यथार्थ भक्ति बोध-Yatharth Bhakti Bodh | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

पढें यथार्थ भक्ति बोध-Yatharth Bhakti Bodh का Part 1 | Spiritual Leader Saint Rampal Ji 


यथार्थ भक्ति बोध-Yatharth Bhakti Bodh की भूमिका

यथार्थ भक्ति बोध-Yatharth Bhakti Bodh


"परमात्मा से सब होत है, बन्दे से कुछ नाहीं।
राई से पर्वत करें, पर्वत से फिर राई।।
रामनाम की लूट है, लूटि जा तो लूट।
पीछे फिर पछताएगा, प्राण जाहिंगे छूट।।
भक्ति बिना क्या होत है, भ्रम रहा संसार।
रति कंचन पाया नहीं, रावण चलती बार।।
कबीर, सब जग निर्धना, धनवन्ता ना कोए।
धनवन्ता सोई जानिए, जा पै राम नाम धन होय।।"


भक्ति बोध नामक पुस्तिका के अन्दर परमेश्वर कबीर जी की अमृतवाणी तथा परमेश्वर कबीर जी से ही प्राप्त तत्वज्ञान सन्त गरीबदास जी की अमृतवाणी है। जिस वाणी का पाठ प्रतिदिन नियमित करना होता है। जिस कारण से इसको ‘‘नित्य-नियम’’ पुस्तिका भी कहा जाता है। इस पुस्तक में लिखी अमृत वाणी का पाठ उपदेशी को तीन समय करना पड़ता है।

सुबह पढ़ी जाने वाली अमृतवाणी को

  1. ‘सुबह का नित्य नियम‘ कहते हैं। यह रात्रि के 12 बजे से दिन के 12 बजे तक कर सकते हैं। वैसे इसको सुबह सूर्योदय के समय कर लें।
  2. ‘असुर निकंदन रमैणी‘ दिन के 12 बजे के बाद रात्रि के 12 बजे से पहले (जब भी समय लगे) किया जाने वाला पाठ है। वैसे इस पाठ को दिन के 12 बजे से 2 बजे तक किया जाने का विधान है। फिर भी कार्य की अधिकता से समय के अभाव में ऊपर लिखे समय में भी कर सकते है। लाभ समान मिलता है।
  3. ‘‘संध्या आरती’’ यह पाठ शाम को सूर्यास्त के समय करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में रात्रि के 12 बजे तक भी कर सकते हैं। लाभ समान मिलता है।


यह वाणी दोहों, चौपाइयों, शब्दों के रुप में बोली गई हैं। इसमें ‘पद्य’ भाग में राग तथा पद के अनुसार वाणी बोली जाती है। यह अमृतवाणी क्षेत्राीय भाषा में है जिससे भावार्थ को समझना जन साधारण के वश की बात नहीं है। इस अमृतवाणी की भाषा साधारण है, परन्तु रहस्य गहरा है। तत्वदर्शी सन्त ही इस अमृतवाणी का यथार्थ अनुवाद कर सकता है। जैसे श्री मद्भगवत गीता के श्लोक हैं, ऐसे ही भक्ति बोध में लिखी अमृतवाणी के दोहे (श्लोक) हैं। श्री मद्भगवत गीता को लिखे लगभग 5500 वर्ष हो चुके हैं। सैंकड़ों अनुवादकों ने वर्षों पूर्व हिन्दी या अन्य भाषाओं में अनुवाद भी कर रखा है। परन्तु किसी का अनुवाद भी प्रकरण के अनुरुप नहीं है। जिस कारण से अर्थों के अनर्थ कर रखे हैं। उदाहरण: गीता अध्याय 7 श्लोक 18 तथा 21 में ‘‘अनुत्तम’’ शब्द है जिसका अर्थ अति-उत्तम किया है जबकि ‘‘अनुत्तम’’ का अर्थ अश्रेष्ठ (घटिया) होता है। उत्तम का अर्थ श्रेष्ठ होता है। इसके विपरित ‘‘अनुत्तम’’ का अर्थ अश्रेष्ठ है।


गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में ‘व्रज’ शब्द है जिसका अर्थ ‘जाना’ होता है। सर्व गीता अनुवादकों ने ‘व्रज’ का अर्थ आना किया है। उदाहरण के लिए जैसे अंग्रेजी के शब्द Go का अर्थ जाना होता है। यदि कोई Go का अर्थ आना करता है तो वह अनर्थ कह रहा है।

इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी की वाणी तथा सन्त गरीबदास जी की वाणी का यथार्थ अनुवाद तत्वदर्शी सन्त ही कर सकता है। इस ‘भक्ति-बोध’ का हिन्दी अनुवाद किया जाएगा क्योंकि वर्तमान में सर्व बच्चे हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषी हो गए हैं। आने वाले समय में सन्तों की वाणी जो अधिकतर क्षेत्राीय भाषा में बोली गई है, इसको यथार्थ रुप में जानना बहुत कठिन हो जाएगा। अनुवादकर्ता दोनों जुबानों का अनुभव रखता है। वर्तमान में विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त है। अनुवादकर्ता का जन्म दिनाँक 08 सितंबर 1951 में हुआ था। इस कारण से आज सन् 2013 में अनुवाद करने जा रहा हूँ तो सर्व क्षेत्राीय भाषा के शब्द जो अमृतवाणी में है, उनके अर्थ अच्छी तरह जानता हूँ। फिर भी अनुवाद में कोई त्रुटि रह जाये तो क्षमा चाहूँगा। वैसे त्रुटि की तो गुंजाइश ही नहीं है।
- संत रामपाल जी महाराज (लेखक-अनुवादक)


भक्ति बोध का अर्थ

भक्ति बोध का अर्थ ‘‘परमात्मा की पूजा का ज्ञान’’ (भक्ति, पूजा, अर्चना) प्रेम भक्ति से मोक्ष होता है। आध्यात्म मार्ग में ‘पूजा’ के साथ ‘साधना’ शब्द भी मुख्य रुप से सुना जाता है।

अब प्रश्न उठेगा: क्या ‘पूजा’ और ‘साधना’ भिन्न है?

उत्तर: हाँ, पूजा और साधना भिन्न होते हुए भी दामन-चोली का साथ है। उदाहरण: जैसे हमें जल की अति आवश्यकता है। जब प्यास सताती है तो जल के अतिरिक्त कुछ भी याद नहीं आता। उसकी प्राप्ति कैसे हो या तो जल की दरिया हो या सरोवर हो जो जल का स्त्रोत है। दरिया हमारे निवास स्थान से दूर होने के कारण हम प्रतिदिन वहाँ से जल नहीं ला सकते। सरोवर भी दूर ही होता है। फिर आवश्यकता पड़ी कि कुआं खोदा जाए। अब वर्तमान में नल (हैंडपम्प) अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।
प्यासा व्यक्ति ‘जल’ प्राप्ति की इच्छा करता है।


उसके लिए कुआँ खोदने या नल लगाने का कार्य करता है तब इच्छित वस्तु (जल) प्राप्त होती है। पूजा तथा साधना का भेद-अभेद जानने के लिए उपरोक्त विवरण से प्रमाण लेते हैं:- जल प्राप्ति की इच्छा तो ‘पूजा’ जानें तथा कुआं खोदने तथा नल लगाने के लिए की गई क्रिया को साधना जानें। इसी प्रकार प्रभु प्यासे भक्त की परमात्मा प्राप्ति की प्रबल इच्छा को पूजा कहते हैं। परमात्मा प्राप्ति के लिए की जाने वाली आध्यात्मिक क्रियाओं को साधना कहते हैं।


अधिक जानकारी के लिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तकें जरूर पढ़ें:- ज्ञान गंगा, जीने की राह ,गीता तेरा ज्ञान अमृत, गरिमा गीता की, अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान । जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेने के लिए यह फॉर्म भरें


Post a Comment

2 Comments