कबीर साहेब के द्वारा वैश्या के जीवन का उद्धार | Story Explained by Sant Rampal Ji Maharaj (Hindi)

कबीर साहेब के द्वारा वैश्या के जीवन का उद्धार | Story Explained by Sant Rampal Ji Maharaj (Hindi)

kabir saheb dwara vaishya ka uddhar
वैश्या का उद्धार

 सत्संग सुनने से जीवन सुधर जाता है :-

परमेश्वर कबीर जी रात्रि में घर-घर में सत्संग करते थे। दिन में अपने निर्वाह के लिए सब श्रोता तथा कबीर जी कार्य करते थे। एक रात्रि में सत्संग चल रहा था। थोड़ी दूरी पर काशी शहर की प्रसिद्ध वैश्या चम्पाकली का आलीशान मकान था। उस रात्रि में वैश्या को ग्राहकों का टोटा था। जिस कारण से इंतजार में जाग रही थी। उसको परमात्मा कबीर जी के मुख कमल से प्रिय अमृतवाणी सुनाई दी। सत्संग में बताया गया कि मानव (स्त्री/पुरूष) का जीवन बड़े पुण्यों से प्राप्त होता है। जो स्त्री-पुरूष भक्ति नहीं करते, दान-सेवा नहीं करते, वे परमात्मा के चोर हैं। (गीता अध्याय 3 श्लोक 12 में भी कहा कि जो व्यक्ति परमात्मा से प्राप्त धन का कुछ अंश दान-धर्म में लगाए बिना स्वयं ही पेट भरता रहता है, वह तो परमात्मा का चोर ही है।) जो मानव चोरी, डकैती, ठगी, वैश्यागमन करते हैं, वे महाअपराधी हैं। जो स्त्रियाँ वैश्या का धंधा करती हैं, वे भी महाअपराधी हैं। परमात्मा के दरबार में उनको कठिन दण्ड दिया जाएगा। मानव जीवन शुभ कर्म करने तथा भक्ति करने के लिए प्राप्त होता है।

कबीर, चोरी जारी वैश्या वृति, कबहु ना करयो कोए।
पुण्य पाई नर देही, ओच्छी ठौर न खोए।।

शब्दार्थ :- हे मानव! चोरी-जारी यानि परस्त्री गमन, वैश्यावृति यानि परपुरूषों से धन के लोभ में स्त्री का संभोग करना कोई भी ना करना। यह मानव शरीर (स्त्री/पुरूष) बहुत पुण्यों से प्राप्त हुआ है। इससे पाप कार्यों को करके गलत स्थान पर जाकर नष्ट मत कर। शुभ कर्म कर, गुरू धारण करके अपना कल्याण करवाओ। मानव शरीर प्राप्त प्राणी को चाहिए कि सर्वप्रथम पूर्ण गुरू की शरण में जाकर दीक्षा प्राप्त करे। फिर आजीवन गुरू जी की मर्यादा में रहकर साधना तथा सेवा, दान-धर्म करता रहे। अपना दैनिक कार्य भी करे, परंतु सर्व बुराई त्याग दे। उसका कल्याण अवश्य होता है। अध्यात्म ज्ञान के अभाव से मानव (स्त्री/पुरूष) केवल धन उपार्जन को अपना मुख्य लक्ष्य बनाकर जीवन सफर को तय करता है। यदि आपके पास अरब-खरब तक धन-संपत्ति है जो आपने पूरे जीवन में अट-पट, छल-कपट करके संग्रह की है। अचानक मृत्यु हो जाती है। सारे जीवन का जोड़ा धन तो यहीं रह गया, साथ तो शरीर भी नहीं गया, साथ गए तो वे पाप जो पूरे जीवन में माया के संग्रह में हुए थे।

काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होय।
गुरू चरणों में ध्यान रख, इन दोनों को खोय।।

कबीर, सब जग निर्धना, धनवंता ना कोय।
धनवान वह जानिये, जापे राम नाम धन होय।।

भावार्थ :- जिस काया को रोगमुक्त कराने के लिए मानव अपनी संपत्ति को भी बेचकर उपचार कराता है। कहा है कि काया भी आपके साथ नहीं जाएगी, माया की तो बात ही क्या है। पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर दिन-रात्रि भक्ति कर। गुरू जी के बताए ज्ञान को आधार बनाकर जीवन की राह पर चल। काया तथा माया से मोह हटाकर भक्ति धन संग्रह कर। हे मानव! मानव का पिछला इतिहास देख ले।

सर्व सोने की लंका थी, रावण से रणधीरं।
एक पलक में राज नष्ट हुआ, जम के पड़े जंजीरं।।

