालिक के रुप में सिंहासन पर बैठ गए। पहले वाला प्रभु जिन्दा बाबा पर चंवर करने लगा। सन्त गरीबदास जी विचार कर ही रहे थे कि इनमें परमेश्वर कौन हो सकता है, इतने में तेजोमय शरीर वाला प्रभु जिन्दा बाबा वाले शरीर में समा गए, दोनों मिलकर एक हो गए। जिन्दा बाबा के शरीर का तेज उतना ही हो गया, जितना तेजोमय पूर्व में सिंहासन पर बैठे सत्य पुरुष जी का था। कुछ ही क्षणों में परमेश्वर बोले हे गरीबदास! मैं असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी हूँ।
मैंने ही सर्व ब्रह्माण्डों की रचना की है। सर्व आत्माओं को वचन से मैंने ही रचा है। पाँच तत्व तथा सर्व पदार्थ भी मैंने ही रचे हैं। क्षर पुरुष (ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष व उनके लोकों को भी मैंने उत्पन्न किया है। इनको इनके तप के बदले में सर्व ब्रह्माण्डों का राज्य मैंने ही प्रदान किया है। मैं 120 वर्ष तक पृथ्वी पर कबीर नाम से जुलाहे की भूमिका करके आया हूँ। भारत देश (जम्बू द्वीप) के काशी नगर (बनारस) में नीरु-नीमा नाम के पति-पत्नी थे। वे मुसलमान जुलाहा थे। वे निःसंतान थे। ज्येष्ठ शुद्धि पूर्णमासी की सुबह (ब्रह्म मुहूर्त में) लहरतारा नामक सरोवर में काशी के बाहर जंगल में मैं नवजात शिशु का रुप धारण करके कमल के फूल पर लेटा था। मैं अपने इसी स्थान से गति करके गया था। नीरु जुलाहा तथा उसकी पत्नी प्रतिदिन उसी तालाब पर स्नानार्थ जाया करते थे। उस दिन मुझे बालक रुप में प्राप्त करके अत्यन्त खुश हुए। मुझे अपने घर ले गए।
मैंने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया था। तब शिवजी एक साधु के वेश में उनके घर गए। वह सब मेरी प्रेरणा ही थी। शिव से मैंने कहा था कि मैं कंवारी गाय का दूध पीता हूँ। तब नीरु एक बछिया लाया। शिव को मैंने शक्ति प्रदान की, उन्होंने बछिया की कमर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रखा। कंवारी गाय ने दूध दिया। तब मैंने दूध पिया था। मैं प्रत्येक युग में ऐसी लीला करता हूँ। जब मैं शिशु रुप में प्रकट होता हूँ, तब कंवारी गायों से मेरी परवरिश की लीला हुआ करती है। हे गरीब दास! चारों वेद मेरी महिमा का गुणगान करते हैं।
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