‘‘चोर चोरी करने से कभी सुखी व धनी नहीं होता’’

कबीर परमेश्वर जी अपने विधानानुसार एक नगर के बाहर जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे। कुछ दिन आश्रम में रहते थे, सत्संग करते थे। फिर भ्रमण के लिए निकल जाते थे। उनका एक जाट किसान शिष्य था जो कुछ ही महीनों से शिष्य बना था। किसान निर्धन था। उसके पास एक बैल था। उसी से किसी अन्य किसान के साथ मेल-जोल करके खेती करता था। दो दिन अन्य का बैल स्वयं लेकर दोनों बैलों से हल चलाता था। फिर दो दिन दूसरा किसान उसका बैल लेकर अपने बैल के साथ जोड़कर हल जोतता था। किसान अपने कच्चे मकान के आँगन में बैल को बाँधता था। एक रात्रि में चोर ने उस किसान के बैल को चुरा लिया। किसान ने देखा कि बैल चोरी हो गया तो सुबह वह आश्रम में गया। गुरूदेव जी से अपना दुःख सांझा किया। गुरूदेव जी ने कहा कि बेटा! विश्वास रख परमात्मा पर, दान-धर्म-भक्ति करता रह, आपको परमात्मा दो बैल देगा। जो चुराकर ले गया है, वह पाप का भागी बना है। परमेश्वर की कृपा से बारिश अच्छी हुई। किसान भक्त की फसल चौगुनी हुई। भक्त किसान ने दो बैल मोल लिये और उनको अच्छी खुराक खिलाई। बैल खागड़ों (सांडों) जैसे ताकतवर हो गए। गाँव में उसके बैलों की चर्चा होती थी। एक वर्ष पश्चात् वही चोर उसी क्षेत्रा में चोरी करने आया। कहीं दाँव नहीं लगा। उसने विचार किया कि जिसका बैल चुराया था, उसके घर देखता हूँ, हो सकता है कोई बैल ले आया हो। देखा तो दो बैल खागड़ों जैसे बँधे थे। चोर ने दोनों चुरा लिए। किसान जागा तो बैल चोरी हो चुके थे। गुरू जी से बताया तो गुरू जी ने कहा कि बेटा! तेरे घर चार बैल देगा भगवान। चोर कभी सेठ नहीं हो सकता। पाप-पाप इकट्ठे करता है। रजा परमात्मा की, आशीर्वाद गुरूदेव का, बारिश ने किसानों की मौज कर दी। भक्त किसान के पास जमीन पर्याप्त थी, परंतु बारिश के अभाव से खेती थोड़े क्षेत्  में करता था। बारिश अच्छी हो गई। दो बैल मोल लिए, दो कर्जे पर लिए, खेती अधिक जमीन में की। एक नौकर हाली रखा।
एक वर्ष में सब कर्ज भी उतर गया। बैल चार हो गए खागड़ों जैसे मोटे-मोटे, तगड़े-तगड़े। मकान भी पक्का बना लिया। चोर दो वर्ष के पश्चात् उधर गया और पहले उसी किसान की स्थिति देखने गया। चोर ने देखा कि चार बैल सांडों जैसे बैठे थे और चोर के पास दो दिन का आटा शेष था। अधिक निर्धन हो गया था।
चोर ने किसान को रात्रि में नींद से उठाया तो किसान बोला, कौन हो आप? चोर ने कहा कि मैं चोर हूँ जिसने तेरे तीन बैल चुराए थे। किसान बोला, भाई! मेरी नींद खराब ना कर, तू अपना काम कर। परमात्मा अपना कर रहा है, मुझे सोने दे। चोर ने पैर पकड़ लिए और बोला, हे देवता! मेरे से अब चोरी नहीं हो रही। एक बात बता, आपका चोर आपके सामने खड़ा है, आप पकड़ भी नहीं रहे हो। हे भाई! तेरा एक बैल मैंने चुराया, तेरे घर अगले वर्ष दो बैल खागड़ों जैसे बँधे थे, वे दोनों भी मैं चुरा ले गया। आज दो वर्ष पश्चात् आपके आँगन में चार बैल खागड़ों जैसे बँधे हैं। मेरा सर्वनाश हो चुका है। बालक भी भूखे रहते हैं। मुझे मार चाहे छोड़, मुझे तेरे विकास का राज बता। मैं भी जाट किसान हूँ, जमीन भी है। निर्धनता बेअन्त है। भक्त किसान ने उसको कहा कि आप स्नान करो, खाना खाओ। चोर ने वैसा ही किया। फिर भक्त उस चोर को आश्रम में लेकर गया। गुरूदेव से सब घटना बताई। गुरू देव ने चोर को समझाया। सात-आठ दिन भक्त किसान ने अपने घर पर रखा और प्रतिदिन गुरू जी से मिलाकर सत्संग सुनाया। चोर ने दीक्षा ली। गुरू जी ने कहा कि भक्त बेटा! नए भक्त को एक बैल दे दे उधारा। खेती करेगा, तेरे पैसे लौटा देगा। भक्त ने कहा, गुरूजी! ठीक है। भक्त किसान ने नए भक्त को एक बैल दे दिया। नया भक्त प्रति महीना सत्संग में आता था। पूरे परिवार को नाम (दीक्षा) दिला दिया। दो वर्ष में वित्तीय स्थिति अच्छी हो गई। एक बैल 3 तीन पहले वाले (चोरी वाले) बैलों के रूपये लेकर चोर भक्त उस किसान भक्त के घर आया। उसके बच्चे भी साथ थे। किसान भक्त से उस चोर भक्त ने सब पैसे देकर कहा कि मुझे क्षमा करना। आपका उपकार मेरी सात पीढ़ी भी नहीं उतार पाएगी।
पुराना भक्त बोला कि हे भाई! यह सब गुरूदेव जी की कृपा है। उनका वचन फला है। आप यह सब रूपये गुरू जी को दान रूप में दो। मेरे को तो उन्होंने पहले ही कई गुणा बैलों की पूंजी दे दी थी। मेरे काम की नहीं। दोनों भक्त गुरू जी के पास गए और सर्व दान राशि चरणों में दख दी। गुरू जी ने भोजन-भण्डारा (लंगर) में लगा दी, सत्संग किया। इस प्रकार चोरी का धन मोरी में जाता है। भक्त सदा फलता-फूलता है।

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