गरीब, भक्ति बिना क्या होत है, भ्रम रहा संसार।
रती कंचन पाया नहीं, रावण चली बार।।

भावार्थ :- संत गरीबदास जी ने भी इसी बात का समर्थन किया कि भक्ति बिना जीव को कोई लाभ नहीं होता। माया जोड़ने के लिए आजीवन भटकता रहता है। श्रीलंका के राजा रावण के पास अनन्त धन, स्वर्ण आदि था, परंतु संसार त्यागकर जाते समय एक ग्राम स्वर्ण भी साथ नहीं ले जा सका। सत्य भक्ति सत्य पुरूष की न करने से यमदूतों के द्वारा बेल (हथकड़ी) बाँधकर ऊपर यमराज के पास ले जाया गया। नरक में डाला गया। इसलिए हे मानव! अशुभ कर्मों से डर, सत्य भक्ति गुरू धारण करके कर।

शंका समाधान करते हुए परमेश्वर कबीर जी ने सत्संग में बताया कि आध्यात्मिक ज्ञान के न होने के कारण अच्छे व्यक्तियों से भी पाप हुए हैं। जब उन्होंने सत्संग सुना तो सर्व अपराध त्यागकर भक्ति करके अपना कल्याण कराया है। परमात्मा कबीर जी ने बताया कि मेरे पास साधना के वे यथार्थ मंत्र हैं जो सर्व पापों को नष्ट कर देते हैं। पुण्य बच जाते हैं। (जैसे वर्तमान में वैज्ञानिकों ने ऐसी औषधि खोजी है जो खेती में डालने से घास व खरपतवार को नष्ट कर देती है, फसल सुरक्षित रहती है।) ये मंत्र मैं अपने लोक से लेकर आया हूँ।

सोहं शब्द हम जग में लाए। सार शब्द हम गुप्त छिपाए।।


(ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मंत्र 2 में भी प्रमाण है कि ‘‘परमात्मा इस संसार में प्रत्यक्ष प्रकट होकर अपनी अमृतवाणी द्वारा मुक्ति के सत्य मार्ग की प्रेरणा करता है। वह परमात्मा सब देवों का देव यानि सर्व का मालिक भक्ति के गुप्त नामों का आविष्कार करता है।) 

यदि कोई महापापी भी है, सत्य साधना करने लग जाता है और भविष्य में कोई पाप नहीं करता है तो उसके सर्व पाप समाप्त हो जाते हैं, भक्ति करके अपना कल्याण करा सकता है।
उपरोक्त अमृतवचन सुनकर वह बहन वैश्या जैसे गहरी नींद से जागी हो। कांपने लग गई। घर में ताला लगाकर सत्संग स्थल पर गई। पीछे ही महिलाओं की ओर बैठ गई। सत्संग समाप्त होने के पश्चात् आवाज लगी कि जो दीक्षा लेना चाहता है, वह आगे गुरू देव जी के पास आ जाए। कुछ स्त्री तथा पुरूष उठकर आगे आए। वह वैश्या भी आई और गुरूदेव जी को अपना परिचय दिया और बताया कि मैंने तो 40 वर्ष की आयु में प्रथम बार ये उपकारी वचन सुनने को मिले हैं। हे परमात्मा! क्या मेरे जैसी पापिन का भी कल्याण संभव है? वैसे तो आप जी ने सर्व समाधान सत्संग में बता दिया, परंतु जब अपने घृणित जीवन की ओर झांकती हूँ तो ग्लानि होती है तथा विश्वास नहीं हो रहा कि मेरे जैसे अपराधी को क्षमा कर दिया जाएगा। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि :-

कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धरा, भयो पाप को नाश।
जैसे चिनंगी अग्नि की, पडै पुरानै घास।।

भावार्थ :- जैसे करोड़ टन सूखे घास का ढ़ेर लगा हो। यदि उसमें एक तीली माचिस की जलाकर डाल दी जाए तो उस घास को राख बना देती है। फिर हवा चलेगी जो उस राख को भी उड़ाकर ले जाएगी। काम-तमाम हुआ। इसी प्रकार करोड़ों जन्मों के भी पाप क्यों न हों, मेरे सच्चे मंत्रा का जाप उसे जलाकर राख कर देगा। भविष्य में कोई गलती न करना, कल्याण हो जाएगा। (यजुर्वेद के अध्याय 8 मंत्र 13 में भी यही प्रमाण है कि परमात्मा अपने भक्त घोर पापों का नाश कर देता है। जीव का कल्याण कर देता है।) उस बहन ने पाप का कार्य (वैश्या का धंधा) त्याग दिया। परमात्मा कबीर जी से दीक्षा लेकर मर्यादा का पालन करते हुए आजीवन साधना करके चम्पाकली ने मोक्ष प्राप्त किया।


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