Sant Namdev ji ki Katha | बिठ्ठल भगवान की मूर्ति को दूध पिलाना | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

जानिए Sant Namdev ji ki Katha, बिठ्ठल भगवान की मूर्ति को दूध पिलाना के बारे में

भगवान श्री विष्णु का नाम बिठ्ठल कैसे पड़ा?

एक छोटे-से गाँव में भक्त पुण्डलिक रहता था। वह भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। भक्त नामदेव जी के माता-पिता जी बिठ्ठल {श्री विष्णु जी जो एक ईंट पर खड़े हुए की पत्थर या पीतल की मूर्ति बनाई जाती है} के परम भक्त थे। पूर्व जन्म की भक्ति-शक्ति के कारण पुण्यात्माऐं बचपन से ही अनोखे कार्य करते हैं। एक दिन भक्त पुण्डलिक जी अपने पिता के चरण दबा रहा था। उनके पिता जी सोए ही थे। उसकी माता जी अपने पति पर हाथ से पंखे से हवा कर रही थी। उसी समय भगवान श्री कृष्ण जी उनके द्वार पर आ खड़े हुए और कहा कि हे पुण्डलिक! मैं तुम्हारे घर अतिथि बनकर ठहरना चाहता हूँ। भक्त पुण्डलिक ने धीरे से कहा कि ऊँची आवाज में मत बोलो, मेरे पिता जी को अभी-अभी नींद आई है। आप यहीं पर उस ईंट (ठतपबा) पर खड़े हो जाओ, आवाज मत करना। प्रतिक्षा करो।


Sant Namdev ji ki Katha
Sant Namdev ji ki Katha-Sant Namdev ji Story in Hindi


भक्त अपने पिता जी के चरणों को दबाता रहा। पैर दबाने में लीन हो गया। भगवान श्री कृष्ण उसके भोलेपन तथा सच्चे मन से किए आग्रह से प्रसन्न होकर अपने पैरों को साथ-साथ करके ईंट के ऊपर खड़े हो गए। दोनों हाथ कमर पर रख लिए। कुछ देर बाद भक्त पुण्डलिक ने ईंट पर खड़े श्री कृष्ण की ओर देखा और कहा कि आप कुछ देर ओर ऐसे ही खड़े रहें और इंतजार करें। उसके शुद्ध हृदय और भोले भाव से भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न हुए। जब उसके पिता जगे तो पिता से कहा कि देखो! भगवान खड़े हैं। पहले तो केवल अकेले को दिखाई दे रहे थे, फिर अपने माता-पिता को भी दर्शन कराए। भगवान आशीर्वाद देकर चले गए। उनकी वह ईंट पर खड़ा होने वाली मूर्ति महाराष्ट्र में बहुत पूज्य है। इसको बिठ्ठल (ईंट पर खड़ा भगवान) के नाम से जाना जाने लगा। उस गाँव का नाम पुंडलिकपुर पड़ा। बाद में अपभ्रंस होकर पुण्डरपुर प्रसिद्ध हुआ।


पत्थर की मूर्ती को दूध पिलाना

नामदेव द्वारा बिठ्ठल भगवान की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाने का वर्णनः- नामदेव जी के माता-पिता भगवान बिठ्ठल की पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे। घर पर एक अलमारी में मूर्ति रखी थी। प्रतिदिन मूर्ति को दूध का भोग लगाया जाता था। एक कटोरे में दूध गर्म करके मीठा मिलाकर पीने योग्य ठण्डा करके कुछ देर मूर्ति के सामने रख देते थे। आगे पर्दा कर देते थे जो अलमारी पर लगा रखा था। कुछ देर पश्चात् उसे उठाकर अन्य दूध में डालकर प्रसाद बनाकर सब पीते थे। नामदेव जी केवल 12 वर्ष के बच्चे थे। एक दिन माता-पिता को किसी कार्यवश दूर अन्य गाँव जाना पड़ा। अपने पुत्र नामदेव से कहा कि पुत्र! हम एक सप्ताह के लिए अन्य गाँव में जा रहे हैं। आप घर पर रहना।

 


पहले बिठ्ठल जी को दूध का भोग लगाना, फिर बाद में भोजन खाना। ऐसा नहीं किया तो भगवान बिठ्ठल नाराज हो जाऐंगे और अपने को शॉप दे देंगे। अपना अहित हो जाएगा। यह बात माता-पिता ने नामदेव से जोर देकर और कई बार दोहराई और यात्रा पर चले गए। नामदेव जी ने सुबह उठकर स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर दूध का कटोरा भरकर भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया और दूध पीने की प्रार्थना की, परंतु मूर्ति ने दूध नहीं पीया। भक्त ने भी भोजन तक नहीं खाया। तीन दिन बीत गए। प्रतिदिन इसी प्रकार दूध मूर्ति के आगे रखते और विनय करते कि हे बिठ्ठल भगवान! दूध पी लो।


