गज-ग्राह की कथा-Gaj Grah Yudh and Story [Hindi]: Mukti Bodh | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj

आज Mukti Bodh-मुक्ति बोध में जानिए गज-ग्राह की कथा-Gaj Grah Yudh and Kahani के बारे में hindi में | Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj


गज-ग्राह की कथा-Gaj Grah Yudh & Kahani [Hindi]


हाहा-हूहू नाम के दो तपस्वी थे। उनको अपनी भक्ति का गर्व था। एक-दूसरे से अधिक सिद्धि-शक्ति वाला कहते थे। अपनी-अपनी शक्ति के विषय में जानने के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी से पूछा कि हमारे में से अधिक सिद्धि-शक्ति वाला कौन है? ब्रह्मा जी ने कहा कि आप श्री विष्णु जी के पास जाओ, वे बता सकते हैं। ब्रह्मा जी को डर था कि एक को कम शक्ति वाला बताया तो दूसरा नाराज होकर श्राप न दे दे। हाहा-हूहू ने श्री विष्णु जी के पास जाकर यही जानना चाहा तो उत्तर मिला कि आप शिव जी के पास जाऐं। वे तपस्वी हैं, ठीक-ठीक बता सकते हैं। शिव जी ने उन दोनों को पृथ्वी पर मतंग ऋषि के पास जाकर अपना समाधान कराने की राय दी। मतंग ऋषि वर्षों से तपस्या कर रहे थे। अवधूत बनकर रहते थे।


Gaj Grah Yudh & Kahani story [Hindi]



अवधूत उसे कहते हैं जिसने शरीर के ऊपर एक कटि वस्त्र (लंगोट) के अतिरिक्त कुछ न पहन रखा हो। मतंग ऋषि शरीर से बहुत मोटे यानि डिल-डोल थे। जब हाहा-हूहू मतंग ऋषि के आश्रम के निकट गए तो उनके मोटे शरीर को देखकर हाहा ने विचार किया कि ऋषि तो हाथी जैसा है। हूहू ने विचार किया कि ऋषि तो मगरमच्छ जैसा है। मतंग ऋषि के निकट जाकर प्रणाम करके अपना उद्देश्य बताया कि कृपा आप बताऐं कि हम दोनों में से किसकी आध्यात्मिक शक्ति अधिक है? ऋषि ने कहा कि आपके मन में जो विचार आया है, आप उसी-उसी की योनि धारण करें और अपना फैसला स्वयं लें। उसी समय उन दोनों का शरीर छूट गया यानि मृत्यु हो गई। हाहा को हाथी का जन्म मिला तथा हूहू को मगरमच्छ का जन्म मिला। जब दोनों जवान हो गए तो एक दिन हाथी दरिया पर पानी पीने गया तो उसका पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया।


गज-ग्राह की कथा-Gaj Grah Yudh & Kahani [Hindi]: सारा दिन खैंचातान बनी रही। कभी हाथी मगरमच्छ को पानी से कुछ बाहर ले आए, कभी मगरमच्छ हाथी को पानी में खैंच ले जाए। शाम को मगरमच्छ पैर छोड़ देता। अगले दिन हाथी उसी स्थान पर जाकर अपना पैर मगरमच्छ को पकड़ाकर शक्ति परीक्षण करता। पुराणों में लिखा है कि यह गज-ग्राह का युद्ध दस हजार वर्ष तक चलता रहा। आसपास के वन में हाथी का आहार समाप्त हो गया। साथी हाथी दूर से आहार लाकर खिलाते थे। कुछ दिन बाद वे हाथी भी साथ छोड़ गए। हाथी बलहीन हो गया। एक दिन मगरमच्छ ने हाथी को जल में गहरा खींच लिया। हाथी की सूंड का केवल नाक पानी से बाहर बचा था। हाथी को अपनी मौत दिखाई दी तो मृत्यु भय से परमात्मा को पुकारा, केवल इतना समय बचा था कि हाथी की आत्मा ने र... यानि आधा राम ही कहा, केवल र... ही बोल पाई।


उसी क्षण परमात्मा ने सुदर्शन चक्र मगरमच्छ के सिर में मारा। मगरमच्छ का मुख खुल गया। हाथी बाहर पटरी पर खड़ा हो गया। परमात्मा प्रकट हुए। हाथी से कहा कि तुम स्वर्ग चलो, तुमने मुझे सच्चे मन से याद किया है, मेरा नाम बड़ी तड़फ से लिया है। मगरमच्छ ने कहा कि हे प्रभु! जिस तड़फ से इसने आपका नाम जपा है, मैंने उसको उसी तड़फ से सुना है, परंतु हार-जीत का मामला था। इसलिए मैं छोड़ नहीं पा रहा था। आप तो अंतर्यामी हैं। मन की बात भी जानते हो। मेरा भी कल्याण करो। प्रभु ने दोनों को स्वर्ग भेजा। फिर से जन्म हुआ। फिर अपनी साधना शुरू की।


