योगेंद्र सिंह (Yogendra Singh) जी की आपबीती, संत रामपाल जी से नाम उपदेश लेने से जीवन हुआ सुखी

संत रामपाल जी महाराज एक ऐसा नाम जो आध्यात्मिक जगत के सच्चे संत हैं और सबसे बड़ी बात समाज सुधार के लिए प्रयत्नशील समाज सुधारक (Social reformer) हैं। संत रामपाल जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। साथ ही, उनका ज्ञान अद्वितीय है और सबसे बड़ी बात यह है कि वे सभी पवित्र धर्मग्रंथों के अनुसार सही भक्ति विधि बताते हैं।

सतभक्ति से लाभ प्रोग्राम द्वारा समाज के ऐसे लोगों को सामने लाया गया जो न जाने कितनी समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई सद्भक्ति से उनकी सभी समस्याएं खत्म हो गईं और उन्हें एक नई ज़िंदगी मिली जो आज लाखों लोगों के लिए उदाहरण हैं। तो आज हम आपको एक ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी से परिचित करवाएंगे जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ बल्कि शारीरिक और आर्थिक लाभ भी मिला।

"सतभक्ति से लाभ-Benefits of True Worship" की थीम इस प्रकार है:-


  • योगेंद्र सिंह (Yogendra Singh) जी की आपबीती
  • संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा
  • नाम दीक्षा लेने के बाद कि जिंदगी में आये बदलाव
  • नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव
  • मेरा समाज को संदेश
  • सारांश

योगेंद्र सिंह (Yogendra Singh) की आप बीती


मेरा नाम योगेंद्र सिंह (Yogendra Singh) है। मैं तहसील चंदौसी जिला संभल, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं। मैं छोटी सी उम्र से ही रामायण का पाठ करने लगा था और वैसे तो मैं जो भी परिवार में, समाज में पूजा होती थी, वह सब करता था। शंकर जी हमारे इष्ट थे। मैं रामायण का पाठ करता था, पाठ करते-करते फिर मैंने गीता को पढ़ा और अनेकों शास्त्रों को इकट्ठा किया। जब मैंने रामायण पढ़ी थी तो रामायण में मैंने देखा था कि यह मानव शरीर भक्ति करने के लिए मिला है। उसमें एक चौपाई है,

"बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।"

इस बात ने मेरा दिमाग हिला दिया। फिर मुझे ये बात खटकने लगी और मैं सत्संग में जाने लगा। सत्संग में जाने के बाद मैंने राधास्वामी में 14 साल तक भक्ति की और सेवा प्रचारक के पद पर भी रहा। राधास्वामी में प्रचारक था। राधा स्वामी मिशन से निकली गद्दी है, संत ठाकुर सिंह जी महाराज। संत ठाकुर सिंह जी हमारे यहां मुरादाबाद जिले में जलालपुर गांव पड़ता है, वहां पर मुझे उस केंद्र में प्रचारक का पद दे गए।

पूरा क्षेत्र मुरादाबाद, बदायूं, बरेली, मेरठ और रामपुर इन जिलों में गांव-गांव में जाकर सत्संग करता था। एक दिन में 3-4 सत्संग करता था जिसमें पूरा गांव बैठता था और एक गांव की जनसंख्या लगभग 1400-1500 से कम नहीं होती थी फिर भी 600-700 व्यक्ति एक साथ बैठकर मेरे प्रवचन सुनते थे। उस समय मैं रानी इंदुमती की जो रियल कथा है, वह सुनाता था। फिर मुझे 18-19 साल की उम्र में "अनुराग सागर" पढ़ने को मिला।

मैं एक महात्मा के यहां आश्रम में जाता था, उनको "सोहम ताऊ" वाले कहते हैं, उनकी सोहम वाली गद्दी है। उसमें भी मैं सत्संग करता था। सतपाल जी महाराज, जय गुरुदेव जी, धन धन सतगुरु वाले में भी मैंने सत्संग किया है। फिर मैंने गुरु ग्रंथ साहिब को पढ़ा, उसमें नानक देव जी की जो बातें थीं, वह मेरे दिमाग में रहती थीं। मैं मेरे मिशन में पहुंचा जो अभी दिल्ली से उठकर, नवाबनगर कालका पिंजोर में पहुंच गया, उस वक्त ठाकुर जी अपना चोला छोड़ चुके थे।

गद्दी पर बलजीत सिंह जी बैठे थे और मैं वहां देखता था जो संतों की वाणी थी, उनको मिलान करता था। वहां पर मैंने दो बातें देखी कि एक तरफ जो संगत रहती थी, जिनको सादी रोटी मिलती थी और चावल, दाल मिलती थी और दूसरी तरफ वहां के जो प्रचारक थे, धनवान थे, उनको अच्छी कोठी थी, उनके अच्छे बिस्तर थे, अच्छा खाना मिलता था। यह सब भेदभाव मैंने वहां देखा। कहने का मतलब यह है कि जो थोड़े पैसे वाले थे उनके लिए अलग से व्यवस्था थी और जो गरीब निर्धन व्यक्ति थे उनके लिए अलग से व्यवस्था थी। यह सब देखकर मेरा मन वहां से हट चुका था। 
मैंने घट रामायण मैं पढ़ा था कि: 

