भक्त पीपा जी की कथा | Story of Peepa Ji [Hindi] | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

जानिए भक्त पीपा जी की कथा | Story of Peepa Ji [Hindi]  के बारे में Spiritual Leader Saint Rampal Ji के माध्यम से


पीपा-सीता सात दिन दरिया में रहे और फिर बाहर आए

भक्त पीपा और सीता सत्संग में सुना करते कि भगवान श्री कृष्ण जी की द्वारिका नगरी समन्दर में समा गई थी। सब महल भी समुद्र में आज भी विद्यमान हैं। बड़ी सुंदर नगरी थी। भगवान श्री कृष्ण जी के स्वर्ग जाने के कुछ समय उपरांत समुद्र ने उस पवित्र नगरी को अपने अंदर समा लिया था। एक दिन पीपा तथा सीता जी गंगा दरिया के किनारे काशी से लगभग चार-पाँच किमी. दूर चले गए। वहाँ एक द्वारिका नाम का आश्रम था। आश्रम से कुछ दूर एक वृक्ष के नीचे एक पाली बैठा था। उसके पास उसी वृक्ष के नीचे बैठकर दोनों चर्चा करने लगे कि भगवान कृष्ण जी की द्वारिका जल में है। पानी के अंदर है। पता नहीं कहाँ पर है? कोई सही स्थान बता दे तो हम भगवान के दर्शन कर लें।


Story of Peepa Ji Hindi by sant rampal ji



पाली ने किया मज़ाक

पाली ने सब बातें सुनी और बोला कौन-सी नगरी की बातें कर रहे हो? उन्होंने कहा कि द्वारिका की। पाली ने कहा वह सामने द्वारिका आश्रम है। पीपा-सीता ने कहा, यह नहीं, जिसमें भगवान कृष्ण जी तथा उनकी पत्नी व ग्याल-गोपियाँ रहती थी। पाली ने कहा, अरे! वह नगरी तो इसी दरिया के जल में है। यहाँ से 100 फुट आगे जाओ। वहाँ नीचे जल में द्वारिका नगरी है। संत भोले तथा विश्वासी होते हैं। स्वामी रामानंद जी प्रचार के लिए 15 दिन के लिए आश्रम से बाहर गए थे। दोनों पीपा तथा सीता ने विचार किया कि जब तक गुरू जी प्रचार से लौटेंगे, तब तक हम भगवान की द्वारिका देख आते हैं। दोनों की एक राय बन गई। उठकर उस स्थान पर जाकर दरिया में छलाँग लगा दी। आसपास खेतों में किसान काम कर रहे थे। उन्होंने देखा कि दो स्त्री-पुरूष दरिया में कूद गए हैं। आत्महत्या कर ली है।


सब दौड़कर दरिया के किनारे आए। पाली से पूछा कि क्या कारण हुआ? ये दोनों मर गए, आत्महत्या क्यों कर ली? पाली ने सब बात बताई। कहा कि मैंने तो मजाक किया था कि दरिया के अंदर भगवान की द्वारिका नगरी है। इन्होंने दरिया में द्वारिका देखने के लिए प्रवेश ही कर दिया। छलांग लगा दी। बड़ी आयु के व्यक्तियों ने कहा कि आपने गलत किया, आपको पाप लगेगा। भक्त तो बहुत सीधे-साधे होते हैं। सब अपने-अपने काम में लग गए। यह बात आसपास गाँव तथा काशी में आग की तरह फैल गई। काशी के व्यक्ति जानते थे कि वे राजा-रानी थे, मर गए।


कबीर परमेश्वर ने समद्र में रची द्वारिका 

परमात्मा ने भक्तों का शुद्ध हृदय देखकर उस दरिया में द्वारिका की रचना कर दी। श्री कृष्ण तथा रूकमणि आदि-आदि सब रानियाँ, ग्वाल, बाल गोपियाँ सब उपस्थित थे। भगवान श्री कृष्ण रूप में विद्यमान थे। सात दिन तक दोनों द्वारिका में रहे। चलते समय श्री कृष्ण रूप में विराजमान परमात्मा ने अपनी ऊँगली से अपनी अंगूठी (छाप) निकालकर भक्त पीपा जी की ऊँगली में डाल दी जिस पर कृष्ण लिखा था। सातवें दिन उसी समय दिन के लगभग 11:00 बजे दरिया से उसी स्थान से निकले।
कपड़े सूखे थे।


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दोनों दरिया किनारे खड़े होकर चर्चा करने लगे कि अब कई दिन यहाँ दिल नहीं लगेगा। खेतों में कार्य कर रहे किसानों ने देखा कि ये तो वही भक्त-भक्तनी हैं जिन्होंने दरिया में छलाँग लगाई थी। आसपास के वे ही किसान फिर से उनके पास दौड़े-दौड़े आए और कहने लगे कि आप तो दरिया में डूब गए थे। जिन्दा कैसे बचे हो? सातवें दिन बाहर आए हो, कैसे जीवित रहे? दोनों ने बताया कि हम भगवान श्री कृष्ण जी के पास द्वारिका में रहे थे। उनके साथ खाना खाया। रूकमणि जी ने अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाया।

कबीर परमेश्वर जी नी ने कृष्ण रूप में दी अंगूठी

वे बहुत अच्छी हैं। भगवान श्री कृष्ण भी बहुत अच्छे हैं। देखो! भगवान ने छाप (अंगूठी) दी है। इस पर उनका नाम लिखा है। यह सब बातें सुनकर सब आश्चर्य कर रहे थे। यह बात भी आसपास के क्षेत्र तथा काशी में फैल गई। सब उनको देखने तथा भगवान द्वारा दी गई छाप को देखने, उसको मस्तिष्क से लगाने आने लगे। स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में मेला-सा लग गया। स्वामी जी भी उसी दिन प्रचार से लौटे थे। उन्होंने यह समाचार सुना तो हैरान थे। छाप देखकर तो सब कोई विश्वास करता था। वैसी छाप (अंगूठी) पृथ्वी पर नहीं थी। उस अंगूठी को एक पुराने श्री विष्णु के मंदिर में रखा गया। कुछ साधु कहते हैं कि वह अंगूठी वर्तमान में भी उस मंदिर में रखी है।

वाणी नं. 109 का यही सरलार्थ है कि पीपा जी को परचा (परिचय अर्थात् चमत्कार) हुआ। भगवान तथा भक्त मिले, आपस में चर्चा हुई। सीता सुधि (सीता सहित) साबुत (सुरक्षित) रहे। द्वारामति (द्वारिका नगरी) निधान यानि वास्तव में अर्थात् यह बात सत्य है।


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