बिठ्ठल भगवान जी ने दूध पीया

आज आपका सेवादार मर जाएगा क्योंकि और अधिक भूख सहन करना मेरे वश में नहीं है। माता-पिता नाराज होंगे। भगवान मेरी गलती क्षमा करो। मुझसे अवश्य कोई गलती हुई है। जिस कारण से आप दूध नहीं पी रहे। माता-पिता जी से तो आप प्रतिदिन भोग लगाते थे। नामदेव जी को ज्ञान नहीं था कि माता-पिता कुछ देर दूध रखकर भरा कटोरा उठाकर अन्य दूध में डालते थे। वह तो यही मानता था कि बिठ्ठल जी प्रतिदिन दूध पीते थे। चौथे दिन बेहाल बालक ने दूध गर्म किया और दूध मूर्ति के सामने रखा और कमजोरी के कारण चक्कर खाकर गिर गया। फिर बैठे-बैठे अर्जी लगाने लगा तो उसी समय मूर्ति के हाथ आगे बढ़े और कटोरा उठाया। सब दूध पी लिया। नामदेव जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। फिर स्वयं भी खाना खाया, दूध पीया। फिर तो प्रतिदिन बिठ्ठल भगवान जी दूध पीने लगे।


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सात-आठ दिन पश्चात् नामदेव के माता-पिता लौटे तो सर्वप्रथम पूछा कि क्या बिठ्ठल जी को दूध का भोग लगाया? नामदेव ने कहा कि माता-पिता जी! भगवान ने तीन दिन तो दूध नहीं पीया। मेरे से पता नहीं क्या गलती हुई। मैंने भी खाना नहीं खाया। चौथे दिन भगवान ने मेरी गलती क्षमा की, तब सुबह दूध पीया। तब मैंने भी खाना खाया, दूध पीया।


Sant Namdev ji ki Katha


माता-पिता को लगा कि बालक झूठ बोल रहा है। इसीलिए कह रहा है कि चौथे दिन दूध पीया। मूर्ति दूध कैसे पी सकती है? माता-पिता ने कहा सच-सच बता बेटा, नहीं तो तुझे पाप लगेगा। बिठ्ठल भगवान जी ने वास्तव में दूध पीया है। नामदेव जी ने कहा, माता-पिता वास्तव में सत्य कह रहा हूँ। पिताजी ने कहा कि कल सुबह हमारे सामने दूध पिलाना। अगले दिन नामदेव जी ने बिठ्ठल भगवान की पत्थर की मूर्ति के सामने दूध का कटोरा रखा। उसी समय मूर्ति के हाथ आगे बढ़े, कटोरा उठाया और सारा दूध पी गए। माता-पिता तो पागल से हो गये। गली में जाकर कहने लगे कि नामदेव ने बिठ्ठल भगवान की मूर्ति को सचमुच दूध पिला दिया। यह बात सारे गाँव में आग की तरह फैल गई, परंतु किसी को विश्वास नहीं हो रहा था। बात पंचों के पास पहुँच गई कि नामदेव का पिता झूठ कह रहा है कि मेरे पुत्र नामदेव ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दिया।


पंचायत के व्यक्ति हुए हैरान

पंचायत हुई। नामदेव तथा उसके पिता को पंचायत में बुलाया गया और कहा कि क्या यह सच है कि नामदेव ने बिठ्ठल भगवान की मूर्ति को दूध पिलाया था। पिता ने कहा कि हाँ! हमारे सामने पिलाया था। पंचों ने कहा कि यह भगवान बिठ्ठल जी की मूर्ति रखी है। यह दूध का कटोरा रखा है। हमारे सामने नामदेव दूध पिलाए तो मानेंगे अन्यथा आपको सपरिवार गाँव छोड़कर जाना होगा। नामदेव जी ने कटोरा उठाया और भगवान बिठ्ठल जी की मूर्ति के सामने किया। उसी समय कटोरा बिठ्ठल जी ने हाथों में पकड़ा और सब दूध पी गया। पंचायत के व्यक्ति तथा दर्शक हैरान रह गए। इस प्रकार नामदेव जी की पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से परमेश्वर ने चमत्कार किए।


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