"पांचों नाम काल के जानो, तब दानी मन शंका आनो"

यह बात मैंने पढ़ी थी यह देखकर मैं अपने घर बैठ गया। मैंने 14 साल तक राधा स्वामी सत्संग किया और प्रचारक के पद पर रहा। एक ही दिन में 3-4 सत्संग करता था लेकिन इतनी भक्ति करने के बाद भी मुझे कोई लाभ नहीं मिला। यहां तक कि मुझे नशे की जो लत थी, वह भी नहीं गयी। इसके साथ मेरे परिवार की हालत भी दिन प्रतिदिन खराब होती चली गई। घर में मुकदमा, बीमारी यह सब बना ही रहता था। खेतीबाड़ी से कोई खास कमाई नहीं होती थी। मेरे पिताजी हैं, उनको खून की उल्टी होती थी। उनको डॉक्टर ने टीबी बता रखा था और मेरी माता जी हैं, उनको भी बीपी रहता था और मोटापे से भी परेशान थे। घर में किसी तरह से कोई शांति नहीं थी। चारों तरफ से परेशानियां आ रहीं थीं। अपना जीवन राधास्वामी पंथ को सौंप दिया लेकिन वहां मुझे कोई लाभ नहीं मिला मेरी परेशानियां बढ़ती ही गईं।



संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने की प्रेरणा


संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा मैंने 8 अगस्त 2014 को ली। संत रामपाल जी महाराज की शरण में मेरा आना ऐसा हुआ कि एक बार मैं अपने रिश्तेदार के यहां गया था तो उन्होंने मुझे "ज्ञान गंगा" व "धरती पर अवतार" यह दो पुस्तकें दीं और थोड़ी बहुत ज्ञान चर्चा हुई। मुझे जो कोई भी कुछ बताता था वह मैं बड़े मन से सुनता था क्योंकि सुनना भी चाहिए मैंने अपने में आजू-बाजू देखा था कि जिन को ज्ञान हो जाता है, वह दूसरों की नहीं सुनते, जिनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ी होती है, वह अपना ज्ञान सुनाते हैं अपना ही पक्ष रखते हैं, किसी और की नहीं मानते। यह अहंकार होता है। ज्ञान का मतलब होता है ज्ञान सुनो और सुनाओ। ज्ञान होने के बाद मनुष्य में अहंकार खत्म हो जाना चाहिए।
इस तरह मैंने भी उनकी बातें सुनी और सुनने के बाद मुझे थोड़ी प्रेरणा हुई तो मैंने कहा कि आप मुझे भी संत रामपाल जी महाराज के पास लेकर चलना। मैं देखना चाहता हूं। उसके बाद मैं उनके साथ संत रामपाल जी महाराज के आश्रम में गया। आश्रम में जाने के 8 दिन तक मैंने तंबाकू नहीं खाया, न मेरी इच्छा हुई। अगर मेरे पास कोई आता भी तो मैं उससे दूर हट जाता ऐसा महसूस होता जैसे इसमें से बहुत बुरी बदबू आ रही है जबकि मैंने नाम उपदेश भी नहीं लिया था। इस बात से प्रेरित होकर मैंने संत रामपाल जी महाराज से नाम उपदेश ले लिया।


नाम दीक्षा लेने के बाद जिंदगी में आए बदलाव


संत रामपाल जी महाराज से नाम उपदेश लेने के बाद जो पहला बदलाव मुझे देखने को मिला वो यही था कि मेरी नशे की आदत छूट गई। अब मेरी बिल्कुल इच्छा नहीं होती नशा करने की। पहले मैं बहुत दु:खी था तो 10 साल ठाकुर सिंह जी महाराज की शरण में रहने के बाद मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और शारीरिक स्थिति भी खराब हो गई।

संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद मेरे पिताजी को जो खून की उल्टियां होती थीं, वह भी बिल्कुल ठीक हो गई हैं। पिताजी ने भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ली है और मेरी माता जी को जो बीपी व मोटापे की शिकायत थी, वह भी पूरी तरह से ठीक हो गई हैं। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति में जो लाभ हुए हैं, वह मैं बता नहीं सकता। संत रामपाल जी महाराज ने खूब दया करी है। आज पूरी तरह से हमारी जिंदगी बदल गई है। अब हमारी खेती में भी खूब पैदावार होती है और आज हम खुशहाली से अपनी जिंदगी जी रहे हैं। 

अब वास्तव में मुझे लग रहा है कि मानव शरीर प्राप्त करके इस शरीर का लाभ आज संत रामपाल जी महाराज के शिष्य पूरी तरह से ले रहे हैं। वही भाग्यशाली हैं कि उनको इस मनुष्य जीवन में पूर्ण सतगुरु की शरण मिली और सच्ची भक्ति मिली।

नाम लेने से पहले और बाद का अनुभव


"बड़े भाग मानुष तन पाया, सु दुर्लभ सदग्रंथ गावा"