गज-ग्राह की कथा-Gaj Grah Yudh & Kahani [Hindi] का निष्कर्ष


  1. यदि परमात्मा का उस कसक (तड़फ) के साथ नाम जपा जाए तो विशेष तथा शीघ्र लाभ होता है। जैसे हाथी ने मौत के भय से नाम उच्चारा था। केवल ‘र’ ही बोल पाया था। फिर डूब जाना था। इसको संतों ने ररंकार धुन (लगन) कहा है। कई संतजन दीक्षा मंत्रों में ररंकार नाम जाप करने को देते हैं। वह उचित नहीं है।
  2. जैसे कहीं संत सत्संग करता है तो उसे विशेष तड़फ के साथ परमात्मा की महिमा सुननी चाहिए। उसका श्रोताओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। श्रोताओं को भी उसी तड़फ (ररंकार वाली लगन) से सत्संग सुनना चाहिए। उससे वक्ता तथा श्रोता दोनों को ज्ञान यज्ञ का समान लाभ मिलता है।
  3. घोर तप करने वाले मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि तप करना शास्त्र विरूद्ध है। गीता अध्याय 17 श्लोक 1 से 6 में कहा है कि जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाने घोर तप को तपते हैं, वे राक्षस स्वभाव के हैं। उपरोक्त कथा से भी तपस्वियों का चरित्र स्पष्ट है कि हाहा-हूहू के मन में क्या बकवास आई? अपनी आध्यात्म शक्ति की जाँच कराने चले। मतंग ऋषि के डिल-डोल (अत्यंत मोटे) शरीर को देखकर दोष निकालने लगे।
  4. भगवान की रचना का मजाक करना परमात्मा का मजाक है। मतंग तपस्वी ने भी विवेक से काम न लेकर स्वभाव ही बरता। दोनों को शॉप दे दिया। जिस कारण से वे पशु तथा जलचर योनि को प्राप्त हुए। दस हजार वर्ष तक संघर्ष करते रहे, कितने कष्ट उठाए।
  5. यदि मतंग ऋषि उनको समझाते कि साधको शक्ति तो परमात्मा में है, शेष हम तो उसके मजदूर हैं। जितनी मजदूरी (साधना) करते हैं, उतनी ध्याड़ी यानि भक्ति शक्ति (सिद्धि) दे देते हैं। साधकों को अपनी शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। अपनी साधना आजीवन करनी चाहिए। इस प्रकार समझाने से वे भक्त अवश्य अपना मूर्ख उद्देश्य त्यागकर कष्ट से बच जाते। परंतु यह बुद्धि न गुरू में, न चेलों में, फिर तो यही ड्रामा चलेगा।

जानिए तपस्या से क्या लाभ होता है

गरीब, तप से राज, राज मध्य मानम्। जन्म तीसरे शुकर श्वानम्।।

भावार्थ :- तप से राज्य की प्राप्ति होती है यानि राजा बनता है। राजा में अहंकार अधिक होता है। अहंकार के कारण अनेकों पाप कर डालता है। फिर अगले जन्म में शुकर (सूअर) तथा श्वान (कुत्ता) बनता है। पहला मनुष्य जीवन शास्त्र विरूद्ध साधना (तप) करके नष्ट किया। दूसरा जीवन राज करके खो दिया। शास्त्रों में प्रमाण है :-

‘‘तपेश्वरी सो राजेश्वरी, राजेश्वरी सो नरकेश्वरी’’


भावार्थ :- जितना अधिक समय तक तप करेगा, वह (‘तपेश्वर’ यानि तपस्वियों में श्रेष्ठ माना जाता है) उतना ही अधिक समय तक राज्य करेगा। (राजेश्वरी का अर्थ है राजाओं में श्रेष्ठ है यानि लम्बे समय तक तथा विशाल साम्राज्य पर राज्य करेगा) जो जितने अधिक समय तक तथा विशाल क्षेत्र पर राज्य करेगा, वह उतने अधिक पाप का भागी होगा जिससे नरक का समय भी अधिक होगा। उसको नरकेश्वरी कहा है कि वह नरक को अन्य से अधिक समय तक भोगेगा। फिर कभी मानव जन्म मिलेगा, कोई परम संत (तत्वदर्शी संत) मिले या न मिले। यदि तत्वदर्शी संत नहीं मिला तो फिर वही प्रक्रिया। तप करो, राज करके नरक में गिरो।


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