ध्रुव और उत्तम की कथा-Dhruv Short Story in Hindi | Spiritual Leader Saint Rampal Ji

जानिए "ध्रुव और उत्तम की कथा-Dhruv Short Story in Hindi" के बारे में 


Dhruv Short Story in Hindi

एक दिन नारद जी ने रानी सुनीति से बताया कि राजा का दूसरा विवाह होगा तो आपको भी संतान प्राप्त होगी और उस नई पत्नी को भी संतान प्राप्त होगी। राजा का वृद्ध अवस्था में दूसरा विवाह हुआ। छोटी पत्नी ने नगर की सीमा पर आकर राजा से वचनबद्ध होकर अपनी शर्त मानने पर विवश किया कि मैं तेरे घर तब चलूंगी, जब तू मेरी बहन को जो आपकी पत्नी है, जाते ही घर से निकालकर दूसरे मकान में रखेगा। उसको सवा सेर अन्न खाने को प्रतिदिन देगा तथा मेरे गर्भ से उत्पन्न पुत्र को राज्य देगा।


Dhruv Short Story in Hindi
Dhruv Short Story in Hindi



सुनिती ही अपने माता-पिता के पास से जिद करके अपनी छोटी बहन सुरिती को माँगकर लाई थी। सुरिती को दुःख था कि इसने मेरे जीवन से खिलवाड़ किया है कि एक वृद्ध से मेरा विवाह कराया है। राजा ने विवश होकर यह शर्त मान ली। कुछ वर्ष पश्चात् बड़ी रानी सुनिती ने एक लड़के को जन्म दिया। उसका नाम ध्रुव रखा। बाद में छोटी रानी सुरिती को लड़का हुआ। उसका नाम उत्तम रखा।


ध्रुव व उत्तम की कथा


जब ध्रुव की आयु 5 वर्ष तथा उत्तम की 4 वर्ष की हुई तो उत्तम का जन्मदिन भी कुछ महीने पश्चात् ही था। राजा ने छोटी रानी के कहने से उत्तम का जन्मदिन मनाया। ध्रुव का जन्मदिन ईर्ष्यावश नहीं मनाने दिया। नगर में धूमधाम थी। ध्रुव ने भी अपने घर से जो नगरी से दूर एक बाग में था, जन्मदिन को देखने जाने की जिद की। माता सुनिती ने कहा कि बेटा! तेरा उस नगर में कोई स्थान नहीं है। परंतु ध्रुव बच्चा था, जिद करके चला गया राजा सिंहासन पर बैठा था। साथ में रानी बैठी थी। उत्तम अपनी माता के साथ गोड़ों (गोद) में बैठा था। धु्रव जाकर पिता के गोड़ों में सिंहासन पर बैठ गया। सुरिती को ईर्ष्या तो थी ही, उसने उठकर ध्रुव का हाथ पकड़कर सिंहासन से नीचे गिरा दिया, लात मारी और कहा कि यह स्थान सौतन के पुत्रा के लिए नहीं है। इस पर उत्तम का अधिकार है।


ध्रुव रोने लगा और पिता की ओर देखने लगा, सोचा कि पिता मुझे बुलाऐगा, फिर से अपने पास बैठाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। आसपास अन्य मंत्र बैठे थे। नाच-गाना हो रहा था। सब यह घटना देख रहे थे। ध्रुव रोता हुआ अपनी माँ के पास गया। माता को पहले ही पता था कि बेटे के साथ क्या होगा? आते ही ध्रुव को अपने सीने से लगाया और कहा कि बेटा! मैंने तेरे को इसलिए मना किया था कि तू वहाँ न जा।


Dhruv का भगवान की तलाश करना

ध्रुव ने माँ से पूछा कि माँ! राजा कौन बनता है? माता ने कहा कि बेटा! राजा भगवान बनाता है। भगवान कहाँ है? कैसे मिलता है? माता ने स्वाभाविक कह दिया कि भगवान जंगल में तपस्या करने से मिलता है। ध्रुव ने कहा कि माँ! मैं वन में जाकर तपस्या करके भगवान को प्राप्त करके राजा बनूंगा। यह कहकर घर छोड़कर वन की ओर जाने लगा। उसी समय रानी ने नौकर के द्वारा राजा को संदेश भेजा कि ध्रुव जंगल में जाने की जिद कर रहा है, उसको संभाल लो। राजा तुरंत वहाँ पर आया और ध्रुव से कहा कि बेटा! ऐसा न कर। मैं तेरे को आधा राज्य दे दूंगा। ध्रुव ने कहा कि नहीं, आप तो छोटी माता से डरते हो, आप नहीं दे पाओगे।