इस मानव शरीर का लाभ मुझे संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर मिला। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद का जो अनुभव था वह बहुत अलग था। मुझे पता लगा कि तत्वदर्शी संत पूर्ण परमात्मा का ही रूप होता है।

"अमर करूं सतलोक पठाऊ, ताते बंदी छोड़ कहाऊं"

पूर्ण परमात्मा सारे बंधनों से मुक्त करता है। संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने के बाद मैंने इस बात का अनुभव किया है कि संत रामपाल जी महाराज ने मुझे सारे बंधनों से मुक्त कर दिया। रामपाल जी महाराज ने सभी पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित किया है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं। यह बात अन्य संतों ने नहीं बताई।

दूसरी बात यह है कि संत रामपाल जी महाराज ने जो चीज निकाल कर दी हैं, वह आज तक छुपी हुई थी जो किसी भी साधु-संत, महात्मा, पीठाधीश्वर को नहीं पता था। बड़े-बड़े शंकराचार्य, बड़े-बड़े धर्म के प्रचार करने वाले नहीं जान पाए कि गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तक क्या लिखा है। गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में क्या लिखा है।

आज संत रामपाल जी महाराज ने सबके सामने क्लियर कर दिया। "गागर में सागर" यानी कि पूरा सार निकाल कर दे दिया। छोटी-छोटी पुस्तकें ज्ञान गंगा व जीने की राह इनमें पूरा भंडार भर दिया। आज का मानव पढ़ा लिखा है जागरूक है समझदार है इन पुस्तकों को पढ़ें और समझें कि संत रामपाल जी महाराज जी भारत के शिरोमणि संत हैं। भारत के उद्धारक, समाज सुधारक हैं। बल्कि भारत ही नहीं पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज जैसा कोई संत नहीं है। संत रामपाल जी महाराज जी पूरे विश्व में शांति ला सकते हैं और कोई भी नहीं।

संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई शास्त्रों के अनुसार सद्भक्ति करते हैं। अगर संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों के जैसे पूरा भारत बन जाएगा तो विश्व को संदेश जाएगा कि वह निडर, निर्भय हैं। उनमें किसी भी तरह का छल-कपट-लालच नहीं है। कोई विकार नहीं करते। किसी से कोई घृणा नहीं करते। कोई जातिवाद नहीं मानते। अगर संत रामपाल जी महाराज के मिशन में लोग आकर जुड़ते हैं तो कहते हैं "भारत सोने की चिड़िया" वह केवल संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ही संभव हो सकता है।

समाज को संदेश


मैं समाज के सभी लोगों से यही कहना चाहता हूं कि वर्तमान में सच्चे सद्गुरु संत रामपाल जी महाराज हैं। आप भी उनका ज्ञान समझें और उनसे नाम दीक्षा लें। आज संत रामपाल जी महाराज के शिष्य घर-घर जाकर पुस्तकों की सेवा कर रहे हैं जो ज्ञान छिपा हुआ था उसे उजागर कर रहे हैं। अगर आप अनपढ़ हैं तो टीवी पर संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनें। आप पढ़े-लिखे हैं तो पुस्तक पढ़ें, पुस्तकों को पढ़कर शास्त्रों से मिलान करें और नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं। मैंने अपनी जिंदगी के 14 साल ऐसे ही गंवा दिए मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य तो संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर समझ आया।

इस शरीर का वास्तविक लाभ संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान सुनकर समझ में आया और जो आज मेरा जीवन परिवर्तन हुआ है। मैं सभी से यही प्रार्थना करूंगा कि अपने जीवन का मूल उद्देश्य समझें और शास्त्रों के अनुसार सद्भक्ति करें। परमात्मा का संविधान शास्त्र हैं, वेद हैं, हमारे पवित्र सदग्रंथ हैं। तो संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं।

सारांश


"सतभक्ति से लाभ-Benefits by True Worship" प्रोग्राम में बताया गया कि "संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद लोगों को लाभ हो रहे हैं" पूर्णतः सत्य हैं। जिसका आप चाहें तो निरीक्षण भी कर सकते हैं। आज संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयायी हैं और ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिनको संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद बहुत सारे लाभ मिले हैं। 

संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई भक्ति से कैंसर, एड्स व अन्य लाइलाज बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। क्योंकि धर्मग्रंथ ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5, सूक्त 162 मंत्र 5 और सूक्त 163 मंत्र 1-3 में प्रमाण है कि हर बीमारी का इलाज सतभक्ति से ही संभव है, साथ ही वह परमात्मा अपने साधक की अकाल मृत्यु तक टाल सकता है और उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान करता है तथा उस परमात्मा की सतभक्ति से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान पवित्र वेद, पवित्र शास्त्रों के अनुसार है और पवित्र गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत के बारे में जिक्र आया है वह तत्वदर्शी संत कोई ओर नहीं संत रामपाल जी महाराज ही हैं। तो देर ना करते हुए आप भी संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान समझे और उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग प्राप्त करें और 84 लाख योनियों के जन्म मरण से छुटकारा पाएं।

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