जानिए रंका-बंका की परीक्षा-Ranka Banka ki katha के बारे में Spiritual Leader Saint Rampal Ji द्वारा.
Ranka Banka ki katha-रंका-बंका की परीक्षा
परमेश्वर कबीर जी एक संत के रूप में पुण्डरपुर के पास एक आश्रम बनाकर सत्संग करते थे। नामदेव जी ने वही सत्संग सुना था। परमेश्वर कबीर जी ने ही वह छत बनाई थी। नामदेव जी ने गुरू दीक्षा ले ली। एक अन्य परिवार ने भी दीक्षा उस संत से ले रखी थी। परिवार में तीन प्राणी थे। रंका तथा उसकी पत्नी बंका तथा बेटी अवंका। रंका बहुत निर्धन था। दोनों पति-पत्नी जंगल से लकड़ी तोड़कर लाते थे और शहर में बेचकर निर्वाह चला रहे थे। परमात्मा के विधान को गहराई से जाना था। रंका जी का पूरा परिवार कबीर जी (अन्य रूप में विद्यमान थे) का शिष्य था।
Ranka Banka ki katha-hindi |
भक्त नामदेव भी उसी संत जी (कबीर जी) के शिष्य थे। एक दिन नामदेव जी ने सतगुरू जी से निवेदन किया कि हे प्रभु! आपके भक्त रंका जी बहुत निर्धन हैं। इनको कुछ धन प्रदान करो ताकि निर्वाह ठीक हो सके। जंगल से लकडि़यां बेचकर कठिनता से निर्वाह कर रहे हैं। दुर्बल शरीर है। दोनों पति-पत्नी लकडि़यां वन से लाकर बेचते हैं। भक्ति का समय भी कम मिलता है।
सतगुरू रूप में विराजमान परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि भक्त नामदेव! मैंने बहुत कोशिश की है धन देने की, परंतु ये लेते ही नहीं। नामदेव ने कहा कि हे गुरूदेव! आप फिर से धन दो, अवश्य लेंगे। बड़े दुःखी हैं। जिस समय दोनों रंका तथा उसकी पत्नी बंका जंगल से लकडि़यों का गठ्ठा लिए आ रहे थे तो सतगुरू जी अपने शिष्य नामदेव जी को साथ लेकर उस मार्ग में गए। मार्ग में सोने (ळवसक) के आभूषण, सोने की असरफी (10 ग्राम सोने की बनी हुई) तथा चांदी के आभूषण तथा सिक्के डालकर स्वयं दोनों गुरू-शिष्य किसी झाड़ के पीछे छिपकर खड़े हो गए और उनकी गतिविधि देखने लगे।
रंका-बंका का स्वभाव
भक्त रंका लकडि़यां सिर पर लिए आगे-आगे चल रहा था। उनसे कुछ दूरी पर उनकी पत्नी आ रही थी। रंका जी ने उस आभूषण तथा अन्य सोने को देखकर विचार किया कि मेरी पत्नी आभूषण को देखकर दिल डगमग न कर ले क्योंकि आभूषण स्त्री शको बहुत प्रिय होते हैं। यह विचार करके सर्व धन पर पैरों से मिट्टी डालने लगा। उसकी पत्नी बंका जी की दृष्टि अपने पति की क्रिया पर पड़ी तो समझते देर न लगी और बोली चलो भक्त जी! मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हो? दोनों पति-पत्नी उस सर्व धन को उलंघकर चले गए। तब परमेश्वर जी ने कहा कि देख लो नामदेव! मैं क्या करूं? नामदेव जी को भी अहसास हुआ कि वास्तव में दोनों परम भक्त हैं।
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