बिठल रूप में प्रकट होकर नामदेव जी की रोटी खाना | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

जानिए कबीर परमेश्वर ने कैसे बिठल रूप में प्रकट होकर नामदेव जी की रोटी खायी?


बिठल रूप में प्रकट होकर नामदेव जी की रोटी खाना

एक दिन नामदेव जी भेड़-बकरियाँ-गाय चरा रहा था। प्रतिदिन साथ में गाँव के अन्य पाली (चरवाहे) भी अपनी-अपनी भेड़-बकरियाँ-गाय चराते थे। वे पाली प्रतिदिन नामदेव पर व्यंग्य करते थे कि हे नामदेव! सुना है तुमने पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दिया था। क्या सचमुच भगवान बिठल ने दूध पीया था? नामदेव के बोलने से पहले अन्य कहते थे कि पत्थर कभी दूध पीता है! एक ने कहा कि पंचायत में सबके सामने दूध पिलाया था। अन्य कहन लगे कि क्या तूने देखा था? तुम इसका पक्ष कर रहे हो।

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नामदेव ने कहा कि भाईयो! वास्तव में बिठल जी ने दूध पीया था। अपने हाथों में कटोरा पकड़ा था। हाँ! मैं झूठ नहीं कहता। सब पाली हँसते थे। कहते थे कि पत्थर कभी दूध पीते हैं! झूठ बोल रहा है। यह लगभग प्रतिदिन का झंझट नामदेव जी के साथ करते थे। एक दिन प्रतिदिन की तरह सब चरवाहे (पाली) तथा नामदेव एक वृक्ष के नीचे बैठे खाना खाने के लिए अपनी-अपनी रोटियाँ अपने-अपने सामने रखे हुए थे।


कुत्ते का रोटी ले जाना

किसी ने कपड़े से निकाल ली थी, किसी ने अभी रूमाल नुमा कपड़े (छालने) में बँधी सामने रखी थी। उसी समय एक ने कहा कि नामदेव! आज ये रोटियाँ जो आपके छालने में बँधी रखी हैं। अभी तक ये झूठी नहीं हुई हैं। भगवान बिठल को खिला दे। हम सत्य मान लेंगे। सबने इस बात का समर्थन किया। नामदेव दुःखी होते थे। बोलते कुछ नहीं थे। ठीक से खाना भी नहीं खा पाते थे। प्रतिदिन का यही दुःख था। उसी समय एक कुत्ता आया। सबके बीच में बैठे नामदेव की रूमाल (छालने) में बँधी सब रोटियाँ उठाकर ले गया। यह देखकर सब पाली हँसने लगे कि बिठल भगवान ने तो स्वीकारी नहीं, कुत्ते ने स्वीकार ली। अन्य कहने लगे कि अरे! उस दिन भी कुत्ता दूध पी गया होगा। नामदेव ने झूठ बोला होगा कि बिठल भगवान ने पीया है। नामदेव जी को बिठल रूप परमात्मा रोटियाँ लेकर जाते दिखाई दिए। सब्जी नामदेव के पास रखी रह गई थी।

बिठल जी ने खाया खाना 

नामदेव जी सब्जी लेकर पीछे-पीछे चल पड़े। कह रहे थे कि हे भगवान! सब्जी भी ले लो, अकेली रोटी कैसे खाओगे? कुछ दूरी पर एक वृक्ष के नीचे भगवान बिठल रूक गए। भगवान ने कहा कि आप मेरे साथ खाना खाओ। दोनों खाना खाने लगे। उन पालियों को आश्चर्य हुआ कि नामदेव कुत्ते के साथ खाना खा रहा है। सब पाली उठकर वह नजारा देखने गए।


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निकट से देखा तो वास्तव में बिठल भगवान ही नामदेव के साथ खाना खा रहे थे। सब पाली भगवान के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगे। भगवान ने कहा कि नामदेव से क्षमा माँगो। सबने नामदेव जी से क्षमा याचना की। उसी समय बिठल रूप में प्रभु अंतर्ध्यान हो गए। उसके पश्चात् सब पालीगण नामदेव का सम्मान करने लगे और पूरे गाँव पुण्डरपुर में पालियों नें आँखों देखी लीला की गवाही दी।


संत गरीबदास जी ने वाणी नं. 108 में कहा कि जगत गुरू यानि परमेश्वर कबीर जी जो सर्व को सच्चा ज्ञान देने वाले हैं, उन्होंने यह सब लीलाऐं की थी। कलंदर रूप का अर्थ है कि संत रूप में गुरू बनकर पुण्डरपुर में आश्रम बनाकर रहे। उस अच्छी आत्मा नामदेव जी की महिमा बढ़ाई तथा उनका कल्याण किया। बिठल होकर रोटी खाई, नामदेव की कला बढ़ाई। पुंण्डरपुर नामा प्रवान, देवल फेर छिवा दई छान।। कुछ दिनों के पश्चात् परमेश्वर कबीर जी उस आश्रम को त्यागकर कहीं चले गए।
पुनः वहाँ नहीं आए। नामदेव जी की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर स्थानीय संत-ब्राह्मण उनका विरोध करने लगे।


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