बेगार की परिभाषा-संत गरीबदास जी महाराज | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

आइए जानते है क्या है बेगार की परिभाषा Hindi में संत गरीबदास जी महाराज की वाणियों के माध्यम से संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा


संत गरीबदास जी महाराज की वाणियां


बेगार की परिभाषा
बेगार की परिभाषा


गरीब, अगम निगम को खोज ले, बुद्धि विवेक विचार। उदय-अस्त का राज दे, तो बिन नाम बेगार।


भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिया यथार्थ आध्यात्म ज्ञान बताया है कि हे मानव! अगम (भविष्य का यानि आगे के जीवन का) निगम (दुःख रहित होने का) का विवेक वाली बुद्धि यानि विशेष विवेचन करके विचार कर। यदि मानव के पास सत्यनाम गुरू से प्राप्त नहीं है और उदय (जहाँ से पृथ्वी पर सवेरा होता है) अस्त (जहाँ सूरज छिपता है, शाम होती है, वहाँ पर) का राज्य यानि पूरी पृथ्वी का राज्य भी दे दिया जाए तो वह तो बेगार की तरह है।


बेगार की परिभाषा-संत गरीबदास जी महाराज की वाणियां


सन् 1970 के आसपास पैट्रोल से चलने वाले बड़े तीन पहियों वाले टैम्पो (Three wheeler Tempo) चले थे। एक दिन एक टैम्पो वाला अपने मार्ग पर नहीं आया। अगले दिन उससे पूछा कि कल क्यों नहीं आए तो उसने बताया कि कल बेगार में चला गया था। उस समय थानों में जीप आदि गाडि़याँ नहीं होती थी। यदि पुलिस ने कहीं छापा (रैड) मारना होता तो किसी टैम्पो (Three Wheelar, Four Wheelar ) को शाम को थाने में पकड़कर लाते। रात्रि में या दिन में जहाँ भी जाना होता, उसको ले जाते। मालिक ही ड्राईवर होता था या मालिक का किराए का ड्राईवर होता था। तेल (पैट्रोल) भी अपने पास से डलवाते थे। सारी रात-सारा दिन उसको चलाते रहते थे।

शाम को देर रात उसे छोड़ते थे। अन्य व्यक्ति देखता तो ऐसे लगता कि टैम्पो वाले ने आज तो घनी कमाई करी होगी क्योंकि दिन-रात चला है, परंतु उस टैम्पो वाले ने बताया कि अपने पास से 200 रूपये (वर्तमान के दस हजार रूपये) तेल में और खाने में खर्च हो गए, किराया एक रूपया नहीं मिला। गाड़ी (टैम्पो) की घिसाई यानि चलने से हुई टूट-फूट, वह अलग खर्च हुआ। बेगार का अर्थ है कि आय बिल्कुल नहीं तथा परिश्रम अधिक होता है। खर्च भी अधिक होता है। इसको बेगार कहते हैं। इसी प्रकार राजा अपने पूर्व जन्म के तप तथा दान-धर्म से बनता है। राजा बनने पर जो सुख-सुविधाऐं उसे प्राप्त होती हैं, उनमें उस राजा के पुण्य खर्च होते हैं। यदि वह राजा पूरे गुरू से भक्ति के वास्तविक नाम लेकर भक्ति नहीं करता तो उसको पुण्य की कमाई नहीं होती। पुण्य का खर्च राज के ठाठ में दिन-रात समाप्त हो रहा है। जो सत्य भक्ति नहीं करता, वह राजा बेगार कर रहा है।


ऐसा कौन अभागिया, करे भजन को भंग। लोहे से कंचन भया, पारस के सत्संग।।


भावार्थ :- दीक्षा लेकर ऐसा दुर्भाग्य वाला कौन है जो अपने नाम को खंडित करके भजन (भक्ति) में भंग डालता है। लोहे से कंचन भया यानि नाम लेने से पहले मानव भी पशु-पक्षी जैसा जीवन जी रहा था। गुरू जी से नाम रूपी पारस से छूकर स्वर्ण यानि देवता बना दिया।

गरीब, सतगुरू पशु मानुष करि डारै, सिद्धि देकर ब्रह्म विचारै।
कबीर, बलिहारी गुरू आपने, घड़ी-घड़ी सौ-सौ बार।
मानुष से देवता किया, करत न लागी वार।।


गरीब, ऐसा कौन अभागिया, करें भजनकूं भंग। लोहे सें कंचन भया, पारस के सतसंग।।


सरलार्थ :- वह दीक्षा लेकर महामूर्ख होगा जो पूर्ण संत से दूर होगा और नाम त्यागकर भक्ति करना छोड़ देगा।


गरीब, पारस तुम्हरा नाम है, लोहा हमरी जात। जड़ सेती जड़ पलटियां, तुमकौ केतिक बात।।


सरलार्थ :- हे परमेश्वर! आपका नाम तो पारस है। हम जीव जाति वाले लोहा समान हैं। जब एक जड़ (पारस पत्थर) के छूने मात्र से जड़ (लोहा सोना बन गया) बदल गया (पलट गया) तो आपके लिए हमारे गुण-धर्म बदलकर देवता बनाने की कितनी बात है यानि कोई बात ही नहीं अर्थात् आप तो हम पर अवश्य कृपा करेंगे।


गरीब, बिना भगति क्या होत है, ध्रुवकूं पूछौ जाइ। सवा सेर अन्न पावते, अटल राज दिया ताहि।।


वाणी का सरलार्थ :- ध्रुव भक्त और उसकी माता जी को एक दिन का सवा सेर यानि सवा किलोग्राम अन्न मिलता था खाने को। धु्रव का पिता उतानपात था। धु्रव भक्त की मौसी यानि उतानपात की छोटी पत्नी ने अपनी बड़ी बहन सुनिती को अलग घर में सजा के रूप में छुड़वा रखा था। दिन में केवल सवा सेर अन्न खाने को दिया जाता था।


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