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मैं तो भगवान से राज्य प्राप्त करूँगा। यह कहकर रोता हुआ घर त्यागकर चला गया। रास्ते में नारद जी मिले। उन्होंने पूछा कि कहाँ चले? ध्रुव ने कहा कि मेरी मौसी ने मेरे को लात मारकर पिता के पास से भगा दिया। कहा कि इस राज्य पर तेरा अधिकार नहीं है, उत्तम का अधिकार है। माँ ने बताया कि राज्य भगवान देता है। मैं तपस्या करके भगवान को प्राप्त करके राज्य मागूंगा ऋषि जी। नारद ऋषि ने कहा कि पहले गुरू बनाओ। गुरू बिन साधना निष्फल होती है। ध्रुव ने कहा कि आप मेरे गुरू बन जाओ। नारद ने स्वीकार कर लिया और ध्रुव को दीक्षा दी। ध्रुव ने एक पैर पर खड़ा होकर साधना की, घोर तप किया। खाना-पीना भी कुछ नहीं किया।


ध्रुव और स्वर्ग का राज

बालक का हठ तथा पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति के कारण छठे महीने परमात्मा प्रकट हुए। ध्रुव से कहा कि माँगो बालक! क्या माँगता है? ध्रुव ने कहा कि मुझे अटल राज्य दे दो। भगवान ने कहा कि तेरे को स्वर्ग में राज्य दूँगा। जीवन भर भक्ति कर, घर पर जा। ध्रुव घर पर आ गया। ध्रुव की भक्ति के कारण छोटी माता भी कुछ नम्र हुई और अपनी बड़ी बहन को सामान्य जीवन जीने की आज्ञा दे दी। उत्तम का विवाह हो गया। राज्य भी उत्तम को दिया गया। ध्रुव का भी विवाह हो गया।


उत्तम की मृत्यु 

एक बार गंधर्वों के साथ उत्तम का युद्ध हुआ। युद्ध में उत्तम की मृत्यु हो गई। ध्रुव को पता चला तो गंधर्वों के साथ युद्ध करके विजय प्राप्त की। उत्तम की मृत्यु के पश्चात् पृथ्वी का राज्य भी ध्रुव को प्राप्त हुआ तथा उत्तम की पत्नी भी ध्रुव को दी गई। इस प्रकार ध्रुव भक्त को भक्ति करके अटल राज्य स्वर्ग का मिला तथा पृथ्वी का राज्य भी मिला। सुरिती को कर्म की सजा भी मिली जिसने अपनी छोटी बहन को सताया था। अपने पुत्रा को राजा देखना चाहती थी। वह बेटा भी नहीं रहा। जीवन नरक बना लिया। वाणी का यही भावार्थ है कि भक्ति के बिना क्या जीवन है, ध्रुव भक्त की कथा इसकी गवाह है। कहाँ तो माँ तथा बेटों को कुल सवा किलोग्राम (1250 ग्राम) अन्न मिलता था। 


लुखी-सूखी रोटी खाते थे। भक्ति करने से पृथ्वी तथा स्वर्ग का राज्य प्राप्त हुआ। जीवन रहा तब तक पृथ्वी पर राज्य किया, मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग में एक ध्रुव मण्डल बनाया। उस नगरी पर ध्रुव ने राज्य किया।


Dhruv Short Story in Hindi-कथा का निष्कर्ष

स्पष्टीकरण :- ध्रुव ने जो हठयोग किया था। उससे उसको केवल पूर्व जन्म के संस्कार का ही मिलना था जैसे पाली को भैंस के सींग में परमात्मा मिल गया था। ध्रुव जब बड़े हुए, तब उनको शास्त्रों का ज्ञान हुआ तो शास्त्रविधि अनुसार भक्ति की। उसका फल फिर किसी जन्म में मिलेगा। पहले ध्रुव स्वर्ग के राज्य का समय पूरा करेगा। फिर पृथ्वी पर मानव जन्म प्राप्त करेगा। फिर कोई सतलोक का मार्गदर्शक संत मिला तो मुक्ति होगी नहीं तो चौरासी लाख प्राणियों के जीवन को प्राप्त होगा।(103)

■ वाणी नं. 104 का सरलार्थ :- काशी नगर भक्ति का केन्द्र माना जाता था। ब्राह्मणों ने एक भ्रम फैला रखा था कि जो काशी में करौंत से अपना सिर कटा लेगा, वह सीधा स्वर्ग जाएगा।


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